Question 5:
निर्देश - नीचे दिये गये गद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्न के सबसे उपयुक्त वाले विकल्प चुनिए:
$\quad$$\quad$$\quad$राष्ट्रीय पर्वों और सांस्कृतिक समारोहों के दौरान गीत गाए जाएं, कविताएं सुनी और सुनायी जाएं, इसे लेकर माता-पिताओं, स्कूल और समाज में व्याप्त सहमति है लेकिन गीत-कविताएं बच्चों के जीवन में रच-बस जाएं, वे उनका भरपूर आनंद लेने लगें, खुद तुकबंदियॉं करने लगें, रचने लगें, यह माता-पिता का मंजूर नहीं। माता को लगता है कि ऐसा करते हुए तो वे उस राह से भटक जाएंगे जिस राह पर वे उन्हें अपनी सोची हुई मंजिल पर पहॅंचना चाहते हैं। उनकी इस इच्छा में यह निहित है कि बच्चे वैसा कुछ भी नहीं करें जो वे करना चाहते हैं। उनके भीतर बच्चे के स्वतंत्रतापूर्वक सीखने की प्रक्रिया के प्रति सतत संदेह और गहरा डर बना रहता है। यही हाल स्कूल का भी है। गीत-कविता स्कूल और कक्षाओं की रोजमर्रा की गतिविधि का हिस्सा बन जाए यह स्कूल को मंजूर नहीं। स्कूल को लगता है कि इस सबके लिए समय कहॉं है। यह पाठ्य पुस्तक से बाहर की गतिविधि है। शिक्षक और शिक्षा अधिकारी चाहते हैं शिक्षक पहले परीक्षा परिणाम बेहतर लाने के लिए काम करें।
$\quad$$\quad$$\quad$दूसरी ओर हमारी संस्कृति और समाज में गीत-कविता की जो जगहें थीं वे जगहें लगातार सीमित हुई हैं। गीत गाने, सुनने-सुनाने के अवसर हुआ करते थे, वे अवसर ही गीत-कविताओं को गुनगुनाते रह सकने के लिए याद करने को प्रेरित करते थे। सहेजने और रचने के लिए प्रेरित करते थे। उनमें कुछ जांड़ने के लिए प्रेरित करते थे। इस सबके लिए अतिरिक्त प्रयासों की जरूरत नहीं पड़ती थी, वह जीवन-शैली का स्वाभाविक हिस्सा था। बच्चों के लिए पढ़ाई से अधिक खेलने-कूदने के लिए समय और जगहें थीं। खेलने-कूदने की मस्ती के दौरान ही उनके बीच से स्वतः ही नये खेलों, तुकबंदियों, खेलगीतों और बालगीतों का सृजन भी हो जाया करता था। उनकी ये रचनाएं चलन में आ जाया करती थीं, जबान पर चढ़ जाती थीं और सालों-साल उनकी टोलियों के बीच बनी रहती थीं। समय के साथ उनमें कुछ कमी पाए जाने पर संशोधित होती रहती थीं।
‘‘सांस्कृतिक’’ में प्रत्यय है-
निर्देश - नीचे दिये गये गद्यांस को पढ़कर पूछे गये प्रश्न के सबसे उपयुक्त वाले विकल्प चुनिए:
$\quad$$\quad$$\quad$राष्ट्रीय पर्वों और सांस्कृतिक समारोहों के दौरान गीत गाए जाएं, कविताएं सुनी और सुनायी जाएं, इसे लेकर माता-पिताओं, स्कूल और समाज में व्याप्त सहमति है लेकिन गीत-कविताएं बच्चों के जीवन में रच-बस जाएं, वे उनका भरपूर आनंद लेने लगें, खुद तुकबंदियॉं करने लगें, रचने लगें, यह माता-पिता का मंजूर नहीं। माता को लगता है कि ऐसा करते हुए तो वे उस राह से भटक जाएंगे जिस राह पर वे उन्हें अपनी सोची हुई मंजिल पर पहॅंचना चाहते हैं। उनकी इस इच्छा में यह निहित है कि बच्चे वैसा कुछ भी नहीं करें जो वे करना चाहते हैं। उनके भीतर बच्चे के स्वतंत्रतापूर्वक सीखने की प्रक्रिया के प्रति सतत संदेह और गहरा डर बना रहता है। यही हाल स्कूल का भी है। गीत-कविता स्कूल और कक्षाओं की रोजमर्रा की गतिविधि का हिस्सा बन जाए यह स्कूल को मंजूर नहीं। स्कूल को लगता है कि इस सबके लिए समय कहॉं है। यह पाठ्य पुस्तक से बाहर की गतिविधि है। शिक्षक और शिक्षा अधिकारी चाहते हैं शिक्षक पहले परीक्षा परिणाम बेहतर लाने के लिए काम करें।
$\quad$$\quad$$\quad$दूसरी ओर हमारी संस्कृति और समाज में गीत-कविता की जो जगहें थीं वे जगहें लगातार सीमित हुई हैं। गीत गाने, सुनने-सुनाने के अवसर हुआ करते थे, वे अवसर ही गीत-कविताओं को गुनगुनाते रह सकने के लिए याद करने को प्रेरित करते थे। सहेजने और रचने के लिए प्रेरित करते थे। उनमें कुछ जांड़ने के लिए प्रेरित करते थे। इस सबके लिए अतिरिक्त प्रयासों की जरूरत नहीं पड़ती थी, वह जीवन-शैली का स्वाभाविक हिस्सा था। बच्चों के लिए पढ़ाई से अधिक खेलने-कूदने के लिए समय और जगहें थीं। खेलने-कूदने की मस्ती के दौरान ही उनके बीच से स्वतः ही नये खेलों, तुकबंदियों, खेलगीतों और बालगीतों का सृजन भी हो जाया करता था। उनकी ये रचनाएं चलन में आ जाया करती थीं, जबान पर चढ़ जाती थीं और सालों-साल उनकी टोलियों के बीच बनी रहती थीं। समय के साथ उनमें कुछ कमी पाए जाने पर संशोधित होती रहती थीं।
‘‘सांस्कृतिक’’ में प्रत्यय है-