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आधुनिक हिंदी गद्य का जन्मदाता किसे कहा जाता है?
आधुनिक हिंदी गद्य का जन्मदाता भारतेन्दु को कहा जाता है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु -
अन्य विकल्प -
अमीर खुसरो -
गंग कवि -
जयशंकर प्रसाद -
हिंदी साहित्य के इतिहास के किस काल को वीरगाथा काल भी कहा गया है?
हिंदी साहित्य के इतिहास के आदिकाल को वीरगाथा काल भी कहा गया है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु -
अन्य विकल्प -
अतिरिक्त बिंदु -
निम्नलिखित में कौन ज्ञानाश्रयी शाखा के कवि हैं?
कबीरदास ज्ञानाश्रयी शाखा के कवि हैं।
महत्त्वपूर्ण बिंदु -
अतिरिक्त बिंदु -
मैधिलीशरण गुप्त का संबंध आधुनिक काल के किस युग से है?
मैथिलीशरण गुप्त आधुनिक काल के द्विवेदी युग से हैं।
महत्त्वपूर्ण बिंदु -
अतिरिक्त बिंदु -
उत्तर मध्य काल को अन्य किस नाम से जाना जाता है?
मध्य काल को रीतिकाल नाम से जाना जाता है।
नामकरण की दृष्टि से उत्तर मध्यकाल कुछ विवादास्पद है इसे -
महत्वपूर्ण बिन्दु
रीतिकालीन कवियों को 3 वर्गों में बांटा गया है-
आदिकाल का समय माना जाता है
आदिकाल का समय 650 ईसवी से 1350 ईसवी के बीच माना जाता है।
आदिकाल में मुख्यता दो शैलियां मिलती हैं -
डिंगल शैली
डिंगल शैली में कर्कश शब्दावली का प्रयोग होता है।
पिंगल शैली
पिंगल शैली में कर्णप्रिय शब्दावली का प्रयोग होता है।
आदिकाल में आल्हा छंद बहुत प्रचलित था, यह वीर रस का बड़ा ही लोकप्रिय उदाहरण था, इसमें 31 मात्राएं थीं।
महत्वपूर्ण बिन्दु
आदिकाल को अलग-अलग साहित्यकारों ने अलग-अलग नाम दिया जिसमें से प्रमुख है -
हिंदी साहित्य के इतिहास के प्रथम काल के नामकरण के रूप में आदिकाल नाम ही योग्य व सार्थक है, क्योंकि इस नाम से उस व्यापक पुष्ठभूमि का बोध होता है, जिस पर परवर्ती साहित्य खड़ा है। भाषा की दृष्टि से इस काल के साहित्य में हिंदी के प्रारंभिक रूप का पता चलता है तो भाव की दृष्टि से भक्तिकाल से लेकर आधुनिक काल तक की सभी प्रमुख प्रवृत्तियों के आदिम बीज इसमें खोजे जा सकते हैं।
हिन्दी साहित्य के आरंभिक काल को आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने क्या कहा है ?
हिंदी साहित्य का प्रथम काल आदिकाल है जिसका नामकरण आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा दिया गया तथा इसकी समय सीमा संवत 1050 से संवत 1375 तक है जो आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा निर्धारित की गई। हिंदी साहित्य की शुरुआत के साथ-साथ यह काल नवीन चेतना एवं ओजस्विता का काल है।
महत्वपूर्ण बिन्दु :
आदि काल/वीरगाथा काल :
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने आदिकाल को वीरगाथा काल नाम दिया तथा इसकी समय सीमा संवत् 1050 (सन् 993 ई.) से संवत् 1375 (सन् 1318 ई.) स्वीकार की। उन्होंने इस नामकरण के पीछे यह तर्क स्थापित किया कि यह समय दरबारी साहित्य का समय था। प्रत्येक राजा महाराजा के दरबार में आश्रय प्राप्त कवियों ने अपने आश्रय दाताओं की पराक्रम पूर्ण गाथाओं तथा चरित्रों का वर्णन किया है।शुक्ल ने जिन 12 रचनाओं के आधार पर इस काल का नामकरण किया उनका परिचय इस प्रकार है-
वीर रस से पूर्ण इन रचनाओं को रासो साहित्य का नाम दिया जाता है।
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