Question 1:
निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर उत्तर दीजिए :
फ्रांस के प्रसिद्ध दार्शनिक रोमा रोलां ने कहा था कि पूर्व में एक भयंकर आग लगी है जो कि वहां के अंधविश्वास एवं कुरीतियों रूपी झाड़ झंकार को दग्ध करती हुई शीघ्र ही पाशचात्य को भी अपनी चपेट में लेने वाली है | रोमा रोलां का संकेत स्पष्ट रूप से दयानंद सरस्वती की ओर था जो कि भारतीय जन जागरण के पुरोधा के रूप में उभर कर सामने आए थे |
अंधविश्वास में समास है :
निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर उत्तर दीजिए :-
फ्रांस के प्रसिद्ध दार्शनिक रोमा रोलां ने कहा था कि पूर्व में एक भयंकर आग लगी है जो कि वहां के अंधविश्वास एवं कुरीतियों रूपी झाड़ झंकार को दग्ध करती हुई शीघ्र ही पाशचात्य को भी अपनी चपेट में लेने वाली है | रोमा रोलां का संकेत स्पष्ट रूप से दयानंद सरस्वती की ओर था जो कि भारतीय जन जागरण के पुरोधा के रूप में उभर कर सामने आए थे |
अंधविश्वास में समास है :-
Question 2:
निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर उत्तर दीजिए :-
फ्रांस के प्रसिद्ध दार्शनिक रोमा रोलां ने कहा था कि पूर्व में एक भयंकर आग लगी है जो कि वहां के अंधविश्वास एवं कुरीतियों रूपी झाड़ झंकार को दग्ध करती हुई शीघ्र ही पाशचात्य को भी अपनी चपेट में लेने वाली है | रोमा रोलां का संकेत स्पष्ट रूप से दयानंद सरस्वती की ओर था जो कि भारतीय जन जागरण के पुरोधा के रूप में उभर कर सामने आए थे |
पुरोधा शब्द में संधि है :
निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर उत्तर दीजिये :-
फ्रांस के प्रसिद्ध दार्शनिक रोमा रोलां ने कहा था कि पूर्व में एक भयंकर आग लगी है जो कि वहां के अंधविश्वास एवं कुरीतियों रूपी झाड़ झंकार को दग्ध करती हुई शीघ्र ही पाशचात्य को भी अपनी चपेट में लेने वाली है | रोमा रोलां का संकेत स्पष्ट रूप से दयानंद सरस्वती की ओर था जो कि भारतीय जन जागरण के पुरोधा के रूप में उभर कर सामने आए थे |
पुरोधा शब्द में संधि है :
Question 3:
निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर उत्तर दीजिए :
फ्रांस के प्रसिद्ध दार्शनिक रोमा रोलां ने कहा था कि पूर्व में एक भयंकर आग लगी है जो कि वहां के अंधविश्वास एवं कुरीतियों रूपी झाड़ झंकार को दग्ध करती हुई शीघ्र ही पाशचात्य को भी अपनी चपेट में लेने वाली है | रोमा रोलां का संकेत स्पष्ट रूप से दयानंद सरस्वती की ओर था जो कि भारतीय जन जागरण के पुरोधा के रूप में उभर कर सामने आए थे |
उपसर्ग, तत्सम शब्द और हिंदी के प्रत्यय से निर्मित शब्द है :-
निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर उत्तर दीजिए :
फ्रांस के प्रसिद्ध दार्शनिक रोमा रोलां ने कहा था कि पूर्व में एक भयंकर आग लगी है जो कि वहां के अंधविश्वास एवं कुरीतियों रूपी झाड़ झंकार को दग्ध करती हुई शीघ्र ही पाशचात्य को भी अपनी चपेट में लेने वाली है | रोमा रोलां का संकेत स्पष्ट रूप से दयानंद सरस्वती की ओर था जो कि भारतीय जन जागरण के पुरोधा के रूप में उभर कर सामने आए थे |
उपसर्ग, तत्सम शब्द और हिंदी के प्रत्यय से निर्मित शब्द है :
Question 4:
निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर दीजिए :
फ्रांस के प्रसिद्ध दार्शनिक रोमा रोलां ने कहा था कि पूर्व में एक भयंकर आग लगी है जो कि वहां के अंधविश्वास एवं कुरीतियों रूपी झाड़ झंकार को दग्ध करती हुई शीघ्र ही पाशचात्य को भी अपनी चपेट में लेने वाली है रोमा रोलां का संकेत स्पष्ट रूप से दयानंद सरस्वती की ओर था जो कि भारतीय जन जागरण के पुरोधा के रूप में उभर कर सामने आए थे |
निम्नलिखित में तत्सम शब्द है :
निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर दीजिए :
फ्रांस के प्रसिद्ध दार्शनिक रोमा रोलां ने कहा था कि पूर्व में एक भयंकर आग लगी है जो कि वहां के अंधविश्वास एवं कुरीतियों रूपी झाड़ झंकार को दग्ध करती हुई शीघ्र ही पाशचात्य को भी अपनी चपेट में लेने वाली है रोमा रोलां का संकेत स्पष्ट रूप से दयानंद सरस्वती की ओर था जो कि भारतीय जन जागरण के पुरोधा के रूप में उभर कर सामने आएटी |
निम्नलिखित में तत्सम शब्द है :
Question 5:
निम्नलिखित गद्यांश के आधार उत्तर पर दीजिए :-
फ्रांस के प्रसिद्ध दार्शनिक रोमा रोलां ने कहा था कि पूर्व में एक भयंकर आग लगी है जो कि वहां के अंधविश्वास एवं कुरीतियों रूपी झाड़ झंकार को दग्ध करती हुई शीघ्र ही पाशचात्य को भी अपनी चपेट में लेने वाली है | रोमा रोलां का संकेत स्पष्ट रूप से दयानंद सरस्वती की ओर था जो कि भारतीय जन जागरण के पुरोधा के रूप में उभर कर सामने आए थे|
निम्नलिखित में पूर्वकालिक क्रिया प्रयोग है :
निम्नलिखित गद्यांश के आधार उत्तर पर दीजिए :-
फ्रांस के प्रसिद्ध दार्शनिक रोमा रोलां ने कहा था कि पूर्व में एक भयंकर आग लगी है जो कि वहां के अंधविश्वास एवं कुरीतियों रूपी झाड़ झंकार को दग्ध करती हुई शीघ्र ही पाशचात्य को भी अपनी चपेट में लेने वाली है| रोमा रोलां का संकेत स्पष्ट रूप से दयानंद सरस्वती की ओर था जो कि भारतीय जन जागरण के पुरोधा के रूप में उभर कर सामने आए थे |
निम्नलिखित में पूर्वकालिक क्रिया प्रयोग है :
Question 6:
निम्नलिखित पद्यांश के आधार पर उत्तर दीजिए :
ऐसा है आवेश देश में जिसका पार नहीं।
देखा माता का ऐसा रक्तिम श्रृंगार नहीं।
कंठ-कंठ में गान उमड़ते माँ के वंदन के।
कंठ-कंठ में गान उमड़ते माँ के अर्चन के।
शीश-शीश में भाव उमड़ते माँ पर अर्पण के।
प्राण-प्राण में भाव उमड़ते शोणित तर्पण के।
जीवन की धारा में देखी ऐसी धार नहीं।
सत्य अहिंसा का व्रत अपना कोई पाप नहीं।
विश्व मैत्री का व्रत भी कोई अभिशाप नहीं।
यही सत्य है सदा असत की टिकती चाप नहीं।
सावधान हिंसक! प्रतिहिंसा की कोई माप नहीं।
कोई भी प्रस्ताव पराजय का स्वीकार नहीं।
ऐसा है आवेश देश में जिसका पार नहीं।
उपरोक्त पद्यांश में किसके आवेश का उल्लेख हुआ है?
निम्नलिखित पद्यांश के आधार पर उत्तर दीजिए :
ऐसा है आवेश देश में जिसका पार नहीं।
देखा माता का ऐसा रक्तिम श्रृंगार नहीं।
कंठ-कंठ में गान उमड़ते माँ के वंदन के।
कंठ-कंठ में गान उमड़ते माँ के अर्चन के।
शीश-शीश में भाव उमड़ते माँ पर अर्पण के।
प्राण-प्राण में भाव उमड़ते शोणित तर्पण के।
जीवन की धारा में देखी ऐसी धार नहीं।
सत्य अहिंसा का व्रत अपना कोई पाप नहीं।
विश्व मैत्री का व्रत भी कोई अभिशाप नहीं।
यही सत्य है सदा असत की टिकती चाप नहीं।
सावधान हिंसक! प्रतिहिंसा की कोई माप नहीं।
कोई भी प्रस्ताव पराजय का स्वीकार नहीं।
ऐसा है आवेश देश में जिसका पार नहीं।
उपरोक्त पद्यांश में किसके आवेश’ का उल्लेख हुआ है?
Question 7:
निम्नलिखित पद्यांश के आधार पर उत्तर दीजिए :
ऐसा है आवेश देश में जिसका पार नहीं।
देखा माता का ऐसा रक्तिम श्रृंगार नहीं।
कंठ-कंठ में गान उमड़ते माँ के वंदन के।
कंठ-कंठ में गान उमड़ते माँ के अर्चन के।
शीश-शीश में भाव उमड़ते माँ पर अर्पण के।
प्राण-प्राण में भाव उमड़ते शोणित तर्पण के।
जीवन की धारा में देखी ऐसी धार नहीं।
सत्य अहिंसा का व्रत अपना कोई पाप नहीं।
विश्व मैत्री का व्रत भी कोई अभिशाप नहीं।
यही सत्य है सदा असत की टिकती चाप नहीं।
सावधान हिंसक! प्रतिहिंसा की कोई माप नहीं।
कोई भी प्रस्ताव पराजय का स्वीकार नहीं।
ऐसा है आवेश देश में जिसका पार नहीं।
कवि के मतानुसार कौन सा शब्द असत्य है :
निम्नलिखित पद्यांश के आधार पर दीजिए
ऐसा है आवेश देश में जिसका पार नहीं।
देखा माता का ऐसा रक्तिम श्रृंगार नहीं।
कंठ-कंठ में गान उमड़ते माँ के वंदन के।
कंठ-कंठ में गान उमड़ते माँ के अर्चन के।
शीश-शीश में भाव उमड़ते माँ पर अर्पण के।
प्राण-प्राण में भाव उमड़ते शोणित तर्पण के।
जीवन की धारा में देखी ऐसी धार नहीं।
सत्य अहिंसा का व्रत अपना कोई पाप नहीं।
विश्व मैत्री का व्रत भी कोई अभिशाप नहीं।
यही सत्य है सदा असत की टिकती चाप नहीं।
सावधान हिंसक! प्रतिहिंसा की कोई माप नहीं।
कोई भी प्रस्ताव पराजय का स्वीकार नहीं।
ऐसा है आवेश देश में जिसका पार नहीं।
कवि के मतानुसार कौन सा शब्त्य असत्य है :
Question 8:
निम्नलिखित पद्यांश के आधार परउत्त्तर दीजिए :
ऐसा है आवेश देश में जिसका पार नहीं।
देखा माता का ऐसा रक्तिम श्रृंगार नहीं।
कंठ-कंठ में गान उमड़ते माँ के वंदन के।
कंठ-कंठ में गान उमड़ते माँ के अर्चन के।
शीश-शीश में भाव उमड़ते माँ पर अर्पण के।
प्राण-प्राण में भाव उमड़ते शोणित तर्पण के।
जीवन की धारा में देखी ऐसी धार नहीं।
सत्य अहिंसा का व्रत अपना कोई पाप नहीं।
विश्व मैत्री का व्रत भी कोई अभिशाप नहीं।
यही सत्य है सदा असत की टिकती चाप नहीं।
सावधान हिंसक! प्रतिहिंसा की कोई माप नहीं।
कोई भी प्रस्ताव पराजय का स्वीकार नहीं।
ऐसा है आवेश देश में जिसका पार नहीं।
‘रक्तिम श्रृंगार’ का अर्थ है :
निम्नलिखित पद्यांश के आधार पर उत्तर दीजिए :
ऐसा है आवेश देश में जिसका पार नहीं।
देखा माता का ऐसा रक्तिम श्रृंगार नहीं।
कंठ-कंठ में गान उमड़ते माँ के वंदन के।
कंठ-कंठ में गान उमड़ते माँ के अर्चन के।
शीश-शीश में भाव उमड़ते माँ पर अर्पण के।
प्राण-प्राण में भाव उमड़ते शोणित तर्पण के।
जीवन की धारा में देखी ऐसी धार नहीं।
सत्य अहिंसा का व्रत अपना कोई पाप नहीं।
विश्व मैत्री का व्रत भी कोई अभिशाप नहीं।
यही सत्य है सदा असत की टिकती चाप नहीं।
सावधान हिंसक! प्रतिहिंसा की कोई माप नहीं।
कोई भी प्रस्ताव पराजय का स्वीकार नहीं।
ऐसा है आवेश देश में जिसका पार नहीं।
‘रक्तिम श्रृंगार’ का अर्थ है
Question 9:
निम्नलिखित पद्यांश के आधार पर उत्तर दीजिए :
ऐसा है आवेश देश में जिसका पार नहीं।
देखा माता का ऐसा रक्तिम श्रृंगार नहीं।
कंठ-कंठ में गान उमड़ते माँ के वंदन के।
कंठ-कंठ में गान उमड़ते माँ के अर्चन के।
शीश-शीश में भाव उमड़ते माँ पर अर्पण के।
प्राण-प्राण में भाव उमड़ते शोणित तर्पण के।
जीवन की धारा में देखी ऐसी धार नहीं।
सत्य अहिंसा का व्रत अपना कोई पाप नहीं।
विश्व मैत्री का व्रत भी कोई अभिशाप नहीं।
यही सत्य है सदा असत की टिकती चाप नहीं।
सावधान हिंसक! प्रतिहिंसा की कोई माप नहीं।
कोई भी प्रस्ताव पराजय का स्वीकार नहीं।
ऐसा है आवेश देश में जिसका पार नहीं।
‘शोणित तर्पण’ का अर्थ है :
निम्नलिखित पद्यांश के आधार पर दीजिए :
ऐसा है आवेश देश में जिसका पार नहीं।
देखा माता का ऐसा रक्तिम श्रृंगार नहीं।
कंठ-कंठ में गान उमड़ते माँ के वंदन के।
कंठ-कंठ में गान उमड़ते माँ के अर्चन के।
शीश-शीश में भाव उमड़ते माँ पर अर्पण के।
प्राण-प्राण में भाव उमड़ते शोणित तर्पण के।
जीवन की धारा में देखी ऐसी धार नहीं।
सत्य अहिंसा का व्रत अपना कोई पाप नहीं।
विश्व मैत्री का व्रत भी कोई अभिशाप नहीं।
यही सत्य है सदा असत की टिकती चाप नहीं।
सावधान हिंसक! प्रतिहिंसा की कोई माप नहीं।
कोई भी प्रस्ताव पराजय का स्वीकार नहीं।
ऐसा है आवेश देश में जिसका पार नहीं।
‘शोणित तर्पण’ का अर्थ है :
Question 10:
निम्नलिखित पद्यांश के आधार पर उत्तर दीजिए :
ऐसा है आवेश देश में जिसका पार नहीं।
देखा माता का ऐसा रक्तिम श्रृंगार नहीं।
कंठ-कंठ में गान उमड़ते माँ के वंदन के।
कंठ-कंठ में गान उमड़ते माँ के अर्चन के।
शीश-शीश में भाव उमड़ते माँ पर अर्पण के।
प्राण-प्राण में भाव उमड़ते शोणित तर्पण के।
जीवन की धारा में देखी ऐसी धार नहीं।
सत्य अहिंसा का व्रत अपना कोई पाप नहीं।
विश्व मैत्री का व्रत भी कोई अभिशाप नहीं।
यही सत्य है सदा असत की टिकती चाप नहीं।
सावधान हिंसक! प्रतिहिंसा की कोई माप नहीं।
कोई भी प्रस्ताव पराजय का स्वीकार नहीं।
ऐसा है आवेश देश में जिसका पार नहीं।
पद्यांश में ‘माता’ का प्रतीक है–
निम्नलिखित पद्यांश के आधार पर उत्तर दीजिए :
ऐसा है आवेश देश में जिसका पार नहीं।
देखा माता का ऐसा रक्तिम श्रृंगार नहीं।
कंठ-कंठ में गान उमड़ते माँ के वंदन के।
कंठ-कंठ में गान उमड़ते माँ के अर्चन के।
शीश-शीश में भाव उमड़ते माँ पर अर्पण के।
प्राण-प्राण में भाव उमड़ते शोणित तर्पण के।
जीवन की धारा में देखी ऐसी धार नहीं।
सत्य अहिंसा का व्रत अपना कोई पाप नहीं।
विश्व मैत्री का व्रत भी कोई अभिशाप नहीं।
यही सत्य है सदा असत की टिकती चाप नहीं।
सावधान हिंसक! प्रतिहिंसा की कोई माप नहीं।
कोई भी प्रस्ताव पराजय का स्वीकार नहीं।
ऐसा है आवेश देश में जिसका पार नहीं।
पद्यांश में ‘माता’ का प्रतीक है–