भारत के राष्ट्रपति ने राष्ट्रपति के अंगरक्षक को सिल्वर ट्रम्पेट और ट्रम्पेट बैनर भेंट किया
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राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 27 अक्टूबर, 2022 को राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक समारोह के दौरान राष्ट्रपति के अंगरक्षकों (पीबीजी) को सिल्वर ट्रम्पेट और ट्रम्पेट बैनर प्रदान किया।
महत्वपूर्ण तथ्य
यह आयोजन इसलिए विशेष है कि राष्ट्रपति के अंगरक्षक अपनी स्थापना के 250 वर्ष पूरे होने का जश्न मना रहे हैं।
इसे देश भर में मनाए जा रहे 'आजादी का अमृत महोत्सव' के साथ-साथ मनाया जा रहा है।
राष्ट्रपति के अंगरक्षक के बारे में
राष्ट्रपति के अंगरक्षक भारतीय सेना का सबसे पुराना रेजिमेंट है।
इसे 1773 में गवर्नर-जनरल के अंगरक्षक (बाद में वायसराय के अंगरक्षक) के रूप में स्थापित किया गया था।
भारत के राष्ट्रपति के निजी गार्ड के तौर पर यह भारतीय सेना की एकमात्र ऐसी सैन्य यूनिट है जिसे राष्ट्रपति के सिल्वर ट्रम्पेट और ट्रम्पेट बैनर ले जाने का विशेषाधिकार प्राप्त है।
वर्ष 1923 में तत्कालीन वायसराय लॉर्ड रीडिंग द्वारा अंगरक्षकों की 150 वर्ष की सेवा पूरी होने के अवसर पर राष्ट्रपति के अंगरक्षकों को यह सम्मान प्रदान किया गया था।
उसके बाद सभी वायसराय ने अंगरक्षकों को सिल्वर ट्रम्पेट और ट्रम्पेट बैनर प्रदान किया।
27 जनवरी, 1950 को इस रेजिमेंट का नाम बदलकर राष्ट्रपति के अंगरक्षक कर दिया गया।
प्रत्येक राष्ट्रपति ने इस रेजिमेंट को सम्मानित करने की प्रथा को जारी रखा।
इसमें हथियारों के एक राज्य-चिह्न, (औपनिवेशिक युग में प्रथा) के बजाय राष्ट्रपति का मोनोग्राम बैनर पर दिखाई देता है।
भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 14 मई, 1957 को राष्ट्रपति के अंगरक्षकों को अपना सिल्वर ट्रम्पेट और ट्रम्पेट बैनर भेंट किया था।
राष्ट्रपति के अंगरक्षकों का गठन बनारस (वाराणसी) में तत्कालीन गवर्नर-जनरल वारेन हेस्टिंग्स द्वारा किया गया था।
इसकी शुरुआती ताकत 50 घुड़सवार सैनिकों की थी, बाद में अन्य 50 घुड़सवारों को भी उसमें शामिल किया गया।
राष्ट्रपति के अंगरक्षकों में खास शारीरिक विशेषताओं वाले चुने पुरुष सैनिक शामिल होते हैं।
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