राजस्थान में रेत खनन को हरी झंडी

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केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से मंजूरी मिलने के बाद राजस्थान में रेत (नदी तल - बजरी) खनन आरंभ हो जाएगा।

  • उच्चतम न्यायालय ने 16 नवंबर, 2017 को राज्य में 82 बड़े पट्टा धारकों को नदी किनारे की रेत खनन से रोक दिया था क्योंकि इससे नदी पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित हों रहा था।

  • उच्चतम न्यायालय ने अपने आदेश में रेत के खनन पर तब तक रोक लगा दी जब तक कि एक वैज्ञानिक पुनःपूर्ति अध्ययन (साइंटिफिक रेप्लेनिशमेंट स्टडी) पूरा नहीं हो जाता और केंद्रीय  पर्यावरण और वन मंत्रालय मंजूरी नहीं दे देती।

  • केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से मंजूरी के बाद तथा अन्य आवश्यक औपचारिकताएं पूरी करने के बाद राज्य के लगभग सभी नदी तटों में खनन शुरू हो जाएगा।

नदी तल रेत या बजरी

इमारतों के निर्माण के लिए नदी के रेत को सीमेंट के साथ मिलाया जाता है। निर्माण के लिए नदी की रेत को प्राथमिकता दी जाती है क्योंकि इसमें कम प्रसंस्करण की आवश्यकता होती है और इसकी गुणवत्ता अन्य स्रोतों की तुलना में बेहतर होती है।

पारिस्थितिक समस्याएं

अंधाधुंध नदी रेत के खनन से नदी और उसके आसपास रहने वालों को भारी कीमत चुकानी पड़ती है। 

  • अत्यधिक रेत खनन नदी के तल को बदल सकता है, किनारों को नष्ट कर सकता है और  नदी के मार्ग को जबरन बदले जाने से  बाढ़ का खतरा  बन सकता है।

  • यह भूजल पुनर्भरण को प्रभावित करने के अलावा जलीय जानवरों और सूक्ष्म जीवों के आवास को भी नष्ट कर देता है।

  • सरकारी नियम कहते हैं कि जितनी रेत निकाली जानी है, वह पुनःपूर्ति स्तर के बराबर होगी।

  • पुनःपूर्ति दर वह दर है जिस पर बजरी को नदी तंत्र में लाया जाता है, जो रेत निष्कर्षण पर निर्भर करता है।

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