CTET HINDI QUIZ 9

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Question 1:

निर्देश- नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्‍नों के सबसे उपयुक्‍त उत्‍तर वाले विकल्‍प को चुनिए: 

सब प्रांतों के उग्र और उदार देशभक्‍त, क्रांतिकारी और देश-विदेश के धुरंधर लोग, संवाददाता आदि गाँधी जी को पत्र लिखते और गॉंधी जी ‘यंग इंडिया’ के कॉलमों में उनकी चर्चा किया करते। 

महादेव गाँधी जी की यात्राओं के और प्रतिदिन की उनकी गतिविधियों के साप्‍ताहिक विवरण भेजा करते। इसके अलावा महादेव, देश विदेश के अग्रगण्य समाचार पत्र, जो आँखों में तेल डालकर गाँधी की प्रतिदिन की गतिविधियों को देखा करते थे और उन पर बराबर टीका टिप्‍पणी करते रहते थे उनको आड़े हाथ लेने वाले लेख भी समय-समय पर लिखा करते थे। बेजोड़ कॉलम, भरपूर चौकसाई, ऊँचे से ऊँचे ब्रिटिश समाचार पत्रों की परंपराओं को अपनाकर चलने का गाँधी  जी का आग्रह और कट्टर से कट्टर विरोधियों के साथ भी पूरी-पूरी सत्‍यनिष्‍ठा में से उत्‍पन्‍न होने वाली विनय विवेक युक्‍त विवाद करने की गॉंधी जी की तालीम इन सब गुणों ने तीव्र मतभेदों और विरोधी प्रचार के बीच भी देश विदेश के सारे सामाचार पत्रों की दुनिया में और एंग्‍लो इंडियन समाचार पत्रों के बीच भी व्‍यक्तिगत रूप से एम.डी को सबका लाडला बना दिया था। 

गाँधी  जी के पास आने से पहले अपनी विद्यार्थी अवस्‍था में महादेव ने सरकार के अनुवाद विभाग में नौकरी की थी। नरहरि भाई उनके जिगरी दोस्‍त थे। दोनों एक साथ वकालत पढ़े थे। दोनों ने अहमदाबाद में वकालत भी साथ-साथ ही शुरू की थी। इस पेशे में आमतौर पर स्‍याह को सफेद और सफेद को स्‍याह करना होता है। साहित्‍य व संस्‍कार के साथ इनका कोई संबंध नहीं रहता। लेकिन इन दोनों ने तो उसी समय से टैगोर, शरतचन्‍द्र आदि के साहित्‍य को उलटना- पुलटना शुरू कर दिया था। चित्रांगदा कच-देवयानी की कथा पर टैगोर द्वारा रचित विदाई का अभिशाप शीर्ष नाटिका, शरत बाबू की कहानियॉं आदि अनुवाद उस समय की उनकी साहित्यिक गतिविधियों की देन है।

महादेव के जिगरी दोस्‍त थे -  



निर्देश- नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्‍नों के सबसे उपयुक्‍त उत्तर वाले विकल्‍प को चुनिए: सब प्रांतों के उग्र और उदार देशभक्‍त, क्रांतिकारी और देश-विदेश के धुरंधर लोग, संवाददाता आदि गाँधी जी को पत्र लिखते और गाँधी जी ‘यंग इंडिया’ के कॉलमों में उनकी चर्चा किया करते। महादेव गाँधी जी की यात्राओं के और प्रतिदिन की उनकी गतिविधियों के साप्‍ताहिक विवरण भेजा करते। इसके अलावा महादेव, देश विदेश के अग्रगण्य समाचार पत्र, जो आँखों में तेल डालकर गाँधी जी की प्रतिदिन की गतिविधियों को देखा करते थे और उन पर बराबर टीका टिप्‍पणी करते रहते थे उनको आड़े हाथ लेने वाले लेख भी समय-समय पर लिखा करते थे। बेजोड़ कॉलम, भरपूर चौकसाई, ऊँचे से ऊँचे ब्रिटिश समाचार पत्रों की परंपराओं को अपनाकर चलने का गाँधी जी का आग्रह और कट्टर से कट्टर विरोधियों के साथ भी पूरी-पूरी सत्‍यनिष्‍ठा में से उत्‍पन्‍न होने वाली विनय विवेक युक्‍त विवाद करने की गॉंधी जी की तालीम इन सब गुणों ने तीव्र मतभेदों और विरोधी प्रचार के बीच भी देश विदेश के सारे सामाचार पत्रों की दुनिया में और एंग्‍लो इंडियन समाचार पत्रों के बीच भी व्‍यक्तिगत रूप से एम.डी को सबका लाडला बना दिया था। गाँधी जी के पास आने से पहले अपनी विद्यार्थी अवस्‍था में महादेव ने सरकार के अनुवाद विभाग में नौकरी की थी। नरहरि भाई उनके जिगरी दोस्‍त थे। दोनों एक साथ वकालत पढ़े थे। दोनों ने अहमदाबाद में वकालत भी साथ-साथ ही शुरू की थी। इस पेशे में आमतौर पर स्‍याह को सफेद और सफेद को स्‍याह करना होता है। साहित्‍य व संस्‍कार के साथ इनका कोई संबंध नहीं रहता। लेकिन इन दोनों ने तो उसी समय से टैगोर, शरतचन्‍द्र आदि के साहित्‍य को उलटना- पुलटना शुरू कर दिया था। चित्रांगदा कच-देवयानी की कथा पर टैगोर द्वारा रचित विदाई का अभिशाप शीर्ष नाटिका, शरत बाबू की कहानियॉं आदि अनुवाद उस समय की उनकी साहित्यिक गतिविधियों की देन है।

Question 2:

निर्देश- नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्‍नों के सबसे उपयुक्‍त उत्‍तर वाले विकल्‍प को चुनिए: 

सब प्रांतों के उग्र और उदार देशभक्‍त, क्रांतिकारी और देश-विदेश के धुरंधर लोग, संवाददाता आदि गाँधी जी को पत्र लिखते और गाँधी जी ‘यंग इंडिया’ के कॉलमों में उनकी चर्चा किया करते। महादेव गाँधी जी की यात्राओं के और प्रतिदिन की उनकी गतिविधियों के साप्‍ताहिक विवरण भेजा करते। इसके अलावा महादेव, देश विदेश के अग्रगण्य समाचार पत्र, जो आँखों में तेल डालकर गाँधी जी की प्रतिदिन की गतिविधियों को देखा करते थे और उन पर बराबर टीका टिप्‍पणी करते रहते थे उनको आड़े हाथ लेने वाले लेख भी समय-समय पर लिखा करते थे। बेजोड़ कॉलम, भरपूर चौकसाई, ऊँचे से ऊँचे ब्रिटिश समाचार पत्रों की परंपराओं को अपनाकर चलने का गाँधी जी का आग्रह और कट्टर से कट्टर विरोधियों के साथ भी पूरी-पूरी सत्‍यनिष्‍ठा में से उत्‍पन्‍न होने वाली विनय विवेक युक्‍त विवाद करने की गॉंधी जी की तालीम इन सब गुणों ने तीव्र मतभेदों और विरोधी प्रचार के बीच भी देश विदेश के सारे सामाचार पत्रों की दुनिया में और एंग्‍लो इंडियन समाचार पत्रों के बीच भी व्‍यक्तिगत रूप से एम.डी को सबका लाडला बना दिया था। 

गाँधी जी के पास आने से पहले अपनी विद्यार्थी अवस्‍था में महादेव ने सरकार के अनुवाद विभाग में नौकरी की थी। नरहरि भाई उनके जिगरी दोस्‍त थे। दोनों एक साथ वकालत पढ़े थे। दोनों ने अहमदाबाद में वकालत भी साथ-साथ ही शुरू की थी। इस पेशे में आमतौर पर स्‍याह को सफेद और सफेद को स्‍याह करना होता है। साहित्‍य व संस्‍कार के साथ इनका कोई संबंध नहीं रहता। लेकिन इन दोनों ने तो उसी समय से टैगोर, शरतचन्‍द्र आदि के साहित्‍य को उलटना- पुलटना शुरू कर दिया था। चित्रांगदा कच-देवयानी की कथा पर टैगोर द्वारा रचित विदाई का अभिशाप शीर्ष नाटिका, शरत बाबू की कहानियॉं आदि अनुवाद उस समय की उनकी साहित्यिक गतिविधियों की देन है।

गाँधी जी के पास आने से पहले अपनी विद्यार्थी अवस्‍था में महादेव -


निर्देश- नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्‍नों के सबसे उपयुक्‍त उत्तर वाले विकल्‍प को चुनिए: सब प्रांतों के उग्र और उदार देशभक्‍त, क्रांतिकारी और देश-विदेश के धुरंधर लोग, संवाददाता आदि गाँधी जी को पत्र लिखते और गाँधी जी ‘यंग इंडिया’ के कॉलमों में उनकी चर्चा किया करते। महादेव गाँधी जी की यात्राओं के और प्रतिदिन की उनकी गतिविधियों के साप्‍ताहिक विवरण भेजा करते। इसके अलावा महादेव, देश विदेश के अग्रगण्य समाचार पत्र, जो आँखों में तेल डालकर गाँधी जी की प्रतिदिन की गतिविधियों को देखा करते थे और उन पर बराबर टीका टिप्‍पणी करते रहते थे उनको आड़े हाथ लेने वाले लेख भी समय-समय पर लिखा करते थे। बेजोड़ कॉलम, भरपूर चौकसाई, ऊँचे से ऊँचे ब्रिटिश समाचार पत्रों की परंपराओं को अपनाकर चलने का गाँधी जी का आग्रह और कट्टर से कट्टर विरोधियों के साथ भी पूरी-पूरी सत्‍यनिष्‍ठा में से उत्‍पन्‍न होने वाली विनय विवेक युक्‍त विवाद करने की गॉंधी जी की तालीम इन सब गुणों ने तीव्र मतभेदों और विरोधी प्रचार के बीच भी देश विदेश के सारे सामाचार पत्रों की दुनिया में और एंग्‍लो इंडियन समाचार पत्रों के बीच भी व्‍यक्तिगत रूप से एम.डी को सबका लाडला बना दिया था। गाँधी जी के पास आने से पहले अपनी विद्यार्थी अवस्‍था में महादेव ने सरकार के अनुवाद विभाग में नौकरी की थी। नरहरि भाई उनके जिगरी दोस्‍त थे। दोनों एक साथ वकालत पढ़े थे। दोनों ने अहमदाबाद में वकालत भी साथ-साथ ही शुरू की थी। इस पेशे में आमतौर पर स्‍याह को सफेद और सफेद को स्‍याह करना होता है। साहित्‍य व संस्‍कार के साथ इनका कोई संबंध नहीं रहता। लेकिन इन दोनों ने तो उसी समय से टैगोर, शरतचन्‍द्र आदि के साहित्‍य को उलटना- पुलटना शुरू कर दिया था। चित्रांगदा कच-देवयानी की कथा पर टैगोर द्वारा रचित विदाई का अभिशाप शीर्ष नाटिका, शरत बाबू की कहानियॉं आदि अनुवाद उस समय की उनकी साहित्यिक गतिविधियों की देन है।

Question 3:

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सब प्रांतों के उग्र और उदार देशभक्‍त, क्रांतिकारी और देश-विदेश के धुरंधर लोग, संवाददाता आदि गाँधी जी को पत्र लिखते और गाँधी जी ‘यंग इंडिया’ के कॉलमों में उनकी चर्चा किया करते। महादेव गाँधी जी की यात्राओं के और प्रतिदिन की उनकी गतिविधियों के साप्‍ताहिक विवरण भेजा करते। इसके अलावा महादेव, देश विदेश के अग्रगण्य समाचार पत्र, जो आँखों में तेल डालकर गाँधी जी की प्रतिदिन की गतिविधियों को देखा करते थे और उन पर बराबर टीका टिप्‍पणी करते रहते थे उनको आड़े हाथ लेने वाले लेख भी समय-समय पर लिखा करते थे। 

बेजोड़ कॉलम, भरपूर चौकसाई, ऊँचे से ऊँचे ब्रिटिश समाचार पत्रों की परंपराओं को अपनाकर चलने का गाँधी जी का आग्रह और कट्टर से कट्टर विरोधियों के साथ भी पूरी-पूरी सत्‍यनिष्‍ठा में से उत्‍पन्‍न होने वाली विनय विवेक युक्‍त विवाद करने की गॉंधी जी की तालीम इन सब गुणों ने तीव्र मतभेदों और विरोधी प्रचार के बीच भी देश विदेश के सारे सामाचार पत्रों की दुनिया में और एंग्‍लो इंडियन समाचार पत्रों के बीच भी व्‍यक्तिगत रूप से एम.डी को सबका लाडला बना दिया था। 

गाँधी जी के पास आने से पहले अपनी विद्यार्थी अवस्‍था में महादेव ने सरकार के अनुवाद विभाग में नौकरी की थी। नरहरि भाई उनके जिगरी दोस्‍त थे। दोनों एक साथ वकालत पढ़े थे। दोनों ने अहमदाबाद में वकालत भी साथ-साथ ही शुरू की थी। इस पेशे में आमतौर पर स्‍याह को सफेद और सफेद को स्‍याह करना होता है। साहित्‍य व संस्‍कार के साथ इनका कोई संबंध नहीं रहता। लेकिन इन दोनों ने तो उसी समय से टैगोर, शरतचन्‍द्र आदि के साहित्‍य को उलटना- पुलटना शुरू कर दिया था। चित्रांगदा कच-देवयानी की कथा पर टैगोर द्वारा रचित विदाई का अभिशाप शीर्ष नाटिका, शरत बाबू की कहानियॉं आदि अनुवाद उस समय की उनकी साहित्यिक गतिविधियों की देन है।

विशेषण-विशेष्‍य का उदाहरण है-

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सब प्रांतों के उग्र और उदार देशभक्‍त, क्रांतिकारी और देश-विदेश के धुरंधर लोग, संवाददाता आदि गाँधी जी को पत्र लिखते और गॉंधी जी ‘यंग इंडिया’ के कॉलमों में उनकी चर्चा किया करते। महादेव गाँधी जी की यात्राओं के और प्रतिदिन की उनकी गतिविधियों के साप्‍ताहिक विवरण भेजा करते। इसके अलावा महादेव, देश विदेश के अग्रगण्य समाचार पत्र, जो आँखों में तेल डालकर गाँधी की प्रतिदिन की गतिविधियों को देखा करते थे और उन पर बराबर टीका टिप्‍पणी करते रहते थे उनको आड़े हाथ लेने वाले लेख भी समय-समय पर लिखा करते थे। बेजोड़ कॉलम, भरपूर चौकसाई, ऊँचे से ऊँचे ब्रिटिश समाचार पत्रों की परंपराओं को अपनाकर चलने का गाँधी जी का आग्रह और कट्टर से कट्टर विरोधियों के साथ भी पूरी-पूरी सत्‍यनिष्‍ठा में से उत्‍पन्‍न होने वाली विनय विवेक युक्‍त विवाद करने की गॉंधी जी की तालीम इन सब गुणों ने तीव्र मतभेदों और विरोधी प्रचार के बीच भी देश विदेश के सारे सामाचार पत्रों की दुनिया में और एंग्‍लो इंडियन समाचार पत्रों के बीच भी व्‍यक्तिगत रूप से एम.डी को सबका लाडला बना दिया था। गाँधी जी के पास आने से पहले अपनी विद्यार्थी अवस्‍था में महादेव ने सरकार के अनुवाद विभाग में नौकरी की थी। नरहरि भाई उनके जिगरी दोस्‍त थे। दोनों एक साथ वकालत पढ़े थे। दोनों ने अहमदाबाद में वकालत भी साथ-साथ ही शुरू की थी। इस पेशे में आमतौर पर स्‍याह को सफेद और सफेद को स्‍याह करना होता है। साहित्‍य व संस्‍कार के साथ इनका कोई संबंध नहीं रहता। लेकिन इन दोनों ने तो उसी समय से टैगोर, शरतचन्‍द्र आदि के साहित्‍य को उलटना- पुलटना शुरू कर दिया था। चित्रांगदा कच-देवयानी की कथा पर टैगोर द्वारा रचित विदाई का अभिशाप शीर्ष नाटिका, शरत बाबू की कहानियॉं आदि अनुवाद उस समय की उनकी साहित्यिक गतिविधियों की देन है।

Question 4:

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सब प्रांतों के उग्र और उदार देशभक्‍त, क्रांतिकारी और देश-विदेश के धुरंधर लोग, संवाददाता आदि गाँधी जी को पत्र लिखते और गाँधी जी ‘यंग इंडिया’ के कॉलमों में उनकी चर्चा किया करते। महादेव गाँधी जी की यात्राओं के और प्रतिदिन की उनकी गतिविधियों के साप्‍ताहिक विवरण भेजा करते। इसके अलावा महादेव, देश विदेश के अग्रगण्य समाचार पत्र, जो आँखों में तेल डालकर गाँधी जी की प्रतिदिन की गतिविधियों को देखा करते थे और उन पर बराबर टीका टिप्‍पणी करते रहते थे उनको आड़े हाथ लेने वाले लेख भी समय-समय पर लिखा करते थे। बेजोड़ कॉलम, भरपूर चौकसाई, ऊँचे से ऊँचे ब्रिटिश समाचार पत्रों की परंपराओं को अपनाकर चलने का गाँधी जी का आग्रह और कट्टर से कट्टर विरोधियों के साथ भी पूरी-पूरी सत्‍यनिष्‍ठा में से उत्‍पन्‍न होने वाली विनय विवेक युक्‍त विवाद करने की गॉंधी जी की तालीम इन सब गुणों ने तीव्र मतभेदों और विरोधी प्रचार के बीच भी देश विदेश के सारे सामाचार पत्रों की दुनिया में और एंग्‍लो इंडियन समाचार पत्रों के बीच भी व्‍यक्तिगत रूप से एम.डी को सबका लाडला बना दिया था। 

गाँधी जी के पास आने से पहले अपनी विद्यार्थी अवस्‍था में महादेव ने सरकार के अनुवाद विभाग में नौकरी की थी। नरहरि भाई उनके जिगरी दोस्‍त थे। दोनों एक साथ वकालत पढ़े थे। दोनों ने अहमदाबाद में वकालत भी साथ-साथ ही शुरू की थी। इस पेशे में आमतौर पर स्‍याह को सफेद और सफेद को स्‍याह करना होता है। साहित्‍य व संस्‍कार के साथ इनका कोई संबंध नहीं रहता। लेकिन इन दोनों ने तो उसी समय से टैगोर, शरतचन्‍द्र आदि के साहित्‍य को उलटना- पुलटना शुरू कर दिया था। चित्रांगदा कच-देवयानी की कथा पर टैगोर द्वारा रचित विदाई का अभिशाप शीर्ष नाटिका, शरत बाबू की कहानियॉं आदि अनुवाद उस समय की उनकी साहित्यिक गतिविधियों की देन है।

‘उदार’ शब्‍द का विलोम है।

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Question 5:

निर्देश- नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्‍नों के सबसे उपयुक्‍त उत्‍तर वाले विकल्‍प को चुनिए: 

सब प्रांतों के उग्र और उदार देशभक्‍त, क्रांतिकारी और देश-विदेश के धुरंधर लोग, संवाददाता आदि गाँधी जी को पत्र लिखते और गाँधी जी ‘यंग इंडिया’ के कॉलमों में उनकी चर्चा किया करते। महादेव गाँधी जी की यात्राओं के और प्रतिदिन की उनकी गतिविधियों के साप्‍ताहिक विवरण भेजा करते। इसके अलावा महादेव, देश विदेश के अग्रगण्य समाचार पत्र, जो आँखों में तेल डालकर गाँधी जी की प्रतिदिन की गतिविधियों को देखा करते थे और उन पर बराबर टीका टिप्‍पणी करते रहते थे उनको आड़े हाथ लेने वाले लेख भी समय-समय पर लिखा करते थे। बेजोड़ कॉलम, भरपूर चौकसाई, ऊँचे से ऊँचे ब्रिटिश समाचार पत्रों की परंपराओं को अपनाकर चलने का गाँधी जी का आग्रह और कट्टर से कट्टर विरोधियों के साथ भी पूरी-पूरी सत्‍यनिष्‍ठा में से उत्‍पन्‍न होने वाली विनय विवेक युक्‍त विवाद करने की गॉंधी जी की तालीम इन सब गुणों ने तीव्र मतभेदों और विरोधी प्रचार के बीच भी देश विदेश के सारे सामाचार पत्रों की दुनिया में और एंग्‍लो इंडियन समाचार पत्रों के बीच भी व्‍यक्तिगत रूप से एम.डी को सबका लाडला बना दिया था। 

गाँधी जी के पास आने से पहले अपनी विद्यार्थी अवस्‍था में महादेव ने सरकार के अनुवाद विभाग में नौकरी की थी। नरहरि भाई उनके जिगरी दोस्‍त थे। दोनों एक साथ वकालत पढ़े थे। दोनों ने अहमदाबाद में वकालत भी साथ-साथ ही शुरू की थी। इस पेशे में आमतौर पर स्‍याह को सफेद और सफेद को स्‍याह करना होता है। साहित्‍य व संस्‍कार के साथ इनका कोई संबंध नहीं रहता। लेकिन इन दोनों ने तो उसी समय से टैगोर, शरतचन्‍द्र आदि के साहित्‍य को उलटना- पुलटना शुरू कर दिया था। चित्रांगदा कच-देवयानी की कथा पर टैगोर द्वारा रचित विदाई का अभिशाप शीर्ष नाटिका, शरत बाबू की कहानियॉं आदि अनुवाद उस समय की उनकी साहित्यिक गतिविधियों की देन है।

‘स्याह’ का समानार्थक शब्‍द नहीं है। 

निर्देश- नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्‍नों के सबसे उपयुक्‍त उत्‍तर वाले विकल्‍प को चुनिए: सब प्रांतों के उग्र और उदार देशभक्‍त, क्रांतिकारी और देश-विदेश के धुरंधर लोग, संवाददाता आदि गाँधी जी को पत्र लिखते और गाँधी जी ‘यंग इंडिया’ के कॉलमों में उनकी चर्चा किया करते। महादेव गाँधी जी की यात्राओं के और प्रतिदिन की उनकी गतिविधियों के साप्‍ताहिक विवरण भेजा करते। इसके अलावा महादेव, देश विदेश के अग्रगण्य समाचार पत्र, जो आँखों में तेल डालकर गाँधी जी की प्रतिदिन की गतिविधियों को देखा करते थे और उन पर बराबर टीका टिप्‍पणी करते रहते थे उनको आड़े हाथ लेने वाले लेख भी समय-समय पर लिखा करते थे। बेजोड़ कॉलम, भरपूर चौकसाई, ऊँचे से ऊँचे ब्रिटिश समाचार पत्रों की परंपराओं को अपनाकर चलने का गाँधी जी का आग्रह और कट्टर से कट्टर विरोधियों के साथ भी पूरी-पूरी सत्‍यनिष्‍ठा में से उत्‍पन्‍न होने वाली विनय विवेक युक्‍त विवाद करने की गॉंधी जी की तालीम इन सब गुणों ने तीव्र मतभेदों और विरोधी प्रचार के बीच भी देश विदेश के सारे सामाचार पत्रों की दुनिया में और एंग्‍लो इंडियन समाचार पत्रों के बीच भी व्‍यक्तिगत रूप से एम.डी को सबका लाडला बना दिया था। गाँधी जी के पास आने से पहले अपनी विद्यार्थी अवस्‍था में महादेव ने सरकार के अनुवाद विभाग में नौकरी की थी। नरहरि भाई उनके जिगरी दोस्‍त थे। दोनों एक साथ वकालत पढ़े थे। दोनों ने अहमदाबाद में वकालत भी साथ-साथ ही शुरू की थी। इस पेशे में आमतौर पर स्‍याह को सफेद और सफेद को स्‍याह करना होता है। साहित्‍य व संस्‍कार के साथ इनका कोई संबंध नहीं रहता। लेकिन इन दोनों ने तो उसी समय से टैगोर, शरतचन्‍द्र आदि के साहित्‍य को उलटना- पुलटना शुरू कर दिया था। चित्रांगदा कच-देवयानी की कथा पर टैगोर द्वारा रचित विदाई का अभिशाप शीर्ष नाटिका, शरत बाबू की कहानियॉं आदि अनुवाद उस समय की उनकी साहित्यिक गतिविधियों की देन है।

Question 6:

संस्कृति और सभ्यता-- यह दो शब्द है और उनके अर्थ भी अलग-अलग है। सभ्यता मनुष्य का वह गुण है जिससे वह अपनी बाहरी तरक्की करता है। संस्कृति वह गुण है जिससे वह अपने भीतर उन्नति करता है, करुणा, प्रेम और परोपकार सीखता है। आज रेलगाड़ी, मोटर और हवाई जहाज, लंबी चौड़ी सड़कें और बड़े-बड़े मकान, अच्छा भोजन और अच्छी पोशाक, यह सभ्यता की पहचान है और जिस देश में इनकी जितनी अधिकता है उस देश को हम उतना ही शब्द सभ्य मानते हैं। मगर संस्कृति उन सब से कहीं बड़ी चीज है वह मोटर नहीं, मोटर बनाने की कला है मकान नहीं, मकान बनाने की विधि है संस्कृति धन नहीं, गुण हैं। संस्कृति ठाठ बाट नहीं, विनय और विनम्रता हैं। एक कहावत है कि सभ्यता वह चीज है जो हमारे पास है, लेकिन संस्कृति वह गुण हैं, जो हममें छिपा हुआ हैं। हमारे पास घर होता है, कपड़े-लत्ते  होते हैं, मगर यह सारी चीजें हमारी सभ्यता के सबूत है जबकि संस्कृति इतने मोटे तौर पर दिखाई नहीं देती और बहुत ही सूक्ष्म और महान चीज है।

और वह हमारी हर पसंद, हर हर आदत में छुपी रहती है।  मकान बनाना सभ्यता का काम है ,लेकिन हम मकान का कौन सा नक्शा पसंद करते हैं-- यह हमारी संस्कृति बतलाती है।  आदमी के भीतर काम ,क्रोध, लोभ, मद, मोह और अक्सर के यह 6 विकार प्रकृत के दिए हुए हैं, मगर यह विकार अगर बेरोग छोड़ दिए जाए, तो आदमी इतना गिर जाए की उसमें और जानवर में कोई भेद नहीं रह जाए| इसीलिए आदमी इन विकारों पर रोक लगाता है।  इन दुर्गुणों पर जो आदमी जितना ज्यादा काबू कर पाता है, उसने संस्कृति भी उतनी ही अच्छी समझी जाती है।  संस्कृति का स्वभाव है, की वह आदान-प्रदान से बढ़ती है।  जब 2 देशों या जातियों के लोग आपस में मिलते हैं तब उन दोनों की संस्कृतियों एक दूसरे को प्रभावित करती है इसीलिए संस्कृति की दृष्टि से वह जाति या वह देश बहुत ही धनी समझा जाता है जिसने ज्यादा से ज्यादा देशों या जातियों की संस्कृतियों से लाभ उठाकर अपनी संस्कृति का विकास किया हो।

तुम क्या कर रहे हो?

संस्कृति और सभ्यता-- यह दो शब्द है और उनके अर्थ भी अलग-अलग है। सभ्यता मनुष्य का वह गुण है जिससे वह अपनी बाहरी तरक्की करता है। संस्कृति वह गुण है जिससे वह अपने भीतर उन्नति करता है, करुणा, प्रेम और परोपकार सीखता है। आज रेलगाड़ी, मोटर और हवाई जहाज, लंबी चौड़ी सड़कें और बड़े-बड़े मकान, अच्छा भोजन और अच्छी पोशाक, यह सभ्यता की पहचान है और जिस देश में इनकी जितनी अधिकता है उस देश को हम उतना ही शब्द सभ्य मानते हैं। मगर संस्कृति उन सब से कहीं बड़ी चीज है वह मोटर नहीं, मोटर बनाने की कला है मकान नहीं, मकान बनाने की विधि है संस्कृति धन नहीं, गुण हैं। संस्कृति ठाठ बाट नहीं, विनय और विनम्रता हैं। एक कहावत है कि सभ्यता वह चीज है जो हमारे पास है, लेकिन संस्कृति वह गुण हैं, जो हममें छिपा हुआ हैं। हमारे पास घर होता है, कपड़े-लत्ते होते हैं, मगर यह सारी चीजें हमारी सभ्यता के सबूत है जबकि संस्कृति इतने मोटे तौर पर दिखाई नहीं देती और बहुत ही सूक्ष्म और महान चीज है। और वह हमारी हर पसंद, हर हर आदत में छुपी रहती है। मकान बनाना सभ्यता का काम है ,लेकिन हम मकान का कौन सा नक्शा पसंद करते हैं-- यह हमारी संस्कृति बतलाती है। आदमी के भीतर काम ,क्रोध, लोभ, मद, मोह और अक्सर के यह 6 विकार प्रकृत के दिए हुए हैं, मगर यह विकार अगर बेरोग छोड़ दिए जाए, तो आदमी इतना गिर जाए की उसमें और जानवर में कोई भेद नहीं रह जाए| इसीलिए आदमी इन विकारों पर रोक लगाता है। इन दुर्गुणों पर जो आदमी जितना ज्यादा काबू कर पाता है, उसने संस्कृति भी उतनी ही अच्छी समझी जाती है। संस्कृति का स्वभाव है, की वह आदान-प्रदान से बढ़ती है। जब 2 देशों या जातियों के लोग आपस में मिलते हैं तब उन दोनों की संस्कृतियों एक दूसरे को प्रभावित करती है इसीलिए संस्कृति की दृष्टि से वह जाति या वह देश बहुत ही धनी समझा जाता है जिसने ज्यादा से ज्यादा देशों या जातियों की संस्कृतियों से लाभ उठाकर अपनी संस्कृति का विकास किया हो।

Question 7:

संस्कृति और सभ्यता-- यह दो शब्द है और उनके अर्थ भी अलग-अलग है। सभ्यता मनुष्य का वह गुण है जिससे वह अपनी बाहरी तरक्की करता है। संस्कृति वह गुण है जिससे वह अपने भीतर उन्नति करता है, करुणा, प्रेम और परोपकार सीखता है। आज रेलगाड़ी, मोटर और हवाई जहाज, लंबी चौड़ी सड़कें और बड़े-बड़े मकान, अच्छा भोजन और अच्छी पोशाक, यह सभ्यता की पहचान है और जिस देश में इनकी जितनी अधिकता है उस देश को हम उतना ही शब्द सभ्य मानते हैं। मगर संस्कृति उन सब से कहीं बड़ी चीज है वह मोटर नहीं, मोटर बनाने की कला है मकान नहीं, मकान बनाने की विधि है संस्कृति धन नहीं, गुण हैं। संस्कृति ठाठ बाट नहीं, विनय और विनम्रता हैं। एक कहावत है कि सभ्यता वह चीज है जो हमारे पास है, लेकिन संस्कृति वह गुण हैं, जो हममें छिपा हुआ हैं। हमारे पास घर होता है, कपड़े-लत्ते  होते हैं, मगर यह सारी चीजें हमारी सभ्यता के सबूत है जबकि संस्कृति इतने मोटे तौर पर दिखाई नहीं देती और बहुत ही सूक्ष्म और महान चीज है।

और वह हमारी हर पसंद, हर हर आदत में छुपी रहती है।  मकान बनाना सभ्यता का काम है ,लेकिन हम मकान का कौन सा नक्शा पसंद करते हैं-- यह हमारी संस्कृति बतलाती है।  आदमी के भीतर काम ,क्रोध, लोभ, मद, मोह और अक्सर के यह 6 विकार प्रकृत के दिए हुए हैं, मगर यह विकार अगर बेरोग छोड़ दिए जाए, तो आदमी इतना गिर जाए की उसमें और जानवर में कोई भेद नहीं रह जाए| इसीलिए आदमी इन विकारों पर रोक लगाता है।  इन दुर्गुणों पर जो आदमी जितना ज्यादा काबू कर पाता है, उसने संस्कृति भी उतनी ही अच्छी समझी जाती है।  संस्कृति का स्वभाव है, की वह आदान-प्रदान से बढ़ती है।  जब 2 देशों या जातियों के लोग आपस में मिलते हैं तब उन दोनों की संस्कृतियों एक दूसरे को प्रभावित करती है इसीलिए संस्कृति की दृष्टि से वह जाति या वह देश बहुत ही धनी समझा जाता है जिसने ज्यादा से ज्यादा देशों या जातियों की संस्कृतियों से लाभ उठाकर अपनी संस्कृति का विकास किया हो।

संस्कृति का मूल स्वभाव है कि वह-

संस्कृति और सभ्यता-- यह दो शब्द है और उनके अर्थ भी अलग-अलग है। सभ्यता मनुष्य का वह गुण है जिससे वह अपनी बाहरी तरक्की करता है। संस्कृति वह गुण है जिससे वह अपने भीतर उन्नति करता है, करुणा, प्रेम और परोपकार सीखता है। आज रेलगाड़ी, मोटर और हवाई जहाज, लंबी चौड़ी सड़कें और बड़े-बड़े मकान, अच्छा भोजन और अच्छी पोशाक, यह सभ्यता की पहचान है और जिस देश में इनकी जितनी अधिकता है उस देश को हम उतना ही शब्द सभ्य मानते हैं। मगर संस्कृति उन सब से कहीं बड़ी चीज है वह मोटर नहीं, मोटर बनाने की कला है मकान नहीं, मकान बनाने की विधि है संस्कृति धन नहीं, गुण हैं। संस्कृति ठाठ बाट नहीं, विनय और विनम्रता हैं। एक कहावत है कि सभ्यता वह चीज है जो हमारे पास है, लेकिन संस्कृति वह गुण हैं, जो हममें छिपा हुआ हैं। हमारे पास घर होता है, कपड़े-लत्ते होते हैं, मगर यह सारी चीजें हमारी सभ्यता के सबूत है जबकि संस्कृति इतने मोटे तौर पर दिखाई नहीं देती और बहुत ही सूक्ष्म और महान चीज है। और वह हमारी हर पसंद, हर हर आदत में छुपी रहती है। मकान बनाना सभ्यता का काम है ,लेकिन हम मकान का कौन सा नक्शा पसंद करते हैं-- यह हमारी संस्कृति बतलाती है। आदमी के भीतर काम ,क्रोध, लोभ, मद, मोह और अक्सर के यह 6 विकार प्रकृत के दिए हुए हैं, मगर यह विकार अगर बेरोग छोड़ दिए जाए, तो आदमी इतना गिर जाए की उसमें और जानवर में कोई भेद नहीं रह जाए| इसीलिए आदमी इन विकारों पर रोक लगाता है। इन दुर्गुणों पर जो आदमी जितना ज्यादा काबू कर पाता है, उसने संस्कृति भी उतनी ही अच्छी समझी जाती है। संस्कृति का स्वभाव है, की वह आदान-प्रदान से बढ़ती है। जब 2 देशों या जातियों के लोग आपस में मिलते हैं तब उन दोनों की संस्कृतियों एक दूसरे को प्रभावित करती है इसीलिए संस्कृति की दृष्टि से वह जाति या वह देश बहुत ही धनी समझा जाता है जिसने ज्यादा से ज्यादा देशों या जातियों की संस्कृतियों से लाभ उठाकर अपनी संस्कृति का विकास किया हो।

Question 8:

संस्कृति और सभ्यता-- यह दो शब्द है और उनके अर्थ भी अलग-अलग है। सभ्यता मनुष्य का वह गुण है जिससे वह अपनी बाहरी तरक्की करता है। संस्कृति वह गुण है जिससे वह अपने भीतर उन्नति करता है, करुणा, प्रेम और परोपकार सीखता है। आज रेलगाड़ी, मोटर और हवाई जहाज, लंबी चौड़ी सड़कें और बड़े-बड़े मकान, अच्छा भोजन और अच्छी पोशाक, यह सभ्यता की पहचान है और जिस देश में इनकी जितनी अधिकता है उस देश को हम उतना ही शब्द सभ्य मानते हैं| मगर संस्कृति उन सब से कहीं बड़ी चीज है वह मोटर नहीं, मोटर बनाने की कला है मकान नहीं, मकान बनाने की विधि है संस्कृति धन नहीं, गुण हैं। संस्कृति ठाठ बाट नहीं, विनय और विनम्रता हैं। एक कहावत है कि सभ्यता वह चीज है जो हमारे पास है, लेकिन संस्कृति वह गुण हैं, जो हममें छिपा हुआ हैं। हमारे पास घर होता है, कपड़े-लत्ते  होते हैं, मगर यह सारी चीजें हमारी सभ्यता के सबूत है जबकि संस्कृति इतने मोटे तौर पर दिखाई नहीं देती और बहुत ही सूक्ष्म और महान चीज है।

और वह हमारी हर पसंद, हर हर आदत में छुपी रहती है।  मकान बनाना सभ्यता का काम है ,लेकिन हम मकान का कौन सा नक्शा पसंद करते हैं-- यह हमारी संस्कृति बतलाती है।  आदमी के भीतर काम ,क्रोध, लोभ, मद, मोह और अक्सर के यह 6 विकार प्रकृत के दिए हुए हैं, मगर यह विकार अगर बेरोग छोड़ दिए जाए, तो आदमी इतना गिर जाए की उसमें और जानवर में कोई भेद नहीं रह जाए| इसीलिए आदमी इन विकारों पर रोक लगाता है।  इन दुर्गुणों पर जो आदमी जितना ज्यादा काबू कर पाता है, उसने संस्कृति भी उतनी ही अच्छी समझी जाती है।  संस्कृति का स्वभाव है, की वह आदान-प्रदान से बढ़ती है।  जब 2 देशों या जातियों के लोग आपस में मिलते हैं तब उन दोनों की संस्कृतियों एक दूसरे को प्रभावित करती है इसीलिए संस्कृति की दृष्टि से वह जाति या वह देश बहुत ही धनी समझा जाता है जिसने ज्यादा से ज्यादा देशों या जातियों की संस्कृतियों से लाभ उठाकर अपनी संस्कृति का विकास किया हो।

संस्कृति सभ्यता से इस रूप में भिन्न है की संस्कृति-

संस्कृति और सभ्यता-- यह दो शब्द है और उनके अर्थ भी अलग-अलग है। सभ्यता मनुष्य का वह गुण है जिससे वह अपनी बाहरी तरक्की करता है। संस्कृति वह गुण है जिससे वह अपने भीतर उन्नति करता है, करुणा, प्रेम और परोपकार सीखता है। आज रेलगाड़ी, मोटर और हवाई जहाज, लंबी चौड़ी सड़कें और बड़े-बड़े मकान, अच्छा भोजन और अच्छी पोशाक, यह सभ्यता की पहचान है और जिस देश में इनकी जितनी अधिकता है उस देश को हम उतना ही शब्द सभ्य मानते हैं| मगर संस्कृति उन सब से कहीं बड़ी चीज है वह मोटर नहीं, मोटर बनाने की कला है मकान नहीं, मकान बनाने की विधि है संस्कृति धन नहीं, गुण हैं। संस्कृति ठाठ बाट नहीं, विनय और विनम्रता हैं। एक कहावत है कि सभ्यता वह चीज है जो हमारे पास है, लेकिन संस्कृति वह गुण हैं, जो हममें छिपा हुआ हैं। हमारे पास घर होता है, कपड़े-लत्ते होते हैं, मगर यह सारी चीजें हमारी सभ्यता के सबूत है जबकि संस्कृति इतने मोटे तौर पर दिखाई नहीं देती और बहुत ही सूक्ष्म और महान चीज है। और वह हमारी हर पसंद, हर हर आदत में छुपी रहती है। मकान बनाना सभ्यता का काम है ,लेकिन हम मकान का कौन सा नक्शा पसंद करते हैं-- यह हमारी संस्कृति बतलाती है। आदमी के भीतर काम ,क्रोध, लोभ, मद, मोह और अक्सर के यह 6 विकार प्रकृत के दिए हुए हैं, मगर यह विकार अगर बेरोग छोड़ दिए जाए, तो आदमी इतना गिर जाए की उसमें और जानवर में कोई भेद नहीं रह जाए| इसीलिए आदमी इन विकारों पर रोक लगाता है। इन दुर्गुणों पर जो आदमी जितना ज्यादा काबू कर पाता है, उसने संस्कृति भी उतनी ही अच्छी समझी जाती है। संस्कृति का स्वभाव है, की वह आदान-प्रदान से बढ़ती है। जब 2 देशों या जातियों के लोग आपस में मिलते हैं तब उन दोनों की संस्कृतियों एक दूसरे को प्रभावित करती है इसीलिए संस्कृति की दृष्टि से वह जाति या वह देश बहुत ही धनी समझा जाता है जिसने ज्यादा से ज्यादा देशों या जातियों की संस्कृतियों से लाभ उठाकर अपनी संस्कृति का विकास किया हो।

Question 9:

संस्कृति और सभ्यता-- यह दो शब्द है और उनके अर्थ भी अलग-अलग है। सभ्यता मनुष्य का वह गुण है जिससे वह अपनी बाहरी तरक्की करता है।  संस्कृति वह गुण है जिससे वह अपने भीतर उन्नति करता है, करुणा, प्रेम और परोपकार सीखता है। आज रेलगाड़ी, मोटर और हवाई जहाज, लंबी चौड़ी सड़कें और बड़े-बड़े मकान, अच्छा भोजन और अच्छी पोशाक, यह सभ्यता की पहचान है और जिस देश में इनकी जितनी अधिकता है उस देश को हम उतना ही शब्द सभ्य मानते हैं मगर संस्कृति उन सब से कहीं बड़ी चीज है वह मोटर नहीं, मोटर बनाने की कला है मकान नहीं, मकान बनाने की विधि है संस्कृति धन नहीं, गुण हैं| संस्कृति ठाठ बाट नहीं, विनय और विनम्रता हैं| एक कहावत है कि सभ्यता वह चीज है जो हमारे पास है, लेकिन संस्कृति वह गुण है जो हममें छिपा हुआ हैं हमारे पास घर होता है, कपड़े-लत्ते होते हैं, मगर यह सारी चीजें हमारी सभ्यता के सबूत है जबकि संस्कृति इतने मोटे तौर पर दिखाई नहीं देती और बहुत ही सूक्ष्म और महान चीज है। 

और वह हमारी हर पसंद, हर हर आदत में छुपी रहती है मकान बनाना सभ्यता का काम है ,लेकिन हम मकान का कौन सा नक्शा पसंद करते हैं-- यह हमारी संस्कृति बतलाती है। आदमी के भीतर काम ,क्रोध, लोभ, मद, मोह और अक्सर के यह 6 विकार प्रकृत के दिए हुए हैं, मगर यह विकार अगर बेरोग छोड़ दिए जाए, तो आदमी इतना गिर जाए की उसमें और जानवर में कोई भेद नहीं रह जाए| इसीलिए आदमी इन विकारों पर रोक लगाता है, इन दुर्गुणों पर जो आदमी जितना ज्यादा काबू कर पाता है, उसने संस्कृति भी उतनी ही अच्छी समझी जाती है।  संस्कृति का स्वभाव है, की वह आदान-प्रदान से बढ़ती है।  जब 2 देशों या जातियों के लोग आपस में मिलते हैं तब उन दोनों की संस्कृतियों एक दूसरे को प्रभावित करती है।  इसीलिए संस्कृति की दृष्टि से वह जाति या वह देश बहुत ही धनी समझा जाता है जिसने ज्यादा से ज्यादा देशों या जातियों की संस्कृतियों से लाभ उठाकर अपनी संस्कृति का विकास किया हो।

संस्कृति का अभिप्राय है?

संस्कृति और सभ्यता-- यह दो शब्द है और उनके अर्थ भी अलग-अलग है। सभ्यता मनुष्य का वह गुण है जिससे वह अपनी बाहरी तरक्की करता है। संस्कृति वह गुण है जिससे वह अपने भीतर उन्नति करता है, करुणा, प्रेम और परोपकार सीखता है। आज रेलगाड़ी, मोटर और हवाई जहाज, लंबी चौड़ी सड़कें और बड़े-बड़े मकान, अच्छा भोजन और अच्छी पोशाक, यह सभ्यता की पहचान है और जिस देश में इनकी जितनी अधिकता है उस देश को हम उतना ही शब्द सभ्य मानते हैं मगर संस्कृति उन सब से कहीं बड़ी चीज है वह मोटर नहीं, मोटर बनाने की कला है मकान नहीं, मकान बनाने की विधि है संस्कृति धन नहीं, गुण हैं| संस्कृति ठाठ बाट नहीं, विनय और विनम्रता हैं| एक कहावत है कि सभ्यता वह चीज है जो हमारे पास है, लेकिन संस्कृति वह गुण है जो हममें छिपा हुआ हैं हमारे पास घर होता है, कपड़े-लत्ते होते हैं, मगर यह सारी चीजें हमारी सभ्यता के सबूत है जबकि संस्कृति इतने मोटे तौर पर दिखाई नहीं देती और बहुत ही सूक्ष्म और महान चीज है। और वह हमारी हर पसंद, हर हर आदत में छुपी रहती है मकान बनाना सभ्यता का काम है ,लेकिन हम मकान का कौन सा नक्शा पसंद करते हैं-- यह हमारी संस्कृति बतलाती है। आदमी के भीतर काम ,क्रोध, लोभ, मद, मोह और अक्सर के यह 6 विकार प्रकृत के दिए हुए हैं, मगर यह विकार अगर बेरोग छोड़ दिए जाए, तो आदमी इतना गिर जाए की उसमें और जानवर में कोई भेद नहीं रह जाए| इसीलिए आदमी इन विकारों पर रोक लगाता है, इन दुर्गुणों पर जो आदमी जितना ज्यादा काबू कर पाता है, उसने संस्कृति भी उतनी ही अच्छी समझी जाती है। संस्कृति का स्वभाव है, की वह आदान-प्रदान से बढ़ती है। जब 2 देशों या जातियों के लोग आपस में मिलते हैं तब उन दोनों की संस्कृतियों एक दूसरे को प्रभावित करती है। इसीलिए संस्कृति की दृष्टि से वह जाति या वह देश बहुत ही धनी समझा जाता है जिसने ज्यादा से ज्यादा देशों या जातियों की संस्कृतियों से लाभ उठाकर अपनी संस्कृति का विकास किया हो।

Question 10:

संस्कृति और सभ्यता-- यह दो शब्द है और उनके अर्थ भी अलग-अलग है| सभ्यता मनुष्य का वह गुण है जिससे वह अपनी बाहरी तरक्की करता है| संस्कृति वह गुण है जिससे वह अपने भीतर उन्नति करता है, करुणा, प्रेम और परोपकार सीखता है| आज रेलगाड़ी, मोटर और हवाई जहाज, लंबी चौड़ी सड़कें और बड़े-बड़े मकान, अच्छा भोजन और अच्छी पोशाक, यह सभ्यता की पहचान है और जिस देश में इनकी जितनी अधिकता है उस देश को हम उतना ही शब्द सभ्य मानते हैं| मगर संस्कृति उन सब से कहीं बड़ी चीज है वह मोटर नहीं, मोटर बनाने की कला है मकान नहीं, मकान बनाने की विधि है संस्कृति धन नहीं, गुण हैं| संस्कृति ठाठ बाट नहीं, विनय और विनम्रता हैं| एक कहावत है कि सभ्यता वह चीज है जो हमारे पास है, लेकिन संस्कृति वह गुण हैं| है जो हममें छिपा हुआ हैं| हमारे पास घर होता है, कपड़े-लते होते हैं, मगर यह सारी चीजें हमारी सभ्यता के सबूत है जबकि संस्कृति इतने मोटे तौर पर दिखाई नहीं देती और बहुत ही सूक्ष्म और महान चीज है|

और वह हमारी हर पसंद, हर हर आदत में छुपी रहती है| मकान बनाना सभ्यता का काम है ,लेकिन हम मकान का कौन सा नक्शा पसंद करते हैं-- यह हमारी संस्कृति बतलाती है| आदमी के भीतर काम ,क्रोध, लोभ, मद, मोह और अक्सर के यह 6 विकार प्रकृत के दिए हुए हैं, मगर यह विकार अगर बेरोग छोड़ दिए जाए, तो आदमी इतना गिर जाए की उसमें और जानवर में कोई भेद नहीं रह जाए| इसीलिए आदमी इन विकारों पर रोक लगाता है| इन दुर्गुणों पर जो आदमी जितना ज्यादा काबू कर पाता है, उसने संस्कृति भी उतनी ही अच्छी समझी जाती है| संस्कृति का स्वभाव है, की वह आदान-प्रदान से बढ़ती है| जब 2 देशों या जातियों के लोग आपस में मिलते हैं तब उन दोनों की संस्कृतियों एक दूसरे को प्रभावित करती है इसीलिए संस्कृति की दृष्टि से वह जाति या वह देश बहुत ही धनी समझा जाता है जिसने ज्यादा से ज्यादा देशों या जातियों की संस्कृतियों से लाभ उठाकर अपनी संस्कृति का विकास किया हो

सभ्यता का अर्थ है?

संस्कृति और सभ्यता-- यह दो शब्द है और उनके अर्थ भी अलग-अलग है| सभ्यता मनुष्य का वह गुण है जिससे वह अपनी बाहरी तरक्की करता है| संस्कृति वह गुण है जिससे वह अपने भीतर उन्नति करता है, करुणा, प्रेम और परोपकार सीखता है| आज रेलगाड़ी, मोटर और हवाई जहाज, लंबी चौड़ी सड़कें और बड़े-बड़े मकान, अच्छा भोजन और अच्छी पोशाक, यह सभ्यता की पहचान है और जिस देश में इनकी जितनी अधिकता है उस देश को हम उतना ही शब्द सभ्य मानते हैं| मगर संस्कृति उन सब से कहीं बड़ी चीज है वह मोटर नहीं, मोटर बनाने की कला है मकान नहीं, मकान बनाने की विधि है संस्कृति धन नहीं, गुण हैं| संस्कृति ठाठ बाट नहीं, विनय और विनम्रता हैं| एक कहावत है कि सभ्यता वह चीज है जो हमारे पास है, लेकिन संस्कृति वह गुण हैं| है जो हममें छिपा हुआ हैं| हमारे पास घर होता है, कपड़े-लते होते हैं, मगर यह सारी चीजें हमारी सभ्यता के सबूत है जबकि संस्कृति इतने मोटे तौर पर दिखाई नहीं देती और बहुत ही सूक्ष्म और महान चीज है|
और वह हमारी हर पसंद, हर हर आदत में छुपी रहती है| मकान बनाना सभ्यता का काम है ,लेकिन हम मकान का कौन सा नक्शा पसंद करते हैं-- यह हमारी संस्कृति बतलाती है| आदमी के भीतर काम ,क्रोध, लोभ, मद, मोह और अक्सर के यह 6 विकार प्रकृत के दिए हुए हैं, मगर यह विकार अगर बेरोग छोड़ दिए जाए, तो आदमी इतना गिर जाए की उसमें और जानवर में कोई भेद नहीं रह जाए| इसीलिए आदमी इन विकारों पर रोक लगाता है| इन दुर्गुणों पर जो आदमी जितना ज्यादा काबू कर पाता है, उसने संस्कृति भी उतनी ही अच्छी समझी जाती है| संस्कृति का स्वभाव है, की वह आदान-प्रदान से बढ़ती है| जब 2 देशों या जातियों के लोग आपस में मिलते हैं तब उन दोनों की संस्कृतियों एक दूसरे को प्रभावित करती है इसीलिए संस्कृति की दृष्टि से वह जाति या वह देश बहुत ही धनी समझा जाता है जिसने ज्यादा से ज्यादा देशों या जातियों की संस्कृतियों से लाभ उठाकर अपनी संस्कृति का विकास किया हो