निर्देश - नीचे दिये गये गद्यांस को पढ़कर पूछे गये प्रश्न के सबसे उपयुक्त वाले विकल्प चुनिए:
$\quad$ $\quad$ $\quad$ यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारा जो व्यवहार होता है, उसी के अनुसार फल मिलता है। जो समाज और संवेदना की नीतिमूलक स्थापनाओं को अपने व्यवहार का हिस्सा बनाता है, वही शांति पाने का हकदार होता है। महावीर, बुद्ध, क्राइस्ट, नानक, गॉंधी अगर हमारे जीवन पर विराजमान हैं तो इसमें उनकी सदाशयता, निरहंकार और व्यवहार का योगदान है। वे जिए समस्त प्राणियों, प्रकृति और सृष्टि के लिए। उनके मन में किसी के लिए रत्ती भर भी भेद-भाव नहीं रहा। अहंकार को विवेक से ही हटाया जा सकता है। गॉधीजी ने गुलामी से आजादी, मनुष्यता की सेवा और विवेक से मित्रता को अपना लक्ष्य बनाया। सबके प्रति समान दृष्टि का ही भाव और व्यवहार था कि गॉधी विश्व नेता बने। गीता में कहा गया है कि जो समस्त प्राणियों के हित में सदा संलग्न रहता है, सबका मित्र होता है। महावीर सत्य की साक्षात अनुभूति में मैत्री की अनिवार्यता की घोषणा करते हैं। यह अनुभूति में मैत्री की अनिवार्यता की घोषणा करते हैं। यह अनुभूति सत्य है कि जो अपना मित्र होगा, वह हर किसी का मित्र होगा। आप भी उसे आजमा कर देखें। महसूस होने लगेा कि जिस शांति के लिए भटक रहे हैं, वह कहीं बाहर नहीं आपके अंदर ही है।
हमें किसके अनुसार फल मिलता है?
सही शब्द चुनिए -
सबके प्रति________दृष्टि का भाव और व्यवहार होना चाहिए।
कौन-सा शब्द भिन्न है?
महावीर, बुद्ध, क्राइस्ट, नानक व गॉधीजी में क्या समानता है?
इनमें से किसे गॉंधी जी ने अपना लक्ष्य नहीं बनाया?
इनमें से किसे गॉधी जी ने अपना लक्ष्य नहीं बनाया?
निर्देश - नीचे दिये गये गद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्न के सबसे उपयुक्त वाले विकल्प चुनिए:
$\quad$$\quad$$\quad$राष्ट्रीय पर्वों और सांस्कृतिक समारोहों के दौरान गीत गाए जाएं, कविताएं सुनी और सुनायी जाएं, इसे लेकर माता-पिताओं, स्कूल और समाज में व्याप्त सहमति है लेकिन गीत-कविताएं बच्चों के जीवन में रच-बस जाएं, वे उनका भरपूर आनंद लेने लगें, खुद तुकबंदियॉं करने लगें, रचने लगें, यह माता-पिता का मंजूर नहीं। माता को लगता है कि ऐसा करते हुए तो वे उस राह से भटक जाएंगे जिस राह पर वे उन्हें अपनी सोची हुई मंजिल पर पहॅंचना चाहते हैं। उनकी इस इच्छा में यह निहित है कि बच्चे वैसा कुछ भी नहीं करें जो वे करना चाहते हैं। उनके भीतर बच्चे के स्वतंत्रतापूर्वक सीखने की प्रक्रिया के प्रति सतत संदेह और गहरा डर बना रहता है। यही हाल स्कूल का भी है। गीत-कविता स्कूल और कक्षाओं की रोजमर्रा की गतिविधि का हिस्सा बन जाए यह स्कूल को मंजूर नहीं। स्कूल को लगता है कि इस सबके लिए समय कहॉं है। यह पाठ्य पुस्तक से बाहर की गतिविधि है। शिक्षक और शिक्षा अधिकारी चाहते हैं शिक्षक पहले परीक्षा परिणाम बेहतर लाने के लिए काम करें।
$\quad$$\quad$$\quad$दूसरी ओर हमारी संस्कृति और समाज में गीत-कविता की जो जगहें थीं वे जगहें लगातार सीमित हुई हैं। गीत गाने, सुनने-सुनाने के अवसर हुआ करते थे, वे अवसर ही गीत-कविताओं को गुनगुनाते रह सकने के लिए याद करने को प्रेरित करते थे। सहेजने और रचने के लिए प्रेरित करते थे। उनमें कुछ जांड़ने के लिए प्रेरित करते थे। इस सबके लिए अतिरिक्त प्रयासों की जरूरत नहीं पड़ती थी, वह जीवन-शैली का स्वाभाविक हिस्सा था। बच्चों के लिए पढ़ाई से अधिक खेलने-कूदने के लिए समय और जगहें थीं। खेलने-कूदने की मस्ती के दौरान ही उनके बीच से स्वतः ही नये खेलों, तुकबंदियों, खेलगीतों और बालगीतों का सृजन भी हो जाया करता था। उनकी ये रचनाएं चलन में आ जाया करती थीं, जबान पर चढ़ जाती थीं और सालों-साल उनकी टोलियों के बीच बनी रहती थीं। समय के साथ उनमें कुछ कमी पाए जाने पर संशोधित होती रहती थीं।
‘‘सांस्कृतिक’’ में प्रत्यय है-
‘मंजूर’ का समानार्थी शब्द है-
"स्कूल" शब्द है :
"स्कूल" शब्द है -
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