Question 8:
निर्देश - नीचे दिये गये गद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्न के सबसे उपयुक्त वाले विकल्प चुनिए:
$\quad$$\quad$$\quad$हमारा जीवन जिन मानवीय सिद्धांतो , अनुभवों और सांस्कृतिक संस्कारों के संबल से समस्त सृष्टि के लिए महत्वपूर्ण बना है, परोपकार की भावना उन्हीं में एक है। मानव को दूसरे मानव के प्रति वैसा ही संवेदनात्मक उत्तरदायित्व निभाना चाहिए, जैसे वह स्वयं के प्रति निभाता है। जीवन को केवल परोपकार, सेवा और नि:स्वार्थ प्रेम के लिए ही वास्तविक समझना चाहिए क्योंकि नश्वर शरीर जब नष्ट हो जाएगा तो उसके बाद हमारा कुछ भी इस दुनिया के जीवों की स्मृति में नहीं रहेगा। हम जग जीवों की स्मृति में सदा-सदा के लिए तभी बने रह सकते हैं, जब हम अपने नश्वर शरीर को वैचारिक, बौद्धिक और आत्मिक चेतना से पूर्ण कर नि:स्वार्थ भाव से स्वयं को जीव सेवा में समर्पित करेंगे।
$\quad$$\quad$$\quad$हमें स्थिरता से और शंतिपूर्वक यह विचार करते रहना चाहिए कि हमारे जीवन का सर्वश्रेष्ट उद्देश्य और एकमात्र लक्ष्य हमारे द्वारा किया जाने वाला त्याग है। त्यागयोग्य व्यक्तित्व प्राप्त करने के लिए गहन तप की आवश्यकता है। तयाग का भाव किसी मनुष्य को जीवन-जगत और इसके जीवों के संबंध में असाधारण होते हुए नहीं जन्म लेता। इसके मनुष्य को जीवन-जगत और इसके जीवों के संबंध में असाधारण वैचारिक रचनात्मकता अपनाकर निरंतर योग, ध्यान, तप व साधना करनी होगी। उसे इस स्थिति से विचरते हुए विशिष्ट आध्यात्मिक अनुभवों से लैस होना होगा। आवश्यकता होने पर उसे जीवों की वास्तविक सेवा करनी होगी। जब ऐसी विशेष मानवीय परिस्थितियाँ उत्पन्न होंगी, तब ही मानव में त्याग भाव आकार ग्रहण करेगा।
'आध्यात्मिक' शब्द का निर्माण किस उपसर्ग की सहायता से हुआ है?
निर्देश - नीचे दिये गये गद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्न के सबसे उपयुक्त वाले विकल्प चुनिए:
$\quad$$\quad$$\quad$हमारा जीवन जिन मानवीय सिद्धदंतों, अनुभवों और सांस्कृतिक संस्कारों के संबल से समस्त सृष्टि के लिए महत्वपूर्ण बना है, परोपकार की भावना उन्हीं में एक है। मानव को दूसरे मानव के प्रति वैसा ही संवेदनात्मक उत्तरदायित्व निभाना चाहिए, जैसे वह स्वयंके प्रति निभाता है। जीवन को केवल परोपकार, पर सेवा और नि:स्वार्थ प्रेम के लिए ही वास्तविक समझना चाहिए क्योंकि नश्वर शरीर जब नष्ट हो जाएगा तो उसके बाद हमारा कुछ भी इस दुनिया के जीवों की स्मृति में नहीं रहेगा। हम जग जीवोंकी स्मृति में सदा-सदा के लिए तभी बने रह सकते हैं, जब हम अपने नश्वर शरीर को वैचारिक, बौद्धिक और आत्मिक चेतना से पूर्ण कर नि:स्वार्थ भाव से स्वयं को जीव सेवा में समर्पित करेंगे।
$\quad$$\quad$$\quad$हमें स्थिरता से और शंतिपूर्वक यह विचार करते रहना चाहिए कि हमारे जीवन का सर्वश्रेष्ट उद्देश्य और एकमात्र लक्ष्य हमारे द्वारा किया जाने वाला त्याग है। त्याग योग्य व्यक्तित्व प्राप्त करने के लिए गहन तप की आवश्यकता है। तयाग का भाव किसी मनुष्य को जीवन-जगत और इसके जीवोंके संबंध में असाधारण होते हुए नहीं जन्म लेता। इसके मनुष्य को जीवन-जगत और इसके जीवों के संबंध में असाधारण वैचारिक रचनात्मका अपनाकर निरंतर योग, ध्यान, तप व साधना करनी होगी। उसे इस स्थिति से विचरते हुए विशिष्ट आध्यात्मिक अनुभवों से लैस होना होगा। आवश्यकता होन पर उसे जीवों की वास्तविक सेवा करनी होगी। जब ऐसी विशेष मानवीय परिस्थितियाँ उत्पन्न होंगी, तब ही मानव में त्याग भाव आकार ग्रहण करेगा।
'आध्यात्मिक' शब्द का निर्माण किस उपसर्ग की सहायता से हुआ है?