वीर रस का स्थायी भाव है -
जब मैं था तब हरि नाहिं अब हरि है मैं नाहिं।
सब अधियारा मिट गया जब दीपक देख्या माहिं।।
उपर्युक्त पंक्ति में कौन - सा रस है ?
चित अलि कत भरमत रहत कहाँ नहीं बास।
विकसित कुसुमन मैं अहै काको सरस विकास।।
प्रस्तुत पंक्तियों में कौन-सा रस प्रयुक्त हुआ है?
हाय राम कैसे झेलें हम अपनी लज्जा अपना शोक।
गया हमारे ही हाथों से अपना राष्ट्र पिता परलोक।
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