Question 5:
निर्देश - नीचे दिये गये गद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्न के सबसे उपयुक्त वाले विकल्प चुनिए:
$\quad$$\quad$$\quad$आधुनिक शिक्षा का नतीजा हमने देख लिया। हमने उस शिक्षा का नतीजा भी देख लिया, जिसमें 'विकसित विज्ञान' का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है, जिसके कारण व्यक्ति को कहीं भी या कितना भी मिलने के बावजूद तृप्ति नहीं होती। इसका कारण यही है कि शिक्षा के स्वाभाविक और आवश्यक अंगों को छोड़कर हमने ऐसे विषयों पर अधिक ध्यान दिया, जो मनुष्य का एकतरफा विकास करते है, जिनके कारण व्यक्तित्व का बड़े-से बड़ा भाग अतृप्त रह जाता है। बाल्याावस्था में भी कला-शिक्षको को अभी तक उचित स्थान नहीं मिला है। जहाँ मिलता भी है, वहाँ बच्चा गयारह-बारह वर्ष का होते ही उसके शिक्षा-क्रम में से कला-प्रवृत्तियों को निकाल दिया जाता है। ऐसा ही हर्बर्ट रीड ने कहा है।
$\quad$$\quad$$\quad$''हमारा अनुभव हमें बताता है कि हर व्यरक्ति ग्यारह साल की उम्र के बाद, किशोर-अवस्था और उसके बाद भी सारे जीवन-काल तक किसी-न-किसी कला-प्रवृति को अपने भाव -प्रकटन का जरिया बनाये रख सकता है। आाज के सभी विषय-जिन पर हम अपनी एकमात्र श्रद्धा करते हैं, जैसे गणित, भूगोल, इतिहास, रसायनशास्त्र और यहॉं तक कि साहित्य भी-जिस तरह पढ़ाये जाते हैं, उन सबकी बुनियाद तार्किक है। इन पर एकमात्र जोर देने के कारण कला-प्रवृतियॉं, जो भावना-प्रधान होती हैं, पाठ्यक्रम से करीब-करीब निकल जाती है। ये प्रवृतियॉं केवल पाठयक्रम से ही नहीं निकल जाती, बल्कि इन तार्किक विषयों को महत्व देने के कारण व्यक्ति के दिमाग से भी बिलकुल निकल जाती है। किशोर-अवस्था को इस तरह गलत रास्ते पर ले जाने का नतीजा भयानक हो रहा है। व्यक्ति का गलत विकास हो रहा है। उसका मानस अस्वस्थ है, परिवार दुखी है। समाज में फूट पड़ी है, और दुनिया पर ध्वंतस करने का ज्वार चढ़ा है। इन भयानक अवस्थाओं को हमारा ज्ञान-विज्ञान सहारा दे रहा है। आज की तालीम भी इसी दौड़ में साथ दे रही है।''
आज की तालीम भी इसी दौड़ में साथ दे रही है।' वाक्य में निपात है :
निर्देश - नीचे दिये गये गद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्न के सबसे उपयुक्त वाले विकल्प चुनिए:
$\quad$$\quad$$\quad$आधुनिक शिक्षा का नतीजा हमने देख लिया। हमने उस शिक्षा का नतीजा भी देख लिया, जिसमें 'विकसित विज्ञान' का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है, जिसके कारण व्यक्ति को कहीं भी या कितना भी मिलने के बावजूद तृप्ति नहीं होती। इसका कारण यही है कि शिक्षा के स्वाभाविक और आवश्यक अंगों को छोड़कर हमने ऐसे विषयों पर अधिक ध्यान दिया, जो मनुष्य का एकतरफा विकास करते है, जिनके कारण व्यक्तित्व का बड़े-से बड़ा भाग अतृप्त रह जाता है। बाल्याावस्था में भी कला-शिक्षको को अभी तक उचित स्थान नहीं मिला है। जहाँ मिलता भी है, वहाँ बच्चा गयारह-बारह वर्ष का होते ही उसके शिक्षा-क्रम में से कला-प्रवृत्तियों को निकाल दिया जाता है। ऐसा ही हर्बर्ट रीड ने कहा है।
$\quad$$\quad$$\quad$''हमारा अनुभव हमें बताता है कि हर व्यरक्ति ग्यारह साल की उम्र के बाद, किशोर-अवस्था और उसके बाद भी सारे जीवन-काल तक किसी-न-किसी कला-प्रवृति को अपने भाव -प्रकटन का जरिया बनाये रख सकता है। आाज के सभी विषय-जिन पर हम अपनी एकमात्र श्रद्धा करते हैं, जैसे गणित, भूगोल, इतिहास, रसायनशास्त्र और यहॉं तक कि साहित्य भी-जिस तरह पढ़ाये जाते हैं, उन सबकी बुनियाद तार्किक है। इन पर एकमात्र जोर देने के कारण कला-प्रवृतियॉं, जो भावना-प्रधान होती हैं, पाठ्यक्रम से करीब-करीब निकल जाती है। ये प्रवृतियॉं केवल पाठयक्रम से ही नहीं निकल जाती, बल्कि इन तार्किक विषयों को महत्व देने के कारण व्यक्ति के दिमाग से भी बिलकुल निकल जाती है। किशोर-अवस्था को इस तरह गलत रास्ते पर ले जाने का नतीजा भयानक हो रहा है। व्यक्ति का गलत विकास हो रहा है। उसका मानस अस्वस्थ है, परिवार दुखी है। समाज में फूट पड़ी है, और दुनिया पर ध्वंतस करने का ज्वार चढ़ा है। इन भयानक अवस्थाओं को हमारा ज्ञान-विज्ञान सहारा दे रहा है। आज की तालीम भी इसी दौड़ में साथ दे रही है।''
आज की तालीम भी इसी दौड़ में साथ दे रही है।' वाक्य में निपात है: