UP LEKHPAL HINDI QUIZ

Attempt now to get your rank among 140 students!

Question 1:

हिन्दी सहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का सूत्रपात किसने किया?

Question 2:

भाषा के  मुख्य कौशल हैं-

Question 3:

निम्नलिखित विकल्पों में से शुद्ध वर्तनी वाले शब्द का चयन कीजिए।

Question 4:

देशभक्ति' में कौन-सा समास है?

Question 5:

दिए गए विकल्पों में से ‘निंद्य’ का विपरीतार्थक शब्द है-

Question 6:

मोहन गरीब होने के साथ - साथ ……………. भी है।

रिक्त स्थान की पूर्ति करें।

Question 7:

निम्नलिखित विकल्पों में समूहवाचक संज्ञा है - '

Question 8:

निम्नलिखित विकल्पों में से ‘एक समान होना’ कौन - से मुहावरे का अर्थ है -

Question 9:

ड़, ढ़ वर्ण कहलाते हैं?

Question 10:

निर्देश- निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर प्रश्न का उत्तर दीजिए -

कवि- वाणी के प्रसार से हम संसार के सुख- दुःख , आनंद- क्लेश आदि का शुद्ध स्वार्थमुक्त रूप में अनुभव करते हैं। इस प्रकार के अनुभव के अभ्यास से हृदय का बंधन खुलता है और मनुष्यता की उच्च भूमि की प्राप्ति होती है। किसी अर्थपिशाच कृपण को देखिए। जिसने केवल अर्थ लोभ के वशीभूत होकर क्रोध, दया, श्रद्धा, भक्ति, आत्माभिमान आदि भावों को एकदम दबा दिया है और संसार के मार्मिक पक्ष से मुँह मोड़ लिया है।नव सृष्टि के किसी रूप माधुर्य को देख वह पैसों का हिसाब- किताब भूल कभी न मुग्ध होता है, न किसी दीन - दुखिया को देख कभी करुणा से द्रविभूत होता है; ना कोई अपमान सूचक बात सुनकर क्रुद्ध या क्षुब्ध होता है। यदि उससे किसी लोमहर्षक अत्याचार की बात कही जाए तो वह मनुष्य धर्मानुसार क्रोध या घृणा प्रकट करने के स्थान पर रुखाई के साथ कहेगा कि “जाने दो, हमसे क्या मतलब; चलो अपना काम देखें।” यह महा भयानक मानसिक रोग है। इससे मनुष्य आधा मर जाता है।

गद्यांश के आधार पर उदासीन रहना किस प्रकार का रोग है?

निर्देश- निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर प्रश्न का उत्तर दीजिए - कवि- वाणी के प्रसार से हम संसार के सुख- दुःख , आनंद- क्लेश आदि का शुद्ध स्वार्थमुक्त रूप में अनुभव करते हैं। इस प्रकार के अनुभव के अभ्यास से हृदय का बंधन खुलता है और मनुष्यता की उच्च भूमि की प्राप्ति होती है। किसी अर्थपिशाच कृपण को देखिए। जिसने केवल अर्थ लोभ के वशीभूत होकर क्रोध, दया, श्रद्धा, भक्ति, आत्माभिमान आदि भावों को एकदम दबा दिया है और संसार के मार्मिक पक्ष से मुँह मोड़ लिया है।नव सृष्टि के किसी रूप माधुर्य को देख वह पैसों का हिसाब- किताब भूल कभी न मुग्ध होता है, न किसी दीन - दुखिया को देख कभी करुणा से द्रविभूत होता है; ना कोई अपमान सूचक बात सुनकर क्रुद्ध या क्षुब्ध होता है। यदि उससे किसी लोमहर्षक अत्याचार की बात कही जाए तो वह मनुष्य धर्मानुसार क्रोध या घृणा प्रकट करने के स्थान पर रुखाई के साथ कहेगा कि “जाने दो, हमसे क्या मतलब; चलो अपना काम देखें।” यह महा भयानक मानसिक रोग है। इससे मनुष्य आधा मर जाता है।