Question 1:
निर्देश- नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए:
असल और बनावटी में अंतर धुंधलाने के कारण सेवाएँ या कुछ भी देने के लिए सुपात्र का चयन आजकल चुनौतीपूर्ण हैं। इसके लिए विशेष सूझ-बूझ और विवेकशीलता आवश्यक है। उपलब्धि या सफलता स्वंय में लक्ष्य नहीं हो सकती बल्कि व्यक्ति के सतत निवेशों का स्वाभाविक प्रतिफल होती है। मन और निष्ठा से निष्पादित कार्य में व्यक्ति के समूचे कौशल प्रयुक्त होते हैं और उसमें समाज को देने का भाव प्रधान रहता है। लेने-देन में निष्ठा का नियम आर्शीवाद के आदान-प्रदान में भी लागू होता है। अनेक व्यक्ति उन बुजुर्गों से आर्शीवाद पाना अपना अधिकार समझते हैं जिनकी सुध लेना तो दूर, जिन्हें हेय मानते हुए उनसे सदा दूरी बनाए रखी हो। आशीर्वाद तो बड़ी बात हुई, एक तुच्छ सी चीज आपको यूँ ही कोई क्यों देगा। आर्शीवाद, बर्गर या सिमकार्ड भी भौतिक बाजार में सहज उपलब्ध होने वाली वस्तु नहीं है। उसे दिल से सम्मान देना होगा। देने वाला आप की मंशाओं और फितरत को समझता है। आप भले ही कुछ न दे, यह भी आवश्यक नहीं कि उनके सानिध्य में रहें। पर उसके विचारों, भावनाओं को श्रेष्ठ समझते हुए वैसा करने का यत्न करेंगें तो वह हृदय से आप पर आर्शीवाद बरसाएगे और आप धन्य हो जाएँगें।
मन और पूर्ण निष्ठा से किये गए कार्य में कौन सा भाव प्रमुख होता है ?
निर्देश- नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए:
असल और बनावटी में अंतर धुंधलाने के कारण सेवाएँ या कुछ भी देने के लिए सुपात्र का चयन आजकल चुनौतीपूर्ण हैं। इसके लिए विशेष सूझ-बूझ और विवेकशीलता आवश्यक है। उपलब्धि या सफलता स्वंय में लक्ष्य नहीं हो सकती बल्कि व्यक्ति के सतत निवेशों का स्वाभाविक प्रतिफल होती है। मन और निष्ठा से निष्पादित कार्य में व्यक्ति के समूचे कौशल प्रयुक्त होते हैं और उसमें समाज को देने का भाव प्रधान रहता है। लेने-देन में निष्ठा का नियम आर्शीवाद के आदान-प्रदान में भी लागू होता है। अनेक व्यक्ति उन बुजुर्गों से आर्शीवाद पाना अपना अधिकार समझते हैं जिनकी सुध लेना तो दूर, जिन्हें हेय मानते हुए उनसे सदा दूरी बनाए रखी हो। आशीर्वाद तो बड़ी बात हुई, एक तुच्छ सी चीज आपको यूँ ही कोई क्यों देगा। आर्शीवाद, बर्गर या सिमकार्ड भी भौतिक बाजार में सहज उपलब्ध होने वाली वस्तु नहीं है। उसे दिल से सम्मान देना होगा। देने वाला आप की मंशाओं और फितरत को समझता है। आप भले ही कुछ न दे, यह भी आवश्यक नहीं कि उनके सानिध्य में रहें। पर उसके विचारों, भावनाओं को श्रेष्ठ समझते हुए वैसा करने का यत्न करेंगें तो वह हृदय से आप पर आर्शीवाद बरसाएगे और आप धन्य हो जाएँगें।
मन और पूर्ण निष्ठा से किये गए कार्य में कौन सा भाव प्रमुख होता है ?
Question 2:
निर्देश- नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए:
असल और बनावटी में अंतर धुंधलाने के कारण सेवाएँ या कुछ भी देने के लिए सुपात्र का चयन आजकल चुनौतीपूर्ण हैं। इसके लिए विशेष सूझ-बूझ और विवेकशीलता आवश्यक है। उपलब्धि या सफलता स्वंय में लक्ष्य नहीं हो सकती बल्कि व्यक्ति के सतत निवेशों का स्वाभाविक प्रतिफल होती है। मन और निष्ठा से निष्पादित कार्य में व्यक्ति के समूचे कौशल प्रयुक्त होते हैं और उसमें समाज को देने का भाव प्रधान रहता है। लेने-देन में निष्ठा का नियम आर्शीवाद के आदान-प्रदान में भी लागू होता है। अनेक व्यक्ति उन बुजुर्गों से आर्शीवाद पाना अपना अधिकार समझते हैं जिनकी सुध लेना तो दूर, जिन्हें हेय मानते हुए उनसे सदा दूरी बनाए रखी हो। आशीर्वाद तो बड़ी बात हुई, एक तुच्छ सी चीज आपको यूँ ही कोई क्यों देगा। आर्शीवाद, बर्गर या सिमकार्ड भी भौतिक बाजार में सहज उपलब्ध होने वाली वस्तु नहीं है। उसे दिल से सम्मान देना होगा। देने वाला आप की मंशाओं और फितरत को समझता है। आप भले ही कुछ न दे, यह भी आवश्यक नहीं कि उनके सानिध्य में रहें। पर उसके विचारों, भावनाओं को श्रेष्ठ समझते हुए वैसा करने का यत्न करेंगें तो वह हृदय से आप पर आर्शीवाद बरसाएगे और आप धन्य हो जाएँगें।
गद्यांश के अनुसार व्यक्ति के समग्र कौशल किसमें प्रयुक्त होते है ?
निर्देश- नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए:
असल और बनावटी में अंतर धुंधलाने के कारण सेवाएँ या कुछ भी देने के लिए सुपात्र का चयन आजकल चुनौतीपूर्ण हैं। इसके लिए विशेष सूझ-बूझ और विवेकशीलता आवश्यक है। उपलब्धि या सफलता स्वंय में लक्ष्य नहीं हो सकती बल्कि व्यक्ति के सतत निवेशों का स्वाभाविक प्रतिफल होती है। मन और निष्ठा से निष्पादित कार्य में व्यक्ति के समूचे कौशल प्रयुक्त होते हैं और उसमें समाज को देने का भाव प्रधान रहता है। लेने-देन में निष्ठा का नियम आर्शीवाद के आदान-प्रदान में भी लागू होता है। अनेक व्यक्ति उन बुजुर्गों से आर्शीवाद पाना अपना अधिकार समझते हैं जिनकी सुध लेना तो दूर, जिन्हें हेय मानते हुए उनसे सदा दूरी बनाए रखी हो। आशीर्वाद तो बड़ी बात हुई, एक तुच्छ सी चीज आपको यूँ ही कोई क्यों देगा। आर्शीवाद, बर्गर या सिमकार्ड भी भौतिक बाजार में सहज उपलब्ध होने वाली वस्तु नहीं है। उसे दिल से सम्मान देना होगा। देने वाला आप की मंशाओं और फितरत को समझता है। आप भले ही कुछ न दे, यह भी आवश्यक नहीं कि उनके सानिध्य में रहें। पर उसके विचारों, भावनाओं को श्रेष्ठ समझते हुए वैसा करने का यत्न करेंगें तो वह हृदय से आप पर आर्शीवाद बरसाएगे और आप धन्य हो जाएँगें।
गद्यांश के अनुसार व्यक्ति के समग्र कौशल किसमें प्रयुक्त होते है ?
Question 3:
निर्देश- नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए:
असल और बनावटी में अंतर धुंधलाने के कारण सेवाएँ या कुछ भी देने के लिए सुपात्र का चयन आजकल चुनौतीपूर्ण हैं। इसके लिए विशेष सूझ-बूझ और विवेकशीलता आवश्यक है। उपलब्धि या सफलता स्वंय में लक्ष्य नहीं हो सकती बल्कि व्यक्ति के सतत निवेशों का स्वाभाविक प्रतिफल होती है। मन और निष्ठा से निष्पादित कार्य में व्यक्ति के समूचे कौशल प्रयुक्त होते हैं और उसमें समाज को देने का भाव प्रधान रहता है। लेने-देन में निष्ठा का नियम आर्शीवाद के आदान-प्रदान में भी लागू होता है। अनेक व्यक्ति उन बुजुर्गों से आर्शीवाद पाना अपना अधिकार समझते हैं जिनकी सुध लेना तो दूर, जिन्हें हेय मानते हुए उनसे सदा दूरी बनाए रखी हो। आशीर्वाद तो बड़ी बात हुई, एक तुच्छ सी चीज आपको यूँ ही कोई क्यों देगा। आर्शीवाद, बर्गर या सिमकार्ड भी भौतिक बाजार में सहज उपलब्ध होने वाली वस्तु नहीं है। उसे दिल से सम्मान देना होगा। देने वाला आप की मंशाओं और फितरत को समझता है। आप भले ही कुछ न दे, यह भी आवश्यक नहीं कि उनके सानिध्य में रहें। पर उसके विचारों, भावनाओं को श्रेष्ठ समझते हुए वैसा करने का यत्न करेंगें तो वह हृदय से आप पर आर्शीवाद बरसाएगे और आप धन्य हो जाएँगें।
‘’उपलब्धि या सफलता व्यक्ति के सतत निवेशों का स्वाभाविक प्रतिफल होती है‘’ का क्या तात्पर्य है ?
निर्देश- नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए:
असल और बनावटी में अंतर धुंधलाने के कारण सेवाएँ या कुछ भी देने के लिए सुपात्र का चयन आजकल चुनौतीपूर्ण हैं। इसके लिए विशेष सूझ-बूझ और विवेकशीलता आवश्यक है। उपलब्धि या सफलता स्वंय में लक्ष्य नहीं हो सकती बल्कि व्यक्ति के सतत निवेशों का स्वाभाविक प्रतिफल होती है। मन और निष्ठा से निष्पादित कार्य में व्यक्ति के समूचे कौशल प्रयुक्त होते हैं और उसमें समाज को देने का भाव प्रधान रहता है। लेने-देन में निष्ठा का नियम आर्शीवाद के आदान-प्रदान में भी लागू होता है। अनेक व्यक्ति उन बुजुर्गों से आर्शीवाद पाना अपना अधिकार समझते हैं जिनकी सुध लेना तो दूर, जिन्हें हेय मानते हुए उनसे सदा दूरी बनाए रखी हो। आशीर्वाद तो बड़ी बात हुई, एक तुच्छ सी चीज आपको यूँ ही कोई क्यों देगा। आर्शीवाद, बर्गर या सिमकार्ड भी भौतिक बाजार में सहज उपलब्ध होने वाली वस्तु नहीं है। उसे दिल से सम्मान देना होगा। देने वाला आप की मंशाओं और फितरत को समझता है। आप भले ही कुछ न दे, यह भी आवश्यक नहीं कि उनके सानिध्य में रहें। पर उसके विचारों, भावनाओं को श्रेष्ठ समझते हुए वैसा करने का यत्न करेंगें तो वह हृदय से आप पर आर्शीवाद बरसाएगे और आप धन्य हो जाएँगें।
‘’उपलब्धि या सफलता व्यक्ति के सतत निवेशों का स्वाभाविक प्रतिफल होती है‘’ का क्या तात्पर्य है ?
Question 4:
निर्देश- नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए:
असल और बनावटी में अंतर धुंधलाने के कारण सेवाएँ या कुछ भी देने के लिए सुपात्र का चयन आजकल चुनौतीपूर्ण हैं। इसके लिए विशेष सूझ-बूझ और विवेकशीलता आवश्यक है। उपलब्धि या सफलता स्वंय में लक्ष्य नहीं हो सकती बल्कि व्यक्ति के सतत निवेशों का स्वाभाविक प्रतिफल होती है। मन और निष्ठा से निष्पादित कार्य में व्यक्ति के समूचे कौशल प्रयुक्त होते हैं और उसमें समाज को देने का भाव प्रधान रहता है। लेने-देन में निष्ठा का नियम आर्शीवाद के आदान-प्रदान में भी लागू होता है। अनेक व्यक्ति उन बुजुर्गों से आर्शीवाद पाना अपना अधिकार समझते हैं जिनकी सुध लेना तो दूर, जिन्हें हेय मानते हुए उनसे सदा दूरी बनाए रखी हो। आशीर्वाद तो बड़ी बात हुई, एक तुच्छ सी चीज आपको यूँ ही कोई क्यों देगा। आर्शीवाद, बर्गर या सिमकार्ड भी भौतिक बाजार में सहज उपलब्ध होने वाली वस्तु नहीं है। उसे दिल से सम्मान देना होगा। देने वाला आप की मंशाओं और फितरत को समझता है। आप भले ही कुछ न दे, यह भी आवश्यक नहीं कि उनके सानिध्य में रहें। पर उसके विचारों, भावनाओं को श्रेष्ठ समझते हुए वैसा करने का यत्न करेंगें तो वह हृदय से आप पर आर्शीवाद बरसाएगे और आप धन्य हो जाएँगें।
सेवाओं या कुछ देने के लिए किसका चयन करना कठिन है।
निर्देश- नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए:
असल और बनावटी में अंतर धुंधलाने के कारण सेवाएँ या कुछ भी देने के लिए सुपात्र का चयन आजकल चुनौतीपूर्ण हैं। इसके लिए विशेष सूझ-बूझ और विवेकशीलता आवश्यक है। उपलब्धि या सफलता स्वंय में लक्ष्य नहीं हो सकती बल्कि व्यक्ति के सतत निवेशों का स्वाभाविक प्रतिफल होती है। मन और निष्ठा से निष्पादित कार्य में व्यक्ति के समूचे कौशल प्रयुक्त होते हैं और उसमें समाज को देने का भाव प्रधान रहता है। लेने-देन में निष्ठा का नियम आर्शीवाद के आदान-प्रदान में भी लागू होता है। अनेक व्यक्ति उन बुजुर्गों से आर्शीवाद पाना अपना अधिकार समझते हैं जिनकी सुध लेना तो दूर, जिन्हें हेय मानते हुए उनसे सदा दूरी बनाए रखी हो। आशीर्वाद तो बड़ी बात हुई, एक तुच्छ सी चीज आपको यूँ ही कोई क्यों देगा। आर्शीवाद, बर्गर या सिमकार्ड भी भौतिक बाजार में सहज उपलब्ध होने वाली वस्तु नहीं है। उसे दिल से सम्मान देना होगा। देने वाला आप की मंशाओं और फितरत को समझता है। आप भले ही कुछ न दे, यह भी आवश्यक नहीं कि उनके सानिध्य में रहें। पर उसके विचारों, भावनाओं को श्रेष्ठ समझते हुए वैसा करने का यत्न करेंगें तो वह हृदय से आप पर आर्शीवाद बरसाएगे और आप धन्य हो जाएँगें।
सेवाओं या कुछ देने के लिए किसका चयन करना कठिन है।
Question 5:
निर्देश- नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए:
असल और बनावटी में अंतर धुंधलाने के कारण सेवाएँ या कुछ भी देने के लिए सुपात्र का चयन आजकल चुनौतीपूर्ण हैं। इसके लिए विशेष सूझ-बूझ और विवेकशीलता आवश्यक है। उपलब्धि या सफलता स्वंय में लक्ष्य नहीं हो सकती बल्कि व्यक्ति के सतत निवेशों का स्वाभाविक प्रतिफल होती है। मन और निष्ठा से निष्पादित कार्य में व्यक्ति के समूचे कौशल प्रयुक्त होते हैं और उसमें समाज को देने का भाव प्रधान रहता है। लेने-देन में निष्ठा का नियम आर्शीवाद के आदान-प्रदान में भी लागू होता है। अनेक व्यक्ति उन बुजुर्गों से आर्शीवाद पाना अपना अधिकार समझते हैं जिनकी सुध लेना तो दूर, जिन्हें हेय मानते हुए उनसे सदा दूरी बनाए रखी हो। आशीर्वाद तो बड़ी बात हुई, एक तुच्छ सी चीज आपको यूँ ही कोई क्यों देगा। आर्शीवाद, बर्गर या सिमकार्ड भी भौतिक बाजार में सहज उपलब्ध होने वाली वस्तु नहीं है। उसे दिल से सम्मान देना होगा। देने वाला आप की मंशाओं और फितरत को समझता है। आप भले ही कुछ न दे, यह भी आवश्यक नहीं कि उनके सानिध्य में रहें। पर उसके विचारों, भावनाओं को श्रेष्ठ समझते हुए वैसा करने का यत्न करेंगें तो वह हृदय से आप पर आर्शीवाद बरसाएगे और आप धन्य हो जाएँगें।
‘असल और बनावटी में अंतर धुंधलाने’ का क्या अर्थ है ?
निर्देश- नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए:
असल और बनावटी में अंतर धुंधलाने के कारण सेवाएँ या कुछ भी देने के लिए सुपात्र का चयन आजकल चुनौतीपूर्ण हैं। इसके लिए विशेष सूझ-बूझ और विवेकशीलता आवश्यक है। उपलब्धि या सफलता स्वंय में लक्ष्य नहीं हो सकती बल्कि व्यक्ति के सतत निवेशों का स्वाभाविक प्रतिफल होती है। मन और निष्ठा से निष्पादित कार्य में व्यक्ति के समूचे कौशल प्रयुक्त होते हैं और उसमें समाज को देने का भाव प्रधान रहता है। लेने-देन में निष्ठा का नियम आर्शीवाद के आदान-प्रदान में भी लागू होता है। अनेक व्यक्ति उन बुजुर्गों से आर्शीवाद पाना अपना अधिकार समझते हैं जिनकी सुध लेना तो दूर, जिन्हें हेय मानते हुए उनसे सदा दूरी बनाए रखी हो। आशीर्वाद तो बड़ी बात हुई, एक तुच्छ सी चीज आपको यूँ ही कोई क्यों देगा। आर्शीवाद, बर्गर या सिमकार्ड भी भौतिक बाजार में सहज उपलब्ध होने वाली वस्तु नहीं है। उसे दिल से सम्मान देना होगा। देने वाला आप की मंशाओं और फितरत को समझता है। आप भले ही कुछ न दे, यह भी आवश्यक नहीं कि उनके सानिध्य में रहें। पर उसके विचारों, भावनाओं को श्रेष्ठ समझते हुए वैसा करने का यत्न करेंगें तो वह हृदय से आप पर आर्शीवाद बरसाएगे और आप धन्य हो जाएँगें।
‘असल और बनावटी में अंतर धुंधलाने’ का क्या अर्थ है- ?
Question 6:
निर्देश - नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए:
‘वायु-प्रदूषण’ का सबसे अधिक प्रकोप महानगरों पर हुआ है। इसका कारण है बढ़ता हुआ औद्योगिकरण। पिछले बीस वर्षों में भारत के प्रत्येक नगर में कारखानों की जितनी तेजी से वृद्धि हुई है। उससे वायुमण्डल पर बहुत प्रभाव पड़ा है क्योंकि इन कारखानों की चिमनियों से चौबीस घंटे निकलने वाले धुऍं ने सारे वातावरण को विषाक्त बना दिया है।
इसके अलावा सड़कों पर चलने वाले वाहनों की संख्या में तेजी से होने वाली वृद्धि भी वायु-प्रदूषण के लिए पूरी तरह उत्तरदायी है। इन वाहनों के धुऍं से निकलने वाले ‘कार्बन मोनो ऑक्साइड गैस’ के कारण आज न जाने कितनी प्रकार की साँस और फेफड़ों की बीमारियॉं आम बात हो गई हैं। इधर बढ़ती हुई जनसंख्या, लोगों का काम की तलाश में गॉंवों से शहरों की और भागना भी वायु प्रदूषण के लिए अप्रत्यक्ष रूप से उत्तरदायी है। शहरों की बढ़ती जनसंख्या के लिए आवास की सुविधाएँ अपलब्ध कराने के लिए वृक्षों और वनों को भी निरंतर काटा जा रहा है। वायु प्रदूषण से बचाने वाले कारणों की हमें खोज करनी चाहिए। पर्यावरण की सुरक्षा के लिए अधिक से अधिक वृक्ष लगाने चाहिए।
कौन-सा कारक वायु प्रदूषण के लिए अप्रत्यक्ष रूप से उत्तरदायी है ?
निर्देश - नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए:
‘वायु-प्रदूषण’ का सबसे अधिक प्रकोप महानगरों पर हुआ है। इसका कारण है बढ़ता हुआ औद्योगिकरण। पिछले बीस वर्षों में भारत के प्रत्येक नगर में कारखानों की जितनी तेजी से वृद्धि हुई है। उससे वायुमण्डल पर बहुत प्रभाव पड़ा है क्योंकि इन कारखानों की चिमनियों से चौबीस घंटे निकलने वाले धुऍं ने सारे वातावरण को विषाक्त बना दिया है।
इसके अलावा सड़कों पर चलने वाले वाहनों की संख्या में तेजी से होने वाली वृद्धि भी वायु-प्रदूषण के लिए पूरी तरह उत्तरदायी है। इन वाहनों के धुऍं से निकलने वाले ‘कार्बन मोनो ऑक्साइड गैस’ के कारण आज न जाने कितनी प्रकार की साँस और फेफड़ों की बीमारियॉं आम बात हो गई हैं। इधर बढ़ती हुई जनसंख्या, लोगों का काम की तलाश में गॉंवों से शहरों की और भागना भी वायु प्रदूषण के लिए अप्रत्यक्ष रूप से उत्तरदायी है। शहरों की बढ़ती जनसंख्या के लिए आवास की सुविधाएँ अपलब्ध कराने के लिए वृक्षों और वनों को भी निरंतर काटा जा रहा है। वायु प्रदूषण से बचाने वाले कारणों की हमें खोज करनी चाहिए। पर्यावरण की सुरक्षा के लिए अधिक से अधिक वृक्ष लगाने चाहिए।
कौन-सा कारक वायु प्रदूषण के लिए अप्रत्यक्ष रूप से उत्तरदायी है ?
Question 7:
निर्देश - नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए:
‘वायु-प्रदूषण’ का सबसे अधिक प्रकोप महानगरों पर हुआ है। इसका कारण है बढ़ता हुआ औद्योगिकरण। पिछले बीस वर्षों में भारत के प्रत्येक नगर में कारखानों की जितनी तेजी से वृद्धि हुई है। उससे वायुमण्डल पर बहुत प्रभाव पड़ा है क्योंकि इन कारखानों की चिमनियों से चौबीस घंटे निकलने वाले धुऍं ने सारे वातावरण को विषाक्त बना दिया है।
इसके अलावा सड़कों पर चलने वाले वाहनों की संख्या में तेजी से होने वाली वृद्धि भी वायु-प्रदूषण के लिए पूरी तरह उत्तरदायी है। इन वाहनों के धुऍं से निकलने वाले ‘कार्बन मोनो ऑक्साइड गैस’ के कारण आज न जाने कितनी प्रकार की साँस और फेफड़ों की बीमारियॉं आम बात हो गई हैं। इधर बढ़ती हुई जनसंख्या, लोगों का काम की तलाश में गॉंवों से शहरों की और भागना भी वायु प्रदूषण के लिए अप्रत्यक्ष रूप से उत्तरदायी है। शहरों की बढ़ती जनसंख्या के लिए आवास की सुविधाएँ अपलब्ध कराने के लिए वृक्षों और वनों को भी निरंतर काटा जा रहा है। वायु प्रदूषण से बचाने वाले कारणों की हमें खोज करनी चाहिए। पर्यावरण की सुरक्षा के लिए अधिक से अधिक वृक्ष लगाने चाहिए।
‘सारे वातावरण को विषाक्त बना दिया है।’ का आशय है-
निर्देश - नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए:
‘वायु-प्रदूषण’ का सबसे अधिक प्रकोप महानगरों पर हुआ है। इसका कारण है बढ़ता हुआ औद्योगिकरण। पिछले बीस वर्षों में भारत के प्रत्येक नगर में कारखानों की जितनी तेजी से वृद्धि हुई है। उससे वायुमण्डल पर बहुत प्रभाव पड़ा है क्योंकि इन कारखानों की चिमनियों से चौबीस घंटे निकलने वाले धुऍं ने सारे वातावरण को विषाक्त बना दिया है।
इसके अलावा सड़कों पर चलने वाले वाहनों की संख्या में तेजी से होने वाली वृद्धि भी वायु-प्रदूषण के लिए पूरी तरह उत्तरदायी है। इन वाहनों के धुऍं से निकलने वाले ‘कार्बन मोनो ऑक्साइड गैस’ के कारण आज न जाने कितनी प्रकार की साँस और फेफड़ों की बीमारियॉं आम बात हो गई हैं। इधर बढ़ती हुई जनसंख्या, लोगों का काम की तलाश में गॉंवों से शहरों की और भागना भी वायु प्रदूषण के लिए अप्रत्यक्ष रूप से उत्तरदायी है। शहरों की बढ़ती जनसंख्या के लिए आवास की सुविधाएँ अपलब्ध कराने के लिए वृक्षों और वनों को भी निरंतर काटा जा रहा है। वायु प्रदूषण से बचाने वाले कारणों की हमें खोज करनी चाहिए। पर्यावरण की सुरक्षा के लिए अधिक से अधिक वृक्ष लगाने चाहिए।
‘सारे वातावरण को विषाक्त बना दिया है।’ का आशय है-
Question 8:
निर्देश - नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए:
‘वायु-प्रदूषण’ का सबसे अधिक प्रकोप महानगरों पर हुआ है। इसका कारण है बढ़ता हुआ औद्योगिकरण। पिछले बीस वर्षों में भारत के प्रत्येक नगर में कारखानों की जितनी तेजी से वृद्धि हुई है। उससे वायुमण्डल पर बहुत प्रभाव पड़ा है क्योंकि इन कारखानों की चिमनियों से चौबीस घंटे निकलने वाले धुऍं ने सारे वातावरण को विषाक्त बना दिया है।
इसके अलावा सड़कों पर चलने वाले वाहनों की संख्या में तेजी से होने वाली वृद्धि भी वायु-प्रदूषण के लिए पूरी तरह उत्तरदायी है। इन वाहनों के धुऍं से निकलने वाले ‘कार्बन मोनो ऑक्साइड गैस’ के कारण आज न जाने कितनी प्रकार की साँस और फेफड़ों की बीमारियॉं आम बात हो गई हैं। इधर बढ़ती हुई जनसंख्या, लोगों का काम की तलाश में गॉंवों से शहरों की और भागना भी वायु प्रदूषण के लिए अप्रत्यक्ष रूप से उत्तरदायी है। शहरों की बढ़ती जनसंख्या के लिए आवास की सुविधाएँ अपलब्ध कराने के लिए वृक्षों और वनों को भी निरंतर काटा जा रहा है। वायु प्रदूषण से बचाने वाले कारणों की हमें खोज करनी चाहिए। पर्यावरण की सुरक्षा के लिए अधिक से अधिक वृक्ष लगाने चाहिए।
गद्यांश के अनुसार पर्यावरण की सुरक्षा के लिए सबसे कारगर उपाय है-
निर्देश - नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए:
‘वायु-प्रदूषण’ का सबसे अधिक प्रकोप महानगरों पर हुआ है। इसका कारण है बढ़ता हुआ औद्योगिकरण। पिछले बीस वर्षों में भारत के प्रत्येक नगर में कारखानों की जितनी तेजी से वृद्धि हुई है। उससे वायुमण्डल पर बहुत प्रभाव पड़ा है क्योंकि इन कारखानों की चिमनियों से चौबीस घंटे निकलने वाले धुऍं ने सारे वातावरण को विषाक्त बना दिया है।
इसके अलावा सड़कों पर चलने वाले वाहनों की संख्या में तेजी से होने वाली वृद्धि भी वायु-प्रदूषण के लिए पूरी तरह उत्तरदायी है। इन वाहनों के धुऍं से निकलने वाले ‘कार्बन मोनो ऑक्साइड गैस’ के कारण आज न जाने कितनी प्रकार की साँस और फेफड़ों की बीमारियॉं आम बात हो गई हैं। इधर बढ़ती हुई जनसंख्या, लोगों का काम की तलाश में गॉंवों से शहरों की और भागना भी वायु प्रदूषण के लिए अप्रत्यक्ष रूप से उत्तरदायी है। शहरों की बढ़ती जनसंख्या के लिए आवास की सुविधाएँ अपलब्ध कराने के लिए वृक्षों और वनों को भी निरंतर काटा जा रहा है। वायु प्रदूषण से बचाने वाले कारणों की हमें खोज करनी चाहिए। पर्यावरण की सुरक्षा के लिए अधिक से अधिक वृक्ष लगाने चाहिए।
गद्यांश के अनुसार पर्यावरण की सुरक्षा के लिए सबसे कारगर उपाय है-
Question 9:
निर्देश - नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए:
‘वायु-प्रदूषण’ का सबसे अधिक प्रकोप महानगरों पर हुआ है। इसका कारण है बढ़ता हुआ औद्योगिकरण। पिछले बीस वर्षों में भारत के प्रत्येक नगर में कारखानों की जितनी तेजी से वृद्धि हुई है। उससे वायुमण्डल पर बहुत प्रभाव पड़ा है क्योंकि इन कारखानों की चिमनियों से चौबीस घंटे निकलने वाले धुऍं ने सारे वातावरण को विषाक्त बना दिया है।
इसके अलावा सड़कों पर चलने वाले वाहनों की संख्या में तेजी से होने वाली वृद्धि भी वायु-प्रदूषण के लिए पूरी तरह उत्तरदायी है। इन वाहनों के धुऍं से निकलने वाले ‘कार्बन मोनो ऑक्साइड गैस’ के कारण आज न जाने कितनी प्रकार की साँस और फेफड़ों की बीमारियॉं आम बात हो गई हैं। इधर बढ़ती हुई जनसंख्या, लोगों का काम की तलाश में गॉंवों से शहरों की और भागना भी वायु प्रदूषण के लिए अप्रत्यक्ष रूप से उत्तरदायी है। शहरों की बढ़ती जनसंख्या के लिए आवास की सुविधाएँ अपलब्ध कराने के लिए वृक्षों और वनों को भी निरंतर काटा जा रहा है। वायु प्रदूषण से बचाने वाले कारणों की हमें खोज करनी चाहिए। पर्यावरण की सुरक्षा के लिए अधिक से अधिक वृक्ष लगाने चाहिए।
गद्यांश के अनुसार वायुमंडल पर नकारात्मक प्रभाव के लिए मुख्य रूप से ___________ उत्तरदायी है।
निर्देश - नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए:
‘वायु-प्रदूषण’ का सबसे अधिक प्रकोप महानगरों पर हुआ है। इसका कारण है बढ़ता हुआ औद्योगिकरण। पिछले बीस वर्षों में भारत के प्रत्येक नगर में कारखानों की जितनी तेजी से वृद्धि हुई है। उससे वायुमण्डल पर बहुत प्रभाव पड़ा है क्योंकि इन कारखानों की चिमनियों से चौबीस घंटे निकलने वाले धुऍं ने सारे वातावरण को विषाक्त बना दिया है।
इसके अलावा सड़कों पर चलने वाले वाहनों की संख्या में तेजी से होने वाली वृद्धि भी वायु-प्रदूषण के लिए पूरी तरह उत्तरदायी है। इन वाहनों के धुऍं से निकलने वाले ‘कार्बन मोनो ऑक्साइड गैस’ के कारण आज न जाने कितनी प्रकार की साँस और फेफड़ों की बीमारियॉं आम बात हो गई हैं। इधर बढ़ती हुई जनसंख्या, लोगों का काम की तलाश में गॉंवों से शहरों की और भागना भी वायु प्रदूषण के लिए अप्रत्यक्ष रूप से उत्तरदायी है। शहरों की बढ़ती जनसंख्या के लिए आवास की सुविधाएँ अपलब्ध कराने के लिए वृक्षों और वनों को भी निरंतर काटा जा रहा है। वायु प्रदूषण से बचाने वाले कारणों की हमें खोज करनी चाहिए। पर्यावरण की सुरक्षा के लिए अधिक से अधिक वृक्ष लगाने चाहिए।
गद्यांश के अनुसार वायुमंडल पर नकारात्मक प्रभाव के लिए मुख्य रूप से ___________ उत्तरदायी है।
Question 10:
निर्देश - नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए:
‘वायु-प्रदूषण’ का सबसे अधिक प्रकोप महानगरों पर हुआ है। इसका कारण है बढ़ता हुआ औद्योगिकरण। पिछले बीस वर्षों में भारत के प्रत्येक नगर में कारखानों की जितनी तेजी से वृद्धि हुई है। उससे वायुमण्डल पर बहुत प्रभाव पड़ा है क्योंकि इन कारखानों की चिमनियों से चौबीस घंटे निकलने वाले धुऍं ने सारे वातावरण को विषाक्त बना दिया है।
इसके अलावा सड़कों पर चलने वाले वाहनों की संख्या में तेजी से होने वाली वृद्धि भी वायु-प्रदूषण के लिए पूरी तरह उत्तरदायी है। इन वाहनों के धुऍं से निकलने वाले ‘कार्बन मोनो ऑक्साइड गैस’ के कारण आज न जाने कितनी प्रकार की साँस और फेफड़ों की बीमारियॉं आम बात हो गई हैं। इधर बढ़ती हुई जनसंख्या, लोगों का काम की तलाश में गॉंवों से शहरों की और भागना भी वायु प्रदूषण के लिए अप्रत्यक्ष रूप से उत्तरदायी है। शहरों की बढ़ती जनसंख्या के लिए आवास की सुविधाएँ अपलब्ध कराने के लिए वृक्षों और वनों को भी निरंतर काटा जा रहा है। वायु प्रदूषण से बचाने वाले कारणों की हमें खोज करनी चाहिए। पर्यावरण की सुरक्षा के लिए अधिक से अधिक वृक्ष लगाने चाहिए।
महानगरों पर वायु-प्रदूषण के सबसे अधिक प्रकोप का कारण है-
निर्देश - नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए:
‘वायु-प्रदूषण’ का सबसे अधिक प्रकोप महानगरों पर हुआ है। इसका कारण है बढ़ता हुआ औद्योगिकरण। पिछले बीस वर्षों में भारत के प्रत्येक नगर में कारखानों की जितनी तेजी से वृद्धि हुई है। उससे वायुमण्डल पर बहुत प्रभाव पड़ा है क्योंकि इन कारखानों की चिमनियों से चौबीस घंटे निकलने वाले धुऍं ने सारे वातावरण को विषाक्त बना दिया है।
इसके अलावा सड़कों पर चलने वाले वाहनों की संख्या में तेजी से होने वाली वृद्धि भी वायु-प्रदूषण के लिए पूरी तरह उत्तरदायी है। इन वाहनों के धुऍं से निकलने वाले ‘कार्बन मोनो ऑक्साइड गैस’ के कारण आज न जाने कितनी प्रकार की साँस और फेफड़ों की बीमारियॉं आम बात हो गई हैं। इधर बढ़ती हुई जनसंख्या, लोगों का काम की तलाश में गॉंवों से शहरों की और भागना भी वायु प्रदूषण के लिए अप्रत्यक्ष रूप से उत्तरदायी है। शहरों की बढ़ती जनसंख्या के लिए आवास की सुविधाएँ अपलब्ध कराने के लिए वृक्षों और वनों को भी निरंतर काटा जा रहा है। वायु प्रदूषण से बचाने वाले कारणों की हमें खोज करनी चाहिए। पर्यावरण की सुरक्षा के लिए अधिक से अधिक वृक्ष लगाने चाहिए।
महानगरों पर वायु-प्रदूषण के सबसे अधिक प्रकोप का कारण है-