1. उष्ण कटिबंध के ऊपर एक नए ओजोन छिद्र की खोज
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हाल के एक अध्ययन के अनुसार, उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में 30 डिग्री दक्षिणी अक्षांश से 30 डिग्री उत्तरी अक्षांश पर एक नए ओज़ोन छिद्र का पता चला है।
अध्ययन से ज्ञात तथ्य
उष्णकटिबंधीय ओज़ोन छिद्र अंटार्कटिक से लगभग सात गुना बड़ा है।
उष्णकटिबंधीय ओज़ोन छिद्र सभी मौसमों में दिखाई देता है, जबकि अंटार्कटिक पर बना ओज़ोन छिद्र केवल वसंत ऋतु में ही दिखाई देता है।
वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यह इतना बड़ा है कि विश्व की 50 फीसदी आबादी को प्रभावित कर सकता है।
वैज्ञानिकों के मुताबिक यह छिद्र ट्रॉपिकल क्षेत्र में 1980 से मौजूद है।
अंटार्कटिक ओजोन छिद्र की तरह ही इस उष्णकटिबंधीय ओजोन छिद्र के केंद्र में ओजोन का मान सामान्य से 80 फीसदी तक कम पाया गया है।
इससे उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में त्वचा कैंसर, मोतियाबिंद और स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र पर अन्य नकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना है।
ओज़ोन परत
यह ऑक्सीजन का एक विशेष रूप है जिसका रासायनिक सूत्र O3 है।
अधिकांश ओज़ोन पृथ्वी की सतह से 10 से 40 किमी. के बीच वायुमंडल में उच्च स्तर पर रहती है। इस क्षेत्र को समताप मंडल कहा जाता है और वायुमंडल में पाई जाने वाली समग्र ओज़ोन का लगभग 90% हिस्सा यहाँ पाया जाता है।
वर्गीकरण
गुड ओज़ोन
ओज़ोन प्राकृतिक रूप से पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल (समताप मंडल) में होती है जहाँ यह एक सुरक्षात्मक परत बनाती है। यह परत हमें सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणों से बचाती है।
मानव निर्मित रसायनों जिन्हें ओज़ोन क्षयकारी पदार्थं (ODS) कहा जाता है, के कारण यह ओज़ोन धीरे-धीरे नष्ट हो रही है। ओज़ोन क्षयकारी पदार्थों में क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFC), हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन (HCFC), हैलोन, मिथाइल ब्रोमाइड, कार्बन टेट्राक्लोराइड और मिथाइल क्लोरोफॉर्म शामिल हैं।
बैड ओज़ोन
ज़मीनी स्तर के पास पृथ्वी के निचले वायुमंडल (क्षोभमंडल) में ओज़ोन का निर्माण तब होता है जब कारों, बिजली संयंत्रों, औद्योगिक बॉयलरों, रिफाइनरियों, रासायनिक संयंत्रों और अन्य स्रोतों द्वारा उत्सर्जित प्रदूषक सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में रासायनिक रूप से प्रतिक्रिया करते हैं।
सतही स्तर का ओज़ोन एक हानिकारक वायु प्रदूषक है।
ओजोन परत संरक्षण हेतु शुरू की गई पहल
वियना कन्वेंशन
ओज़ोन परत के संरक्षण के लिये वर्ष 1985 में वियना कन्वेंशन एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता था जिसमें संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों ने समताप मंडल की ओज़ोन परत में हो रहे क्षरण को रोकने के लिये मौलिक महत्त्व को मान्यता दी थी।
भारत 18 मार्च, 1991 को ओज़ोन परत के संरक्षण के लिये वियना कन्वेंशन का एक पक्षकार बना।
मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल
मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल ओज़ोन को कम करने वाले पदार्थों के उपयोग को समाप्त करके पृथ्वी की ओज़ोन परत की रक्षा के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण समझौता है।
15 सितंबर, 1987 को अपनाया गया यह प्रोटोकॉल आज तक की एकमात्र संयुक्त राष्ट्र संधि है जिसे पृथ्वी पर हर देश द्वारा संयुक्त राष्ट्र के सभी 197 सदस्य देशों द्वारा अनुमोदित किया गया है।
भारत 19 जून, 1992 को ओज़ोन परत को नुकसान पहुँचाने वाले पदार्थों पर मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल का पक्षकार बना।
2. अग्निकुल कॉसमॉस ने चेन्नई में खोला भारत का पहला निजी रॉकेट इंजन कारखाना
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स्पेस टेक स्टार्टअप अग्निकुल कॉसमॉस ने 13 जुलाई को चेन्नई में 3डी-प्रिंटेड रॉकेट इंजन बनाने की भारत की पहली सुविधा का उद्घाटन किया।
महत्वपूर्ण तथ्य
स्पेस टेक स्टार्टअप अग्निकुल कॉसमॉस ने 13 जुलाई को चेन्नई में 3डी-प्रिंटेड रॉकेट इंजन बनाने की भारत की पहली सुविधा का उद्घाटन किया।
इसका उद्घाटन टाटा संस के अध्यक्ष एन. चंद्रशेखरन और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष एस. सोमनाथ ने किया।
इस मौके पर इंडियन नेशनल स्पेस प्रमोशन एंड ऑथराइजेशन सेंटर (IN-SPACe) के चेयरमैन पवन गोयनका भी मौजूद थे।
इस सुविधा में विश्व स्तरीय मशीनरी होगी, जिसमें ईओएस से 400 मिमी x 400 मिमी x 400 मिमी धातु 3 डी-प्रिंटर, और कई अन्य मशीनें होंगी जो एक छत के नीचे रॉकेट इंजन के एंड-टू-एंड निर्माण को सक्षम करेंगी।
अग्निकुल ने इंजनों के लिए 3डी प्रिंटिंग पार्टनर के रूप में 2021 में ईओएस के साथ एक समझौता किया था।
अग्निकुल कॉसमॉस
यह भारत का पहला निजी छोटा उपग्रह प्रक्षेपण यान - अग्निबाण, एक रॉकेट का निर्माण कर रहा है जो प्लग-एंड-प्ले कॉन्फ़िगरेशन को सक्षम बनाता है और पृथ्वी की निचली कक्षाओं में 100 किलोग्राम तक पेलोड ले जाने में सक्षम है।
2022 में अग्निबाण लॉन्च किया जाएगा।
अग्निकुल कॉसमॉस
अग्निकुल कॉसमॉस उत्साही, रॉकेट वैज्ञानिकों, इंजीनियरों, प्रोग्रामर आदि का एक समूह है।
इसकी स्थापना 2017 में श्रीनाथ रविचंद्रन, मोइन एसपीएम और एस आर चक्रवर्ती (आईआईटी मद्रास से) ने की थी।
अग्निकुल दिसंबर 2020 में इसरो के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर करने वाली पहली भारतीय कंपनी बन गई।
3. डीसीजीआई ने एसआईआई के qHPV वैक्सीन को विपणन प्राधिकार प्रदान किया
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ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) ने सर्वाइकल कैंसर के खिलाफ स्वदेशी रूप से विकसित भारत के पहले क्वाड्रिवेलेंट ह्यूमन पैपिलोमावायरस वैक्सीन (क्यूएचपीवी) के निर्माण के लिए सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) को बाजार प्राधिकरण प्रदान किया।
महत्वपूर्ण तथ्य
qHPV भारत में सर्विकल कैंसर के खिलाफ विकसित पहली स्वदेशी वैक्सीन है जिसे इसी साल के अंत तक लॉन्च किया जा सकता है।
यह महिलाओं में सर्विकल कैंसर के इलाज के लिए एक भारतीय वैक्सीन होगी जो सस्ती और सुलभ दोनों हैं।
सर्वाइकल कैंसर क्या है?
सर्वाइकल कैंसर गर्भाशय के निचले हिस्से, गर्भाशय ग्रीवा की कोशिकाओं में शुरू होता है।
गर्भाशय ग्रीवा गर्भाशय के शरीर को योनि से जोड़ता है।
कैंसर तब शुरू होता है जब शरीर में कोशिकाएं नियंत्रण से बाहर होने लगती हैं।
सर्वाइकल कैंसर के अधिकांश मामले ह्यूमन पैपिलोमावायरस (एचपीवी) के संक्रमण के कारण होते हैं, जिसे टीके से रोका जा सकता है।
सर्वाइकल कैंसर धीरे-धीरे बढ़ता है, इसलिए आमतौर पर गंभीर समस्याओं का कारण बनने से पहले इसका पता लगाने और इसका इलाज करने का समय होता है।
35 से 44 वर्ष की महिलाओं को इसके होने की संभावना सबसे अधिक होती है।
ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई)
यह केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) के अंतर्गत आता है।
यह भारत में रक्त और रक्त उत्पादों, टीकों, IV तरल पदार्थ और सीरा जैसी दवाओं की निर्दिष्ट श्रेणियों के लाइसेंस के अनुमोदन के लिए जिम्मेदार है।
यह भारत में दवाओं के निर्माण, बिक्री, आयात और वितरण के मानकों और गुणवत्ता को निर्धारित करता है।
4. भारतीय वैज्ञानिकों ने SARS-CoV-2 को निष्क्रिय करने के लिए नया तंत्र विकसित किया
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भारतीय वैज्ञानिकों ने शरीर की कोशिकाओं में SARS-CoV-2 वायरस के प्रवेश को रोककर, इसकी संक्रमण क्षमता को कम करके, SARS-CoV-2 वायरस को निष्क्रिय करने के लिए एक अभिनव प्रणाली विकसित की है।
महत्वपूर्ण तथ्य
इसके लिए शोधकर्ताओं ने सश्लेषित पेप्टाइड्स के एक नए वर्ग को डिजाइन किए जाने की जानकारी दी है.
यह पेप्टाइड न केवल कोशिकाओं में SARS-CoV-2 वायरस के प्रवेश को रोक सकता है, बल्कि वायरस कणों को भी एक साथ उलझा कर इस प्रकार जोड़ सकता है, जिससे उनकी संक्रमित करने की क्षमता कम हो सकती है.
यह नया प्रयास SARS-CoV-2 जैसे वायरस को निष्क्रिय करने और एंटीवायरल के रूप में पेप्टाइड्स के एक नए वर्ग का वादा करने के लिए एक वैकल्पिक तंत्र प्रदान करता है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के एक वैधानिक निकाय, विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी) के कोविड -19 आईआरपीएचए कॉल के तहत इस अनुसंधान का समर्थन किया गया था.
क्या है नया इनोवेटिव सिस्टम?
विकसित किए गए पेप्टाइड्स सर्पिलाकार (हेलिकल) और हेयरपिन जैसे आकार में होते हैं.
इनमें से प्रत्येक अपनी तरह के दूसरे स्वरूप के साथ जुड़ने में सक्षम होते हैं, जिसे डायमर के रूप में जाना जाता है.
प्रत्येक डाईमेरिक 'बंडल' दो लक्ष्य अणुओं के साथ परस्पर क्रिया के लिए दो सतहों (फेसेस) को प्रस्तुत करता है.
भारतीय विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों ने सीएसआईआर-माइक्रोबियल प्रौद्योगिकी संस्थान के शोधकर्ताओं के सहयोग से इन पेप्टाइड्स को डिजाइन करने के लिए इस दृष्टिकोण का फायदा उठाया है।
शोधकर्ताओं की टीम ने मानव कोशिकाओं में SARS-CoV-2 के स्पाइक (S) प्रोटीन और SARS-CoV-2 के ACE2 प्रोटीन के SARS-CoV-2 रिसेप्टर्स के बीच परस्पर को लक्षित करने के लिए SIH-5 नामक एक पेप्टाइड का उपयोग किया।
क्या है SARS-CoV-2 वायरस?
यह कोरोनावायरस रोग (कोविड -19) पैदा करने के लिए जिम्मेदार है।
सार्स का मतलब है सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम।
2019 में पहली बार यह जानकारी प्राप्त हुई कि SARS-CoV-2 लोगों को भी संक्रमित कर सकता है।
ऐसा माना जाता है कि संक्रमित व्यक्ति के खांसने, छींकने या बात करने पर निकलने वाली बूंदों के माध्यम से वायरस एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है।
कोरोनावायरस वायरस का एक विशिष्ट परिवार है, जिनमें से कुछ कम-गंभीर क्षति का कारण बनते हैं, जैसे कि सामान्य सर्दी, जबकि अन्य श्वसन और आंतों की बीमारियों का कारण बनते हैं।
5. ओला इलेक्ट्रिक ने स्वदेशी लिथियम-आयन सेल का अनावरण किया
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इलेक्ट्रिक वाहन कंपनी ओला इलेक्ट्रिक (Ola Electric) ने स्वदेशी रूप से विकसित लिथियम-आयन सेल, एनएमसी 2170 का अनावरण किया है।
महत्वपूर्ण तथ्य
ओला के इस सेल की खासियत है कि यह एक ई-वाहनों में इस्तेमाल होने वाले साधारण लिथियम सेल के मुकाबले ज्यादा ऊर्जा का भंडारण कर सकता है।
इसके अलावा इसकी लाइफ साइकिल भी अधिक है जिसके चलते इसे लंबे समय तक इस्तेमाल में लाया जा सकता है।
ओला इलेक्ट्रिक का दावा है इस नए सेल से इलेक्ट्रिक वाहनों की रेंज बढ़ाने में मदद मिलेगी।
ओला 2023 तक अपनी गीगाफैक्ट्री से सेल का बड़े पैमाने पर प्रोडेक्शन शुरू करेगी।
ओला दुनिया के सबसे उन्नत सेल अनुसंधान केंद्र का निर्माण कर रही है जो हमें तेजी से विस्तार और नवाचार करने और दुनिया में सबसे उन्नत और किफायती ईवी उत्पादों का निर्माण करने में सक्षम बनाएगी।
कंपनी ने कहा कि वह स्वदेशी उन्नत सेल प्रौद्योगिकियों को बनाने, विनिर्माण क्षमताओं को मजबूत करने और एक एकीकृत ओला इलेक्ट्रिक वाहन हब बनाने के लिए शोध और विकास में निवेश करने के लिए प्रतिबद्ध है।
ओला इलेक्ट्रिक के बारे में
ओला इलेक्ट्रिक मोबिलिटी एक भारतीय इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर निर्माता है, जो बैंगलोर में स्थित है।
इसका निर्माण संयंत्र कृष्णागिरी, तमिलनाडु, भारत में स्थित है।
ओला इलेक्ट्रिक ने अगस्त 2021 में अपना पहला इलेक्ट्रिक वाहन लॉन्च किया और भारत में दुनिया की सबसे बड़ी 2W निर्माण सुविधा स्थापित की।
संस्थापक और सीईओ - भाविश अग्रवाल
6. जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप से ली गई पहली छवियां नासा द्वारा जारी की गई
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नासा ने नासा के जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप से ली गई ब्रह्मांड की अब तक की सबसे गहरी और सबसे सटीक अवरक्त छवि 12 जुलाई को जारी की है।
छवि किसके के बारे में है?
वेब का पहला डीप फील्ड गैलेक्सी क्लस्टर एसएमएसीएस 0723 है जो हजारों आकाशगंगाओं से भरा हुआ है जिसमें इन्फ्रारेड में देखी गई सबसे कमजोर वस्तुएं भी शामिल हैं।
वेब की छवि लगभग हाथ पर रखे रेत के दाने के आकार की है, जो विशाल ब्रह्मांड का एक छोटा सा टुकड़ा है।
इस संग्रह में एक अन्य आकाशगंगा समूह की ताज़ा छवियां भी शामिल हैं जिन्हें स्टीफ़न की क्विंटेट के रूप में जाना जाता है, जिसे पहली बार 1877 में खोजा गया था।
जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप
नासा के जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप को 25 दिसंबर 2021 को दक्षिण अमेरिका के उत्तर-पूर्वी तट से रॉकेट द्वारा लॉन्च किया गया था।
यह नासा द्वारा लॉन्च किया गया अब तक का सबसे शक्तिशाली इन्फ्रारेड टेलीस्कोप है।
इसे नासा, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) और कनाडाई अंतरिक्ष एजेंसी के सहयोग से बनाया गया है।
इसने खगोल विज्ञान के एक नए युग की शुरुआत की है।
इसका लक्ष्य बिग बैंग के बाद बनने वाली पहली आकाशगंगा की खोज करना है।
यह नई और अप्रत्याशित खोजों को प्रकट करेगा, और ब्रह्मांड की उत्पत्ति और मानव की स्थिति को समझने में मदद करेगा।
यह अंतरिक्ष में 2 सप्ताह की यात्रा के बाद पृथ्वी से लगभग 1.6 मिलियन किमी सौर कक्षा में अपने गंतव्य तक पहुंचा।
इसे हबल टेलीस्कोप का उत्तराधिकारी भी माना जाता है जिसे 1990 में पृथ्वी की निचली कक्षा में लॉन्च किया गया था।
7. आईआईटी मद्रास के शोधकर्ताओं ने कैंसर पैदा करने वाले जीन की पहचान के लिए एआई टूल विकसित किया
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भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास (IIT मद्रास) के शोधकर्ताओं द्वारा ‘PIVOT’ नामक एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस-बेस्ड उपकरण विकसित किया गया है।
PIVOT
PIVOT को उन जीनों की भविष्यवाणी करने के लिए डिज़ाइन किया गया है जो कैंसर पैदा करने के लिए जिम्मेदार हैं।
यह AI-आधारित उपकरण व्यक्तिगत कैंसर उपचार के लिए रणनीति तैयार करने में मदद करेगा।
PIVOT रोगियों में कैंसर पैदा करने वाले जीन की भविष्यवाणी करने में सक्षम है।
PIVOT टूल को मशीन लर्निंग मॉडल के आधार पर विकसित किया गया था, जो जीन को ट्यूमर ऑन्कोजीन, सप्रेसर जीन या न्यूट्रल जीन के रूप में विभाजित करता है।
इसने ऑन्कोजीन के साथ-साथ ट्यूमर-दबाने वाले जीन जैसे TP53, और PIK3CA की सफलतापूर्वक भविष्यवाणी की।
यह कैसे काम करता है?
PIVOT एक मशीन लर्निंग टूल है।
यह कैंसर पैदा करने वाले जीन की भविष्यवाणी करने के लिए उत्परिवर्तन और जीन अभिव्यक्ति सहित विभिन्न डेटा का उपयोग करता है।
इन जीनों को चालक जीन कहा जाता है।
यह व्यक्तिगत कैंसर उपचार रणनीतियों को तैयार करने में मदद करता है।
8. इसरो के साथ लगभग 60 स्टार्टअप पंजीकृत
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हाल ही में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र को निजी क्षेत्र के लिए खोले जाने के बाद से लगभग 60 स्टार्टअप ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के साथ पंजीकरण किया है।
महत्वपूर्ण तथ्य
कुछ पंजीकृत स्टार्ट अप अंतरिक्ष मलबे प्रबंधन से संबंधित परियोजनाओं से संबंधित कार्य कर रहे हैं।
यह जानकारी केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री डॉ जितेंद्र सिंह ने 11 जुलाई को बेंगलुरू में इसरो नियंत्रण केंद्र में सुरक्षित और सतत संचालन के लिए इसरो प्रणाली का उद्घाटन करने के बाद दी।
अन्य स्टार्टअप्स के प्रस्ताव नैनो-सैटेलाइट, लॉन्च व्हीकल, ग्राउंड सिस्टम, रिसर्च आदि से भिन्न हैं।
इससे पहले 10 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने IN-SPACe के उद्घाटन के दौरान कहा था कि अंतरिक्ष नीति की घोषणा जल्द की जाएगी।
यह नीति उस भूमिका को परिभाषित करेगी जो निजी कंपनियां अंतरिक्ष मिशन में निभा सकती हैं, बुनियादी ढांचे और इसरो के स्वामित्व वाली सेवाओं तक पहुंच प्रदान कर सकती हैं।
भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र (IN-SPACe)
अहमदाबाद, गुजरात के बोपल में IN-SPACe का उद्घाटन 10 जून को पीएम मोदी ने किया था।
यह नोडल एजेंसी होगी जो गैर-सरकारी निजी संस्थाओं द्वारा अंतरिक्ष गतिविधियों और अंतरिक्ष विभाग के स्वामित्व वाली सुविधाओं के उपयोग की अनुमति देगी और इस क्षेत्र में अधिक से अधिक निजी भागीदारी सुनिश्चित करेगी।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो)
इसरो की स्थापना 15 अगस्त 1969 को हुई थी
इसरो के अध्यक्ष: एस सोमनाथ
इसरो का मुख्यालय: बेंगलुरु, कर्नाटक
अंतरिक्ष स्टेशन जहां से इसरो ने रॉकेट लॉन्च किए - सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (एसडीएससी) शार, श्रीहरिकोटा, आंध्र प्रदेश
9. आईसीएमआर-वीसीआरसी ने डेंगू, चिकनगुनिया को नियंत्रित करने के लिए विशेष मादा मच्छर विकसित किया
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आईसीएमआर-वेक्टर कंट्रोल रिसर्च सेंटर ने डेंगू और चिकनगुनिया को नियंत्रित करने के लिए विशेष मादा मच्छर विकसित किए हैंI
महत्वपूर्ण तथ्य
ये मादा मच्छर नर के साथ संभोग करेंगे और ऐसे लार्वा पैदा करेंगे जिनमें ये वायरस नहीं होंगे।
पुडुचेरी स्थित आईसीएमआर-वीसीआरसी द्वारा एडीज एजिप्टि (Aedes aegypti) की दो कॉलोनियां विकसित की गई हैं। जो वायरल बीमारी के प्रसार को कम करने के लिए wMel और wAlbB वल्बाचिया स्ट्रेन से संक्रमित हैं।
इन्हें एडीज एजिप्टी (Pud) कहा जाता है।
सरकार की तरफ से अनुमति मिलने के बाद इन मादा मच्छरों को बाहर छोड़ा जाएगा ताकि वो नर मच्छरों के साथ मिलकर ऐसे लार्वा बनाए जो इन बीमारियों के वायरसों से मुक्त होI
मच्छर से होने वाले रोग
मलेरिया - यह बीमारी फीमेल एनोफेलीज मच्छर के काटने से होती हैI
मलेरिया बुखार प्लॅस्मोडियम वीवेक्स नामक वाइरस के कारण होता है|
डेंगू - डेंगू वायरस संक्रमित एडीज मच्छर के काटने से मनुष्यों में संचारित होता हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार दुनियाभर में मच्छरों द्वारा सबसे ज्यादा फैलाया जाने वाली बीमारी डेंगू है।
चिकनगुनिया - चिकनगुनिया डेंगू की तरह, एडीज मच्छर के काटने से होता है|
पीला बुखार/येल्लो फीवर - यह बीमारी एडीस् मच्छर विशेष रूप से एडीज एजेप्टाए के मनुष्य को काटने पर होती हैI
येलो फीवर फ्लेवी वायरस के कारण होता है।
10. भारत की पहली स्वायत्त नेविगेशन सुविधा, TiHAN को IIT हैदराबाद में लॉन्च किया गया
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केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री, जितेंद्र सिंह ने IIT हैदराबाद के परिसर में भारत की पहली स्वायत्त नेविगेशन सुविधा का उद्घाटन किया, जिसे तिहान कहा जाता है।
महत्वपूर्ण तथ्य
केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने 130 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ यह नेविगेशन सुविधा विकसित की है।
तिहान क्या है?
यह एक बहु-विषयक पहल है, जिसका उद्देश्य भारत को भविष्य और अगली पीढ़ी के लिए ‘स्मार्ट मोबिलिटी’ तकनीक में एक वैश्विक अभिकर्त्ता बनाना है।
यह मंच स्थानीय और वैश्विक स्तर पर उद्योग, शिक्षा और अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशालाओं के बीच उच्च गुणवत्ता वाली अनुसंधान सुविधा प्रदान करेगा।
TiHAN का अर्थ “Technology Innovation Hub on Autonomous Navigation” है।
महत्व
TiHAN टेस्ट बेड भारत को स्वायत्त नेविगेशन प्रौद्योगिकियों के मामले में एक वैश्विक नेता बनाने का प्रयास करता है।
TiHAN-IITH अगली पीढ़ी की स्वायत्त नेविगेशन प्रौद्योगिकियों के सटीक परीक्षण में मदद करेगा।