उर्वरक क्षेत्र पर रूसी-यूक्रेनी संघर्ष का प्रभाव

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24 फरवरी 2022 को यूक्रेन पर रूसी आक्रमण से भारतीय अर्थव्यवस्था, नकारात्मक और सकारात्मक दोनों प्रकार से प्रभावित होगा। रूस को दंडित करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देशों ने रूसी कंपनियों और बैंकों पर कई प्रतिबंध लगाए हैं। कुछ विशेष रूसी बैंकों को अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संदेश प्रणाली स्विफ्ट (सोसाइटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशन) से प्रतिबंधित कर दिया गया है।

रूसी-यूक्रेनी संघर्ष का भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्षेत्रवार प्रभाव का विश्लेषण करने का प्रयास करेंगे। 

आइए हम उर्वरक क्षेत्रों पर युद्ध के प्रभाव की जाँच करें; 

उर्वरक क्षेत्र : 

  • भारत कृषि क्षेत्रों में प्रयुक्त विभिन्न उर्वरकों के उत्पादन में आत्मनिर्भर नहीं है। भारत यूरिया, डायमोनियम फॉस्फेट (डीएपी), म्यूरेट ऑफ पोटाश (एमओपी) का आयात करता है।

  • भारत 5 मिलियन टन एमओपी की अपनी सभी आवश्यकताओं का आयात करता है, जिसमें से 18% बेलारूस से आता है। रूस को यूक्रेन पर हमला करने हेतु अपने क्षेत्र का उपयोग करने की अनुमति देने के लिए पश्चिमी देशों ने बेलारूस पर प्रतिबंध लगाए हैं। ऐसे में बेलारूस से आपूर्ति बाधित होने की संभावना है।

  • भारत अपनी यूरिया आवश्यकता का 25% आयात के माध्यम से पूरा करता है। भारत अपनी वार्षिक यूरिया आवश्यकता का लगभग 10% यूक्रेन से आयात करता है।

  • डीएपी ज्यादातर भारत में आयात किया जाता है। भारतीय कंपनियों का पहले से ही रूसी कंपनी फोसाग्रो के साथ 400,000 टन डीएपी के लिए आयात सौदा है। ऐसा लगता नहीं है कि अनुबंधित उर्वरक शीघ्र ही भारत पहुंच जाएगा।

  • रूस दुनिया में प्राकृतिक गैस का एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता है जो उर्वरकों के उत्पादन के लिए एक प्रमुख कच्चा माल है। भारत में उत्पादित यूरिया की लागत लगभग 75 से 80% प्राकृतिक गैस है।

  • अभी तक पश्चिमी देशों ने रूसी तेल और गैस क्षेत्र पर प्रतिबंध नहीं लगाए हैं, लेकिन अगर यह  नीति बदल जाती है तो प्राकृतिक गैस की कीमतें काफी बढ़ जाएंगी, जिससे उर्वरक अधिक महंगे हो जाएंगे। 

  • रूस विश्व में नाइट्रोजन का सबसे बड़ा उत्पादक और पोटाश का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक और विश्व में फॉस्फेट का तीसरा सबसे बड़ा निर्यातक है। 

  • आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान और प्राकृतिक गैस की कीमतों में उछाल के साथ, अंतरराष्ट्रीय बाजारों में उर्वरकों की कीमतें लगभग दोगुनी हो गई हैं।  

भारत के लिए निहितार्थ

कृषि क्षेत्र, जो देश के लगभग 43 प्रतिशत कार्यबल को रोजगार देता है और देश के सकल मूल्य वर्धित (जीवीए) में 18.8 प्रतिशत (2021-22) के लिए उत्तरदायी है, को व्यापक नुकसान होगा।

  • उर्वरकों की कीमतों में वृद्धि और इसकी कमी से खाद्यान्नों के उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इससे खाद्यान्नों के उत्पादन में गिरावट आएगी जिससे भारत में खाद्य मुद्रास्फीति और बढ़ेगी।

  • खाद्य मुद्रास्फीति से देश में विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी और असमानता बढ़ेगी।

  • भारत में उर्वरकों पर सामान्य रूप से सब्सिडी दी जाती है और आयातित उर्वरकों की बढ़ती लागत के साथ सरकार को उर्वरकों पर सब्सिडी बढ़ानी होगी। 2020-21 में, सरकार ने उर्वरक सब्सिडी पर 127,921.74 करोड़ रुपये खर्च किए और 2022-23 के लिए इसने 79,529.68 करोड़ रुपये की सब्सिडी  का प्रावधान किया है ।

  • सब्सिडी बिल में वृद्धि से सरकारी घाटा बढ़ेगा जिससे मुद्रास्फीति अधिक होगी।

  • भारतीय अर्थव्यवस्था, आरबीआई के अनुसार, 2022-23 में 7.8% बढ़ने की उम्मीद है, जिसे प्राप्त करने में बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ेगा। 

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