श्रीलंका कैबिनेट ने भारत के साथ त्रिंकोमाली तेल टैंक फार्म समझौता को मंजूरी दी

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कोलंबो में राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे की सरकार ने द्वीप राष्ट्र के उत्तर-पूर्वी तट पर त्रिंकोमाली में द्वितीय विश्व युद्ध से अपने अधिकांश रणनीतिक पेट्रोलियम भंडारों को विकसित और आधुनिक बनाने के लिए भारत के साथ एक प्रस्तावित सौदे को मंजूरी दे दी है।


  • द्वितीय विश्व युद्ध  से पहले बनी  इस  तेल भंडारण सुविधा में 850 एकड़ का क्षेत्र शामिल है और इसकी क्षमता लगभग 1 मिलियन टन है, जो श्रीलंका में मांग से कहीं अधिक है। त्रिंकोमाली चेन्नई का निकटतम बंदरगाह भी है और इसे छोटे जहाजों के लिए ईंधन भरने की सुविधा के रूप में विकसित कर इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • श्रीलंका के मंत्रियों के मंत्रिमंडल ने कंपनी की व्यावसायिक गतिविधियों के लिए इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन की सहायक लंका इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन द्वारा पहले से उपयोग किए जा रहे लोअर ऑयल टैंक कॉम्प्लेक्स के 14 तेल टैंक आवंटित करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी।
  • इसने संयुक्त उद्यम कंपनी, ट्रिंको पेट्रोलियम टर्मिनल प्राइवेट लिमिटेड को 61 टैंकों के आवंटन को भी मंजूरी दी, जिसमें 51% हिस्सेदारी सीलोन पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन के पास और 49% लंका आईओसी के पास होगी। यह व्यवस्था अगले 50 वर्षों के लिए है।
  • 29 जुलाई, 1987 के भारत-श्रीलंका समझौते के अनुबंध के हिस्से के रूप में तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी और श्रीलंका के राष्ट्रपति जे आर जयवर्धने के बीच समझौते की बात हुई थी उसके बाद से  इस विषय पर बातचीत हो रही है  कि टैंक फार्म को संयुक्त रूप से विकसित किया जाएगा।
  • भारत शुरू में त्रिंकोमाली में भारी निवेश करने के लिए अनिच्छुक था। चीन द्वारा हंबनटोटा बंदरगाह में भारी निवेश के बाद त्रिंकोमाली में भारत की दिलचस्पी बढ़ गई।

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