1. अंतरिक्ष गतिविधि की निगरानी के लिए उत्तराखंड में भारत की पहली वेधशाला स्थापित होगी
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भारत की पहली व्यावसायिक अंतरिक्ष वेधशाला उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में अंतरिक्ष के क्षेत्र में शुरू किए गए स्टार्टअप दिगंतारा द्वारा स्थापित की जाएगी।
महत्वपूर्ण तथ्य -
यह पृथ्वी की परिक्रमा लगा रही 10 सेमी जितने छोटे आकार की वस्तु पर भी नजर रखने में सक्षम होगी।
इस वेधशाला की मदद से वैज्ञानिक गहरे अंतरिक्ष की हर एक हलचल पर नजर रखने में सक्षम होंगे। खासतौर पर भूस्थैतिक, मध्यम-पृथ्वी और उच्च-पृथ्वी की कक्षाओं की गहर गतिविधि की निगरानी संभव होगी।
यह वेधशाला भारत को उपमहाद्वीप पर अंतरिक्ष गतिविधि पर नजर रखने की स्वदेशी क्षमता भी देगी। उदाहरण के लिए, यदि चीनी उपग्रहों को भारत के किसी विशेष क्षेत्र में लंबे समय तक देखा जाता है, तो इन गतिविधियों की निगरानी के लिए अमेरिका जैसे देशों पर भरोसा किए बिना भारत के पास स्वदेशी क्षमता होना एक फायदा है।
इस वेधशाला से प्राप्त जानकारी की मदद से उपग्रहों व अन्य अंतरिक्ष यानों के बीच भिड़ंत होने से बचाया जा सकेगा। उनकी लोकेशन, गति और ट्रैजेक्टरी के बारे में और सटीक अनुमान लगाया जा सकेगा।
वर्तमान में इस क्षेत्र में अमेरिका का वर्चस्व है। अंतरिक्ष गतिविधियों पर नजर रखने वाली इस तरह की सबसे अधिक वेधशालाएं उसके पास हैं। उसकी यह वेधशालाएं विभिन्न जगहों पर तैनात हैं और कामर्शियल कंपनियां दुनियाभर से इनके लिए इनपुट मुहैया कराती हैं।
स्टार्टअप दिगंतारा :
इसका पूरा नाम दिगंतारा रिसर्च एंड टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड है।
दिसंबर 2018 में लॉन्च किये गये इस स्टार्टअप का मुख्य फोकस अंतरिक्ष में उपग्रहों के कारण एकत्र किए जा रहे कचरे को ट्रैक करना और समाधान खोजना है।
इसका मुख्यालय जालंधर, पंजाब में है।
2. डीआरडीओ ने स्वदेशी वर्टिकल लॉन्च शॉर्ट रेंज सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल का परीक्षण किया
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रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) और भारतीय नौसेना ने 23 अगस्त को सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल (VL-SRSAM) के वर्टिकल लॉन्च शॉर्ट रेंज का सफलतापूर्वक परीक्षण किया।
महत्वपूर्ण तथ्य -
मिसाइल का परीक्षण ओडिशा के तट पर चांदीपुर में एकीकृत परीक्षण रेंज से किया गया।
एक उच्च गति वाले मानव रहित हवाई लक्ष्य के खिलाफ भारतीय नौसेना के जहाज से उड़ान परीक्षण किया गया।
परीक्षण लॉन्च के दौरान, आईटीआर, चांदीपुर द्वारा तैनात रडार, इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल ट्रैकिंग सिस्टम (ईओटीएस), और टेलीमेट्री सिस्टम जैसे विभिन्न उपकरणों द्वारा कैप्चर किए गए उड़ान डेटा का उपयोग करके उड़ान पथ और वाहन प्रदर्शन मापदंडों की निगरानी की गई।
कम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल (VL-SRSAM) :
यह एक जहाज से चलने वाली हथियार प्रणाली है, जो समुद्र-स्किमिंग लक्ष्यों सहित निकट सीमा पर विभिन्न हवाई खतरों को बेअसर करने में सक्षम है।
समुद्री स्किमिंग की रणनीति का उपयोग विभिन्न जहाज-रोधी मिसाइलों और कुछ लड़ाकू विमानों द्वारा किया जाता है ताकि युद्धपोतों पर रडार द्वारा पता लगाने से बचा जा सके।
यह समुद्र की सतह के बेहद करीब से उड़ान भरती हैं और इस तरह इनका पता लगाना और बेअसर करना मुश्किल होता है।
वीएल-एसआरएसएएम मिसाइल का डिजाइन :
इस मिसाइल को DRDO द्वारा स्वदेशी रूप से डिजाइन और विकसित किया गया है।
इसका डिजाइन एस्ट्रा मिसाइल पर आधारित है जो एक बियॉन्ड विजुअल रेंज एयर-टू-एयर मिसाइल है।
एस्ट्रा भारत की पहली हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल है, जिसे रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन द्वारा विकसित किया गया है।
अतिरिक्त जानकारी -
वीएल-एसआरएसएएम मिसाइल की मुख्य विशेषताएं :
इसकी दो प्रमुख विशेषताएं हैं - क्रूसिफॉर्म विंग्स और थ्रस्ट वेक्टरिंग।
क्रूसिफॉर्म में चार छोटे पंख होते हैं जो चारों तरफ एक क्रॉस की तरह व्यवस्थित होते हैं और प्रक्षेप्य को स्थिर मुद्रा प्रदान करते हैं।
वहीँ, दूसरी ओर थ्रस्ट वेक्टरिंग अपने इंजन से कोणीय वेग और मिसाइल को नियंत्रित करने वाले थ्रस्ट की दिशा बदलने में मदद करता है।
मिसाइल का वजन 154 किलोग्राम है तथा इसकी लंबाई लगभग 12.6 फीट है।
इसे 40 से 50 किमी की दूरी पर और लगभग 15 किमी की ऊंचाई पर उच्च गति वाले हवाई लक्ष्यों पर हमला करने के लिए डिजाइन किया गया है।
3. भारत में फैल रहा टोमेटो फ्लू - लैंसेट ने दी चेतावनी
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कोविड -19 महामारी और वर्तमान में चल रहे मंकीपॉक्स के बाद, लैंसेट ने भारत को एक नई संक्रामक बीमारी, टोमेटो फ्लू या टोमेटो बुखार के बारे में चेतावनी दी है।
महत्वपूर्ण तथ्य -
इसकी पहचान सबसे पहले 6 मई, 2022 को केरल के कोल्लम जिले में हुई थी।
स्थानीय सरकारी अस्पतालों में 26 जुलाई को 5 साल से कम उम्र के 82 से अधिक बच्चों में इस रोग के संक्रमण की पुष्टि हुई है।
इस स्थानिक वायरल बीमारी ने पड़ोसी राज्यों तमिलनाडु और कर्नाटक को अलर्ट कर दिया है।
इसके अतिरिक्त ओडिशा में क्षेत्रीय चिकित्सा अनुसंधान केंद्र, भुवनेश्वर द्वारा 26 बच्चों (1-9 वर्ष की आयु) में इस रोग की पुष्टि हुई है।
टोमेटो फ्लू क्या है ?
यह एक दुर्लभ वायरल रोग है, जो लाल रंग के चकत्ते, त्वचा में जलन और निर्जलीकरण का कारण बनता है।
इस रोग में होने वाले फफोले टोमेटो की तरह दिखते हैं, इसलिए इसे टोमेटो फ्लू कहा जाता है।
यह हाथ, पैर और मुंह की बीमारी (एचएफएमडी) का एक रूप है।
यह कॉक्ससेकी वायरस ए 16 के कारण होता है। यह एंटरोवायरस परिवार से संबंधित है।
वयस्कों में यह रोग दुर्लभ है क्योंकि उनके पास आमतौर पर वायरस से बचाव के लिए पर्याप्त प्रतिरक्षा प्रणाली होती है।
रोग के लक्षण :
फफोले
दस्त
निर्जलीकरण
कुछ मामलों में, हाथों और घुटनों का रंग भी फीका पड़ जाता है।
रोग का उपचार :
यह एक स्व-सीमित बीमारी है और इसके लिए कोई विशिष्ट दवा नहीं है।
यह चिकनगुनिया और डेंगू के समान है, फ्लू को फैलने से रोकने के लिए संक्रमित व्यक्तियों द्वारा उपयोग किए जाने वाले बर्तन, कपड़े और अन्य वस्तुओं को साफ करना चाहिए।
निर्जलीकरण का मुकाबला करने के लिए तरल पदार्थ का सेवन बढ़ाया जाना चाहिए।
4. अगस्त्यमलाई में बेंट-टोड गेको की नई प्रजाति पाई गई
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शोधकर्ताओं के एक समूह ने हाल ही में पश्चिमी घाट में अगस्त्यमलाई पहाड़ियों से बेंट-टोड गेको की एक नई प्रजाति की खोज की है।
महत्वपूर्ण तथ्य -
नई प्रजाति के बारे में :
वैज्ञानिक नाम - साइरटोडैक्टाइलस अरविंदी
जाने-मानेमैलाकोलॉजिस्ट (जूलॉजी की एक शाखा जो मोलस्क से संबंधित है) एन ए अरविंद के नाम पर इस प्रजाति को आम नाम अरविंद्स ग्राउंड जेकोदिया गया है।
भिन्नता और आणविक डीएनए डेटा में इसकी विशिष्टता के आधार पर इसका वर्णन किया गया है।
यह अब तक तमिलनाडु में अगस्त्यमलाई बायोस्फीयर रिजर्व के भीतर कन्याकुमारी जिले में केवल दो स्थानों, मुप्पंडल और थुकलयमें पाया गया है।
वर्टेब्रेट जूलॉजी नामक जर्नल में इस नई प्रजाति के बारे में वर्णन किया गया है।
गेको के बारे में :
गेको सरीसृप हैं और अंटार्कटिका को छोड़कर सभी महाद्वीपों में पाए जाते हैं।
ये रंगीन छिपकलियां हैं जो वर्षावनों, रेगिस्तानों से लेकर ठंडे पहाड़ी ढलानों तक के आवासों में अनुकूलित होते हैं।
अधिकांश गेको रात्रिचर होते हैं, जिसका अर्थ है कि वे रात में सक्रिय होते हैं।
अगस्त्यमलाई बायोस्फीयर रिजर्व :
यह 2001 में स्थापित किया गया था।
यह केरल में कोल्लम और तिरुवनंतपुरम जिलों की सीमा और तमिलनाडु में तिरुनेलवेली और कन्याकुमारी जिलों, पश्चिमी घाट के दक्षिणी छोर पर दक्षिण भारत में फैला हुआ है।
इसमें ज्यादातर उष्णकटिबंधीय वन पाए जाते हैं।
5. शोधकर्ताओं ने विकसित किया 3डी प्रिंटेड कृत्रिम कॉर्निया
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हैदराबाद के शोधकर्ताओं की एक टीम ने देश में पहली बार एक कृत्रिम कॉर्निया को सफलतापूर्वक 3डी प्रिंट किया है और इसे खरगोश की आंख में प्रत्यारोपित किया है।
महत्वपूर्ण तथ्य
ये 3D प्रिंटेड कॉर्निया एलवी प्रसाद आई इंस्टीट्यूट (LVPEI), आईआईटी हैदराबाद (IITH) और सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (CCMB) के वैज्ञानिकों ने मिलकर बनाया है।
इस कॉर्निया को इंसान की आंख के कॉर्नियल टिशू से बनाया गया है।
इस कॉर्निया को पूरी तरह से देश के वैज्ञानिकों ने स्वदेशी तकनीक से ही बनाया है।
इसमें कोई सिंथेटिक कंपोनेंट नहीं है और इसे मरीजों को भी लगाया जा सकता है।
कैसे बनाया गया 3D कॉर्निया?
वैज्ञानिकों ने इंसानी आंख से डिसेल्युलराइज्ड कॉर्नियल टिशू और स्टेम सेल्स निकालकर बायोमिमीटिक हाइड्रोजेल बनाया।
वैज्ञानिकों ने कहा है कि ये 3D प्रिंटेड कॉर्निया इंसान की आंख के कॉर्नियल टिशू से तैयार किया गया है, इसलिए ये पूरी तरह से बायोकम्पेटिबल और नैचुरल है।
इससे कॉर्नियल स्कैरिंग (जिसमें कॉर्निया अपारदर्शी हो जाता है) और केराटोकोनस (जिसमें कॉर्निया पतला हो जाता है) जैसी बीमारियों का इलाज करने में मददगार साबित होगा।
कई बार चोट की वजह से आर्मी जवानों का कॉर्निया खराब हो जाता है, ऐसी स्थिति में 3D प्रिंटेड कॉर्निया से उन जवानों की रोशनी वापस लाया जा सकता है।
कॉर्निया क्या है?
कॉर्निया आंख का पारदर्शी हिस्सा है जो आंख के सामने के हिस्से को ढकता है।
यह पुतली (आंख का केंद्र), परितारिका (आंख का रंगीन भाग), और पूर्वकाल कक्ष (आंख के अंदर द्रव से भरा हुआ) को कवर करता है।
कॉर्निया का मुख्य कार्य प्रकाश को अपवर्तित करना या मोड़ना है।
आंख में प्रवेश करने वाले अधिकांश प्रकाश पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कॉर्निया जिम्मेदार होता है।
3डी प्रिंटिंग क्या है?
3D प्रिंटिंग लेयरिंग विधि के माध्यम से त्रि-आयामी ऑब्जेक्ट बनाने के लिए कंप्यूटर एडेड डिज़ाइन (CAD) का उपयोग करती है।
सॉफ्टवेयर की मदद से प्रिंट किए जाने वाले मॉडल को पहले कंप्यूटर द्वारा विकसित किया जाता है, जो फिर 3डी प्रिंटर को निर्देश देता है।
6. केंद्रीय मंत्री डॉ जितेंद्र सिंह ने भारत के पहले खारे पानी के लालटेन का अनावरण किया
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केंद्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) विज्ञान और प्रौद्योगिकी, डॉ जितेंद्र सिंह ने 13 अगस्त को भारत का पहला खारा जल लालटेन लॉन्च किया।
खारे पानी के लालटेन के बारे में
यह एलईडी लैंप को बिजली देने के लिए विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए इलेक्ट्रोड के बीच इलेक्ट्रोलाइट के रूप में समुद्र के पानी का उपयोग करता है।
यह "रोशनी" नाम की अपनी तरह की पहली लालटेन है।
रोशनी लैंप का आविष्कार राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईओटी), चेन्नई द्वारा किया गया है।
इस तकनीक का उपयोग ऐसे इलाकों में भी किया जा सकता है, जहां समुद्र का पानी उपलब्ध नहीं है, क्योंकि किसी भी खारे पानी या सामान्य नमक के साथ मिश्रित सामान्य पानी का उपयोग लालटेन को बिजली देने के लिए किया जा सकता है।
महत्त्व
यह गरीबों और जरूरतमंदों, विशेष रूप से भारत की 7500 किलोमीटर लंबी तटीय रेखा के किनारे रहने वाले मछली पकड़ने वाले समुदाय के लिए "जीवन की सुगमता" लाएगा।
यह देश भर में एलईडी बल्बों के वितरण के लिए 2015 में शुरू की गई प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की उजाला योजना को भी बढ़ावा देगा और पूरक का काम करेगा।
यह न केवल लागत प्रभावी है, बल्कि संचालित करने में बहुत आसान है।
7. पीएम मोदी ने हरियाणा के पानीपत में दूसरी पीढ़ी के इथेनॉल प्लांट को राष्ट्र को समर्पित किया
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प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 अगस्त को हरियाणा के पानीपत में दूसरी पीढ़ी (2 जी) इथेनॉल संयंत्र को राष्ट्र को समर्पित किया।
महत्वपूर्ण तथ्य
यह देश में जैव ईंधन के उत्पादन और उपयोग को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा वर्षों से उठाए गए कदमों की एक लंबी श्रृंखला का हिस्सा है।
यह ऊर्जा क्षेत्र को अधिक किफायती, सुलभ, कुशल और टिकाऊ बनाने के लिए प्रधान मंत्री के प्रयासों के अनुरूप है।
संयंत्र के बारे में
इसे इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (IOCL) द्वारा 900 करोड़ रुपये से अधिक की अनुमानित लागत से बनाया गया है।
यह पानीपत रिफाइनरी के करीब स्थित है।
यह परियोजना सालाना लगभग तीन करोड़ लीटर इथेनॉल उत्पन्न करने के लिए सालाना लगभग दो लाख टन चावल के भूसे (पराली) का उपयोग करेगी।
कृषि-फसल अवशेषों के बेहतर इस्तेमाल के लिए किसानों को सशक्त बनाया जाएगा और उनके लिए अतिरिक्त आय सृजन का अवसर प्रदान किया जाएगा।
परियोजना में शून्य तरल निर्वहन होगा।
चावल के भूसे (पराली) को जलाने में कमी आने से प्रति वर्ष लगभग 3 लाख टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में कमी आएगी और ग्रीनहाउस गैसों में कमी आएगी।
इथेनॉल के बारे में
एथेनॉल एक प्रकार का एल्कोहल है, इसे एथिल एल्कोहल भी कहते हैं।
इसे पेट्रोल में मिलाकर वाहनों में ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
गन्ने के बाद अब केंद्र सरकार चावल से एथेनॉल तैयार करने पर ध्यान दे रही है।
एथेनॉल का उत्पादन कर किसान अच्छा मुनाफा कमाकर अपनी आर्थिक स्थिति को बेहतर बना सकते हैं।
इथेनॉल मुख्य रूप से गन्ने की फसल से उत्पन्न होता है, लेकिन इसे विभिन्न प्रकार की चीनी फसलों से भी तैयार किया जा सकता है।
भारत में इथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम (ईबीपी)
इस कार्यक्रम के तहत खुदरा दुकानों को 5 प्रतिशत इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल की आपूर्ति की जाएगी।
इसका उद्देश्य 9 राज्यों और 4 केंद्र शासित प्रदेशों में 5 प्रतिशत इथेनॉल-मिश्रित पेट्रोल को लोकप्रिय बनाना है।
इसका उद्देश्य कच्चे तेल के आयात पर देश की निर्भरता को कम करना, कार्बन उत्सर्जन में कटौती करना और किसानों की आय को बढ़ाना है।
8. भारतीय सेना ने लॉन्च किया "हिम-ड्रोन-ए-थॉन"
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भारतीय सेना ने ड्रोन फेडरेशन ऑफ इंडिया के सहयोग से 8 अगस्त 22 को 'हिम ड्रोन-ए-थॉन' कार्यक्रम शुरू किया है।
'हिम ड्रोन-ए-थॉन' कार्यक्रम क्या है?
यह उद्योग, शिक्षा, सॉफ्टवेयर डेवलपर्स और ड्रोन उत्पाद निर्माताओं सहित सभी हितधारकों के बीच अखिल भारतीय निरंतर संपर्क है।
यह मात्रात्मक मापदंडों (जैसे ऊंचाई, वजन, रेंज, स्थिरता आदि) के साथ विभिन्न चरणों में आयोजित किया जाएगा, जो प्रदर्शित क्षमताओं के आधार पर उत्तरोत्तर बढ़ाया जाएगा।
इसके अंतर्गत नियोजित व्यापक गतिविधियों में उपयोगकर्ताओं, विकास एजेंसियों, शिक्षाविदों आदि के बीच बातचीत और विचार, उद्योग की प्रतिक्रिया की तलाश, विकास एजेंसियों द्वारा परिचालन स्थानों का दौरा शामिल है।
इस कार्यक्रम के तहत निम्नलिखित श्रेणियों में विकास शामिल हैं-
उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों में लॉजिस्टिक्स / लोड ले जाने वाला ड्रोन
स्वायत्त निगरानी/खोज एवं बचाव ड्रोन
बिल्ड अप एरिया में लड़ने के लिए माइक्रो/नैनो ड्रोन
ड्रोन क्या है?
ड्रोन को मानव रहित हवाई वाहन (यूएवी) या मानव रहित विमान के रूप में जाना जाता है।
ड्रोन एक उड़ने वाला रोबोट है जिसे दूर से नियंत्रित किया जा सकता है या इसके एम्बेडेड सिस्टम में सॉफ़्टवेयर-नियंत्रित उड़ान तकनीक का उपयोग करके स्वतंत्र रूप से उड़ सकता है।
यह ऑनबोर्ड सेंसर और ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) के साथ मिलकर काम करता है।
ड्रोन को पहली बार 1990 में बाजार में उतारा गया था और इसे सेना द्वारा विकसित किया गया था।
ड्रोन का उपयोग निगरानी, स्थितिजन्य विश्लेषण, अपराध नियंत्रण, वीवीआईपी सुरक्षा, आपदा प्रबंधन आदि के लिए किया जा सकता है।
यह राष्ट्रीय रक्षा, कृषि, कानून प्रवर्तन और मानचित्रण सहित अर्थव्यवस्था के लगभग हर क्षेत्र को लाभ प्रदान करता है।
केंद्र सरकार ने ड्रोन और ड्रोन घटकों के उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना को मंजूरी दी है।
9. इसरो का पहला एसएसएलवी मिशन विफल, गलत कक्षा में स्थापित हुए उपग्रह
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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 7 अगस्त को अपने पहले लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (एसएसएलवी) उपग्रहों को गलत कक्षा में स्थापित कर दिया।
महत्वपूर्ण तथ्य
इसके बाद पृथ्वी अवलोकन उपग्रह और आजादीसैट उपग्रह इस्तेमाल के योग्य नहीं रह गए हैं।
एसएसएलवी ने उपग्रहों को वृत्ताकार कक्षा के बजाय अण्डाकार कक्षा में स्थापित किया है।
जब उपग्रह ऐसी कक्षा में स्थापित हो जाते हैं, तो वे वहां लंबे समय तक नहीं रह पाते और नीचे आ जाते हैं।
SSLV-D1 ने उपग्रहों को 356 किमी वृत्ताकार कक्षा के बजाय 356 किमी x 76 किमी अण्डाकार कक्षा में स्थापित किया।
अंतरिक्ष एजेंसी ने कहा कि एक समिति विश्लेषण करेगी कि यह असफल क्यों हुआ और इसरो जल्द ही एसएसएलवी-डी 2 के साथ वापस आएगा।
एसएसएलवी को सभी चरणों में "उम्मीद के मुताबिक" प्रदर्शन करने के बाद, अपने टर्मिनल चरण में 'डेटा हानि' का सामना करना पड़ा था।
ईओएस-02
भू प्रेक्षण उपग्रह ईओएस-02 और सह-यात्री छात्र उपग्रह आजादीसैट एसएसएलवी के लिए महत्त्वपूर्ण पेलोड हैं।
EOS-02 एक प्रायोगिक ऑप्टिकल रिमोट सेंसिंग उपग्रह है जिसमें उच्च स्थानिक विभेदन है।
इसका उद्देश्य एक प्रायोगिक इमेजिंग उपग्रह को एक छोटे टर्नअराउंड समय के साथ महसूस करना और उड़ाना तथा लॉन्च-ऑन-डिमांड क्षमता का प्रदर्शन करना है।
EOS-02 अंतरिक्ष यान की सूक्ष्म उपग्रह श्रृंखला से संबंधित है।
आजादीसैट
यह 8यू क्यूबसैट है जिसका वजन लगभग 8 किलोग्राम है।
इसमें 75 अलग-अलग पेलोड हैं, जिनमें से प्रत्येक का वजन लगभग 50 ग्राम है।
देश भर के ग्रामीण क्षेत्रों की छात्राओं को इन पेलोड के निर्माण के लिए मार्गदर्शन प्रदान किया गया।
पेलोड को 'स्पेस किड्ज इंडिया' की छात्र टीम द्वारा एकीकृत किया गया है।
इस उपग्रह से डेटा प्राप्त करने के लिए 'स्पेस किड्स इंडिया' द्वारा विकसित ग्राउंड सिस्टम का उपयोग किया जाएगा।
एसएसएलवी क्या है?
छोटा उपग्रह प्रक्षेपण यान (एसएसएलवी) 34 मीटर लंबा होता है, जो पीएसएलवी से लगभग 10 मीटर कम है।
पीएसएलवी के 2.8 मीटर की तुलना में इसका वाहन व्यास दो मीटर है।
एसएसएलवी के उद्देश्य
भू-पर्यावरण अध्ययन, वानिकी, जल विज्ञान, कृषि, मिट्टी और तटीय अध्ययन के क्षेत्र में सहायक अनुप्रयोगों के लिए थर्मल विसंगतियों पर इनपुट प्रदान करना।
अंतरिक्ष क्षेत्र और निजी भारतीय उद्योगों के बीच अधिक तालमेल बनाना।
10. सीएसआईआर की पहली महिला महानिदेशक बनीं नल्लाथम्बी कलाइसेल्वी
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वरिष्ठ विद्युत रासायनिक वैज्ञानिक नल्लाथम्बी कलाइसेल्वी वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की पहली महिला महानिदेशक बन गई हैं।
महत्वपूर्ण तथ्य
वह शेखर मांडे का स्थान लेंगी, जो अप्रैल में सेवानिवृत्त हो गए।
मांडे के सेवानिवृत्त होने के बाद जैवप्रौद्योगिकी विभाग के सचिव राजेश गोखले को सीएसआईआर का अतिरिक्त प्रभार दिया गया था।
लिथियम आयन बैटरी के क्षेत्र में अपने काम के लिए जानी जाने वाली, कलाइसेल्वी वर्तमान में तमिलनाडु के कराईकुडी में सीएसआईआर-केंद्रीय विद्युत रासायनिक अनुसंधान संस्थान के निदेशक हैं।
वह वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान विभाग के सचिव के रूप में भी कार्यभार संभालेंगी।
कलाइसेल्वी ने सीएसआईआर में अपनी नौकरी की शुरुआत करते हुए संस्थान में अच्छी-खासी साख बनाई और फरवरी 2019 में सीएसआईआर-सीईसीआरआई का नेतृत्व करने वाली पहली महिला बनीं।
कलाइसेल्वी का 25 साल से ज्यादा का अनुसंधान कार्य मुख्यत: विद्युत रासायनिक ऊर्जा प्रणाली, खासतौर से इलेक्ट्रोड के विकास पर केंद्रित रहा है।
वह वर्तमान में सोडियम-आयन/लिथियम-सल्फर बैटरी और सुपरकैपेसिटर के विकास पर काम कर रही हैं।
तमिलनाडु में तिरुनेलवेली जिले के छोटे-से शहर अंबासमुद्रम की रहने वाली कलाइसेल्वी ने तमिल माध्यम से स्कूली शिक्षा प्राप्त की।
लिथियम आयन बैटरी क्या हैं?
इसे ली-आयन बैटरी भी कहा जाता है, यह एक प्रकार की रिचार्जेबल बैटरी है।
ये आमतौर पर पोर्टेबल इलेक्ट्रॉनिक्स और इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए उपयोग किए जाते हैं और सैन्य और एयरोस्पेस अनुप्रयोगों के लिए लोकप्रियता में बढ़ रहे हैं।
इसका उपयोग औद्योगिक अनुप्रयोगों और एयरोस्पेस के अलावा मोबाइल फोन, लैपटॉप, कैमरा और कई अन्य पोर्टेबल उपभोक्ता गैजेट जैसे उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स सामान में भी किया जाता है।
ली-आयन बैटरी बाजार में चीन का दबदबा है।
मौजूदा घरेलू मांग का अधिकांश हिस्सा चीन, दक्षिण कोरिया और ताइवान से आयातित बैटरी से पूरा किया जाता है।
वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर)
यह विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत का सबसे बड़ा अनुसंधान और विकास संगठन है।
इसमें 37 राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं, 39 आउटरीच केंद्रों, 3 इनोवेशन कॉम्प्लेक्स और 5 इकाइयों का एक गतिशील नेटवर्क है।
यह दुनिया भर के 1587 सरकारी संस्थानों में 37वें स्थान पर है।
सीएसआईआर के अध्यक्ष (पदेन) प्रधान मंत्री हैं और केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री उपाध्यक्ष (पदेन) हैं।
यह विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित है।
स्थापित - सितंबर 1942
स्थित - नई दिल्ली