हनुमान की पूंछ में लगन न पाई आगि,
लंका सिगरी जल गई ,गए निशाचर भागी।।
प्रस्तुत पंक्तियों में कौन-सा अलंकार है?
“है वसुंधरा बिखेर देती मोती सबके सोने पर।
रवि बटोर लेता है उसको सदा सवेरा होने पर।”
प्रस्तुत पंक्ति में कौन-सा अलंकार है-
“तरणि के ही संग तरल तरंग में,
तरणि डूबी थी हमारी ताल में।”
प्रस्तुत पंक्ति में कौन सा अलंकार है?
जहाँ काव्य पंक्ति में एक ही शब्द दो अथवा दो से अधिक बार भिन्न अर्थों में हो, वहाँ निम्नलिखित में से कौन-सा अलंकार होता है-
“तो पर वारौं उर बसी, सुन राधीके सुजान।
तू मोहन के उर वसी,ह्वैं उर बसी सुजान।।”
उपर्युक्त दोहे में कौन सा अलंकार है?
‘सागर-सा गंभीर हृदय हो, गिरि-सा ऊँचा हो जिसका मन।’ इस पंक्ति में कौन सा अलंकार है?
“विमाता बन गई आंधी भयवह।हुआ चंचल ना फिर भी श्यामघन वह।”
प्रस्तुत पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?
“नित प्रति पुन्यौई रहे, आनन ओप उजास” प्रस्तुत पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?
“राम हृदय जाके नहीं, विपति सुमंगल ताहिं।
राम हृदय जाकर, नहीं विपति सुमंगल ताहि।।”
प्रस्तुत पंक्तियों में कौन सा अलंकार है?
“राम ह्रदय जाके नहीं, विपति सुमंगल ताहिं।
निम्नलिखित प्रश्न में, चार विकल्पों में से, उस सही विकल्प का चयन करें जो दिए गए पद्य के उचित अलंकार रूप का सबसे अच्छा विकल्प है।
भिखारिन को देखकर पट देत बार - बार
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