Question 4:
निर्देश- गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा प्रश्न के उत्तर दीजिए।
हमारे देश के सम्मुख अनेक समस्याएँ मुँह फैलाए खड़ी हैं। इनमें से सर्वाधिक प्रमुख है- बेरोजगारी की समस्या। एक मोटे अनुमान के मुताबिक भारत में बेरोजगारों की संख्या करोड़ों में है। स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरान्त लोगों को यह आशा थी कि देश में सबको रोजगार प्राप्त हो जाएगा, किंतु यह सम्भव नही हो सका और तमाम प्रयासों के बावजूद स्थिति बद से बदतर होती गई। यद्यपि निर्धनता, गन्दगी, रोग, अशिक्षा और बेकारी जैसे राक्षसों ने संसार को विनाश की ओर धकेल दिया है। इनमें से बेकारी सर्वाधिक भयानक है, तथा शिक्षित युवकों के लिए सर्वाधिक चिन्तनीय भी है। चूँकि ऐसे युवक जिस तनाव और अवसाद से गुजरते हैं, इससे उनकी आशाएँ टूट जाती हैं, वे गुमराह होकर उग्रवादी तथा आतंकवादी तक बन जाते हैं। अंतत: भारत में बढ़ती हुई इस बेरोजगारी के प्रमुख कारणों में से एक है- तेजी से बढ़ती जनसंख्या। पिछले पाँच दशकों में देश की जनसंख्या लगभग चार गुनी हो गई है। सन् 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की आबादी 125 करोड़ है। यद्यपि सरकार ने विभिन्न योजनाओं के माध्यम से रोजगार के अनेक नए अवसर सुलभ कराए हैं। इसी क्रम में बेरोजगारी को नियंत्रित करने के कुछ उपाय किए जा सकते हैं, जैसे- जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण, विनियोग ढाँचे में परिवर्तन, शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन,कृषि आधारित उद्योग, कुटीर एवं लघु उद्योगों का विकास तथा जनशक्ति का उचित नियोजन आदि। वस्तुत: भारत में कई प्रकार की बेरोजगारी है:- प्रच्छन्न बेरोजगारी- यह विशेष रूप से भारतीय कृषि परिदृश्य को प्रभावित करता है। जनसंख्या में तेजी से वृद्धि और वैकल्पिक रोजगार के अवसरों की कमी के कारण कृषि में भीड़भाड़ को प्रच्छन्न बेरोजगारी के मुख्य कारणों में देखा जा सकता है। इसके अतिरिक्त मौसमी बेरोजगारी, चक्रीय बेरोजगारी, शिक्षित बेरोजगारी तथा औद्योगिक बेरोजगारी भारत के लिए एक समस्या का कारण है।
सन् 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की आबादी कितनी थी?
निर्देश- गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा प्रश्न के उत्तर दीजिए।
हमारे देश के सम्मुख अनेक समस्याएँ मुँह फैलाए खड़ी हैं। इनमें से सर्वाधिक प्रमुख है- बेरोजगारी की समस्या। एक मोटे अनुमान के मुताबिक भारत में बेरोजगारों की संख्या करोड़ों में है। स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरान्त लोगों को यह आशा थी कि देश में सबको रोजगार प्राप्त हो जाएगा, किंतु यह सम्भव नही हो सका और तमाम प्रयासों के बावजूद स्थिति बद से बदतर होती गई। यद्यपि निर्धनता, गन्दगी, रोग, अशिक्षा और बेकारी जैसे राक्षसों ने संसार को विनाश की ओर धकेल दिया है। इनमें से बेकारी सर्वाधिक भयानक है, तथा शिक्षित युवकों के लिए सर्वाधिक चिन्तनीय भी है। चूँकि ऐसे युवक जिस तनाव और अवसाद से गुजरते हैं, इससे उनकी आशाएँ टूट जाती हैं, वे गुमराह होकर उग्रवादी तथा आतंकवादी तक बन जाते हैं। अंतत: भारत में बढ़ती हुई इस बेरोजगारी के प्रमुख कारणों में से एक है- तेजी से बढ़ती जनसंख्या। पिछले पाँच दशकों में देश की जनसंख्या लगभग चार गुनी हो गई है। सन् 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की आबादी 125 करोड़ है। यद्यपि सरकार ने विभिन्न योजनाओं के माध्यम से रोजगार के अनेक नए अवसर सुलभ कराए हैं। इसी क्रम में बेरोजगारी को नियंत्रित करने के कुछ उपाय किए जा सकते हैं, जैसे- जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण, विनियोग ढाँचे में परिवर्तन, शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन,कृषि आधारित उद्योग, कुटीर एवं लघु उद्योगों का विकास तथा जनशक्ति का उचित नियोजन आदि। वस्तुत: भारत में कई प्रकार की बेरोजगारी है:- प्रच्छन्न बेरोजगारी- यह विशेष रूप से भारतीय कृषि परिदृश्य को प्रभावित करता है। जनसंख्या में तेजी से वृद्धि और वैकल्पिक रोजगार के अवसरों की कमी के कारण कृषि में भीड़भाड़ को प्रच्छन्न बेरोजगारी के मुख्य कारणों में देखा जा सकता है। इसके अतिरिक्त मौसमी बेरोजगारी, चक्रीय बेरोजगारी, शिक्षित बेरोजगारी तथा औद्योगिक बेरोजगारी भारत के लिए एक समस्या का कारण है।
सन् 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की आबादी कितनी थी?
Question 5:
निर्देश :- अधोलिखित गद्यांश को ध्यान से पढ़िए तथा प्रश्न के उत्तर इस गद्यांश के आधार पर दीजिए :
जिन कर्मों में किसी प्रकार का कष्ट या हानि सहने का साहस अपेक्षित होता है, सबके प्रति उत्कंठापूर्ण आनंद उत्साह के अंतर्गत लिया जाता है। कष्ट या हानि के भेद के अनुसार उत्साह के भी भेद हो जाते हैं। साहित्य मीमांसकों ने इसी दृष्टि से युद्धवीर, दानवीर, दयावीर इत्यादि भेद किए हैं। इनमें सबसे प्राचीन और प्रधान युद्धवीरता है, जिसमें आघात, पीड़ा या मृत्यु की परवाह नहीं रहती। इस प्रकार की वीरता का प्रयोजन अत्यंत प्राचीन काल से चला आ रहा है, जिसमें साहस और प्रयत्न दोनों चरम उत्कर्ष पर पहुंचते हैं। पर केवल कष्ट या पीड़ा सहन करने के साहस में ही उत्साह का स्वरूप स्फुरित नहीं होता। उसके साथ आनंदपूर्ण प्रयत्न या उसकी उत्कंठा का योग चाहिए।
युद्धवीरता के लिए किस प्रकार की प्रकृति अपेक्षित है?
निर्देश :- अधोलिखित गद्यांश को ध्यान से पढ़िए तथा प्रश्न के उत्तर इस गद्यांश के आधार पर दीजिए :
जिन कर्मों में किसी प्रकार का कष्ट या हानि सहने का साहस अपेक्षित होता है, सबके प्रति उत्कंठापूर्ण आनंद उत्साह के अंतर्गत लिया जाता है। कष्ट या हानि के भेद के अनुसार उत्साह के भी भेद हो जाते हैं। साहित्य मीमांसकों ने इसी दृष्टि से युद्धवीर, दानवीर, दयावीर इत्यादि भेद किए हैं। इनमें सबसे प्राचीन और प्रधान युद्धवीरता है, जिसमें आघात, पीड़ा या मृत्यु की परवाह नहीं रहती। इस प्रकार की वीरता का प्रयोजन अत्यंत प्राचीन काल से चला आ रहा है, जिसमें साहस और प्रयत्न दोनों चरम उत्कर्ष पर पहुंचते हैं। पर केवल कष्ट या पीड़ा सहन करने के साहस में ही उत्साह का स्वरूप स्फुरित नहीं होता। उसके साथ आनंदपूर्ण प्रयत्न या उसकी उत्कंठा का योग चाहिए।
युद्धवीरता के लिए किस प्रकार की प्रकृति अपेक्षित है?