सीडीएफडी ने बच्चों में दुर्लभ आनुवंशिक रोगों के उपचार विकसित करने के लिए अध्ययन शुरू किया
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हैदराबाद स्थित सेंटर फॉर डीएनए फ़िंगरप्रिंटिंग एंड डायग्नोस्टिक्स (सीडीएफडी) ने 1 नवंबर, 2022 को बच्चों में बाल चिकित्सा दुर्लभ आनुवंशिक विकार (PRaGeD) का कारण बनने वाले आनुवंशिक उत्परिवर्तन को डिकोड करने के लिए एक देशव्यापी अध्ययन शुरू किया।
महत्वपूर्ण तथ्य
PRaGeD मिशन जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) द्वारा वित्त पोषित एक अखिल भारतीय पहल है।
यह पहल दुर्लभ बीमारियों का कारण बनने वाले जीन की खोज करेगी, उपयुक्त उपचार विकसित करेगी, परामर्श प्रदान करेगी और लोगों में जागरूकता भी पैदा करेगी।
इस अध्ययन में देश भर के लगभग 15 अनुसंधान और स्वास्थ्य संस्थान भाग ले रहे हैं।
इस पहल के तहत पांच साल की अवधि में 5,600 परिवारों की जांच किया जाएगा ताकि अनियंत्रित बाल चिकित्सा दुर्लभ आनुवंशिक रोगों के आनुवंशिक कारणों की पहचान की जा सके।
एक बार इन बच्चों में आनुवंशिक उत्परिवर्तन का पता चलने के बाद, शोधकर्ता जानवरों और कोशिका मॉडल में अध्ययन करेंगे ताकि यह समझ सकें कि आनुवंशिक उत्परिवर्तन दुर्लभ बीमारी का कारण कैसे बन रहे हैं।
दुर्लभ आनुवंशिक रोग क्या है?
एक दुर्लभ बीमारी कोई भी ऐसी बीमारी है जो आबादी के एक छोटे प्रतिशत को प्रभावित करती है।
अधिकांश दुर्लभ रोग अनुवांशिक होते हैं, इसलिए इन्हें दुर्लभ आनुवंशिक रोग कहा जाता है।
ये रोग व्यक्ति के पूरे जीवन भर मौजूद रहते हैं, भले ही लक्षण तुरंत प्रकट न हों।
भारत में पाई जाने वाली आम दुर्लभ बीमारियां हैं हीमोफिलिया, थैलेसीमिया, सिकल सेल एनीमिया और बच्चों में प्राथमिक प्रतिरक्षा की कमी, ऑटो-प्रतिरक्षा रोग, लाइसोसोमल भंडारण विकार जैसे पोम्पे रोग, हिर्शस्प्रंग रोग आदि।
भारत में दुर्लभ आनुवंशिक बिमारियों का बोझ 7 करोड़ के करीब है और ऐसी बीमारियों से पीड़ित लगभग 30 प्रतिशत बच्चे पांच साल की उम्र से कम हैं।
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