चुनाव लड़ने का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं : सुप्रीम कोर्ट

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13 सितंबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले  में कहा की चुनाव लड़ने का अधिकार न तो एक मौलिक अधिकार है, बल्कि क़ानून द्वारा प्रदत्त अधिकार है।

सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह द्वारा दायर एक विशेष अनुमति याचिका पर अपना फैसला सुना रहा था, जिसमे दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी उसकी  याचिका को खारिज कर दिया था।


महत्वपूर्ण तथ्य - 

विश्वनाथ प्रताप सिंह बनाम भारत निर्वाचन आयोग 2022 :

  • याचिकाकर्ता विश्वनाथ प्रताप सिंह जून 2022 में हुए राज्यसभा चुनाव लड़ना चाहते थे। उन्होंने अपने याचिका में यह दलील दी कि उन्होंने नामांकन फॉर्म हासिल कर लिया था लेकिन निर्वाचन आयोग ने उनके नाम का प्रस्ताव करने वाले उचित प्रस्तावक के न होने के कारण उन्हें  नामांकन दाखिल करने की अनुमति नहीं थी।
  • याचिकाकर्ता ने दावा किया कि चूंकि प्रस्तावक के बिना उनकी उम्मीदवारी स्वीकार नहीं की गई थी, इसलिए उनके बोलने और अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के उनके अधिकार का उल्लंघन किया गया था।
  • दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में उनकी इस  याचिका को खारिज कर दिया था कि उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन किया गया था।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला :

  • जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की दो जजों की बेंच ने जावेद बनाम हरियाणा राज्य, (2003) और राजबाला बनाम हरियाणा राज्य (2016) का जिक्र करते हुए , याचिका को खारिज करते हुए कहा कि चुनाव लड़ने का अधिकार न तो  एक मौलिक अधिकार और न ही एक सामान्य कानून अधिकार बल्कि यह एक क़ानून द्वारा प्रदत्त अधिकार है।"
  • पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता को संसद द्वारा बनाए गए कानून के अनुसार राज्यसभा का चुनाव लड़ने का कोई अधिकार नहीं है।
  • कोर्ट ने कहा कि, "लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और  चुनाव आचरण नियम, 1961  के तहत  नामांकन फॉर्म भरते समय उम्मीदवार के नाम  को  प्रस्तावित किया जाना अनिवार्य है।"
  • इसलिए, कोई व्यक्ति यह दावा नहीं कर सकता कि उसे चुनाव लड़ने का अधिकार है और उक्त शर्त उसके मौलिक अधिकार का उल्लंघन करती है, ताकि बिना किसी प्रस्तावक के अपना नामांकन दाखिल किया जा सके, जैसा कि अधिनियम के तहत आवश्यक है।"
  • सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया और उस पर  एक लाख ₹ का जुर्माना भी लगाया और कहा कि चार सप्ताह के भीतर यह राशी सुप्रीम कोर्ट कानूनी सहायता समिति को भुगतान किया जाए।

प्रस्तावक और अनुमोदक :

  • गैर-गंभीर उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से हतोत्साहित करने के लिए, कानून में प्रावधान है कि एक उम्मीदवार जो चुनाव लड़ना चाहता है, उसे एक नामांकन पत्र दाखिल करना होगा, जिस पर प्रस्तावक द्वारा हस्ताक्षर किए जाने चाहिए और अनुमोदक द्वारा समर्थित होना चाहिए। वह व्यक्ति जो प्रस्तावक है, वह अनुमोदक नहीं बन सकता।
  • प्रस्तावक और अनुमोदक वे मतदाता हैं जिन्हें उस पद के लिए वोट देने का अधिकार है ।

राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति चुनाव अधिनियम, 1952 राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव के लिए प्रस्तावक और अनुमोदक का प्रावधान करता है।

वे इस प्रकार हैं :

पद

प्रस्तावक

अनुमोदक

राष्ट्रपति

50 मतदाता

50 मतदाता

उप-राष्ट्रपति

20 मतदाता

20 मतदाता

अतिरिक्त जानकारी -

संसद और राज्य विधानमंडल के लिए :

  • जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 33 (1) के अनुसार, एक उम्मीदवार जो किसी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल से संबंधित है, को लोकसभा या राज्यसभा या विधान सभा या विधान परिषद चुनाव, चुनाव लड़ने के लिए नामांकन दाखिल करने के लिए केवल 1  प्रस्तावक  (उस निर्वाचन क्षेत्र का मतदाता जहां पर  चुनाव हो रहा है) की आवश्यकता है ।
  • यदि उम्मीदवार किसी गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल या निर्दलीय से है तो प्रस्तावक की आवश्यकता 10 है।

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