Question 1:
दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
विज्ञान आज के मानव जीवन का अविभाज्य एवं घनिष्ठ अंग बन गया है। मानव जीवन का कोई भी क्षेत्र विज्ञान के अभूतपूर्व अविष्कारों से अछूता नहीं रहा। इसी कारण से आधुनिक युग विज्ञान का युग कहलाता है। आज विज्ञान ने पुरुष और नारी, साहित्यकार और राजनीतिज्ञ, उद्योगपति और कृषक, चिकित्सक और सैनिक, पूँजीपति और श्रमिक, अभियंता, शिक्षक और धर्मज्ञ सभी को और सभी क्षेत्रों में किसी न किसी रूप में अपने अप्रतिम प्रदेय से अनुग्रहीत किया है। आज समूचा परिवेश विज्ञानमय हो गया है। विद्यमान है, वस्तुतः विज्ञान अद्यतन मानव की सबसे बड़ी शक्ति बन गया है। इसके बल से मनुष्य, प्रकृति और प्राणिजगत का शिरोमणि बन सका है विज्ञान के अनुग्रह से वह सभी प्रकार की सुविधाओं एवं संपदाओं का स्वामित्व प्राप्त कर चुका है। अब वह मौसम और ऋतुओं के प्रकोप से भयाक्रांत एवं संत्रस्त नहीं है। विद्युत् ने उसे आलोकित किया है, उष्णता एवं शीतलता दी है, बटन दबाकर किसी भी कार्य को संपन्न करने की ताकत भी दी है। मनोरंजन के विविध साधन उसे सुलभ हैं, यातायात एवं संचार के साधनों के विकसित एवं उन्नत होने से समय और दूरियां बहुत कम हो गयी हैं और समूचा विश्व एक कुटुंब सा लगने लगा है। कृषि एवं उद्योग के क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ने के कारण आज दुनिया पहले से अधिक धन-धान्य से संपन्न है। शिक्षा एवं चिकित्सा के क्षेत्र में विज्ञान की देन अभिनंदनीय है। विज्ञान के सहयोग से मनुष्य धरती और समुद्र के अनेक रहस्य हस्तामलक करके अब अन्तरिक्ष लोक में प्रवेश कर चुका है। सर्वोपरि विज्ञान ने मनुष्य को बौद्धिक विकास प्रदान किया है और वैज्ञानिक चिंतन पद्धति दी है। वैज्ञानिक चिंतन पद्धति से मनुष्य अंधविश्वासों और रूढ़िवादी परम्पराओं से मुक्त होकर स्वस्थ एवं संतुलित ढंग सोच विचार कर सकता है और यथार्थ एवं सम्यक जीवन जी सकता है। इससे मनुष्य के मन को युगों के अंधविश्वासों, विज्ञान के प्रभाव किसी गृहणी के रसोईघर से लेकर बड़ी-बड़ी प्राचीरों वाले भवनों और अट्टालिकाओं में ही दृष्टिगत नहीं होते, अपितु वे जल-थल की सीमाओं को लांघकर अंतरिक्ष को भी भ्रमपूर्ण और दकियानूसी विचारों, भय और अज्ञानता से मुक्ति मिली है। विज्ञान की यह देन स्तुत्य है मानव को चाहिए कि वह विज्ञान की इस समग्र देन को रचनात्मक कार्यों में सुनियोजित करें।
आज विज्ञान को मनुष्य के जीवन का अभिन्न अंग क्यों माना जाता है ?
दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए - विज्ञान आज के मानव जीवन का अविभाज्य एवं घनिष्ठ अंग बन गया है। मानव जीवन का कोई भी क्षेत्र विज्ञान के अभूतपूर्व अविष्कारों से अछूता नहीं रहा। इसी कारण से आधुनिक युग विज्ञान का युग कहलाता है। आज विज्ञान ने पुरुष और नारी, साहित्यकार और राजनीतिज्ञ, उद्योगपति और कृषक, चिकित्सक और सैनिक, पूँजीपति और श्रमिक, अभियंता, शिक्षक और धर्मज्ञ सभी को और सभी क्षेत्रों में किसी न किसी रूप में अपने अप्रतिम प्रदेय से अनुग्रहीत किया है। आज समूचा परिवेश विज्ञानमय हो गया है। विद्यमान है, वस्तुतः विज्ञान अद्यतन मानव की सबसे बड़ी शक्ति बन गया है। इसके बल से मनुष्य, प्रकृति और प्राणिजगत का शिरोमणि बन सका है विज्ञान के अनुग्रह से वह सभी प्रकार की सुविधाओं एवं संपदाओं का स्वामित्व प्राप्त कर चुका है। अब वह मौसम और ऋतुओं के प्रकोप से भयाक्रांत एवं संत्रस्त नहीं है। विद्युत् ने उसे आलोकित किया है, उष्णता एवं शीतलता दी है, बटन दबाकर किसी भी कार्य को संपन्न करने की ताकत भी दी है। मनोरंजन के विविध साधन उसे सुलभ हैं, यातायात एवं संचार के साधनों के विकसित एवं उन्नत होने से समय और दूरियां बहुत कम हो गयी हैं और समूचा विश्व एक कुटुंब सा लगने लगा है। कृषि एवं उद्योग के क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ने के कारण आज दुनिया पहले से अधिक धन-धान्य से संपन्न है। शिक्षा एवं चिकित्सा के क्षेत्र में विज्ञान की देन अभिनंदनीय है। विज्ञान के सहयोग से मनुष्य धरती और समुद्र के अनेक रहस्य हस्तामलक करके अब अन्तरिक्ष लोक में प्रवेश कर चुका है। सर्वोपरि विज्ञान ने मनुष्य को बौद्धिक विकास प्रदान किया है और वैज्ञानिक चिंतन पद्धति दी है। वैज्ञानिक चिंतन पद्धति से मनुष्य अंधविश्वासों और रूढ़िवादी परम्पराओं से मुक्त होकर स्वस्थ एवं संतुलित ढंग सोच विचार कर सकता है और यथार्थ एवं सम्यक जीवन जी सकता है। इससे मनुष्य के मन को युगों के अंधविश्वासों, विज्ञान के प्रभाव किसी गृहणी के रसोईघर से लेकर बड़ी-बड़ी प्राचीरों वाले भवनों और अट्टालिकाओं में ही दृष्टिगत नहीं होते, अपितु वे जल-थल की सीमाओं को लांघकर अंतरिक्ष को भी भ्रमपूर्ण और दकियानूसी विचारों, भय और अज्ञानता से मुक्ति मिली है। विज्ञान की यह देन स्तुत्य है मानव को चाहिए कि वह विज्ञान की इस समग्र देन को रचनात्मक कार्यों में सुनियोजित करें।
आज विज्ञान को मनुष्य के जीवन का अभिन्न अंग क्यों माना जाता है ?
Question 2:
दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
विज्ञान आज के मानव जीवन का अविभाज्य एवं घनिष्ठ अंग बन गया है। मानव जीवन का कोई भी क्षेत्र विज्ञान के अभूतपूर्व अविष्कारों से अछूता नहीं रहा। इसी कारण से आधुनिक युग विज्ञान का युग कहलाता है। आज विज्ञान ने पुरुष और नारी, साहित्यकार और राजनीतिज्ञ, उद्योगपति और कृषक, चिकित्सक और सैनिक, पूँजीपति और श्रमिक, अभियंता, शिक्षक और धर्मज्ञ सभी को और सभी क्षेत्रों में किसी न किसी रूप में अपने अप्रतिम प्रदेय से अनुग्रहीत किया है। आज समूचा परिवेश विज्ञानमय हो गया है। विद्यमान है, वस्तुतः विज्ञान अद्यतन मानव की सबसे बड़ी शक्ति बन गया है। इसके बल से मनुष्य, प्रकृति और प्राणिजगत का शिरोमणि बन सका है विज्ञान के अनुग्रह से वह सभी प्रकार की सुविधाओं एवं संपदाओं का स्वामित्व प्राप्त कर चुका है। अब वह मौसम और ऋतुओं के प्रकोप से भयाक्रांत एवं संत्रस्त नहीं है। विद्युत् ने उसे आलोकित किया है, उष्णता एवं शीतलता दी है, बटन दबाकर किसी भी कार्य को संपन्न करने की ताकत भी दी है। मनोरंजन के विविध साधन उसे सुलभ हैं, यातायात एवं संचार के साधनों के विकसित एवं उन्नत होने से समय और दूरियां बहुत कम हो गयी हैं और समूचा विश्व एक कुटुंब सा लगने लगा है। कृषि एवं उद्योग के क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ने के कारण आज दुनिया पहले से अधिक धन-धान्य से संपन्न है। शिक्षा एवं चिकित्सा के क्षेत्र में विज्ञान की देन अभिनंदनीय है। विज्ञान के सहयोग से मनुष्य धरती और समुद्र के अनेक रहस्य हस्तामलक करके अब अन्तरिक्ष लोक में प्रवेश कर चुका है। सर्वोपरि विज्ञान ने मनुष्य को बौद्धिक विकास प्रदान किया है और वैज्ञानिक चिंतन पद्धति दी है। वैज्ञानिक चिंतन पद्धति से मनुष्य अंधविश्वासों और रूढ़िवादी परम्पराओं से मुक्त होकर स्वस्थ एवं संतुलित ढंग सोच विचार कर सकता है और यथार्थ एवं सम्यक जीवन जी सकता है। इससे मनुष्य के मन को युगों के अंधविश्वासों, विज्ञान के प्रभाव किसी गृहणी के रसोईघर से लेकर बड़ी-बड़ी प्राचीरों वाले भवनों और अट्टालिकाओं में ही दृष्टिगत नहीं होते, अपितु वे जल-थल की सीमाओं को लांघकर अंतरिक्ष को भी भ्रमपूर्ण और दकियानूसी विचारों, भय और अज्ञानता से मुक्ति मिली है। विज्ञान की यह देन स्तुत्य है मानव को चाहिए कि वह विज्ञान की इस समग्र देन को रचनात्मक कार्यों में सुनियोजित करें।
किसके बल पर मनुष्य प्रकृति और प्राणिजगत का शिरोमणि बन सका है ?
दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
विज्ञान आज के मानव जीवन का अविभाज्य एवं घनिष्ठ अंग बन गया है। मानव जीवन का कोई भी क्षेत्र विज्ञान के अभूतपूर्व अविष्कारों से अछूता नहीं रहा। इसी कारण से आधुनिक युग विज्ञान का युग कहलाता है। आज विज्ञान ने पुरुष और नारी, साहित्यकार और राजनीतिज्ञ, उद्योगपति और कृषक, चिकित्सक और सैनिक, पूँजीपति और श्रमिक, अभियंता, शिक्षक और धर्मज्ञ सभी को और सभी क्षेत्रों में किसी न किसी रूप में अपने अप्रतिम प्रदेय से अनुग्रहीत किया है। आज समूचा परिवेश विज्ञानमय हो गया है। विद्यमान है, वस्तुतः विज्ञान अद्यतन मानव की सबसे बड़ी शक्ति बन गया है। इसके बल से मनुष्य, प्रकृति और प्राणिजगत का शिरोमणि बन सका है विज्ञान के अनुग्रह से वह सभी प्रकार की सुविधाओं एवं संपदाओं का स्वामित्व प्राप्त कर चुका है। अब वह मौसम और ऋतुओं के प्रकोप से भयाक्रांत एवं संत्रस्त नहीं है। विद्युत् ने उसे आलोकित किया है, उष्णता एवं शीतलता दी है, बटन दबाकर किसी भी कार्य को संपन्न करने की ताकत भी दी है। मनोरंजन के विविध साधन उसे सुलभ हैं, यातायात एवं संचार के साधनों के विकसित एवं उन्नत होने से समय और दूरियां बहुत कम हो गयी हैं और समूचा विश्व एक कुटुंब सा लगने लगा है। कृषि एवं उद्योग के क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ने के कारण आज दुनिया पहले से अधिक धन-धान्य से संपन्न है। शिक्षा एवं चिकित्सा के क्षेत्र में विज्ञान की देन अभिनंदनीय है। विज्ञान के सहयोग से मनुष्य धरती और समुद्र के अनेक रहस्य हस्तामलक करके अब अन्तरिक्ष लोक में प्रवेश कर चुका है। सर्वोपरि विज्ञान ने मनुष्य को बौद्धिक विकास प्रदान किया है और वैज्ञानिक चिंतन पद्धति दी है। वैज्ञानिक चिंतन पद्धति से मनुष्य अंधविश्वासों और रूढ़िवादी परम्पराओं से मुक्त होकर स्वस्थ एवं संतुलित ढंग सोच विचार कर सकता है और यथार्थ एवं सम्यक जीवन जी सकता है। इससे मनुष्य के मन को युगों के अंधविश्वासों, विज्ञान के प्रभाव किसी गृहणी के रसोईघर से लेकर बड़ी-बड़ी प्राचीरों वाले भवनों और अट्टालिकाओं में ही दृष्टिगत नहीं होते, अपितु वे जल-थल की सीमाओं को लांघकर अंतरिक्ष को भी भ्रमपूर्ण और दकियानूसी विचारों, भय और अज्ञानता से मुक्ति मिली है। विज्ञान की यह देन स्तुत्य है मानव को चाहिए कि वह विज्ञान की इस समग्र देन को रचनात्मक कार्यों में सुनियोजित करें।
किसके बल पर मनुष्य प्रकृति और प्राणिजगत का शिरोमणि बन सका है ?
Question 3:
दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
विज्ञान आज के मानव जीवन का अविभाज्य एवं घनिष्ठ अंग बन गया है। मानव जीवन का कोई भी क्षेत्र विज्ञान के अभूतपूर्व अविष्कारों से अछूता नहीं रहा। इसी कारण से आधुनिक युग विज्ञान का युग कहलाता है। आज विज्ञान ने पुरुष और नारी, साहित्यकार और राजनीतिज्ञ, उद्योगपति और कृषक, चिकित्सक और सैनिक, पूँजीपति और श्रमिक, अभियंता, शिक्षक और धर्मज्ञ सभी को और सभी क्षेत्रों में किसी न किसी रूप में अपने अप्रतिम प्रदेय से अनुग्रहीत किया है। आज समूचा परिवेश विज्ञानमय हो गया है। विद्यमान है, वस्तुतः विज्ञान अद्यतन मानव की सबसे बड़ी शक्ति बन गया है। इसके बल से मनुष्य, प्रकृति और प्राणिजगत का शिरोमणि बन सका है विज्ञान के अनुग्रह से वह सभी प्रकार की सुविधाओं एवं संपदाओं का स्वामित्व प्राप्त कर चुका है। अब वह मौसम और ऋतुओं के प्रकोप से भयाक्रांत एवं संत्रस्त नहीं है। विद्युत् ने उसे आलोकित किया है, उष्णता एवं शीतलता दी है, बटन दबाकर किसी भी कार्य को संपन्न करने की ताकत भी दी है। मनोरंजन के विविध साधन उसे सुलभ हैं, यातायात एवं संचार के साधनों के विकसित एवं उन्नत होने से समय और दूरियां बहुत कम हो गयी हैं और समूचा विश्व एक कुटुंब सा लगने लगा है। कृषि एवं उद्योग के क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ने के कारण आज दुनिया पहले से अधिक धन-धान्य से संपन्न है। शिक्षा एवं चिकित्सा के क्षेत्र में विज्ञान की देन अभिनंदनीय है। विज्ञान के सहयोग से मनुष्य धरती और समुद्र के अनेक रहस्य हस्तामलक करके अब अन्तरिक्ष लोक में प्रवेश कर चुका है। सर्वोपरि विज्ञान ने मनुष्य को बौद्धिक विकास प्रदान किया है और वैज्ञानिक चिंतन पद्धति दी है। वैज्ञानिक चिंतन पद्धति से मनुष्य अंधविश्वासों और रूढ़िवादी परम्पराओं से मुक्त होकर स्वस्थ एवं संतुलित ढंग सोच विचार कर सकता है और यथार्थ एवं सम्यक जीवन जी सकता है। इससे मनुष्य के मन को युगों के अंधविश्वासों, विज्ञान के प्रभाव किसी गृहणी के रसोईघर से लेकर बड़ी-बड़ी प्राचीरों वाले भवनों और अट्टालिकाओं में ही दृष्टिगत नहीं होते, अपितु वे जल-थल की सीमाओं को लांघकर अंतरिक्ष को भी भ्रमपूर्ण और दकियानूसी विचारों, भय और अज्ञानता से मुक्ति मिली है। विज्ञान की यह देन स्तुत्य है मानव को चाहिए कि वह विज्ञान की इस समग्र देन को रचनात्मक कार्यों में सुनियोजित करें।
वैज्ञानिक चिंतन पद्धति ने मनुष्य को सबसे पहले किससे मुक्ति दिलाई ?
दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
विज्ञान आज के मानव जीवन का अविभाज्य एवं घनिष्ठ अंग बन गया है। मानव जीवन का कोई भी क्षेत्र विज्ञान के अभूतपूर्व अविष्कारों से अछूता नहीं रहा। इसी कारण से आधुनिक युग विज्ञान का युग कहलाता है। आज विज्ञान ने पुरुष और नारी, साहित्यकार और राजनीतिज्ञ, उद्योगपति और कृषक, चिकित्सक और सैनिक, पूँजीपति और श्रमिक, अभियंता, शिक्षक और धर्मज्ञ सभी को और सभी क्षेत्रों में किसी न किसी रूप में अपने अप्रतिम प्रदेय से अनुग्रहीत किया है। आज समूचा परिवेश विज्ञानमय हो गया है। विद्यमान है, वस्तुतः विज्ञान अद्यतन मानव की सबसे बड़ी शक्ति बन गया है। इसके बल से मनुष्य, प्रकृति और प्राणिजगत का शिरोमणि बन सका है विज्ञान के अनुग्रह से वह सभी प्रकार की सुविधाओं एवं संपदाओं का स्वामित्व प्राप्त कर चुका है। अब वह मौसम और ऋतुओं के प्रकोप से भयाक्रांत एवं संत्रस्त नहीं है। विद्युत् ने उसे आलोकित किया है, उष्णता एवं शीतलता दी है, बटन दबाकर किसी भी कार्य को संपन्न करने की ताकत भी दी है। मनोरंजन के विविध साधन उसे सुलभ हैं, यातायात एवं संचार के साधनों के विकसित एवं उन्नत होने से समय और दूरियां बहुत कम हो गयी हैं और समूचा विश्व एक कुटुंब सा लगने लगा है। कृषि एवं उद्योग के क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ने के कारण आज दुनिया पहले से अधिक धन-धान्य से संपन्न है। शिक्षा एवं चिकित्सा के क्षेत्र में विज्ञान की देन अभिनंदनीय है। विज्ञान के सहयोग से मनुष्य धरती और समुद्र के अनेक रहस्य हस्तामलक करके अब अन्तरिक्ष लोक में प्रवेश कर चुका है। सर्वोपरि विज्ञान ने मनुष्य को बौद्धिक विकास प्रदान किया है और वैज्ञानिक चिंतन पद्धति दी है। वैज्ञानिक चिंतन पद्धति से मनुष्य अंधविश्वासों और रूढ़िवादी परम्पराओं से मुक्त होकर स्वस्थ एवं संतुलित ढंग सोच विचार कर सकता है और यथार्थ एवं सम्यक जीवन जी सकता है। इससे मनुष्य के मन को युगों के अंधविश्वासों, विज्ञान के प्रभाव किसी गृहणी के रसोईघर से लेकर बड़ी-बड़ी प्राचीरों वाले भवनों और अट्टालिकाओं में ही दृष्टिगत नहीं होते, अपितु वे जल-थल की सीमाओं को लांघकर अंतरिक्ष को भी भ्रमपूर्ण और दकियानूसी विचारों, भय और अज्ञानता से मुक्ति मिली है। विज्ञान की यह देन स्तुत्य है मानव को चाहिए कि वह विज्ञान की इस समग्र देन को रचनात्मक कार्यों में सुनियोजित करें।
वैज्ञानिक चिंतन पद्धति ने मनुष्य को सबसे पहले किससे मुक्ति दिलाई ?
Question 4:
दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
विज्ञान आज के मानव जीवन का अविभाज्य एवं घनिष्ठ अंग बन गया है। मानव जीवन का कोई भी क्षेत्र विज्ञान के अभूतपूर्व अविष्कारों से अछूता नहीं रहा। इसी कारण से आधुनिक युग विज्ञान का युग कहलाता है। आज विज्ञान ने पुरुष और नारी, साहित्यकार और राजनीतिज्ञ, उद्योगपति और कृषक, चिकित्सक और सैनिक, पूँजीपति और श्रमिक, अभियंता, शिक्षक और धर्मज्ञ सभी को और सभी क्षेत्रों में किसी न किसी रूप में अपने अप्रतिम प्रदेय से अनुग्रहीत किया है। आज समूचा परिवेश विज्ञानमय हो गया है। विद्यमान है, वस्तुतः विज्ञान अद्यतन मानव की सबसे बड़ी शक्ति बन गया है। इसके बल से मनुष्य, प्रकृति और प्राणिजगत का शिरोमणि बन सका है विज्ञान के अनुग्रह से वह सभी प्रकार की सुविधाओं एवं संपदाओं का स्वामित्व प्राप्त कर चुका है। अब वह मौसम और ऋतुओं के प्रकोप से भयाक्रांत एवं संत्रस्त नहीं है। विद्युत् ने उसे आलोकित किया है, उष्णता एवं शीतलता दी है, बटन दबाकर किसी भी कार्य को संपन्न करने की ताकत भी दी है। मनोरंजन के विविध साधन उसे सुलभ हैं, यातायात एवं संचार के साधनों के विकसित एवं उन्नत होने से समय और दूरियां बहुत कम हो गयी हैं और समूचा विश्व एक कुटुंब सा लगने लगा है। कृषि एवं उद्योग के क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ने के कारण आज दुनिया पहले से अधिक धन-धान्य से संपन्न है। शिक्षा एवं चिकित्सा के क्षेत्र में विज्ञान की देन अभिनंदनीय है। विज्ञान के सहयोग से मनुष्य धरती और समुद्र के अनेक रहस्य हस्तामलक करके अब अन्तरिक्ष लोक में प्रवेश कर चुका है। सर्वोपरि विज्ञान ने मनुष्य को बौद्धिक विकास प्रदान किया है और वैज्ञानिक चिंतन पद्धति दी है। वैज्ञानिक चिंतन पद्धति से मनुष्य अंधविश्वासों और रूढ़िवादी परम्पराओं से मुक्त होकर स्वस्थ एवं संतुलित ढंग सोच विचार कर सकता है और यथार्थ एवं सम्यक जीवन जी सकता है। इससे मनुष्य के मन को युगों के अंधविश्वासों, विज्ञान के प्रभाव किसी गृहणी के रसोईघर से लेकर बड़ी-बड़ी प्राचीरों वाले भवनों और अट्टालिकाओं में ही दृष्टिगत नहीं होते, अपितु वे जल-थल की सीमाओं को लांघकर अंतरिक्ष को भी भ्रमपूर्ण और दकियानूसी विचारों, भय और अज्ञानता से मुक्ति मिली है। विज्ञान की यह देन स्तुत्य है मानव को चाहिए कि वह विज्ञान की इस समग्र देन को रचनात्मक कार्यों में सुनियोजित करें।
विज्ञान के चरण गतिशील क्यों कहे जा सकते हैं ?
दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
विज्ञान आज के मानव जीवन का अविभाज्य एवं घनिष्ठ अंग बन गया है। मानव जीवन का कोई भी क्षेत्र विज्ञान के अभूतपूर्व अविष्कारों से अछूता नहीं रहा। इसी कारण से आधुनिक युग विज्ञान का युग कहलाता है। आज विज्ञान ने पुरुष और नारी, साहित्यकार और राजनीतिज्ञ, उद्योगपति और कृषक, चिकित्सक और सैनिक, पूँजीपति और श्रमिक, अभियंता, शिक्षक और धर्मज्ञ सभी को और सभी क्षेत्रों में किसी न किसी रूप में अपने अप्रतिम प्रदेय से अनुग्रहीत किया है। आज समूचा परिवेश विज्ञानमय हो गया है। विद्यमान है, वस्तुतः विज्ञान अद्यतन मानव की सबसे बड़ी शक्ति बन गया है। इसके बल से मनुष्य, प्रकृति और प्राणिजगत का शिरोमणि बन सका है विज्ञान के अनुग्रह से वह सभी प्रकार की सुविधाओं एवं संपदाओं का स्वामित्व प्राप्त कर चुका है। अब वह मौसम और ऋतुओं के प्रकोप से भयाक्रांत एवं संत्रस्त नहीं है। विद्युत् ने उसे आलोकित किया है, उष्णता एवं शीतलता दी है, बटन दबाकर किसी भी कार्य को संपन्न करने की ताकत भी दी है। मनोरंजन के विविध साधन उसे सुलभ हैं, यातायात एवं संचार के साधनों के विकसित एवं उन्नत होने से समय और दूरियां बहुत कम हो गयी हैं और समूचा विश्व एक कुटुंब सा लगने लगा है। कृषि एवं उद्योग के क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ने के कारण आज दुनिया पहले से अधिक धन-धान्य से संपन्न है। शिक्षा एवं चिकित्सा के क्षेत्र में विज्ञान की देन अभिनंदनीय है। विज्ञान के सहयोग से मनुष्य धरती और समुद्र के अनेक रहस्य हस्तामलक करके अब अन्तरिक्ष लोक में प्रवेश कर चुका है। सर्वोपरि विज्ञान ने मनुष्य को बौद्धिक विकास प्रदान किया है और वैज्ञानिक चिंतन पद्धति दी है। वैज्ञानिक चिंतन पद्धति से मनुष्य अंधविश्वासों और रूढ़िवादी परम्पराओं से मुक्त होकर स्वस्थ एवं संतुलित ढंग सोच विचार कर सकता है और यथार्थ एवं सम्यक जीवन जी सकता है। इससे मनुष्य के मन को युगों के अंधविश्वासों, विज्ञान के प्रभाव किसी गृहणी के रसोईघर से लेकर बड़ी-बड़ी प्राचीरों वाले भवनों और अट्टालिकाओं में ही दृष्टिगत नहीं होते, अपितु वे जल-थल की सीमाओं को लांघकर अंतरिक्ष को भी भ्रमपूर्ण और दकियानूसी विचारों, भय और अज्ञानता से मुक्ति मिली है। विज्ञान की यह देन स्तुत्य है मानव को चाहिए कि वह विज्ञान की इस समग्र देन को रचनात्मक कार्यों में सुनियोजित करें।
विज्ञान के चरण गतिशील क्यों कहे जा सकते हैं ?
Question 5:
दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
विज्ञान आज के मानव जीवन का अविभाज्य एवं घनिष्ठ अंग बन गया है। मानव जीवन का कोई भी क्षेत्र विज्ञान के अभूतपूर्व अविष्कारों से अछूता नहीं रहा। इसी कारण से आधुनिक युग विज्ञान का युग कहलाता है। आज विज्ञान ने पुरुष और नारी, साहित्यकार और राजनीतिज्ञ, उद्योगपति और कृषक, चिकित्सक और सैनिक, पूँजीपति और श्रमिक, अभियंता, शिक्षक और धर्मज्ञ सभी को और सभी क्षेत्रों में किसी न किसी रूप में अपने अप्रतिम प्रदेय से अनुग्रहीत किया है। आज समूचा परिवेश विज्ञानमय हो गया है। विद्यमान है, वस्तुतः विज्ञान अद्यतन मानव की सबसे बड़ी शक्ति बन गया है। इसके बल से मनुष्य, प्रकृति और प्राणिजगत का शिरोमणि बन सका है विज्ञान के अनुग्रह से वह सभी प्रकार की सुविधाओं एवं संपदाओं का स्वामित्व प्राप्त कर चुका है। अब वह मौसम और ऋतुओं के प्रकोप से भयाक्रांत एवं संत्रस्त नहीं है। विद्युत् ने उसे आलोकित किया है, उष्णता एवं शीतलता दी है, बटन दबाकर किसी भी कार्य को संपन्न करने की ताकत भी दी है। मनोरंजन के विविध साधन उसे सुलभ हैं, यातायात एवं संचार के साधनों के विकसित एवं उन्नत होने से समय और दूरियां बहुत कम हो गयी हैं और समूचा विश्व एक कुटुंब सा लगने लगा है। कृषि एवं उद्योग के क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ने के कारण आज दुनिया पहले से अधिक धन-धान्य से संपन्न है। शिक्षा एवं चिकित्सा के क्षेत्र में विज्ञान की देन अभिनंदनीय है। विज्ञान के सहयोग से मनुष्य धरती और समुद्र के अनेक रहस्य हस्तामलक करके अब अन्तरिक्ष लोक में प्रवेश कर चुका है। सर्वोपरि विज्ञान ने मनुष्य को बौद्धिक विकास प्रदान किया है और वैज्ञानिक चिंतन पद्धति दी है। वैज्ञानिक चिंतन पद्धति से मनुष्य अंधविश्वासों और रूढ़िवादी परम्पराओं से मुक्त होकर स्वस्थ एवं संतुलित ढंग सोच विचार कर सकता है और यथार्थ एवं सम्यक जीवन जी सकता है। इससे मनुष्य के मन को युगों के अंधविश्वासों, विज्ञान के प्रभाव किसी गृहणी के रसोईघर से लेकर बड़ी-बड़ी प्राचीरों वाले भवनों और अट्टालिकाओं में ही दृष्टिगत नहीं होते, अपितु वे जल-थल की सीमाओं को लांघकर अंतरिक्ष को भी भ्रमपूर्ण और दकियानूसी विचारों, भय और अज्ञानता से मुक्ति मिली है। विज्ञान की यह देन स्तुत्य है मानव को चाहिए कि वह विज्ञान की इस समग्र देन को रचनात्मक कार्यों में सुनियोजित करें।
समूचा विश्व एक परिवार के समान लगने का क्या कारण है ?
दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए - विज्ञान आज के मानव जीवन का अविभाज्य एवं घनिष्ठ अंग बन गया है। मानव जीवन का कोई भी क्षेत्र विज्ञान के अभूतपूर्व अविष्कारों से अछूता नहीं रहा। इसी कारण से आधुनिक युग विज्ञान का युग कहलाता है। आज विज्ञान ने पुरुष और नारी, साहित्यकार और राजनीतिज्ञ, उद्योगपति और कृषक, चिकित्सक और सैनिक, पूँजीपति और श्रमिक, अभियंता, शिक्षक और धर्मज्ञ सभी को और सभी क्षेत्रों में किसी न किसी रूप में अपने अप्रतिम प्रदेय से अनुग्रहीत किया है। आज समूचा परिवेश विज्ञानमय हो गया है। विद्यमान है, वस्तुतः विज्ञान अद्यतन मानव की सबसे बड़ी शक्ति बन गया है। इसके बल से मनुष्य, प्रकृति और प्राणिजगत का शिरोमणि बन सका है विज्ञान के अनुग्रह से वह सभी प्रकार की सुविधाओं एवं संपदाओं का स्वामित्व प्राप्त कर चुका है। अब वह मौसम और ऋतुओं के प्रकोप से भयाक्रांत एवं संत्रस्त नहीं है। विद्युत् ने उसे आलोकित किया है, उष्णता एवं शीतलता दी है, बटन दबाकर किसी भी कार्य को संपन्न करने की ताकत भी दी है। मनोरंजन के विविध साधन उसे सुलभ हैं, यातायात एवं संचार के साधनों के विकसित एवं उन्नत होने से समय और दूरियां बहुत कम हो गयी हैं और समूचा विश्व एक कुटुंब सा लगने लगा है। कृषि एवं उद्योग के क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ने के कारण आज दुनिया पहले से अधिक धन-धान्य से संपन्न है। शिक्षा एवं चिकित्सा के क्षेत्र में विज्ञान की देन अभिनंदनीय है। विज्ञान के सहयोग से मनुष्य धरती और समुद्र के अनेक रहस्य हस्तामलक करके अब अन्तरिक्ष लोक में प्रवेश कर चुका है। सर्वोपरि विज्ञान ने मनुष्य को बौद्धिक विकास प्रदान किया है और वैज्ञानिक चिंतन पद्धति दी है। वैज्ञानिक चिंतन पद्धति से मनुष्य अंधविश्वासों और रूढ़िवादी परम्पराओं से मुक्त होकर स्वस्थ एवं संतुलित ढंग सोच विचार कर सकता है और यथार्थ एवं सम्यक जीवन जी सकता है। इससे मनुष्य के मन को युगों के अंधविश्वासों, विज्ञान के प्रभाव किसी गृहणी के रसोईघर से लेकर बड़ी-बड़ी प्राचीरों वाले भवनों और अट्टालिकाओं में ही दृष्टिगत नहीं होते, अपितु वे जल-थल की सीमाओं को लांघकर अंतरिक्ष को भी भ्रमपूर्ण और दकियानूसी विचारों, भय और अज्ञानता से मुक्ति मिली है। विज्ञान की यह देन स्तुत्य है मानव को चाहिए कि वह विज्ञान की इस समग्र देन को रचनात्मक कार्यों में सुनियोजित करें।
समूचा विश्व एक परिवार के समान लगने का क्या कारण है ?
Question 6:
निर्देश - नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए:
मन में विश्वास रखें तो कोई हार नहीं सकता पर मन में शंका रहे तो कोई जीत नही सकता। जिंदगी हमें रोने के सौ मौके देती है तो मुस्कुराने के भी हजार बहाने देती है। प्रकृति ने हर चीज का एक जोड़ा बनाया हुआ है। रात और दिन, अंधेरा और उजाला, गोरा और काला, अच्छा और बुरा, उत्थान और, पतन, हार और जीत। सभी को इन दो परस्पर विरोधी चीजों के बीच संघर्ष करते रहना होता है। संघर्ष अकेले ही करना होता है। भीड़ तो उमड़ती है जीत जाने के बाद। बस इतना सा हुनर सीखना है, जमीन पर रहकर आसमान को जीतना है। दूसरों को समझना बुद्धिमानी है, खुद को समझना असली ज्ञान है। दूसरों को काबू करना बल है और खुद को काबू करना वास्तविक शक्ति।
निम्नलिखित में से कौन-सा समूह से भिन्न हैं ?
निर्देश - नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए:
मन में विश्वास रखें तो कोई हार नहीं सकता पर मन में शंका रहे तो कोई जीत नही सकता। जिंदगी हमें रोने के सौ मौके देती है तो मुस्कुराने के भी हजार बहाने देती है। प्रकृति ने हर चीज का एक जोड़ा बनाया हुआ है। रात और दिन, अंधेरा और उजाला, गोरा और काला, अच्छा और बुरा, उत्थान और, पतन, हार और जीत। सभी को इन दो परस्पर विरोधी चीजों के बीच संघर्ष करते रहना होता है। संघर्ष अकेले ही करना होता है। भीड़ तो उमड़ती है जीत जाने के बाद। बस इतना सा हुनर सीखना है, जमीन पर रहकर आसमान को जीतना है। दूसरों को समझना बुद्धिमानी है, खुद को समझना असली ज्ञान है। दूसरों को काबू करना बल है और खुद को काबू करना वास्तविक शक्ति।
निम्नलिखित में से कौन-सा समूह से भिन्न हैं ?
Question 7:
निर्देश - नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए:
मन में विश्वास रखें तो कोई हार नहीं सकता पर मन में शंका रहे तो कोई जीत नही सकता। जिंदगी हमें रोने के सौ मौके देती है तो मुस्कुराने के भी हजार बहाने देती है। प्रकृति ने हर चीज का एक जोड़ा बनाया हुआ है। रात और दिन, अंधेरा और उजाला, गोरा और काला, अच्छा और बुरा, उत्थान और, पतन, हार और जीत। सभी को इन दो परस्पर विरोधी चीजों के बीच संघर्ष करते रहना होता है। संघर्ष अकेले ही करना होता है। भीड़ तो उमड़ती है जीत जाने के बाद। बस इतना सा हुनर सीखना है, जमीन पर रहकर आसमान को जीतना है। दूसरों को समझना बुद्धिमानी है, खुद को समझना असली ज्ञान है। दूसरों को काबू करना बल है और खुद को काबू करना वास्तविक शक्ति।
‘’जिंदगी हमें रोने के सौ मौके देती है, तो मुस्कुराने के भी हजार बहाने देती है।’’ से तात्पर्य है-
निर्देश - नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए:
मन में विश्वास रखें तो कोई हार नहीं सकता पर मन में शंका रहे तो कोई जीत नही सकता। जिंदगी हमें रोने के सौ मौके देती है तो मुस्कुराने के भी हजार बहाने देती है। प्रकृति ने हर चीज का एक जोड़ा बनाया हुआ है। रात और दिन, अंधेरा और उजाला, गोरा और काला, अच्छा और बुरा, उत्थान और, पतन, हार और जीत। सभी को इन दो परस्पर विरोधी चीजों के बीच संघर्ष करते रहना होता है। संघर्ष अकेले ही करना होता है। भीड़ तो उमड़ती है जीत जाने के बाद। बस इतना सा हुनर सीखना है, जमीन पर रहकर आसमान को जीतना है। दूसरों को समझना बुद्धिमानी है, खुद को समझना असली ज्ञान है। दूसरों को काबू करना बल है और खुद को काबू करना वास्तविक शक्ति।
‘’जिंदगी हमें रोने के सौ मौके देती है, तो मुस्कुराने के भी हजार बहाने देती है।’’ से तात्पर्य है-
Question 8:
निर्देश - नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए:
मन में विश्वास रखें तो कोई हार नहीं सकता पर मन में शंका रहे तो कोई जीत नही सकता। जिंदगी हमें रोने के सौ मौके देती है तो मुस्कुराने के भी हजार बहाने देती है। प्रकृति ने हर चीज का एक जोड़ा बनाया हुआ है। रात और दिन, अंधेरा और उजाला, गोरा और काला, अच्छा और बुरा, उत्थान और, पतन, हार और जीत। सभी को इन दो परस्पर विरोधी चीजों के बीच संघर्ष करते रहना होता है। संघर्ष अकेले ही करना होता है। भीड़ तो उमड़ती है जीत जाने के बाद। बस इतना सा हुनर सीखना है, जमीन पर रहकर आसमान को जीतना है। दूसरों को समझना बुद्धिमानी है, खुद को समझना असली ज्ञान है। दूसरों को काबू करना बल है और खुद को काबू करना वास्तविक शक्ति।
‘संघर्ष अकेले करना होता है’ का अर्थ है-
निर्देश - नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए:
मन में विश्वास रखें तो कोई हार नहीं सकता पर मन में शंका रहे तो कोई जीत नही सकता। जिंदगी हमें रोने के सौ मौके देती है तो मुस्कुराने के भी हजार बहाने देती है। प्रकृति ने हर चीज का एक जोड़ा बनाया हुआ है। रात और दिन, अंधेरा और उजाला, गोरा और काला, अच्छा और बुरा, उत्थान और, पतन, हार और जीत। सभी को इन दो परस्पर विरोधी चीजों के बीच संघर्ष करते रहना होता है। संघर्ष अकेले ही करना होता है। भीड़ तो उमड़ती है जीत जाने के बाद। बस इतना सा हुनर सीखना है, जमीन पर रहकर आसमान को जीतना है। दूसरों को समझना बुद्धिमानी है, खुद को समझना असली ज्ञान है। दूसरों को काबू करना बल है और खुद को काबू करना वास्तविक शक्ति।
‘संघर्ष अकेले करना होता है’ का अर्थ है-
Question 9:
निर्देश - नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए:
मन में विश्वास रखें तो कोई हार नहीं सकता पर मन में शंका रहे तो कोई जीत नही सकता। जिंदगी हमें रोने के सौ मौके देती है तो मुस्कुराने के भी हजार बहाने देती है। प्रकृति ने हर चीज का एक जोड़ा बनाया हुआ है। रात और दिन, अंधेरा और उजाला, गोरा और काला, अच्छा और बुरा, उत्थान और, पतन, हार और जीत। सभी को इन दो परस्पर विरोधी चीजों के बीच संघर्ष करते रहना होता है। संघर्ष अकेले ही करना होता है। भीड़ तो उमड़ती है जीत जाने के बाद। बस इतना सा हुनर सीखना है, जमीन पर रहकर आसमान को जीतना है। दूसरों को समझना बुद्धिमानी है, खुद को समझना असली ज्ञान है। दूसरों को काबू करना बल है और खुद को काबू करना वास्तविक शक्ति।
वास्तविक ज्ञान किसे कह सकते हैं ?
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मन में विश्वास रखें तो कोई हार नहीं सकता पर मन में शंका रहे तो कोई जीत नही सकता। जिंदगी हमें रोने के सौ मौके देती है तो मुस्कुराने के भी हजार बहाने देती है। प्रकृति ने हर चीज का एक जोड़ा बनाया हुआ है। रात और दिन, अंधेरा और उजाला, गोरा और काला, अच्छा और बुरा, उत्थान और, पतन, हार और जीत। सभी को इन दो परस्पर विरोधी चीजों के बीच संघर्ष करते रहना होता है। संघर्ष अकेले ही करना होता है। भीड़ तो उमड़ती है जीत जाने के बाद। बस इतना सा हुनर सीखना है, जमीन पर रहकर आसमान को जीतना है। दूसरों को समझना बुद्धिमानी है, खुद को समझना असली ज्ञान है। दूसरों को काबू करना बल है और खुद को काबू करना वास्तविक शक्ति।
वास्तविक ज्ञान किसे कह सकते हैं ?
Question 10:
निर्देश - नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए:
मन में विश्वास रखें तो कोई हार नहीं सकता पर मन में शंका रहे तो कोई जीत नही सकता। जिंदगी हमें रोने के सौ मौके देती है तो मुस्कुराने के भी हजार बहाने देती है। प्रकृति ने हर चीज का एक जोड़ा बनाया हुआ है। रात और दिन, अंधेरा और उजाला, गोरा और काला, अच्छा और बुरा, उत्थान और, पतन, हार और जीत। सभी को इन दो परस्पर विरोधी चीजों के बीच संघर्ष करते रहना होता है। संघर्ष अकेले ही करना होता है। भीड़ तो उमड़ती है जीत जाने के बाद। बस इतना सा हुनर सीखना है, जमीन पर रहकर आसमान को जीतना है। दूसरों को समझना बुद्धिमानी है, खुद को समझना असली ज्ञान है। दूसरों को काबू करना बल है और खुद को काबू करना वास्तविक शक्ति।
मन में विश्वास रखने से किसकी प्राप्ति होगी ?
निर्देश - नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए:
मन में विश्वास रखें तो कोई हार नहीं सकता पर मन में शंका रहे तो कोई जीत नही सकता। जिंदगी हमें रोने के सौ मौके देती है तो मुस्कुराने के भी हजार बहाने देती है। प्रकृति ने हर चीज का एक जोड़ा बनाया हुआ है। रात और दिन, अंधेरा और उजाला, गोरा और काला, अच्छा और बुरा, उत्थान और, पतन, हार और जीत। सभी को इन दो परस्पर विरोधी चीजों के बीच संघर्ष करते रहना होता है। संघर्ष अकेले ही करना होता है। भीड़ तो उमड़ती है जीत जाने के बाद। बस इतना सा हुनर सीखना है, जमीन पर रहकर आसमान को जीतना है। दूसरों को समझना बुद्धिमानी है, खुद को समझना असली ज्ञान है। दूसरों को काबू करना बल है और खुद को काबू करना वास्तविक शक्ति।
मन में विश्वास रखने से किसकी प्राप्ति होगी ?