Question 1:
निर्देश- दिए गए पधांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए:
बीती नहीं यदपि अभी तक है निराशा की निशा-
है किन्तु आशा भी कि होगी दिप्त फिर प्राची दिशा-
महिमा तुम्हारी ही जगत में धन्य आशे ! धन्य है,
देखा नहीं कोई कहीं अवलम्ब तुम सा धन्य है।
आगे तुम्हारे ही भरोसे जी रहे हैं हम सभी,
सब कुछ गया पर हाय रे ! तुमको न छोड़ेंगें कभी।
आगे तुम्हारे ही सहारे टिक रही हैं यह माही,
धोखा न दीजो अंत में, विनती हमारी है यही।
कवि ने आशा का ध्न्य क्यों कहा है ? क्योंकि-
निर्देश- दिए गए पधांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए:
बीती नहीं यदपि अभी तक है निराशा की निशा-
है किन्तु आशा भी कि होगी दिप्त फिर प्राची दिशा-
महिमा तुम्हारी ही जगत में धन्य आशे ! धन्य है,
देखा नहीं कोई कहीं अवलम्ब तुम सा धन्य है।
आगे तुम्हारे ही भरोसे जी रहे हैं हम सभी,
सब कुछ गया पर हाय रे ! तुमको न छोड़ेंगें कभी।
आगे तुम्हारे ही सहारे टिक रही हैं यह माही,
धोखा न दीजो अंत में, विनती हमारी है यही।
कवि ने आशा का ध्न्य क्यों कहा है ? क्योंकि-
Question 2:
निर्देश- दिए गए पधांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए:
बीती नहीं यदपि अभी तक है निराशा की निशा-
है किन्तु आशा भी कि होगी दिप्त फिर प्राची दिशा-
महिमा तुम्हारी ही जगत में धन्य आशे ! धन्य है,
देखा नहीं कोई कहीं अवलम्ब तुम सा धन्य है।
आगे तुम्हारे ही भरोसे जी रहे हैं हम सभी,
सब कुछ गया पर हाय रे ! तुमको न छोड़ेंगें कभी।
आगे तुम्हारे ही सहारे टिक रही हैं यह माही,
धोखा न दीजो अंत में, विनती हमारी है यही।
‘निराश’ में उपसर्ग और मूल शब्द हैं-
निर्देश- दिए गए पधांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए:
बीती नहीं यदपि अभी तक है निराशा की निशा-
है किन्तु आशा भी कि होगी दिप्त फिर प्राची दिशा-
महिमा तुम्हारी ही जगत में धन्य आशे ! धन्य है,
देखा नहीं कोई कहीं अवलम्ब तुम सा धन्य है।
आगे तुम्हारे ही भरोसे जी रहे हैं हम सभी,
सब कुछ गया पर हाय रे ! तुमको न छोड़ेंगें कभी।
आगे तुम्हारे ही सहारे टिक रही हैं यह माही,
धोखा न दीजो अंत में, विनती हमारी है यही।
‘निराश’ में उपसर्ग और मूल शब्द हैं-
Question 3:
निर्देश- दिए गए पधांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए:
बीती नहीं यदपि अभी तक है निराशा की निशा-
है किन्तु आशा भी कि होगी दिप्त फिर प्राची दिशा-
महिमा तुम्हारी ही जगत में धन्य आशे ! धन्य है,
देखा नहीं कोई कहीं अवलम्ब तुम सा धन्य है।
आगे तुम्हारे ही भरोसे जी रहे हैं हम सभी,
सब कुछ गया पर हाय रे ! तुमको न छोड़ेंगें कभी।
आगे तुम्हारे ही सहारे टिक रही हैं यह माही,
धोखा न दीजो अंत में, विनती हमारी है यही।
‘प्राची’ का अर्थ है-
निर्देश- दिए गए पधांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए:
बीती नहीं यदपि अभी तक है निराशा की निशा-
है किन्तु आशा भी कि होगी दिप्त फिर प्राची दिशा-
महिमा तुम्हारी ही जगत में धन्य आशे ! धन्य है,
देखा नहीं कोई कहीं अवलम्ब तुम सा धन्य है।
आगे तुम्हारे ही भरोसे जी रहे हैं हम सभी,
सब कुछ गया पर हाय रे ! तुमको न छोड़ेंगें कभी।
आगे तुम्हारे ही सहारे टिक रही हैं यह माही,
धोखा न दीजो अंत में, विनती हमारी है यही।
‘प्राची’ का अर्थ है-