CTET HINDI QUIZ 40

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Question 1:

गद्यांश को ध्यान से पढ़ें और दिए गए प्रश्नों के उत्तर दें।

कबीर ने समाज में रहकर समाज का समीप से निरीक्षण किया। समाज में फैले बाह्याडंबर, भेदभाव, साम्प्रदायिकता आदि का उन्होंने पुष्ट प्रमाण लेकर ऐसा दृढ विरोध किया कि किसी की हिम्मत नहीं हुई जो उनके अकाट्य तर्कों को काट सके। कबीर का व्यक्तित्व इतना ऊँचा था कि उनके सामने टिक सकने की हिम्मत किसी में नहीं थी। इस प्रकार उन्होंने समाज तथा धर्म की बुराइयों को निकाल-निकालकर सबके सामने रखा, ऊँचा नाम रखकर संसार को ठगनेवालों के नकली चेहरों को सबको दिखाया और दीन-दलितों को ऊपर उठने का उपदेश देकर, अपने व्यक्तित्व को सुधारकर सबके सामने एक महान आदर्श प्रस्तुत कर सिद्धांतों का निरूपण किया। कर्म, सेवा, अहिंसा तथा निर्गुण मार्ग का प्रसार किया। कर्मकाण्ड व मूर्तिपूजा का विरोध किया। अपनी साखियों, रमैनियों तथा शब्दों को बोलचाल की भाषा में रखकर सबके सामने एक विशाल ज्ञानमार्ग खोला। इस प्रकार कबीर ने समन्वयवादी दृष्टिकोण अपनाया और कथनी-करनी एकता पर बल दिया। वे महान युगदृष्टा, समाज सुधारक तथा महान कवि थे। उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम के बीच समन्वय की धारा प्रवाहित कर दोनों को ही शीतलता प्रदान की।

इस अनुच्छेद का उपयुक्त शीर्षक:

गद्यांश को ध्यान से पढ़ें और दिए गए प्रश्नों के उत्तर दें। कबीर ने समाज में रहकर समाज का समीप से निरीक्षण किया। समाज में फैले बाह्याडंबर, भेदभाव, साम्प्रदायिकता आदि का उन्होंने पुष्ट प्रमाण लेकर ऐसा दृढ विरोध किया कि किसी की हिम्मत नहीं हुई जो उनके अकाट्य तर्कों को काट सके। कबीर का व्यक्तित्व इतना ऊँचा था कि उनके सामने टिक सकने की हिम्मत किसी में नहीं थी। इस प्रकार उन्होंने समाज तथा धर्म की बुराइयों को निकाल-निकालकर सबके सामने रखा, ऊँचा नाम रखकर संसार को ठगनेवालों के नकली चेहरों को सबको दिखाया और दीन-दलितों को ऊपर उठने का उपदेश देकर, अपने व्यक्तित्व को सुधारकर सबके सामने एक महान आदर्श प्रस्तुत कर सिद्धांतों का निरूपण किया। कर्म, सेवा, अहिंसा तथा निर्गुण मार्ग का प्रसार किया। कर्मकाण्ड व मूर्तिपूजा का विरोध किया। अपनी साखियों, रमैनियों तथा शब्दों को बोलचाल की भाषा में रखकर सबके सामने एक विशाल ज्ञानमार्ग खोला। इस प्रकार कबीर ने समन्वयवादी दृष्टिकोण अपनाया और कथनी-करनी एकता पर बल दिया। वे महान युगदृष्टा, समाज सुधारक तथा महान कवि थे। उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम के बीच समन्वय की धारा प्रवाहित कर दोनों को ही शीतलता प्रदान की।

Question 2:

गद्यांश को ध्यान से पढ़ें और दिए गए प्रश्नों के उत्तर दें।

कबीर ने समाज में रहकर समाज का समीप से निरीक्षण किया। समाज में फैले बाह्याडंबर, भेदभाव, साम्प्रदायिकता आदि का उन्होंने पुष्ट प्रमाण लेकर ऐसा दृढ विरोध किया कि किसी की हिम्मत नहीं हुई जो उनके अकाट्य तर्कों को काट सके। कबीर का व्यक्तित्व इतना ऊँचा था कि उनके सामने टिक सकने की हिम्मत किसी में नहीं थी। इस प्रकार उन्होंने समाज तथा धर्म की बुराइयों को निकाल-निकालकर सबके सामने रखा, ऊँचा नाम रखकर संसार को ठगनेवालों के नकली चेहरों को सबको दिखाया और दीन-दलितों को ऊपर उठने का उपदेश देकर, अपने व्यक्तित्व को सुधारकर सबके सामने एक महान आदर्श प्रस्तुत कर सिद्धांतों का निरूपण किया। कर्म, सेवा, अहिंसा तथा निर्गुण मार्ग का प्रसार किया। कर्मकाण्ड व मूर्तिपूजा का विरोध किया। अपनी साखियों, रमैनियों तथा शब्दों को बोलचाल की भाषा में रखकर सबके सामने एक विशाल ज्ञानमार्ग खोला। इस प्रकार कबीर ने समन्वयवादी दृष्टिकोण अपनाया और कथनी-करनी एकता पर बल दिया। वे महान युगदृष्टा, समाज सुधारक तथा महान कवि थे। उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम के बीच समन्वय की धारा प्रवाहित कर दोनों को ही शीतलता प्रदान की।

कबीर ने किस प्रकार निर्गुण मार्ग का प्रसार किया?

गद्यांश को ध्यान से पढ़ें और दिए गए प्रश्नों के उत्तर दें। कबीर ने समाज में रहकर समाज का समीप से निरीक्षण किया। समाज में फैले बाह्याडंबर, भेदभाव, साम्प्रदायिकता आदि का उन्होंने पुष्ट प्रमाण लेकर ऐसा दृढ विरोध किया कि किसी की हिम्मत नहीं हुई जो उनके अकाट्य तर्कों को काट सके। कबीर का व्यक्तित्व इतना ऊँचा था कि उनके सामने टिक सकने की हिम्मत किसी में नहीं थी। इस प्रकार उन्होंने समाज तथा धर्म की बुराइयों को निकाल-निकालकर सबके सामने रखा, ऊँचा नाम रखकर संसार को ठगनेवालों के नकली चेहरों को सबको दिखाया और दीन-दलितों को ऊपर उठने का उपदेश देकर, अपने व्यक्तित्व को सुधारकर सबके सामने एक महान आदर्श प्रस्तुत कर सिद्धांतों का निरूपण किया। कर्म, सेवा, अहिंसा तथा निर्गुण मार्ग का प्रसार किया। कर्मकाण्ड व मूर्तिपूजा का विरोध किया। अपनी साखियों, रमैनियों तथा शब्दों को बोलचाल की भाषा में रखकर सबके सामने एक विशाल ज्ञानमार्ग खोला। इस प्रकार कबीर ने समन्वयवादी दृष्टिकोण अपनाया और कथनी-करनी एकता पर बल दिया। वे महान युगदृष्टा, समाज सुधारक तथा महान कवि थे। उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम के बीच समन्वय की धारा प्रवाहित कर दोनों को ही शीतलता प्रदान की।

Question 3:

गद्यांश को ध्यान से पढ़ें और दिए गए प्रश्नों के उत्तर दें।

कबीर ने समाज में रहकर समाज का समीप से निरीक्षण किया। समाज में फैले बाह्याडंबर, भेदभाव, साम्प्रदायिकता आदि का उन्होंने पुष्ट प्रमाण लेकर ऐसा दृढ विरोध किया कि किसी की हिम्मत नहीं हुई जो उनके अकाट्य तर्कों को काट सके। कबीर का व्यक्तित्व इतना ऊँचा था कि उनके सामने टिक सकने की हिम्मत किसी में नहीं थी। इस प्रकार उन्होंने समाज तथा धर्म की बुराइयों को निकाल-निकालकर सबके सामने रखा, ऊँचा नाम रखकर संसार को ठगनेवालों के नकली चेहरों को सबको दिखाया और दीन-दलितों को ऊपर उठने का उपदेश देकर, अपने व्यक्तित्व को सुधारकर सबके सामने एक महान आदर्श प्रस्तुत कर सिद्धांतों का निरूपण किया। कर्म, सेवा, अहिंसा तथा निर्गुण मार्ग का प्रसार किया। कर्मकाण्ड व मूर्तिपूजा का विरोध किया। अपनी साखियों, रमैनियों तथा शब्दों को बोलचाल की भाषा में रखकर सबके सामने एक विशाल ज्ञानमार्ग खोला। इस प्रकार कबीर ने समन्वयवादी दृष्टिकोण अपनाया और कथनी-करनी एकता पर बल दिया। वे महान युगदृष्टा, समाज सुधारक तथा महान कवि थे। उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम के बीच समन्वय की धारा प्रवाहित कर दोनों को ही शीतलता प्रदान की।

समाज सुधारक के रूप में कबीर का क्या योगदान था?

गद्यांश को ध्यान से पढ़ें और दिए गए प्रश्नों के उत्तर दें। कबीर ने समाज में रहकर समाज का समीप से निरीक्षण किया। समाज में फैले बाह्याडंबर, भेदभाव, साम्प्रदायिकता आदि का उन्होंने पुष्ट प्रमाण लेकर ऐसा दृढ विरोध किया कि किसी की हिम्मत नहीं हुई जो उनके अकाट्य तर्कों को काट सके। कबीर का व्यक्तित्व इतना ऊँचा था कि उनके सामने टिक सकने की हिम्मत किसी में नहीं थी। इस प्रकार उन्होंने समाज तथा धर्म की बुराइयों को निकाल-निकालकर सबके सामने रखा, ऊँचा नाम रखकर संसार को ठगनेवालों के नकली चेहरों को सबको दिखाया और दीन-दलितों को ऊपर उठने का उपदेश देकर, अपने व्यक्तित्व को सुधारकर सबके सामने एक महान आदर्श प्रस्तुत कर सिद्धांतों का निरूपण किया। कर्म, सेवा, अहिंसा तथा निर्गुण मार्ग का प्रसार किया। कर्मकाण्ड व मूर्तिपूजा का विरोध किया। अपनी साखियों, रमैनियों तथा शब्दों को बोलचाल की भाषा में रखकर सबके सामने एक विशाल ज्ञानमार्ग खोला। इस प्रकार कबीर ने समन्वयवादी दृष्टिकोण अपनाया और कथनी-करनी एकता पर बल दिया। वे महान युगदृष्टा, समाज सुधारक तथा महान कवि थे। उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम के बीच समन्वय की धारा प्रवाहित कर दोनों को ही शीतलता प्रदान की।

Question 4:

गद्यांश को ध्यान से पढ़ें और दिए गए प्रश्नों के उत्तर दें।

कबीर ने समाज में रहकर समाज का समीप से निरीक्षण किया। समाज में फैले बाह्याडंबर, भेदभाव, साम्प्रदायिकता आदि का उन्होंने पुष्ट प्रमाण लेकर ऐसा दृढ विरोध किया कि किसी की हिम्मत नहीं हुई जो उनके अकाट्य तर्कों को काट सके। कबीर का व्यक्तित्व इतना ऊँचा था कि उनके सामने टिक सकने की हिम्मत किसी में नहीं थी। इस प्रकार उन्होंने समाज तथा धर्म की बुराइयों को निकाल-निकालकर सबके सामने रखा, ऊँचा नाम रखकर संसार को ठगनेवालों के नकली चेहरों को सबको दिखाया और दीन-दलितों को ऊपर उठने का उपदेश देकर, अपने व्यक्तित्व को सुधारकर सबके सामने एक महान आदर्श प्रस्तुत कर सिद्धांतों का निरूपण किया। कर्म, सेवा, अहिंसा तथा निर्गुण मार्ग का प्रसार किया। कर्मकाण्ड व मूर्तिपूजा का विरोध किया। अपनी साखियों, रमैनियों तथा शब्दों को बोलचाल की भाषा में रखकर सबके सामने एक विशाल ज्ञानमार्ग खोला। इस प्रकार कबीर ने समन्वयवादी दृष्टिकोण अपनाया और कथनी-करनी एकता पर बल दिया। वे महान युगदृष्टा, समाज सुधारक तथा महान कवि थे। उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम के बीच समन्वय की धारा प्रवाहित कर दोनों को ही शीतलता प्रदान की।

इनमें से कौन - सा विरोध का पर्यायवाची नहीं है?

गद्यांश को ध्यान से पढ़ें और दिए गए प्रश्नों के उत्तर दें। कबीर ने समाज में रहकर समाज का समीप से निरीक्षण किया। समाज में फैले बाह्याडंबर, भेदभाव, साम्प्रदायिकता आदि का उन्होंने पुष्ट प्रमाण लेकर ऐसा दृढ विरोध किया कि किसी की हिम्मत नहीं हुई जो उनके अकाट्य तर्कों को काट सके। कबीर का व्यक्तित्व इतना ऊँचा था कि उनके सामने टिक सकने की हिम्मत किसी में नहीं थी। इस प्रकार उन्होंने समाज तथा धर्म की बुराइयों को निकाल-निकालकर सबके सामने रखा, ऊँचा नाम रखकर संसार को ठगनेवालों के नकली चेहरों को सबको दिखाया और दीन-दलितों को ऊपर उठने का उपदेश देकर, अपने व्यक्तित्व को सुधारकर सबके सामने एक महान आदर्श प्रस्तुत कर सिद्धांतों का निरूपण किया। कर्म, सेवा, अहिंसा तथा निर्गुण मार्ग का प्रसार किया। कर्मकाण्ड व मूर्तिपूजा का विरोध किया। अपनी साखियों, रमैनियों तथा शब्दों को बोलचाल की भाषा में रखकर सबके सामने एक विशाल ज्ञानमार्ग खोला। इस प्रकार कबीर ने समन्वयवादी दृष्टिकोण अपनाया और कथनी-करनी एकता पर बल दिया। वे महान युगदृष्टा, समाज सुधारक तथा महान कवि थे। उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम के बीच समन्वय की धारा प्रवाहित कर दोनों को ही शीतलता प्रदान की।

Question 5:

गद्यांश को ध्यान से पढ़ें और दिए गए प्रश्नों के उत्तर दें।

कबीर ने समाज में रहकर समाज का समीप से निरीक्षण किया। समाज में फैले बाह्याडंबर, भेदभाव, साम्प्रदायिकता आदि का उन्होंने पुष्ट प्रमाण लेकर ऐसा दृढ विरोध किया कि किसी की हिम्मत नहीं हुई जो उनके अकाट्य तर्कों को काट सके। कबीर का व्यक्तित्व इतना ऊँचा था कि उनके सामने टिक सकने की हिम्मत किसी में नहीं थी। इस प्रकार उन्होंने समाज तथा धर्म की बुराइयों को निकाल-निकालकर सबके सामने रखा, ऊँचा नाम रखकर संसार को ठगनेवालों के नकली चेहरों को सबको दिखाया और दीन-दलितों को ऊपर उठने का उपदेश देकर, अपने व्यक्तित्व को सुधारकर सबके सामने एक महान आदर्श प्रस्तुत कर सिद्धांतों का निरूपण किया। कर्म, सेवा, अहिंसा तथा निर्गुण मार्ग का प्रसार किया। कर्मकाण्ड व मूर्तिपूजा का विरोध किया। अपनी साखियों, रमैनियों तथा शब्दों को बोलचाल की भाषा में रखकर सबके सामने एक विशाल ज्ञानमार्ग खोला। इस प्रकार कबीर ने समन्वयवादी दृष्टिकोण अपनाया और कथनी-करनी एकता पर बल दिया। वे महान युगदृष्टा, समाज सुधारक तथा महान कवि थे। उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम के बीच समन्वय की धारा प्रवाहित कर दोनों को ही शीतलता प्रदान की।

कबीर के अकाट्य तर्कों को काटने की क्षमता किसी में क्यों नहीं थी?

गद्यांश को ध्यान से पढ़ें और दिए गए प्रश्नों के उत्तर दें। कबीर ने समाज में रहकर समाज का समीप से निरीक्षण किया। समाज में फैले बाह्याडंबर, भेदभाव, साम्प्रदायिकता आदि का उन्होंने पुष्ट प्रमाण लेकर ऐसा दृढ विरोध किया कि किसी की हिम्मत नहीं हुई जो उनके अकाट्य तर्कों को काट सके। कबीर का व्यक्तित्व इतना ऊँचा था कि उनके सामने टिक सकने की हिम्मत किसी में नहीं थी। इस प्रकार उन्होंने समाज तथा धर्म की बुराइयों को निकाल-निकालकर सबके सामने रखा, ऊँचा नाम रखकर संसार को ठगनेवालों के नकली चेहरों को सबको दिखाया और दीन-दलितों को ऊपर उठने का उपदेश देकर, अपने व्यक्तित्व को सुधारकर सबके सामने एक महान आदर्श प्रस्तुत कर सिद्धांतों का निरूपण किया। कर्म, सेवा, अहिंसा तथा निर्गुण मार्ग का प्रसार किया। कर्मकाण्ड व मूर्तिपूजा का विरोध किया। अपनी साखियों, रमैनियों तथा शब्दों को बोलचाल की भाषा में रखकर सबके सामने एक विशाल ज्ञानमार्ग खोला। इस प्रकार कबीर ने समन्वयवादी दृष्टिकोण अपनाया और कथनी-करनी एकता पर बल दिया। वे महान युगदृष्टा, समाज सुधारक तथा महान कवि थे। उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम के बीच समन्वय की धारा प्रवाहित कर दोनों को ही शीतलता प्रदान की।

Question 6:

गद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर लिखिए

एक साधु थे। भिक्षाटन से मजे से दिन गुजारते और आनंदपूर्वक भजन करते थे। एक दिन महत्त्वाकांक्षा सिर पर चढ़ी, झोपड़ी के चूहों से निपटने के लिए एक बिल्ली पाली। बिल्ली के लिए दूध की जरूरत पड़ी तो- गाय खरीद कर लाए। गाय की साज-संभाल के लिए महिला की आवश्यकता पड़ी। महिला से शादी कर ली। परिवार बना। संत बनकर लोक कल्याण करने का लक्ष्य कहीं से कहीं चला गया। भौतिक आकांक्षाओं का जाल- जंजाल इतना बढ़ गया कि परमार्थ का लक्ष्य पूरा करने के लिए कुछ भी नहीं बचता था। सारी क्षमता उसी में खत्म हो जाती थी। सपनों का जमघट ही शेष रह जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि हमें हमारे लक्ष्य की ओर ध्यान देना चाहिए।

झोपड़ी के चूहों से निपटने के लिए साधु ने क्या किया?

गद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर लिखिए

एक साधु थे। भिक्षाटन से मजे से दिन गुजारते और आनंदपूर्वक भजन करते थे। एक दिन महत्त्वाकांक्षा सिर पर चढ़ी, झोपड़ी के चूहों से निपटने के लिए एक बिल्ली पाली। बिल्ली के लिए दूध की जरूरत पड़ी तो- गाय खरीद कर लाए। गाय की साज-संभाल के लिए महिला की आवश्यकता पड़ी। महिला से शादी कर ली। परिवार बना। संत बनकर लोक कल्याण करने का लक्ष्य कहीं से कहीं चला गया। भौतिक आकांक्षाओं का जाल- जंजाल इतना बढ़ गया कि परमार्थ का लक्ष्य पूरा करने के लिए कुछ भी नहीं बचता था। सारी क्षमता उसी में खत्म हो जाती थी। सपनों का जमघट ही शेष रह जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि हमें हमारे लक्ष्य की ओर ध्यान देना चाहिए।

Question 7:

गद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर लिखिए

एक साधु थे। भिक्षाटन से मजे से दिन गुजारते और आनंदपूर्वक भजन करते थे। एक दिन महत्त्वाकांक्षा सिर पर चढ़ी, झोपड़ी के चूहों से निपटने के लिए एक बिल्ली पाली। बिल्ली के लिए दूध की जरूरत पड़ी तो- गाय खरीद कर लाए। गाय की साज-संभाल के लिए महिला की आवश्यकता पड़ी। महिला से शादी कर ली। परिवार बना। संत बनकर लोक कल्याण करने का लक्ष्य कहीं से कहीं चला गया। भौतिक आकांक्षाओं का जाल- जंजाल इतना बढ़ गया कि परमार्थ का लक्ष्य पूरा करने के लिए कुछ भी नहीं बचता था। सारी क्षमता उसी में खत्म हो जाती थी। सपनों का जमघट ही शेष रह जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि हमें हमारे लक्ष्य की ओर ध्यान देना चाहिए।

परमार्थ- रेखांकित शब्द का विलोम बताइए

गद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर लिखिए

एक साधु थे। भिक्षाटन से मजे से दिन गुजारते और आनंदपूर्वक भजन करते थे। एक दिन महत्त्वाकांक्षा सिर पर चढ़ी, झोपड़ी के चूहों से निपटने के लिए एक बिल्ली पाली। बिल्ली के लिए दूध की जरूरत पड़ी तो- गाय खरीद कर लाए। गाय की साज-संभाल के लिए महिला की आवश्यकता पड़ी। महिला से शादी कर ली। परिवार बना। संत बनकर लोक कल्याण करने का लक्ष्य कहीं से कहीं चला गया। भौतिक आकांक्षाओं का जाल- जंजाल इतना बढ़ गया कि परमार्थ का लक्ष्य पूरा करने के लिए कुछ भी नहीं बचता था। सारी क्षमता उसी में खत्म हो जाती थी। सपनों का जमघट ही शेष रह जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि हमें हमारे लक्ष्य की ओर ध्यान देना चाहिए।

Question 8:

गद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर लिखिए

एक साधु थे। भिक्षाटन से मजे से दिन गुजारते और आनंदपूर्वक भजन करते थे। एक दिन महत्त्वाकांक्षा सिर पर चढ़ी, झोपड़ी के चूहों से निपटने के लिए एक बिल्ली पाली। बिल्ली के लिए दूध की जरूरत पड़ी तो- गाय खरीद कर लाए। गाय की साज-संभाल के लिए महिला की आवश्यकता पड़ी। महिला से शादी कर ली। परिवार बना। संत बनकर लोक कल्याण करने का लक्ष्य कहीं से कहीं चला गया। भौतिक आकांक्षाओं का जाल- जंजाल इतना बढ़ गया कि परमार्थ का लक्ष्य पूरा करने के लिए कुछ भी नहीं बचता था। सारी क्षमता उसी में खत्म हो जाती थी। सपनों का जमघट ही शेष रह जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि हमें हमारे लक्ष्य की ओर ध्यान देना चाहिए।

महत्वकांक्षा का रेखांकित शब्द का उचित अर्थ लिखिए।

गद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर लिखिए

एक साधु थे। भिक्षाटन से मजे से दिन गुजारते और आनंदपूर्वक भजन करते थे। एक दिन महत्त्वाकांक्षा सिर पर चढ़ी, झोपड़ी के चूहों से निपटने के लिए एक बिल्ली पाली। बिल्ली के लिए दूध की जरूरत पड़ी तो- गाय खरीद कर लाए। गाय की साज-संभाल के लिए महिला की आवश्यकता पड़ी। महिला से शादी कर ली। परिवार बना। संत बनकर लोक कल्याण करने का लक्ष्य कहीं से कहीं चला गया। भौतिक आकांक्षाओं का जाल- जंजाल इतना बढ़ गया कि परमार्थ का लक्ष्य पूरा करने के लिए कुछ भी नहीं बचता था। सारी क्षमता उसी में खत्म हो जाती थी। सपनों का जमघट ही शेष रह जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि हमें हमारे लक्ष्य की ओर ध्यान देना चाहिए।

Question 9:

गद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर लिखिए

एक साधु थे। भिक्षाटन से मजे से दिन गुजारते और आनंदपूर्वक भजन करते थे। एक दिन महत्त्वाकांक्षा सिर पर चढ़ी, झोपड़ी के चूहों से निपटने के लिए एक बिल्ली पाली। बिल्ली के लिए दूध की जरूरत पड़ी तो- गाय खरीद कर लाए। गाय की साज-संभाल के लिए महिला की आवश्यकता पड़ी। महिला से शादी कर ली। परिवार बना। संत बनकर लोक कल्याण करने का लक्ष्य कहीं से कहीं चला गया। भौतिक आकांक्षाओं का जाल- जंजाल इतना बढ़ गया कि परमार्थ का लक्ष्य पूरा करने के लिए कुछ भी नहीं बचता था। सारी क्षमता उसी में खत्म हो जाती थी। सपनों का जमघट ही शेष रह जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि हमें हमारे लक्ष्य की ओर ध्यान देना चाहिए।

'आवश्यकता' के स्थान पर उचित शब्द लिखिए।

गद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर लिखिए

एक साधु थे। भिक्षाटन से मजे से दिन गुजारते और आनंदपूर्वक भजन करते थे। एक दिन महत्त्वाकांक्षा सिर पर चढ़ी, झोपड़ी के चूहों से निपटने के लिए एक बिल्ली पाली। बिल्ली के लिए दूध की जरूरत पड़ी तो- गाय खरीद कर लाए। गाय की साज-संभाल के लिए महिला की आवश्यकता पड़ी। महिला से शादी कर ली। परिवार बना। संत बनकर लोक कल्याण करने का लक्ष्य कहीं से कहीं चला गया। भौतिक आकांक्षाओं का जाल- जंजाल इतना बढ़ गया कि परमार्थ का लक्ष्य पूरा करने के लिए कुछ भी नहीं बचता था। सारी क्षमता उसी में खत्म हो जाती थी। सपनों का जमघट ही शेष रह जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि हमें हमारे लक्ष्य की ओर ध्यान देना चाहिए।

Question 10:

गद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर लिखिए

एक साधु थे। भिक्षाटन से मजे से दिन गुजारते और आनंदपूर्वक भजन करते थे। एक दिन महत्त्वाकांक्षा सिर पर चढ़ी, झोपड़ी के चूहों से निपटने के लिए एक बिल्ली पाली। बिल्ली के लिए दूध की जरूरत पड़ी तो- गाय खरीद कर लाए। गाय की साज-संभाल के लिए महिला की आवश्यकता पड़ी। महिला से शादी कर ली। परिवार बना। संत बनकर लोक कल्याण करने का लक्ष्य कहीं से कहीं चला गया। भौतिक आकांक्षाओं का जाल- जंजाल इतना बढ़ गया कि परमार्थ का लक्ष्य पूरा करने के लिए कुछ भी नहीं बचता था। सारी क्षमता उसी में खत्म हो जाती थी। सपनों का जमघट ही शेष रह जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि हमें हमारे लक्ष्य की ओर ध्यान देना चाहिए।

साधु अपना निर्वाह ____________ करके करता था। रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए।

गद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर लिखिए

एक साधु थे। भिक्षाटन से मजे से दिन गुजारते और आनंदपूर्वक भजन करते थे। एक दिन महत्त्वाकांक्षा सिर पर चढ़ी, झोपड़ी के चूहों से निपटने के लिए एक बिल्ली पाली। बिल्ली के लिए दूध की जरूरत पड़ी तो- गाय खरीद कर लाए। गाय की साज-संभाल के लिए महिला की आवश्यकता पड़ी। महिला से शादी कर ली। परिवार बना। संत बनकर लोक कल्याण करने का लक्ष्य कहीं से कहीं चला गया। भौतिक आकांक्षाओं का जाल- जंजाल इतना बढ़ गया कि परमार्थ का लक्ष्य पूरा करने के लिए कुछ भी नहीं बचता था। सारी क्षमता उसी में खत्म हो जाती थी। सपनों का जमघट ही शेष रह जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि हमें हमारे लक्ष्य की ओर ध्यान देना चाहिए।