CTET HINDI QUIZ 6

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Question 1:

निर्देश-  नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्‍नों के सबसे उपयुक्‍त उत्‍तर वाले विकल्‍प को चुनिए: 

बेलवृक्ष अपने वंश का अकेला वृक्ष है। भारत में बेल वृक्ष जंगली अवस्‍था में हिमालय के शुष्‍क पर्वतीय भागों में 1350 मीटर तक की उंचाई वाले भागों में देखने को मिल जाता है। इसके साथ ही वह मध्‍य भाग में और दक्षिण भारत में भी मिलता है। इसे देश के अलग-अलग स्‍थानों पर तथा अलग-अलग भाषाओं में अलग-अलग नामों से जाना  जाता है। हिन्‍दीउर्दू तथा बांग्‍ला में इसे बेल कहते हैं। प्राचीन हिन्‍दी में इसका नाम श्रीफल है। वर्तमान समय में श्रीफल नारियल को भी कहा जाता है। भारत में बेल की खेती लगभग सभी स्‍थानों पर सफल है। इसे ऐसे स्‍थानों पर भी उगाया जाता जा सकता हैजहाँ अन्‍य वृक्ष नहीं उगाए जा सकते हैं। बेल में तापमान का उतार चढाव सहन करने की अद्भुत क्षमता होती है। यह 7 डिग्री सेल्सियस से 48 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान सहन कर लेता है और अपना विकास करता है। इस वृक्ष की उंचाई 10 से 15 मीटर तक हो सकती है। कभी-कभी 18 मीटर तक ऊँचे बेल भी देखने को मिल जाते है। बेल का तना अधिक मोटा नहीं होता है। बेल वृक्ष के तने और उसकी शाखाओं व  उपशाखाओं की छाल मोटीकोमलपर्तदार होती हैं। यह पतझड़ के मौसम में पूरी तरह पर्णविहीन हो जाता है और फिर इस पर धीरे-धीरे नई पत्तियॉं आ जाती हैं। बेलवृक्ष की ताजी और नई पत्तियॉं कोमल और चमकदार हल्‍का गुलाबीपन लिए होती हैं। बेलवृक्ष के बीज को छोड़कर इसके अभी अंग औषधीय महत्‍व के होते हैं।

‘तना’ शब्‍द ___________ संज्ञा है।

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बेलवृक्ष अपने वंश का अकेला वृक्ष है। भारत में बेल वृक्ष जंगली अवस्‍था में हिमालय के शुष्‍क पर्वतीय भागों में 1350 मीटर तक की उंचाई वाले भागों में देखने को मिल जाता है। इसके साथ ही वह मध्‍य भाग में और दक्षिण भारत में भी मिलता है। इसे देश के अलग-अलग स्‍थानों पर तथा अलग-अलग भाषाओं में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। हिन्‍दी, उर्दू तथा बांग्‍ला में इसे बेल कहते हैं। प्राचीन हिन्‍दी में इसका नाम श्रीफल है। वर्तमान समय में श्रीफल नारियल को भी कहा जाता है। भारत में बेल की खेती लगभग सभी स्‍थानों पर सफल है। इसे ऐसे स्‍थानों पर भी उगाया जाता जा सकता है, जहाँ अन्‍य वृक्ष नहीं उगाए जा सकते हैं। बेल में तापमान का उतार चढाव सहन करने की अद्भुत क्षमता होती है। यह 7 डिग्री सेल्सियस से 48 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान सहन कर लेता है और अपना विकास करता है। इस वृक्ष की उंचाई 10 से 15 मीटर तक हो सकती है। कभी-कभी 18 मीटर तक ऊँचे बेल भी देखने को मिल जाते है। बेल का तना अधिक मोटा नहीं होता है। बेल वृक्ष के तने और उसकी शाखाओं व उपशाखाओं की छाल मोटी, कोमल, पर्तदार होती हैं। यह पतझड़ के मौसम में पूरी तरह पर्णविहीन हो जाता है और फिर इस पर धीरे-धीरे नई पत्तियॉं आ जाती हैं। बेलवृक्ष की ताजी और नई पत्तियॉं कोमल और चमकदार हल्‍का गुलाबीपन लिए होती हैं। बेलवृक्ष के बीज को छोड़कर इसके अभी अंग औषधीय महत्‍व के होते हैं।

Question 2:

निर्देश-  नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्‍नों के सबसे उपयुक्‍त उत्‍तर वाले विकल्‍प को चुनिए: 

बेलवृक्ष अपने वंश का अकेला वृक्ष है। भारत में बेल वृक्ष जंगली अवस्‍था में हिमालय के शुष्‍क पर्वतीय भागों में 1350 मीटर तक की उंचाई वाले भागों में देखने को मिल जाता है। इसके साथ ही वह मध्‍य भाग में और दक्षिण भारत में भी मिलता है। इसे देश के अलग-अलग स्‍थानों पर तथा अलग-अलग भाषाओं में अलग-अलग नामों से जाना  जाता है। हिन्‍दीउर्दू तथा बांग्‍ला में इसे बेल कहते हैं। प्राचीन हिन्‍दी में इसका नाम श्रीफल है। वर्तमान समय में श्रीफल नारियल को भी कहा जाता है। भारत में बेल की खेती लगभग सभी स्‍थानों पर सफल है। इसे ऐसे स्‍थानों पर भी उगाया  जा सकता हैजहाँ अन्‍य वृक्ष नहीं उगाए जा सकते हैं। बेल में तापमान का उतार चढाव सहन करने की अद्भुत क्षमता होती है। यह 7 डिग्री सेल्सियस से 48 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान सहन कर लेता है और अपना विकास करता है। इस वृक्ष की उंचाई 10 से 15 मीटर तक हो सकती है। कभी-कभी 18 मीटर तक ऊँचे बेल भी देखने को मिल जाते है। बेल का तना अधिक मोटा नहीं होता है। बेल वृक्ष के तने और उसकी शाखाओं व  उपशाखाओं की छाल मोटीकोमलपर्तदार होती हैं। यह पतझड़ के मौसम में पूरी तरह पर्णविहीन हो जाता है और फिर इस पर धीरे-धीरे नई पत्तियॉं आ जाती हैं। बेलवृक्ष की ताजी और नई पत्तियॉं कोमल और चमकदार हल्‍का गुलाबीपन लिए होती हैं। बेलवृक्ष के बीज को छोड़कर इसके सभी अंग औषधीय महत्‍व के होते हैं।

बेल वृक्ष के संबंध कौन-सा कथन सत्‍य नहीं है ?

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बेलवृक्ष अपने वंश का अकेला वृक्ष है। भारत में बेल वृक्ष जंगली अवस्‍था में हिमालय के शुष्‍क पर्वतीय भागों में 1350 मीटर तक की उंचाई वाले भागों में देखने को मिल जाता है। इसके साथ ही वह मध्‍य भाग में और दक्षिण भारत में भी मिलता है। इसे देश के अलग-अलग स्‍थानों पर तथा अलग-अलग भाषाओं में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। हिन्‍दी, उर्दू तथा बांग्‍ला में इसे बेल कहते हैं। प्राचीन हिन्‍दी में इसका नाम श्रीफल है। वर्तमान समय में श्रीफल नारियल को भी कहा जाता है। भारत में बेल की खेती लगभग सभी स्‍थानों पर सफल है। इसे ऐसे स्‍थानों पर भी उगाया जा सकता है, जहाँ अन्‍य वृक्ष नहीं उगाए जा सकते हैं। बेल में तापमान का उतार चढाव सहन करने की अद्भुत क्षमता होती है। यह 7 डिग्री सेल्सियस से 48 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान सहन कर लेता है और अपना विकास करता है। इस वृक्ष की उंचाई 10 से 15 मीटर तक हो सकती है। कभी-कभी 18 मीटर तक ऊँचे बेल भी देखने को मिल जाते है। बेल का तना अधिक मोटा नहीं होता है। बेल वृक्ष के तने और उसकी शाखाओं व उपशाखाओं की छाल मोटी, कोमल, पर्तदार होती हैं। यह पतझड़ के मौसम में पूरी तरह पर्णविहीन हो जाता है और फिर इस पर धीरे-धीरे नई पत्तियॉं आ जाती हैं। बेलवृक्ष की ताजी और नई पत्तियॉं कोमल और चमकदार हल्‍का गुलाबीपन लिए होती हैं। बेलवृक्ष के बीज को छोड़कर इसके सभी अंग औषधीय महत्‍व के होते हैं।

Question 3:

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बेलवृक्ष अपने वंश का अकेला वृक्ष है। भारत में बेल वृक्ष जंगली अवस्‍था में हिमालय के शुष्‍क पर्वतीय भागों में 1350 मीटर तक की उंचाई वाले भागों में देखने को मिल जाता है। इसके साथ ही वह मध्‍य भाग में और दक्षिण भारत में भी मिलता है। इसे देश के अलग-अलग स्‍थानों पर तथा अलग-अलग भाषाओं में अलग-अलग नामों से जाना  जाता है। हिन्‍दीउर्दू तथा बांग्‍ला में इसे बेल कहते हैं। प्राचीन हिन्‍दी में इसका नाम श्रीफल है। वर्तमान समय में श्रीफल नारियल को भी कहा जाता है। भारत में बेल की खेती लगभग सभी स्‍थानों पर सफल है। इसे ऐसे स्‍थानों पर भी उगाया जाता जा सकता हैजहाँ अन्‍य वृक्ष नहीं उगाए जा सकते हैं। बेल में तापमान का उतार चढाव सहन करने की अद्भुत क्षमता होती है। यह 7 डिग्री सेल्सियस से 48 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान सहन कर लेता है और अपना विकास करता है। इस वृक्ष की उंचाई 10 से 15 मीटर तक हो सकती है। कभी-कभी 18 मीटर तक ऊँचे बेल भी देखने को मिल जाते है। बेल का तना अधिक मोटा नहीं होता है। बेल वृक्ष के तने और उसकी शाखाओं व  उपशाखाओं की छाल मोटीकोमलपर्तदार होती हैं। यह पतझड़ के मौसम में पूरी तरह पर्णविहीन हो जाता है और फिर इस पर धीरे-धीरे नई पत्तियॉं आ जाती हैं। बेलवृक्ष की ताजी और नई पत्तियॉं कोमल और चमकदार हल्‍का गुलाबीपन लिए होती हैं। बेलवृक्ष के बीज को छोड़कर इसके अभी अंग औषधीय महत्‍व के होते हैं।

बेलवृक्ष के किस अंग में औषधीय गुण नहीं होते हैं ?

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बेलवृक्ष अपने वंश का अकेला वृक्ष है। भारत में बेल वृक्ष जंगली अवस्‍था में हिमालय के शुष्‍क पर्वतीय भागों में 1350 मीटर तक की उंचाई वाले भागों में देखने को मिल जाता है। इसके साथ ही वह मध्‍य भाग में और दक्षिण भारत में भी मिलता है। इसे देश के अलग-अलग स्‍थानों पर तथा अलग-अलग भाषाओं में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। हिन्‍दी, उर्दू तथा बांग्‍ला में इसे बेल कहते हैं। प्राचीन हिन्‍दी में इसका नाम श्रीफल है। वर्तमान समय में श्रीफल नारियल को भी कहा जाता है। भारत में बेल की खेती लगभग सभी स्‍थानों पर सफल है। इसे ऐसे स्‍थानों पर भी उगाया जाता जा सकता है, जहाँ अन्‍य वृक्ष नहीं उगाए जा सकते हैं। बेल में तापमान का उतार चढाव सहन करने की अद्भुत क्षमता होती है। यह 7 डिग्री सेल्सियस से 48 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान सहन कर लेता है और अपना विकास करता है। इस वृक्ष की उंचाई 10 से 15 मीटर तक हो सकती है। कभी-कभी 18 मीटर तक ऊँचे बेल भी देखने को मिल जाते है। बेल का तना अधिक मोटा नहीं होता है। बेल वृक्ष के तने और उसकी शाखाओं व उपशाखाओं की छाल मोटी, कोमल, पर्तदार होती हैं। यह पतझड़ के मौसम में पूरी तरह पर्णविहीन हो जाता है और फिर इस पर धीरे-धीरे नई पत्तियॉं आ जाती हैं। बेलवृक्ष की ताजी और नई पत्तियॉं कोमल और चमकदार हल्‍का गुलाबीपन लिए होती हैं। बेलवृक्ष के बीज को छोड़कर इसके अभी अंग औषधीय महत्‍व के होते हैं।

Question 4:

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बेलवृक्ष अपने वंश का अकेला वृक्ष है। भारत में बेल वृक्ष जंगली अवस्‍था में हिमालय के शुष्‍क पर्वतीय भागों में 1350 मीटर तक की उंचाई वाले भागों में देखने को मिल जाता है। इसके साथ ही वह मध्‍य भाग में और दक्षिण भारत में भी मिलता है। इसे देश के अलग-अलग स्‍थानों पर तथा अलग-अलग भाषाओं में अलग-अलग नामों से जाना  जाता है। हिन्‍दीउर्दू तथा बांग्‍ला में इसे बेल कहते हैं। प्राचीन हिन्‍दी में इसका नाम श्रीफल है। वर्तमान समय में श्रीफल नारियल को भी कहा जाता है। भारत में बेल की खेती लगभग सभी स्‍थानों पर सफल है। इसे ऐसे स्‍थानों पर भी उगाया जाता जा सकता हैजहाँ अन्‍य वृक्ष नहीं उगाए जा सकते हैं। बेल में तापमान का उतार चढाव सहन करने की अद्भुत क्षमता होती है। यह 7 डिग्री सेल्सियस से 48 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान सहन कर लेता है और अपना विकास करता है। इस वृक्ष की उंचाई 10 से 15 मीटर तक हो सकती है। कभी-कभी 18 मीटर तक ऊँचे बेल भी देखने को मिल जाते है। बेल का तना अधिक मोटा नहीं होता है। बेल वृक्ष के तने और उसकी शाखाओं व  उपशाखाओं की छाल मोटीकोमलपर्तदार होती हैं। यह पतझड़ के मौसम में पूरी तरह पर्णविहीन हो जाता है और फिर इस पर धीरे-धीरे नई पत्तियॉं आ जाती हैं। बेलवृक्ष की ताजी और नई पत्तियॉं कोमल और चमकदार हल्‍का गुलाबीपन लिए होती हैं। बेलवृक्ष के बीज को छोड़कर इसके अभी अंग औषधीय महत्‍व के होते हैं।

भारत में बेल की खेती __________ होती है।

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बेलवृक्ष अपने वंश का अकेला वृक्ष है। भारत में बेल वृक्ष जंगली अवस्‍था में हिमालय के शुष्‍क पर्वतीय भागों में 1350 मीटर तक की उंचाई वाले भागों में देखने को मिल जाता है। इसके साथ ही वह मध्‍य भाग में और दक्षिण भारत में भी मिलता है। इसे देश के अलग-अलग स्‍थानों पर तथा अलग-अलग भाषाओं में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। हिन्‍दी, उर्दू तथा बांग्‍ला में इसे बेल कहते हैं। प्राचीन हिन्‍दी में इसका नाम श्रीफल है। वर्तमान समय में श्रीफल नारियल को भी कहा जाता है। भारत में बेल की खेती लगभग सभी स्‍थानों पर सफल है। इसे ऐसे स्‍थानों पर भी उगाया जाता जा सकता है, जहाँ अन्‍य वृक्ष नहीं उगाए जा सकते हैं। बेल में तापमान का उतार चढाव सहन करने की अद्भुत क्षमता होती है। यह 7 डिग्री सेल्सियस से 48 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान सहन कर लेता है और अपना विकास करता है। इस वृक्ष की उंचाई 10 से 15 मीटर तक हो सकती है। कभी-कभी 18 मीटर तक ऊँचे बेल भी देखने को मिल जाते है। बेल का तना अधिक मोटा नहीं होता है। बेल वृक्ष के तने और उसकी शाखाओं व उपशाखाओं की छाल मोटी, कोमल, पर्तदार होती हैं। यह पतझड़ के मौसम में पूरी तरह पर्णविहीन हो जाता है और फिर इस पर धीरे-धीरे नई पत्तियॉं आ जाती हैं। बेलवृक्ष की ताजी और नई पत्तियॉं कोमल और चमकदार हल्‍का गुलाबीपन लिए होती हैं। बेलवृक्ष के बीज को छोड़कर इसके अभी अंग औषधीय महत्‍व के होते हैं।

Question 5:

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बेलवृक्ष अपने वंश का अकेला वृक्ष है। भारत में बेल वृक्ष जंगली अवस्‍था में हिमालय के शुष्‍क पर्वतीय भागों में 1350 मीटर तक की उंचाई वाले भागों में देखने को मिल जाता है। इसके साथ ही वह मध्‍य भाग में और दक्षिण भारत में भी मिलता है। इसे देश के अलग-अलग स्‍थानों पर तथा अलग-अलग भाषाओं में अलग-अलग नामों से जाना  जाता है। हिन्‍दीउर्दू तथा बांग्‍ला में इसे बेल कहते हैं। प्राचीन हिन्‍दी में इसका नाम श्रीफल है। वर्तमान समय में श्रीफल नारियल को भी कहा जाता है। भारत में बेल की खेती लगभग सभी स्‍थानों पर सफल है। इसे ऐसे स्‍थानों पर भी उगाया जाता जा सकता हैजहाँ अन्‍य वृक्ष नहीं उगाए जा सकते हैं। बेल में तापमान का उतार चढाव सहन करने की अद्भुत क्षमता होती है। यह 7 डिग्री सेल्सियस से 48 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान सहन कर लेता है और अपना विकास करता है। इस वृक्ष की उंचाई 10 से 15 मीटर तक हो सकती है। कभी-कभी 18 मीटर तक ऊँचे बेल भी देखने को मिल जाते है। बेल का तना अधिक मोटा नहीं होता है। बेल वृक्ष के तने और उसकी शाखाओं व  उपशाखाओं की छाल मोटीकोमलपर्तदार होती हैं। यह पतझड़ के मौसम में पूरी तरह पर्णविहीन हो जाता है और फिर इस पर धीरे-धीरे नई पत्तियॉं आ जाती हैं। बेलवृक्ष की ताजी और नई पत्तियॉं कोमल और चमकदार हल्‍का गुलाबीपन लिए होती हैं। बेलवृक्ष के बीज को छोड़कर इसके अभी अंग औषधीय महत्‍व के होते हैं।

प्राचीन हिन्‍दी में बेल को __________ कहा जाता था।

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बेलवृक्ष अपने वंश का अकेला वृक्ष है। भारत में बेल वृक्ष जंगली अवस्‍था में हिमालय के शुष्‍क पर्वतीय भागों में 1350 मीटर तक की उंचाई वाले भागों में देखने को मिल जाता है। इसके साथ ही वह मध्‍य भाग में और दक्षिण भारत में भी मिलता है। इसे देश के अलग-अलग स्‍थानों पर तथा अलग-अलग भाषाओं में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। हिन्‍दी, उर्दू तथा बांग्‍ला में इसे बेल कहते हैं। प्राचीन हिन्‍दी में इसका नाम श्रीफल है। वर्तमान समय में श्रीफल नारियल को भी कहा जाता है। भारत में बेल की खेती लगभग सभी स्‍थानों पर सफल है। इसे ऐसे स्‍थानों पर भी उगाया जाता जा सकता है, जहाँ अन्‍य वृक्ष नहीं उगाए जा सकते हैं। बेल में तापमान का उतार चढाव सहन करने की अद्भुत क्षमता होती है। यह 7 डिग्री सेल्सियस से 48 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान सहन कर लेता है और अपना विकास करता है। इस वृक्ष की उंचाई 10 से 15 मीटर तक हो सकती है। कभी-कभी 18 मीटर तक ऊँचे बेल भी देखने को मिल जाते है। बेल का तना अधिक मोटा नहीं होता है। बेल वृक्ष के तने और उसकी शाखाओं व उपशाखाओं की छाल मोटी, कोमल, पर्तदार होती हैं। यह पतझड़ के मौसम में पूरी तरह पर्णविहीन हो जाता है और फिर इस पर धीरे-धीरे नई पत्तियॉं आ जाती हैं। बेलवृक्ष की ताजी और नई पत्तियॉं कोमल और चमकदार हल्‍का गुलाबीपन लिए होती हैं। बेलवृक्ष के बीज को छोड़कर इसके अभी अंग औषधीय महत्‍व के होते हैं।

Question 6:

संस्कृति और सभ्यता-- यह दो शब्द है और उनके अर्थ भी अलग-अलग है। सभ्यता मनुष्य का वह गुण है जिससे वह अपनी बाहरी तरक्की करता है। संस्कृति वह गुण है जिससे वह अपने भीतर उन्नति करता है, करुणा, प्रेम और परोपकार सीखता है। आज रेलगाड़ी, मोटर और हवाई जहाज, लंबी चौड़ी सड़कें और बड़े-बड़े मकान, अच्छा भोजन और अच्छी पोशाक, यह सभ्यता की पहचान है और जिस देश में इनकी जितनी अधिकता है उस देश को हम उतना ही शब्द सभ्य मानते हैं। मगर संस्कृति उन सब से कहीं बड़ी चीज है वह मोटर नहीं, मोटर बनाने की कला है मकान नहीं, मकान बनाने की विधि है संस्कृति धन नहीं, गुण हैं। संस्कृति ठाठ बाट नहीं, विनय और विनम्रता हैं। एक कहावत है कि सभ्यता वह चीज है जो हमारे पास है, लेकिन संस्कृति वह गुण हैं, जो हममें छिपा हुआ हैं। हमारे पास घर होता है, कपड़े-लत्ते  होते हैं, मगर यह सारी चीजें हमारी सभ्यता के सबूत है जबकि संस्कृति इतने मोटे तौर पर दिखाई नहीं देती और बहुत ही सूक्ष्म और महान चीज है।

और वह हमारी हर पसंद, हर हर आदत में छुपी रहती है।  मकान बनाना सभ्यता का काम है ,लेकिन हम मकान का कौन सा नक्शा पसंद करते हैं-- यह हमारी संस्कृति बतलाती है।  आदमी के भीतर काम ,क्रोध, लोभ, मद, मोह और अक्सर के यह 6 विकार प्रकृत के दिए हुए हैं, मगर यह विकार अगर बेरोग छोड़ दिए जाए, तो आदमी इतना गिर जाए की उसमें और जानवर में कोई भेद नहीं रह जाए| इसीलिए आदमी इन विकारों पर रोक लगाता है।  इन दुर्गुणों पर जो आदमी जितना ज्यादा काबू कर पाता है, उसने संस्कृति भी उतनी ही अच्छी समझी जाती है।  संस्कृति का स्वभाव है, की वह आदान-प्रदान से बढ़ती है।  जब 2 देशों या जातियों के लोग आपस में मिलते हैं तब उन दोनों की संस्कृतियों एक दूसरे को प्रभावित करती है इसीलिए संस्कृति की दृष्टि से वह जाति या वह देश बहुत ही धनी समझा जाता है जिसने ज्यादा से ज्यादा देशों या जातियों की संस्कृतियों से लाभ उठाकर अपनी संस्कृति का विकास किया हो।

तुम क्या कर रहे हो?

संस्कृति और सभ्यता-- यह दो शब्द है और उनके अर्थ भी अलग-अलग है। सभ्यता मनुष्य का वह गुण है जिससे वह अपनी बाहरी तरक्की करता है। संस्कृति वह गुण है जिससे वह अपने भीतर उन्नति करता है, करुणा, प्रेम और परोपकार सीखता है। आज रेलगाड़ी, मोटर और हवाई जहाज, लंबी चौड़ी सड़कें और बड़े-बड़े मकान, अच्छा भोजन और अच्छी पोशाक, यह सभ्यता की पहचान है और जिस देश में इनकी जितनी अधिकता है उस देश को हम उतना ही शब्द सभ्य मानते हैं। मगर संस्कृति उन सब से कहीं बड़ी चीज है वह मोटर नहीं, मोटर बनाने की कला है मकान नहीं, मकान बनाने की विधि है संस्कृति धन नहीं, गुण हैं। संस्कृति ठाठ बाट नहीं, विनय और विनम्रता हैं। एक कहावत है कि सभ्यता वह चीज है जो हमारे पास है, लेकिन संस्कृति वह गुण हैं, जो हममें छिपा हुआ हैं। हमारे पास घर होता है, कपड़े-लत्ते होते हैं, मगर यह सारी चीजें हमारी सभ्यता के सबूत है जबकि संस्कृति इतने मोटे तौर पर दिखाई नहीं देती और बहुत ही सूक्ष्म और महान चीज है। और वह हमारी हर पसंद, हर हर आदत में छुपी रहती है। मकान बनाना सभ्यता का काम है ,लेकिन हम मकान का कौन सा नक्शा पसंद करते हैं-- यह हमारी संस्कृति बतलाती है। आदमी के भीतर काम ,क्रोध, लोभ, मद, मोह और अक्सर के यह 6 विकार प्रकृत के दिए हुए हैं, मगर यह विकार अगर बेरोग छोड़ दिए जाए, तो आदमी इतना गिर जाए की उसमें और जानवर में कोई भेद नहीं रह जाए| इसीलिए आदमी इन विकारों पर रोक लगाता है। इन दुर्गुणों पर जो आदमी जितना ज्यादा काबू कर पाता है, उसने संस्कृति भी उतनी ही अच्छी समझी जाती है। संस्कृति का स्वभाव है, की वह आदान-प्रदान से बढ़ती है। जब 2 देशों या जातियों के लोग आपस में मिलते हैं तब उन दोनों की संस्कृतियों एक दूसरे को प्रभावित करती है इसीलिए संस्कृति की दृष्टि से वह जाति या वह देश बहुत ही धनी समझा जाता है जिसने ज्यादा से ज्यादा देशों या जातियों की संस्कृतियों से लाभ उठाकर अपनी संस्कृति का विकास किया हो।

Question 7:

संस्कृति और सभ्यता-- यह दो शब्द है और उनके अर्थ भी अलग-अलग है। सभ्यता मनुष्य का वह गुण है जिससे वह अपनी बाहरी तरक्की करता है। संस्कृति वह गुण है जिससे वह अपने भीतर उन्नति करता है, करुणा, प्रेम और परोपकार सीखता है। आज रेलगाड़ी, मोटर और हवाई जहाज, लंबी चौड़ी सड़कें और बड़े-बड़े मकान, अच्छा भोजन और अच्छी पोशाक, यह सभ्यता की पहचान है और जिस देश में इनकी जितनी अधिकता है उस देश को हम उतना ही शब्द सभ्य मानते हैं। मगर संस्कृति उन सब से कहीं बड़ी चीज है वह मोटर नहीं, मोटर बनाने की कला है मकान नहीं, मकान बनाने की विधि है संस्कृति धन नहीं, गुण हैं। संस्कृति ठाठ बाट नहीं, विनय और विनम्रता हैं। एक कहावत है कि सभ्यता वह चीज है जो हमारे पास है, लेकिन संस्कृति वह गुण हैं, जो हममें छिपा हुआ हैं। हमारे पास घर होता है, कपड़े-लत्ते  होते हैं, मगर यह सारी चीजें हमारी सभ्यता के सबूत है जबकि संस्कृति इतने मोटे तौर पर दिखाई नहीं देती और बहुत ही सूक्ष्म और महान चीज है।

और वह हमारी हर पसंद, हर हर आदत में छुपी रहती है।  मकान बनाना सभ्यता का काम है ,लेकिन हम मकान का कौन सा नक्शा पसंद करते हैं-- यह हमारी संस्कृति बतलाती है।  आदमी के भीतर काम ,क्रोध, लोभ, मद, मोह और अक्सर के यह 6 विकार प्रकृत के दिए हुए हैं, मगर यह विकार अगर बेरोग छोड़ दिए जाए, तो आदमी इतना गिर जाए की उसमें और जानवर में कोई भेद नहीं रह जाए| इसीलिए आदमी इन विकारों पर रोक लगाता है।  इन दुर्गुणों पर जो आदमी जितना ज्यादा काबू कर पाता है, उसने संस्कृति भी उतनी ही अच्छी समझी जाती है।  संस्कृति का स्वभाव है, की वह आदान-प्रदान से बढ़ती है।  जब 2 देशों या जातियों के लोग आपस में मिलते हैं तब उन दोनों की संस्कृतियों एक दूसरे को प्रभावित करती है इसीलिए संस्कृति की दृष्टि से वह जाति या वह देश बहुत ही धनी समझा जाता है जिसने ज्यादा से ज्यादा देशों या जातियों की संस्कृतियों से लाभ उठाकर अपनी संस्कृति का विकास किया हो।

संस्कृति का मूल स्वभाव है कि वह-

संस्कृति और सभ्यता-- यह दो शब्द है और उनके अर्थ भी अलग-अलग है। सभ्यता मनुष्य का वह गुण है जिससे वह अपनी बाहरी तरक्की करता है। संस्कृति वह गुण है जिससे वह अपने भीतर उन्नति करता है, करुणा, प्रेम और परोपकार सीखता है। आज रेलगाड़ी, मोटर और हवाई जहाज, लंबी चौड़ी सड़कें और बड़े-बड़े मकान, अच्छा भोजन और अच्छी पोशाक, यह सभ्यता की पहचान है और जिस देश में इनकी जितनी अधिकता है उस देश को हम उतना ही शब्द सभ्य मानते हैं। मगर संस्कृति उन सब से कहीं बड़ी चीज है वह मोटर नहीं, मोटर बनाने की कला है मकान नहीं, मकान बनाने की विधि है संस्कृति धन नहीं, गुण हैं। संस्कृति ठाठ बाट नहीं, विनय और विनम्रता हैं। एक कहावत है कि सभ्यता वह चीज है जो हमारे पास है, लेकिन संस्कृति वह गुण हैं, जो हममें छिपा हुआ हैं। हमारे पास घर होता है, कपड़े-लत्ते होते हैं, मगर यह सारी चीजें हमारी सभ्यता के सबूत है जबकि संस्कृति इतने मोटे तौर पर दिखाई नहीं देती और बहुत ही सूक्ष्म और महान चीज है। और वह हमारी हर पसंद, हर हर आदत में छुपी रहती है। मकान बनाना सभ्यता का काम है ,लेकिन हम मकान का कौन सा नक्शा पसंद करते हैं-- यह हमारी संस्कृति बतलाती है। आदमी के भीतर काम ,क्रोध, लोभ, मद, मोह और अक्सर के यह 6 विकार प्रकृत के दिए हुए हैं, मगर यह विकार अगर बेरोग छोड़ दिए जाए, तो आदमी इतना गिर जाए की उसमें और जानवर में कोई भेद नहीं रह जाए| इसीलिए आदमी इन विकारों पर रोक लगाता है। इन दुर्गुणों पर जो आदमी जितना ज्यादा काबू कर पाता है, उसने संस्कृति भी उतनी ही अच्छी समझी जाती है। संस्कृति का स्वभाव है, की वह आदान-प्रदान से बढ़ती है। जब 2 देशों या जातियों के लोग आपस में मिलते हैं तब उन दोनों की संस्कृतियों एक दूसरे को प्रभावित करती है इसीलिए संस्कृति की दृष्टि से वह जाति या वह देश बहुत ही धनी समझा जाता है जिसने ज्यादा से ज्यादा देशों या जातियों की संस्कृतियों से लाभ उठाकर अपनी संस्कृति का विकास किया हो।

Question 8:

संस्कृति और सभ्यता-- यह दो शब्द है और उनके अर्थ भी अलग-अलग है। सभ्यता मनुष्य का वह गुण है जिससे वह अपनी बाहरी तरक्की करता है। संस्कृति वह गुण है जिससे वह अपने भीतर उन्नति करता है, करुणा, प्रेम और परोपकार सीखता है। आज रेलगाड़ी, मोटर और हवाई जहाज, लंबी चौड़ी सड़कें और बड़े-बड़े मकान, अच्छा भोजन और अच्छी पोशाक, यह सभ्यता की पहचान है और जिस देश में इनकी जितनी अधिकता है उस देश को हम उतना ही शब्द सभ्य मानते हैं| मगर संस्कृति उन सब से कहीं बड़ी चीज है वह मोटर नहीं, मोटर बनाने की कला है मकान नहीं, मकान बनाने की विधि है संस्कृति धन नहीं, गुण हैं। संस्कृति ठाठ बाट नहीं, विनय और विनम्रता हैं। एक कहावत है कि सभ्यता वह चीज है जो हमारे पास है, लेकिन संस्कृति वह गुण हैं, जो हममें छिपा हुआ हैं। हमारे पास घर होता है, कपड़े-लत्ते  होते हैं, मगर यह सारी चीजें हमारी सभ्यता के सबूत है जबकि संस्कृति इतने मोटे तौर पर दिखाई नहीं देती और बहुत ही सूक्ष्म और महान चीज है।

और वह हमारी हर पसंद, हर हर आदत में छुपी रहती है।  मकान बनाना सभ्यता का काम है ,लेकिन हम मकान का कौन सा नक्शा पसंद करते हैं-- यह हमारी संस्कृति बतलाती है।  आदमी के भीतर काम ,क्रोध, लोभ, मद, मोह और अक्सर के यह 6 विकार प्रकृत के दिए हुए हैं, मगर यह विकार अगर बेरोग छोड़ दिए जाए, तो आदमी इतना गिर जाए की उसमें और जानवर में कोई भेद नहीं रह जाए| इसीलिए आदमी इन विकारों पर रोक लगाता है।  इन दुर्गुणों पर जो आदमी जितना ज्यादा काबू कर पाता है, उसने संस्कृति भी उतनी ही अच्छी समझी जाती है।  संस्कृति का स्वभाव है, की वह आदान-प्रदान से बढ़ती है।  जब 2 देशों या जातियों के लोग आपस में मिलते हैं तब उन दोनों की संस्कृतियों एक दूसरे को प्रभावित करती है इसीलिए संस्कृति की दृष्टि से वह जाति या वह देश बहुत ही धनी समझा जाता है जिसने ज्यादा से ज्यादा देशों या जातियों की संस्कृतियों से लाभ उठाकर अपनी संस्कृति का विकास किया हो।

संस्कृति सभ्यता से इस रूप में भिन्न है की संस्कृति-

संस्कृति और सभ्यता-- यह दो शब्द है और उनके अर्थ भी अलग-अलग है। सभ्यता मनुष्य का वह गुण है जिससे वह अपनी बाहरी तरक्की करता है। संस्कृति वह गुण है जिससे वह अपने भीतर उन्नति करता है, करुणा, प्रेम और परोपकार सीखता है। आज रेलगाड़ी, मोटर और हवाई जहाज, लंबी चौड़ी सड़कें और बड़े-बड़े मकान, अच्छा भोजन और अच्छी पोशाक, यह सभ्यता की पहचान है और जिस देश में इनकी जितनी अधिकता है उस देश को हम उतना ही शब्द सभ्य मानते हैं| मगर संस्कृति उन सब से कहीं बड़ी चीज है वह मोटर नहीं, मोटर बनाने की कला है मकान नहीं, मकान बनाने की विधि है संस्कृति धन नहीं, गुण हैं। संस्कृति ठाठ बाट नहीं, विनय और विनम्रता हैं। एक कहावत है कि सभ्यता वह चीज है जो हमारे पास है, लेकिन संस्कृति वह गुण हैं, जो हममें छिपा हुआ हैं। हमारे पास घर होता है, कपड़े-लत्ते होते हैं, मगर यह सारी चीजें हमारी सभ्यता के सबूत है जबकि संस्कृति इतने मोटे तौर पर दिखाई नहीं देती और बहुत ही सूक्ष्म और महान चीज है। और वह हमारी हर पसंद, हर हर आदत में छुपी रहती है। मकान बनाना सभ्यता का काम है ,लेकिन हम मकान का कौन सा नक्शा पसंद करते हैं-- यह हमारी संस्कृति बतलाती है। आदमी के भीतर काम ,क्रोध, लोभ, मद, मोह और अक्सर के यह 6 विकार प्रकृत के दिए हुए हैं, मगर यह विकार अगर बेरोग छोड़ दिए जाए, तो आदमी इतना गिर जाए की उसमें और जानवर में कोई भेद नहीं रह जाए| इसीलिए आदमी इन विकारों पर रोक लगाता है। इन दुर्गुणों पर जो आदमी जितना ज्यादा काबू कर पाता है, उसने संस्कृति भी उतनी ही अच्छी समझी जाती है। संस्कृति का स्वभाव है, की वह आदान-प्रदान से बढ़ती है। जब 2 देशों या जातियों के लोग आपस में मिलते हैं तब उन दोनों की संस्कृतियों एक दूसरे को प्रभावित करती है इसीलिए संस्कृति की दृष्टि से वह जाति या वह देश बहुत ही धनी समझा जाता है जिसने ज्यादा से ज्यादा देशों या जातियों की संस्कृतियों से लाभ उठाकर अपनी संस्कृति का विकास किया हो।

Question 9:

संस्कृति और सभ्यता-- यह दो शब्द है और उनके अर्थ भी अलग-अलग है। सभ्यता मनुष्य का वह गुण है जिससे वह अपनी बाहरी तरक्की करता है।  संस्कृति वह गुण है जिससे वह अपने भीतर उन्नति करता है, करुणा, प्रेम और परोपकार सीखता है। आज रेलगाड़ी, मोटर और हवाई जहाज, लंबी चौड़ी सड़कें और बड़े-बड़े मकान, अच्छा भोजन और अच्छी पोशाक, यह सभ्यता की पहचान है और जिस देश में इनकी जितनी अधिकता है उस देश को हम उतना ही शब्द सभ्य मानते हैं मगर संस्कृति उन सब से कहीं बड़ी चीज है वह मोटर नहीं, मोटर बनाने की कला है मकान नहीं, मकान बनाने की विधि है संस्कृति धन नहीं, गुण हैं| संस्कृति ठाठ बाट नहीं, विनय और विनम्रता हैं| एक कहावत है कि सभ्यता वह चीज है जो हमारे पास है, लेकिन संस्कृति वह गुण है जो हममें छिपा हुआ हैं हमारे पास घर होता है, कपड़े-लत्ते होते हैं, मगर यह सारी चीजें हमारी सभ्यता के सबूत है जबकि संस्कृति इतने मोटे तौर पर दिखाई नहीं देती और बहुत ही सूक्ष्म और महान चीज है। 

और वह हमारी हर पसंद, हर हर आदत में छुपी रहती है मकान बनाना सभ्यता का काम है ,लेकिन हम मकान का कौन सा नक्शा पसंद करते हैं-- यह हमारी संस्कृति बतलाती है। आदमी के भीतर काम ,क्रोध, लोभ, मद, मोह और अक्सर के यह 6 विकार प्रकृत के दिए हुए हैं, मगर यह विकार अगर बेरोग छोड़ दिए जाए, तो आदमी इतना गिर जाए की उसमें और जानवर में कोई भेद नहीं रह जाए| इसीलिए आदमी इन विकारों पर रोक लगाता है, इन दुर्गुणों पर जो आदमी जितना ज्यादा काबू कर पाता है, उसने संस्कृति भी उतनी ही अच्छी समझी जाती है।  संस्कृति का स्वभाव है, की वह आदान-प्रदान से बढ़ती है।  जब 2 देशों या जातियों के लोग आपस में मिलते हैं तब उन दोनों की संस्कृतियों एक दूसरे को प्रभावित करती है।  इसीलिए संस्कृति की दृष्टि से वह जाति या वह देश बहुत ही धनी समझा जाता है जिसने ज्यादा से ज्यादा देशों या जातियों की संस्कृतियों से लाभ उठाकर अपनी संस्कृति का विकास किया हो।

संस्कृति का अभिप्राय है?

संस्कृति और सभ्यता-- यह दो शब्द है और उनके अर्थ भी अलग-अलग है। सभ्यता मनुष्य का वह गुण है जिससे वह अपनी बाहरी तरक्की करता है। संस्कृति वह गुण है जिससे वह अपने भीतर उन्नति करता है, करुणा, प्रेम और परोपकार सीखता है। आज रेलगाड़ी, मोटर और हवाई जहाज, लंबी चौड़ी सड़कें और बड़े-बड़े मकान, अच्छा भोजन और अच्छी पोशाक, यह सभ्यता की पहचान है और जिस देश में इनकी जितनी अधिकता है उस देश को हम उतना ही शब्द सभ्य मानते हैं मगर संस्कृति उन सब से कहीं बड़ी चीज है वह मोटर नहीं, मोटर बनाने की कला है मकान नहीं, मकान बनाने की विधि है संस्कृति धन नहीं, गुण हैं| संस्कृति ठाठ बाट नहीं, विनय और विनम्रता हैं| एक कहावत है कि सभ्यता वह चीज है जो हमारे पास है, लेकिन संस्कृति वह गुण है जो हममें छिपा हुआ हैं हमारे पास घर होता है, कपड़े-लत्ते होते हैं, मगर यह सारी चीजें हमारी सभ्यता के सबूत है जबकि संस्कृति इतने मोटे तौर पर दिखाई नहीं देती और बहुत ही सूक्ष्म और महान चीज है। और वह हमारी हर पसंद, हर हर आदत में छुपी रहती है मकान बनाना सभ्यता का काम है ,लेकिन हम मकान का कौन सा नक्शा पसंद करते हैं-- यह हमारी संस्कृति बतलाती है। आदमी के भीतर काम ,क्रोध, लोभ, मद, मोह और अक्सर के यह 6 विकार प्रकृत के दिए हुए हैं, मगर यह विकार अगर बेरोग छोड़ दिए जाए, तो आदमी इतना गिर जाए की उसमें और जानवर में कोई भेद नहीं रह जाए| इसीलिए आदमी इन विकारों पर रोक लगाता है, इन दुर्गुणों पर जो आदमी जितना ज्यादा काबू कर पाता है, उसने संस्कृति भी उतनी ही अच्छी समझी जाती है। संस्कृति का स्वभाव है, की वह आदान-प्रदान से बढ़ती है। जब 2 देशों या जातियों के लोग आपस में मिलते हैं तब उन दोनों की संस्कृतियों एक दूसरे को प्रभावित करती है। इसीलिए संस्कृति की दृष्टि से वह जाति या वह देश बहुत ही धनी समझा जाता है जिसने ज्यादा से ज्यादा देशों या जातियों की संस्कृतियों से लाभ उठाकर अपनी संस्कृति का विकास किया हो।

Question 10:

संस्कृति और सभ्यता-- यह दो शब्द है और उनके अर्थ भी अलग-अलग है| सभ्यता मनुष्य का वह गुण है जिससे वह अपनी बाहरी तरक्की करता है| संस्कृति वह गुण है जिससे वह अपने भीतर उन्नति करता है, करुणा, प्रेम और परोपकार सीखता है| आज रेलगाड़ी, मोटर और हवाई जहाज, लंबी चौड़ी सड़कें और बड़े-बड़े मकान, अच्छा भोजन और अच्छी पोशाक, यह सभ्यता की पहचान है और जिस देश में इनकी जितनी अधिकता है उस देश को हम उतना ही शब्द सभ्य मानते हैं| मगर संस्कृति उन सब से कहीं बड़ी चीज है वह मोटर नहीं, मोटर बनाने की कला है मकान नहीं, मकान बनाने की विधि है संस्कृति धन नहीं, गुण हैं| संस्कृति ठाठ बाट नहीं, विनय और विनम्रता हैं| एक कहावत है कि सभ्यता वह चीज है जो हमारे पास है, लेकिन संस्कृति वह गुण हैं| है जो हममें छिपा हुआ हैं| हमारे पास घर होता है, कपड़े-लते होते हैं, मगर यह सारी चीजें हमारी सभ्यता के सबूत है जबकि संस्कृति इतने मोटे तौर पर दिखाई नहीं देती और बहुत ही सूक्ष्म और महान चीज है|

और वह हमारी हर पसंद, हर हर आदत में छुपी रहती है| मकान बनाना सभ्यता का काम है ,लेकिन हम मकान का कौन सा नक्शा पसंद करते हैं-- यह हमारी संस्कृति बतलाती है| आदमी के भीतर काम ,क्रोध, लोभ, मद, मोह और अक्सर के यह 6 विकार प्रकृत के दिए हुए हैं, मगर यह विकार अगर बेरोग छोड़ दिए जाए, तो आदमी इतना गिर जाए की उसमें और जानवर में कोई भेद नहीं रह जाए| इसीलिए आदमी इन विकारों पर रोक लगाता है| इन दुर्गुणों पर जो आदमी जितना ज्यादा काबू कर पाता है, उसने संस्कृति भी उतनी ही अच्छी समझी जाती है| संस्कृति का स्वभाव है, की वह आदान-प्रदान से बढ़ती है| जब 2 देशों या जातियों के लोग आपस में मिलते हैं तब उन दोनों की संस्कृतियों एक दूसरे को प्रभावित करती है इसीलिए संस्कृति की दृष्टि से वह जाति या वह देश बहुत ही धनी समझा जाता है जिसने ज्यादा से ज्यादा देशों या जातियों की संस्कृतियों से लाभ उठाकर अपनी संस्कृति का विकास किया हो

सभ्यता का अर्थ है?

संस्कृति और सभ्यता-- यह दो शब्द है और उनके अर्थ भी अलग-अलग है| सभ्यता मनुष्य का वह गुण है जिससे वह अपनी बाहरी तरक्की करता है| संस्कृति वह गुण है जिससे वह अपने भीतर उन्नति करता है, करुणा, प्रेम और परोपकार सीखता है| आज रेलगाड़ी, मोटर और हवाई जहाज, लंबी चौड़ी सड़कें और बड़े-बड़े मकान, अच्छा भोजन और अच्छी पोशाक, यह सभ्यता की पहचान है और जिस देश में इनकी जितनी अधिकता है उस देश को हम उतना ही शब्द सभ्य मानते हैं| मगर संस्कृति उन सब से कहीं बड़ी चीज है वह मोटर नहीं, मोटर बनाने की कला है मकान नहीं, मकान बनाने की विधि है संस्कृति धन नहीं, गुण हैं| संस्कृति ठाठ बाट नहीं, विनय और विनम्रता हैं| एक कहावत है कि सभ्यता वह चीज है जो हमारे पास है, लेकिन संस्कृति वह गुण हैं| है जो हममें छिपा हुआ हैं| हमारे पास घर होता है, कपड़े-लते होते हैं, मगर यह सारी चीजें हमारी सभ्यता के सबूत है जबकि संस्कृति इतने मोटे तौर पर दिखाई नहीं देती और बहुत ही सूक्ष्म और महान चीज है|
और वह हमारी हर पसंद, हर हर आदत में छुपी रहती है| मकान बनाना सभ्यता का काम है ,लेकिन हम मकान का कौन सा नक्शा पसंद करते हैं-- यह हमारी संस्कृति बतलाती है| आदमी के भीतर काम ,क्रोध, लोभ, मद, मोह और अक्सर के यह 6 विकार प्रकृत के दिए हुए हैं, मगर यह विकार अगर बेरोग छोड़ दिए जाए, तो आदमी इतना गिर जाए की उसमें और जानवर में कोई भेद नहीं रह जाए| इसीलिए आदमी इन विकारों पर रोक लगाता है| इन दुर्गुणों पर जो आदमी जितना ज्यादा काबू कर पाता है, उसने संस्कृति भी उतनी ही अच्छी समझी जाती है| संस्कृति का स्वभाव है, की वह आदान-प्रदान से बढ़ती है| जब 2 देशों या जातियों के लोग आपस में मिलते हैं तब उन दोनों की संस्कृतियों एक दूसरे को प्रभावित करती है इसीलिए संस्कृति की दृष्टि से वह जाति या वह देश बहुत ही धनी समझा जाता है जिसने ज्यादा से ज्यादा देशों या जातियों की संस्कृतियों से लाभ उठाकर अपनी संस्कृति का विकास किया हो