देशद्रोह कानून पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाई
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सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 124A (देशद्रोह) के तहत लंबित आपराधिक मुकदमे और अदालती कार्यवाही को निलंबित कर दिया साथ ही ब्रिटिश-युग के इस कानून पर पुनर्विचार करने की अनुमति दी।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों को धारा 124ए के तहत एफआर दर्ज करने, जांच जारी रखने या दंडात्मक कार्रवाई करने पर भी रोक लगा दिया।
राजद्रोह कानून के बारे में
भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए में राजद्रोह की सजा का प्रावधान है।
ब्रिटिश राज के तहत 1860 में IPC अधिनियमित किया गया था।
भारत में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार को डर था कि भारतीय उपमहाद्वीप के धार्मिक उपदेशक सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ देंगे।
अंग्रेजों द्वारा वहाबी आंदोलन के सफल दमन के बाद ऐसे कानून की आवश्यकता महसूस की गई।
इस धारा का इस्तेमाल अंग्रेजों द्वारा राष्ट्रीय स्वतंत्रता के पक्ष में कार्यकर्ताओं को दबाने के लिए किया गया था, जिसमें तिलक और महात्मा गांधी शामिल थे, दोनों को दोषी पाया गया और जेल में डाल दिया गया।
राजद्रोह संज्ञेय अपराध के रूप में
1973 में प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल के दौरान इसे भारत में इतिहास में पहली बार संज्ञेय अपराध बनाया गया था।
संज्ञेय अपराध का अर्थ है बिना वारंट के गिरफ्तारी।
भारत के दो उच्च न्यायालयों ने स्वतंत्रता के बाद इसे असंवैधानिक पाया था, क्योंकि यह वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है।
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