CTET HINDI QUIZ 62

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Question 1:

निर्देश - नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्‍नों के सबसे उपयुक्‍त उत्‍तर वाले विकल्‍प को चुनिए: 

मन में विश्‍वास रखें तो कोई हार नहीं सकता पर मन में शंका रहे तो कोई जीत नही स‍कता। जिंदगी हमें रोने के सौ मौके देती है तो मुस्‍कुराने के भी हजार बहाने देती है। प्रकृति ने हर चीज का एक जोड़ा बनाया हुआ है। रात और दिन, अंधेरा और उजाला, गोरा और काला, अच्‍छा और बुरा, उत्‍थान और, पतन, हार और जीत। सभी को इन दो परस्‍पर विरोधी चीजों के बीच संघर्ष करते रहना होता है। संघर्ष अकेले ही करना होता है। भीड़ तो उमड़ती है जीत जाने के बाद। बस इतना सा हुनर सीखना है, जमीन पर रहकर आसमान को जीतना है। दूसरों को समझना बुद्धिमानी है, खुद को समझना असली ज्ञान है। दूसरों को काबू करना बल है और खुद को काबू करना वास्‍तविक शक्ति। 

‘’जिंदगी हमें रोने के सौ मौके देती है, तो मुस्कुराने के भी हजार बहाने देती है।’’ से तात्पर्य है-

निर्देश - नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्‍नों के सबसे उपयुक्‍त उत्‍तर वाले विकल्‍प को चुनिए: 

मन में विश्‍वास रखें तो कोई हार नहीं सकता पर मन में शंका रहे तो कोई जीत नही स‍कता। जिंदगी हमें रोने के सौ मौके देती है तो मुस्‍कुराने के भी हजार बहाने देती है। प्रकृति ने हर चीज का एक जोड़ा बनाया हुआ है। रात और दिन, अंधेरा और उजाला, गोरा और काला, अच्‍छा और बुरा, उत्‍थान और, पतन, हार और जीत। सभी को इन दो परस्‍पर विरोधी चीजों के बीच संघर्ष करते रहना होता है। संघर्ष अकेले ही करना होता है। भीड़ तो उमड़ती है जीत जाने के बाद। बस इतना सा हुनर सीखना है, जमीन पर रहकर आसमान को जीतना है। दूसरों को समझना बुद्धिमानी है, खुद को समझना असली ज्ञान है। दूसरों को काबू करना बल है और खुद को काबू करना वास्‍तविक शक्ति। 

Question 2:

निर्देश - नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्‍नों के सबसे उपयुक्‍त उत्‍तर वाले विकल्‍प को चुनिए: 

मन में विश्‍वास रखें तो कोई हार नहीं सकता पर मन में शंका रहे तो कोई जीत नही स‍कता। जिंदगी हमें रोने के सौ मौके देती है तो मुस्‍कुराने के भी हजार बहाने देती है। प्रकृति ने हर चीज का एक जोड़ा बनाया हुआ है। रात और दिन, अंधेरा और उजाला, गोरा और काला, अच्‍छा और बुरा, उत्‍थान और, पतन, हार और जीत। सभी को इन दो परस्‍पर विरोधी चीजों के बीच संघर्ष करते रहना होता है। संघर्ष अकेले ही करना होता है। भीड़ तो उमड़ती है जीत जाने के बाद। बस इतना सा हुनर सीखना है, जमीन पर रहकर आसमान को जीतना है। दूसरों को समझना बुद्धिमानी है, खुद को समझना असली ज्ञान है। दूसरों को काबू करना बल है और खुद को काबू करना वास्‍तविक शक्ति। 

निम्नलिखित में से कौन-सा समूह से भिन्न हैं ?

निर्देश - नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्‍नों के सबसे उपयुक्‍त उत्‍तर वाले विकल्‍प को चुनिए: 

मन में विश्‍वास रखें तो कोई हार नहीं सकता पर मन में शंका रहे तो कोई जीत नही स‍कता। जिंदगी हमें रोने के सौ मौके देती है तो मुस्‍कुराने के भी हजार बहाने देती है। प्रकृति ने हर चीज का एक जोड़ा बनाया हुआ है। रात और दिन, अंधेरा और उजाला, गोरा और काला, अच्‍छा और बुरा, उत्‍थान और, पतन, हार और जीत। सभी को इन दो परस्‍पर विरोधी चीजों के बीच संघर्ष करते रहना होता है। संघर्ष अकेले ही करना होता है। भीड़ तो उमड़ती है जीत जाने के बाद। बस इतना सा हुनर सीखना है, जमीन पर रहकर आसमान को जीतना है। दूसरों को समझना बुद्धिमानी है, खुद को समझना असली ज्ञान है। दूसरों को काबू करना बल है और खुद को काबू करना वास्‍तविक शक्ति। 

Question 3:

निर्देश - नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्‍नों के सबसे उपयुक्‍त उत्‍तर वाले विकल्‍प को चुनिए: 

मन में विश्‍वास रखें तो कोई हार नहीं सकता पर मन में शंका रहे तो कोई जीत नही स‍कता। जिंदगी हमें रोने के सौ मौके देती है तो मुस्‍कुराने के भी हजार बहाने देती है। प्रकृति ने हर चीज का एक जोड़ा बनाया हुआ है। रात और दिन, अंधेरा और उजाला, गोरा और काला, अच्‍छा और बुरा, उत्‍थान और, पतन, हार और जीत। सभी को इन दो परस्‍पर विरोधी चीजों के बीच संघर्ष करते रहना होता है। संघर्ष अकेले ही करना होता है। भीड़ तो उमड़ती है जीत जाने के बाद। बस इतना सा हुनर सीखना है, जमीन पर रहकर आसमान को जीतना है। दूसरों को समझना बुद्धिमानी है, खुद को समझना असली ज्ञान है। दूसरों को काबू करना बल है और खुद को काबू करना वास्‍तविक शक्ति। 

कौन-सा जोड़ा गद्यांश में नहीं है ?

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मन में विश्‍वास रखें तो कोई हार नहीं सकता पर मन में शंका रहे तो कोई जीत नही स‍कता। जिंदगी हमें रोने के सौ मौके देती है तो मुस्‍कुराने के भी हजार बहाने देती है। प्रकृति ने हर चीज का एक जोड़ा बनाया हुआ है। रात और दिन, अंधेरा और उजाला, गोरा और काला, अच्‍छा और बुरा, उत्‍थान और, पतन, हार और जीत। सभी को इन दो परस्‍पर विरोधी चीजों के बीच संघर्ष करते रहना होता है। संघर्ष अकेले ही करना होता है। भीड़ तो उमड़ती है जीत जाने के बाद। बस इतना सा हुनर सीखना है, जमीन पर रहकर आसमान को जीतना है। दूसरों को समझना बुद्धिमानी है, खुद को समझना असली ज्ञान है। दूसरों को काबू करना बल है और खुद को काबू करना वास्‍तविक शक्ति। 

Question 4:

निर्देश - नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्‍नों के सबसे उपयुक्‍त उत्‍तर वाले विकल्‍प को चुनिए: 

मन में विश्‍वास रखें तो कोई हार नहीं सकता पर मन में शंका रहे तो कोई जीत नही स‍कता। जिंदगी हमें रोने के सौ मौके देती है तो मुस्‍कुराने के भी हजार बहाने देती है। प्रकृति ने हर चीज का एक जोड़ा बनाया हुआ है। रात और दिन, अंधेरा और उजाला, गोरा और काला, अच्‍छा और बुरा, उत्‍थान और, पतन, हार और जीत। सभी को इन दो परस्‍पर विरोधी चीजों के बीच संघर्ष करते रहना होता है। संघर्ष अकेले ही करना होता है। भीड़ तो उमड़ती है जीत जाने के बाद। बस इतना सा हुनर सीखना है, जमीन पर रहकर आसमान को जीतना है। दूसरों को समझना बुद्धिमानी है, खुद को समझना असली ज्ञान है। दूसरों को काबू करना बल है और खुद को काबू करना वास्‍तविक शक्ति। 

‘पतन’ शब्द का विलोम है-

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मन में विश्‍वास रखें तो कोई हार नहीं सकता पर मन में शंका रहे तो कोई जीत नही स‍कता। जिंदगी हमें रोने के सौ मौके देती है तो मुस्‍कुराने के भी हजार बहाने देती है। प्रकृति ने हर चीज का एक जोड़ा बनाया हुआ है। रात और दिन, अंधेरा और उजाला, गोरा और काला, अच्‍छा और बुरा, उत्‍थान और, पतन, हार और जीत। सभी को इन दो परस्‍पर विरोधी चीजों के बीच संघर्ष करते रहना होता है। संघर्ष अकेले ही करना होता है। भीड़ तो उमड़ती है जीत जाने के बाद। बस इतना सा हुनर सीखना है, जमीन पर रहकर आसमान को जीतना है। दूसरों को समझना बुद्धिमानी है, खुद को समझना असली ज्ञान है। दूसरों को काबू करना बल है और खुद को काबू करना वास्‍तविक शक्ति। 

Question 5:

निर्देश - नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्‍नों के सबसे उपयुक्‍त उत्‍तर वाले विकल्‍प को चुनिए: 

मन में विश्‍वास रखें तो कोई हार नहीं सकता पर मन में शंका रहे तो कोई जीत नही स‍कता। जिंदगी हमें रोने के सौ मौके देती है तो मुस्‍कुराने के भी हजार बहाने देती है। प्रकृति ने हर चीज का एक जोड़ा बनाया हुआ है। रात और दिन, अंधेरा और उजाला, गोरा और काला, अच्‍छा और बुरा, उत्‍थान और, पतन, हार और जीत। सभी को इन दो परस्‍पर विरोधी चीजों के बीच संघर्ष करते रहना होता है। संघर्ष अकेले ही करना होता है। भीड़ तो उमड़ती है जीत जाने के बाद। बस इतना सा हुनर सीखना है, जमीन पर रहकर आसमान को जीतना है। दूसरों को समझना बुद्धिमानी है, खुद को समझना असली ज्ञान है। दूसरों को काबू करना बल है और खुद को काबू करना वास्‍तविक शक्ति। 

गद्यांश के अनुसार सच्ची शक्ति है-

निर्देश - नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्‍नों के सबसे उपयुक्‍त उत्‍तर वाले विकल्‍प को चुनिए: 

मन में विश्‍वास रखें तो कोई हार नहीं सकता पर मन में शंका रहे तो कोई जीत नही स‍कता। जिंदगी हमें रोने के सौ मौके देती है तो मुस्‍कुराने के भी हजार बहाने देती है। प्रकृति ने हर चीज का एक जोड़ा बनाया हुआ है। रात और दिन, अंधेरा और उजाला, गोरा और काला, अच्‍छा और बुरा, उत्‍थान और, पतन, हार और जीत। सभी को इन दो परस्‍पर विरोधी चीजों के बीच संघर्ष करते रहना होता है। संघर्ष अकेले ही करना होता है। भीड़ तो उमड़ती है जीत जाने के बाद। बस इतना सा हुनर सीखना है, जमीन पर रहकर आसमान को जीतना है। दूसरों को समझना बुद्धिमानी है, खुद को समझना असली ज्ञान है। दूसरों को काबू करना बल है और खुद को काबू करना वास्‍तविक शक्ति। 

Question 6:

निर्देश - दिये गये गद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्न के सबसे उपयुक्त वाले विकल्प चुनिए:

मानव के मर्मस्‍थल में परोपकार और त्‍याग जैसे सद्गुणों की जागृति तभी हो पाती है , जब वह अपने तुच्‍छ भौतिक जीवन को नगण्‍य समझकर उत्‍साह-उमंग के साथ दूसरों की सेवा-सुश्रूषा तथा सत्‍कार करता है। यह कठोर सत्‍य है कि हम भौतिक रूप में इस संसार में सीमित अवधि तक ही रहेंगें। हमारी मृत्‍यु के बाद हमारे निकट संबं‍धी, मित्र, बंधु-बांधव जीवन भर हमारे लिए शोकाकुल और प्रे‍माकुल भी नहीं रहेंगें। दुख मिश्रित इस निर्बल भावना पर विजय पाने के लिए तब हमारे अंतर्मन में एक विचार उठता है कि क्‍यों न हम अपने सत्‍कर्मों और सद्गुणों का प्रकाश फैलाकर सदा-सदा के अमर हो जाएँ।

सेवक-प्रवृति अपनाकर हम ऐसा अवश्‍य कर सकते हैं। अपने नि:स्‍वार्थ व्‍यक्तित्‍व और परहित कर्मों के बल पर हम हमेशा के लिए मानवीय जीवन हेतु उत्‍प्रेरणा बन सकते हैं। अनुपम मनुष्‍य जीवन को सद्गति प्रदान करने के लिए यह विचार नया नहीं है। ऐसे विचार सज्‍जन मनुष्‍यों के अंतर्गत में सदा उठते रहे हैं तथा इन्‍हें अपनाकर वे दुनिया में अमर भी हो गए। इस धरा पर स्‍थायी रूप में नहीं रहने पर भी ऐसे परहितकारी कालांतर तक पूते जाते रहेंगें। अमूल्‍य मनुष्‍य जीवन की सर्वश्रेष्‍ठ शिक्षा यही है। यही सीखकर मनुष्‍य का जीवन आनंदमय और समृद्धिशाली हो सकता है।

यदि इस प्रकार मानव जीवन उन्नत होता है तो यह संपूर्ण संसार स्‍वर्गिक विस्‍तार ग्रहण कर लेगा। किसी भी मानव को अध्‍यात्मिकता का जो अंतिम ज्ञान मिलेगा, वह भी यही शिक्षा देगा कि धर्म-कर्म का उद्देश्‍य सत्‍कर्मों और सद्गुणों की ज्‍योति फैलाना ही है।

नि:स्‍वार्थ शब्‍द का उपयुक्‍त विपरितार्थी शब्‍द है?

निर्देश - दिये गये गद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्न के सबसे उपयुक्त वाले विकल्प चुनिए:

मानव के मर्मस्‍थल में परोपकार और त्‍याग जैसे सद्गुणों की जागृति तभी हो पाती है , जब वह अपने तुच्‍छ भौतिक जीवन को नगण्‍य समझकर उत्‍साह-उमंग के साथ दूसरों की सेवा-सुश्रूषा तथा सत्‍कार करता है। यह कठोर सत्‍य है कि हम भौतिक रूप में इस संसार में सीमित अवधि तक ही रहेंगें। हमारी मृत्‍यु के बाद हमारे निकट संबं‍धी, मित्र, बंधु-बांधव जीवन भर हमारे लिए शोकाकुल और प्रे‍माकुल भी नहीं रहेंगें। दुख मिश्रित इस निर्बल भावना पर विजय पाने के लिए तब हमारे अंतर्मन में एक विचार उठता है कि क्‍यों न हम अपने सत्‍कर्मों और सद्गुणों का प्रकाश फैलाकर सदा-सदा के अमर हो जाएँ।

सेवक-प्रवृति अपनाकर हम ऐसा अवश्‍य कर सकते हैं। अपने नि:स्‍वार्थ व्‍यक्तित्‍व और परहित कर्मों के बल पर हम हमेशा के लिए मानवीय जीवन हेतु उत्‍प्रेरणा बन सकते हैं। अनुपम मनुष्‍य जीवन को सद्गति प्रदान करने के लिए यह विचार नया नहीं है। ऐसे विचार सज्‍जन मनुष्‍यों के अंतर्गत में सदा उठते रहे हैं तथा इन्‍हें अपनाकर वे दुनिया में अमर भी हो गए। इस धरा पर स्‍थायी रूप में नहीं रहने पर भी ऐसे परहितकारी कालांतर तक पूते जाते रहेंगें। अमूल्‍य मनुष्‍य जीवन की सर्वश्रेष्‍ठ शिक्षा यही है। यही सीखकर मनुष्‍य का जीवन आनंदमय और समृद्धिशाली हो सकता है।

यदि इस प्रकार मानव जीवन उन्नत होता है तो यह संपूर्ण संसार स्‍वर्गिक विस्‍तार ग्रहण कर लेगा। किसी भी मानव को अध्‍यात्मिकता का जो अंतिम ज्ञान मिलेगा, वह भी यही शिक्षा देगा कि धर्म-कर्म का उद्देश्‍य सत्‍कर्मों और सद्गुणों की ज्‍योति फैलाना ही है।

Question 7:

निर्देश - दिये गये गद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्न के सबसे उपयुक्त वाले विकल्प चुनिए:

मानव के मर्मस्‍थल में परोपकार और त्‍याग जैसे सद्गुणों की जागृति तभी हो पाती है , जब वह अपने तुच्‍छ भौतिक जीवन को नगण्‍य समझकर उत्‍साह-उमंग के साथ दूसरों की सेवा-सुश्रूषा तथा सत्‍कार करता है। यह कठोर सत्‍य है कि हम भौतिक रूप में इस संसार में सीमित अवधि तक ही रहेंगें। हमारी मृत्‍यु के बाद हमारे निकट संबं‍धी, मित्र, बंधु-बांधव जीवन भर हमारे लिए शोकाकुल और प्रे‍माकुल भी नहीं रहेंगें। दुख मिश्रित इस निर्बल भावना पर विजय पाने के लिए तब हमारे अंतर्मन में एक विचार उठता है कि क्‍यों न हम अपने सत्‍कर्मों और सद्गुणों का प्रकाश फैलाकर सदा-सदा के अमर हो जाएँ।

सेवक-प्रवृति अपनाकर हम ऐसा अवश्‍य कर सकते हैं। अपने नि:स्‍वार्थ व्‍यक्तित्‍व और परहित कर्मों के बल पर हम हमेशा के लिए मानवीय जीवन हेतु उत्‍प्रेरणा बन सकते हैं। अनुपम मनुष्‍य जीवन को सद्गति प्रदान करने के लिए यह विचार नया नहीं है। ऐसे विचार सज्‍जन मनुष्‍यों के अंतर्गत में सदा उठते रहे हैं तथा इन्‍हें अपनाकर वे दुनिया में अमर भी हो गए। इस धरा पर स्‍थायी रूप में नहीं रहने पर भी ऐसे परहितकारी कालांतर तक पूते जाते रहेंगें। अमूल्‍य मनुष्‍य जीवन की सर्वश्रेष्‍ठ शिक्षा यही है। यही सीखकर मनुष्‍य का जीवन आनंदमय और समृद्धिशाली हो सकता है।

यदि इस प्रकार मानव जीवन उन्नत होता है तो यह संपूर्ण संसार स्‍वर्गिक विस्‍तार ग्रहण कर लेगा। किसी भी मानव को अध्‍यात्मिकता का जो अंतिम ज्ञान मिलेगा, वह भी यही शिक्षा देगा कि धर्म-कर्म का उद्देश्‍य सत्‍कर्मों और सद्गुणों की ज्‍योति फैलाना ही है।

गद्यांश में प्रयुक्‍त 'आध्‍यात्मिकता' शब्‍द किन उपसर्ग-प्रत्‍ययों से बना है?

निर्देश - दिये गये गद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्न के सबसे उपयुक्त वाले विकल्प चुनिए:

मानव के मर्मस्‍थल में परोपकार और त्‍याग जैसे सद्गुणों की जागृति तभी हो पाती है , जब वह अपने तुच्‍छ भौतिक जीवन को नगण्‍य समझकर उत्‍साह-उमंग के साथ दूसरों की सेवा-सुश्रूषा तथा सत्‍कार करता है। यह कठोर सत्‍य है कि हम भौतिक रूप में इस संसार में सीमित अवधि तक ही रहेंगें। हमारी मृत्‍यु के बाद हमारे निकट संबं‍धी, मित्र, बंधु-बांधव जीवन भर हमारे लिए शोकाकुल और प्रे‍माकुल भी नहीं रहेंगें। दुख मिश्रित इस निर्बल भावना पर विजय पाने के लिए तब हमारे अंतर्मन में एक विचार उठता है कि क्‍यों न हम अपने सत्‍कर्मों और सद्गुणों का प्रकाश फैलाकर सदा-सदा के अमर हो जाएँ।

सेवक-प्रवृति अपनाकर हम ऐसा अवश्‍य कर सकते हैं। अपने नि:स्‍वार्थ व्‍यक्तित्‍व और परहित कर्मों के बल पर हम हमेशा के लिए मानवीय जीवन हेतु उत्‍प्रेरणा बन सकते हैं। अनुपम मनुष्‍य जीवन को सद्गति प्रदान करने के लिए यह विचार नया नहीं है। ऐसे विचार सज्‍जन मनुष्‍यों के अंतर्गत में सदा उठते रहे हैं तथा इन्‍हें अपनाकर वे दुनिया में अमर भी हो गए। इस धरा पर स्‍थायी रूप में नहीं रहने पर भी ऐसे परहितकारी कालांतर तक पूते जाते रहेंगें। अमूल्‍य मनुष्‍य जीवन की सर्वश्रेष्‍ठ शिक्षा यही है। यही सीखकर मनुष्‍य का जीवन आनंदमय और समृद्धिशाली हो सकता है।

यदि इस प्रकार मानव जीवन उन्नत होता है तो यह संपूर्ण संसार स्‍वर्गिक विस्‍तार ग्रहण कर लेगा। किसी भी मानव को अध्‍यात्मिकता का जो अंतिम ज्ञान मिलेगा, वह भी यही शिक्षा देगा कि धर्म-कर्म का उद्देश्‍य सत्‍कर्मों और सद्गुणों की ज्‍योति फैलाना ही है।

Question 8:

निर्देश - दिये गये गद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्न के सबसे उपयुक्त वाले विकल्प चुनिए:

मानव के मर्मस्‍थल में परोपकार और त्‍याग जैसे सद्गुणों की जागृति तभी हो पाती है , जब वह अपने तुच्‍छ भौतिक जीवन को नगण्‍य समझकर उत्‍साह-उमंग के साथ दूसरों की सेवा-सुश्रूषा तथा सत्‍कार करता है। यह कठोर सत्‍य है कि हम भौतिक रूप में इस संसार में सीमित अवधि तक ही रहेंगें। हमारी मृत्‍यु के बाद हमारे निकट संबं‍धी, मित्र, बंधु-बांधव जीवन भर हमारे लिए शोकाकुल और प्रे‍माकुल भी नहीं रहेंगें। दुख मिश्रित इस निर्बल भावना पर विजय पाने के लिए तब हमारे अंतर्मन में एक विचार उठता है कि क्‍यों न हम अपने सत्‍कर्मों और सद्गुणों का प्रकाश फैलाकर सदा-सदा के अमर हो जाएँ।

सेवक-प्रवृति अपनाकर हम ऐसा अवश्‍य कर सकते हैं। अपने नि:स्‍वार्थ व्‍यक्तित्‍व और परहित कर्मों के बल पर हम हमेशा के लिए मानवीय जीवन हेतु उत्‍प्रेरणा बन सकते हैं। अनुपम मनुष्‍य जीवन को सद्गति प्रदान करने के लिए यह विचार नया नहीं है। ऐसे विचार सज्‍जन मनुष्‍यों के अंतर्गत में सदा उठते रहे हैं तथा इन्‍हें अपनाकर वे दुनिया में अमर भी हो गए। इस धरा पर स्‍थायी रूप में नहीं रहने पर भी ऐसे परहितकारी कालांतर तक पूते जाते रहेंगें। अमूल्‍य मनुष्‍य जीवन की सर्वश्रेष्‍ठ शिक्षा यही है। यही सीखकर मनुष्‍य का जीवन आनंदमय और समृद्धिशाली हो सकता है।

यदि इस प्रकार मानव जीवन उन्नत होता है तो यह संपूर्ण संसार स्‍वर्गिक विस्‍तार ग्रहण कर लेगा। किसी भी मानव को अध्‍यात्मिकता का जो अंतिम ज्ञान मिलेगा, वह भी यही शिक्षा देगा कि धर्म-कर्म का उद्देश्‍य सत्‍कर्मों और सद्गुणों की ज्‍योति फैलाना ही है।

ऐसे परोपकारी लोग सदा पूजे जाते रहेंगे, जो-

निर्देश - दिये गये गद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्न के सबसे उपयुक्त वाले विकल्प चुनिए:

मानव के मर्मस्‍थल में परोपकार और त्‍याग जैसे सद्गुणों की जागृति तभी हो पाती है , जब वह अपने तुच्‍छ भौतिक जीवन को नगण्‍य समझकर उत्‍साह-उमंग के साथ दूसरों की सेवा-सुश्रूषा तथा सत्‍कार करता है। यह कठोर सत्‍य है कि हम भौतिक रूप में इस संसार में सीमित अवधि तक ही रहेंगें। हमारी मृत्‍यु के बाद हमारे निकट संबं‍धी, मित्र, बंधु-बांधव जीवन भर हमारे लिए शोकाकुल और प्रे‍माकुल भी नहीं रहेंगें। दुख मिश्रित इस निर्बल भावना पर विजय पाने के लिए तब हमारे अंतर्मन में एक विचार उठता है कि क्‍यों न हम अपने सत्‍कर्मों और सद्गुणों का प्रकाश फैलाकर सदा-सदा के अमर हो जाएँ।

सेवक-प्रवृति अपनाकर हम ऐसा अवश्‍य कर सकते हैं। अपने नि:स्‍वार्थ व्‍यक्तित्‍व और परहित कर्मों के बल पर हम हमेशा के लिए मानवीय जीवन हेतु उत्‍प्रेरणा बन सकते हैं। अनुपम मनुष्‍य जीवन को सद्गति प्रदान करने के लिए यह विचार नया नहीं है। ऐसे विचार सज्‍जन मनुष्‍यों के अंतर्गत में सदा उठते रहे हैं तथा इन्‍हें अपनाकर वे दुनिया में अमर भी हो गए। इस धरा पर स्‍थायी रूप में नहीं रहने पर भी ऐसे परहितकारी कालांतर तक पूते जाते रहेंगें। अमूल्‍य मनुष्‍य जीवन की सर्वश्रेष्‍ठ शिक्षा यही है। यही सीखकर मनुष्‍य का जीवन आनंदमय और समृद्धिशाली हो सकता है।

यदि इस प्रकार मानव जीवन उन्नत होता है तो यह संपूर्ण संसार स्‍वर्गिक विस्‍तार ग्रहण कर लेगा। किसी भी मानव को अध्‍यात्मिकता का जो अंतिम ज्ञान मिलेगा, वह भी यही शिक्षा देगा कि धर्म-कर्म का उद्देश्‍य सत्‍कर्मों और सद्गुणों की ज्‍योति फैलाना ही है।

Question 9:

निर्देश - दिये गये गद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्न के सबसे उपयुक्त वाले विकल्प चुनिए:

मानव के मर्मस्‍थल में परोपकार और त्‍याग जैसे सद्गुणों की जागृति तभी हो पाती है , जब वह अपने तुच्‍छ भौतिक जीवन को नगण्‍य समझकर उत्‍साह-उमंग के साथ दूसरों की सेवा-सुश्रूषा तथा सत्‍कार करता है। यह कठोर सत्‍य है कि हम भौतिक रूप में इस संसार में सीमित अवधि तक ही रहेंगें। हमारी मृत्‍यु के बाद हमारे निकट संबं‍धी, मित्र, बंधु-बांधव जीवन भर हमारे लिए शोकाकुल और प्रे‍माकुल भी नहीं रहेंगें। दुख मिश्रित इस निर्बल भावना पर विजय पाने के लिए तब हमारे अंतर्मन में एक विचार उठता है कि क्‍यों न हम अपने सत्‍कर्मों और सद्गुणों का प्रकाश फैलाकर सदा-सदा के अमर हो जाएँ।

सेवक-प्रवृति अपनाकर हम ऐसा अवश्‍य कर सकते हैं। अपने नि:स्‍वार्थ व्‍यक्तित्‍व और परहित कर्मों के बल पर हम हमेशा के लिए मानवीय जीवन हेतु उत्‍प्रेरणा बन सकते हैं। अनुपम मनुष्‍य जीवन को सद्गति प्रदान करने के लिए यह विचार नया नहीं है। ऐसे विचार सज्‍जन मनुष्‍यों के अंतर्गत में सदा उठते रहे हैं तथा इन्‍हें अपनाकर वे दुनिया में अमर भी हो गए। इस धरा पर स्‍थायी रूप में नहीं रहने पर भी ऐसे परहितकारी कालांतर तक पूते जाते रहेंगें। अमूल्‍य मनुष्‍य जीवन की सर्वश्रेष्‍ठ शिक्षा यही है। यही सीखकर मनुष्‍य का जीवन आनंदमय और समृद्धिशाली हो सकता है।

यदि इस प्रकार मानव जीवन उन्नत होता है तो यह संपूर्ण संसार स्‍वर्गिक विस्‍तार ग्रहण कर लेगा। किसी भी मानव को अध्‍यात्मिकता का जो अंतिम ज्ञान मिलेगा, वह भी यही शिक्षा देगा कि धर्म-कर्म का उद्देश्‍य सत्‍कर्मों और सद्गुणों की ज्‍योति फैलाना ही है।

कठोर सत्‍य' किसे कहा गया है?

निर्देश - दिये गये गद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्न के सबसे उपयुक्त वाले विकल्प चुनिए:

मानव के मर्मस्‍थल में परोपकार और त्‍याग जैसे सद्गुणों की जागृति तभी हो पाती है , जब वह अपने तुच्‍छ भौतिक जीवन को नगण्‍य समझकर उत्‍साह-उमंग के साथ दूसरों की सेवा-सुश्रूषा तथा सत्‍कार करता है। यह कठोर सत्‍य है कि हम भौतिक रूप में इस संसार में सीमित अवधि तक ही रहेंगें। हमारी मृत्‍यु के बाद हमारे निकट संबं‍धी, मित्र, बंधु-बांधव जीवन भर हमारे लिए शोकाकुल और प्रे‍माकुल भी नहीं रहेंगें। दुख मिश्रित इस निर्बल भावना पर विजय पाने के लिए तब हमारे अंतर्मन में एक विचार उठता है कि क्‍यों न हम अपने सत्‍कर्मों और सद्गुणों का प्रकाश फैलाकर सदा-सदा के अमर हो जाएँ।

सेवक-प्रवृति अपनाकर हम ऐसा अवश्‍य कर सकते हैं। अपने नि:स्‍वार्थ व्‍यक्तित्‍व और परहित कर्मों के बल पर हम हमेशा के लिए मानवीय जीवन हेतु उत्‍प्रेरणा बन सकते हैं। अनुपम मनुष्‍य जीवन को सद्गति प्रदान करने के लिए यह विचार नया नहीं है। ऐसे विचार सज्‍जन मनुष्‍यों के अंतर्गत में सदा उठते रहे हैं तथा इन्‍हें अपनाकर वे दुनिया में अमर भी हो गए। इस धरा पर स्‍थायी रूप में नहीं रहने पर भी ऐसे परहितकारी कालांतर तक पूते जाते रहेंगें। अमूल्‍य मनुष्‍य जीवन की सर्वश्रेष्‍ठ शिक्षा यही है। यही सीखकर मनुष्‍य का जीवन आनंदमय और समृद्धिशाली हो सकता है।

यदि इस प्रकार मानव जीवन उन्नत होता है तो यह संपूर्ण संसार स्‍वर्गिक विस्‍तार ग्रहण कर लेगा। किसी भी मानव को अध्‍यात्मिकता का जो अंतिम ज्ञान मिलेगा, वह भी यही शिक्षा देगा कि धर्म-कर्म का उद्देश्‍य सत्‍कर्मों और सद्गुणों की ज्‍योति फैलाना ही है।

Question 10:

निर्देश - दिये गये गद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्न के सबसे उपयुक्त वाले विकल्प चुनिए:

मानव के मर्मस्‍थल में परोपकार और त्‍याग जैसे सद्गुणों की जागृति तभी हो पाती है , जब वह अपने तुच्‍छ भौतिक जीवन को नगण्‍य समझकर उत्‍साह-उमंग के साथ दूसरों की सेवा-सुश्रूषा तथा सत्‍कार करता है। यह कठोर सत्‍य है कि हम भौतिक रूप में इस संसार में सीमित अवधि तक ही रहेंगें। हमारी मृत्‍यु के बाद हमारे निकट संबं‍धी, मित्र, बंधु-बांधव जीवन भर हमारे लिए शोकाकुल और प्रे‍माकुल भी नहीं रहेंगें। दुख मिश्रित इस निर्बल भावना पर विजय पाने के लिए तब हमारे अंतर्मन में एक विचार उठता है कि क्‍यों न हम अपने सत्‍कर्मों और सद्गुणों का प्रकाश फैलाकर सदा-सदा के अमर हो जाएँ।

सेवक-प्रवृति अपनाकर हम ऐसा अवश्‍य कर सकते हैं। अपने नि:स्‍वार्थ व्‍यक्तित्‍व और परहित कर्मों के बल पर हम हमेशा के लिए मानवीय जीवन हेतु उत्‍प्रेरणा बन सकते हैं। अनुपम मनुष्‍य जीवन को सद्गति प्रदान करने के लिए यह विचार नया नहीं है। ऐसे विचार सज्‍जन मनुष्‍यों के अंतर्गत में सदा उठते रहे हैं तथा इन्‍हें अपनाकर वे दुनिया में अमर भी हो गए। इस धरा पर स्‍थायी रूप में नहीं रहने पर भी ऐसे परहितकारी कालांतर तक पूते जाते रहेंगें। अमूल्‍य मनुष्‍य जीवन की सर्वश्रेष्‍ठ शिक्षा यही है। यही सीखकर मनुष्‍य का जीवन आनंदमय और समृद्धिशाली हो सकता है।

यदि इस प्रकार मानव जीवन उन्नत होता है तो यह संपूर्ण संसार स्‍वर्गिक विस्‍तार ग्रहण कर लेगा। किसी भी मानव को अध्‍यात्मिकता का जो अंतिम ज्ञान मिलेगा, वह भी यही शिक्षा देगा कि धर्म-कर्म का उद्देश्‍य सत्‍कर्मों और सद्गुणों की ज्‍योति फैलाना ही है।

निर्बल भावनाओं पर विजय पाने के लिए क्‍या किए जाने की आवश्‍यकता बताई गई है?

निर्देश - दिये गये गद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्न के सबसे उपयुक्त वाले विकल्प चुनिए:

मानव के मर्मस्‍थल में परोपकार और त्‍याग जैसे सद्गुणों की जागृति तभी हो पाती है , जब वह अपने तुच्‍छ भौतिक जीवन को नगण्‍य समझकर उत्‍साह-उमंग के साथ दूसरों की सेवा-सुश्रूषा तथा सत्‍कार करता है। यह कठोर सत्‍य है कि हम भौतिक रूप में इस संसार में सीमित अवधि तक ही रहेंगें। हमारी मृत्‍यु के बाद हमारे निकट संबं‍धी, मित्र, बंधु-बांधव जीवन भर हमारे लिए शोकाकुल और प्रे‍माकुल भी नहीं रहेंगें। दुख मिश्रित इस निर्बल भावना पर विजय पाने के लिए तब हमारे अंतर्मन में एक विचार उठता है कि क्‍यों न हम अपने सत्‍कर्मों और सद्गुणों का प्रकाश फैलाकर सदा-सदा के अमर हो जाएँ।

सेवक-प्रवृति अपनाकर हम ऐसा अवश्‍य कर सकते हैं। अपने नि:स्‍वार्थ व्‍यक्तित्‍व और परहित कर्मों के बल पर हम हमेशा के लिए मानवीय जीवन हेतु उत्‍प्रेरणा बन सकते हैं। अनुपम मनुष्‍य जीवन को सद्गति प्रदान करने के लिए यह विचार नया नहीं है। ऐसे विचार सज्‍जन मनुष्‍यों के अंतर्गत में सदा उठते रहे हैं तथा इन्‍हें अपनाकर वे दुनिया में अमर भी हो गए। इस धरा पर स्‍थायी रूप में नहीं रहने पर भी ऐसे परहितकारी कालांतर तक पूते जाते रहेंगें। अमूल्‍य मनुष्‍य जीवन की सर्वश्रेष्‍ठ शिक्षा यही है। यही सीखकर मनुष्‍य का जीवन आनंदमय और समृद्धिशाली हो सकता है।

यदि इस प्रकार मानव जीवन उन्नत होता है तो यह संपूर्ण संसार स्‍वर्गिक विस्‍तार ग्रहण कर लेगा। किसी भी मानव को अध्‍यात्मिकता का जो अंतिम ज्ञान मिलेगा, वह भी यही शिक्षा देगा कि धर्म-कर्म का उद्देश्‍य सत्‍कर्मों और सद्गुणों की ज्‍योति फैलाना ही है।