93% भारतीय उच्च वायु प्रदूषण वाले क्षेत्रों में रहते हैं

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संयुक्त राज्य अमेरिका स्थित स्वास्थ्य प्रभाव संस्थान (हेल्थ इफ़ेक्ट इंस्टिट्यूट - एचईआई) ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट "स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर एनालिसिस फॉर द ईयर 2020" में पाया है कि लगभग 93% भारतीय आबादी उन क्षेत्रों में रहती है जहां वायु प्रदूषण विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानक से सात गुना अधिक है।

रिपोर्ट की मुख्य बातें

  • भारतीय आबादी का 93% पीएम 2.5 (2.5 माइक्रोन के आकार के कण पदार्थ) की कम से कम 35 माइक्रोग्राम / एम 3 सांद्रता वाली हवा के संपर्क में है।

  • डब्ल्यूएचओ के मानकों के अनुसार, पीएम2.5 की ऊपरी वार्षिक सीमा 5μg/m3 है।

  • वायु प्रदूषण के उच्च जोखिम के कारण, भारतीयों के जीवन के औसतन 1.51 वर्ष काम हो रहे हैं।

  • पीएम2.5 के बड़े जोखिम ने देशों और क्षेत्रों के लिए जीवन प्रत्याशा को भी कम कर दिया है- मिस्र (2.11 वर्ष), सऊदी अरब (1.91 वर्ष), भारत (1.51 वर्ष) चीन (1.32 वर्ष) और पाकिस्तान (1.31 वर्ष)।

  • विश्व की लगभग 100% जनसंख्या उन क्षेत्रों में रहती है जहाँ पीएम 2.5 का स्तर डब्ल्यूएचओ की सिफारिशों से अधिक है। 

  • कांगो, इथियोपिया, जर्मनी, बांग्लादेश, नाइजीरिया, पाकिस्तान, ईरान और तुर्की के बाद भारत को ओजोन के लिए नौवें सबसे अधिक प्रभावित देश के रूप में स्थान दिया गया था।

  • बुजुर्गों पर प्रदूषण का सबसे कम प्रभाव नॉर्वे, स्वीडन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में है।

अन्य महत्वपूर्ण तथ्य :

पीएम 2.5  या पार्टिकुलेट मैटर 2.5 और पीएम 10 या पार्टिकुलेट मैटर 10 

  • पार्टिकुलेट मैटर हवा में पाए जाने वाले ठोस और तरल पदार्थों के मिश्रण से बना होता है। इसमें धूल, गंदगी, कालिख आदि शामिल हैं।

  • पीएम या पार्टिकुलेट मैटर, सरल शब्दों में, धूल के छोटे कणों को संदर्भित करता है | 

  • धूल के कणों को उनके व्यास को माइक्रोन में मापकर वर्गीकृत किया जाता है। सार्वजनिक स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से सबसे महत्वपूर्ण प्रकार के पार्टिकुलेट मैटर PM2.5 और PM10 हैं।

  • पीएम 2.5 का व्यास 2.5 माइक्रोन और पीएम 10 का व्यास 10 माइक्रोन होता है।

  • यह फेफड़ों में प्रवेश करता है और अस्थमा, ब्रोंकाइटिस आदि जैसे श्वसन रोगों का कारण बनता है।

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