रेलवे ने 2030 तक शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन हासिल करने की योजना बनाई
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भारतीय रेलवे ने हरित पर्यावरण के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण अपनाया है और 2030 तक शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जक बनने के लिए कार्बन फुटप्रिंट को कम करने की योजना बनाई है।
महत्वपूर्ण तथ्य
रेलवे मुख्य रूप से अक्षय ऊर्जा स्रोत से अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करते हुए कार्बन फुटप्रिंट को कम करने का प्रयास करेगा।
नेट जीरो एमिटर के लिए अन्य रणनीतियों में रेल मार्गों के विद्युतीकरण का बहु-आयामी दृष्टिकोण, डीजल से इलेक्ट्रिक ट्रैक्शन में स्थानांतरण, ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देना और समर्पित माल ढुलाई गलियारा (डेडिकेटिड फ्रेट कॉरिडोर) का निर्माण शामिल है।
2029-30 तक, अक्षय क्षमता की स्थापना की अपेक्षित आवश्यकता लगभग 30 GW होगी।
भारतीय रेलवे ने अगस्त, 2022 तक 142 मेगावाट सौर रूफटॉप क्षमता और 103.4 मेगावाट पवन ऊर्जा क्षमता स्थापित की है।
रेलवे ने 65,141 किलोमीटर ब्रॉड गेज नेटवर्क (80.61%) में से 52,508 किलोमीटर रेल मार्ग का विद्युतीकरण किया है।
जलवायु परिवर्तन से निपटने में रेलवे का योगदान
भारतीय रेल ने हरित परिवहन के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण अपनाया है ताकि थल आधारित माल ढुलाई में भारतीय रेल की कुल हिस्सेदारी को वर्तमान 36 प्रतिशत से बढ़ाकर 2030 तक 45 प्रतिशत किया जा सके।
भारतीय रेल देश भर में डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (डीएफसी) स्थापित कर रही है। इसके पहले चरण में 30 साल की अवधि में उत्सर्जन में लगभग 457 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड की कमी आने का अनुमान है।
ट्रैक्शन डीजल ईंधन में जैव ईंधन के 5 प्रतिशत सम्मिश्रण का उपयोग किया जाएगा।
2030 तक जल उपयोग दक्षता में 20 प्रतिशत सुधार किया जाएगा।
कार्बन अवशोषण बढ़ाने के लिए वृक्षारोपण किया जाएगा, अपशिष्ट प्रबंधन और प्रदूषण नियंत्रण पर जोर होगा।
रेल मंत्री - अश्विनी वैष्णव
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