अविवाहित महिलाओं को सुरक्षित गर्भपात का अधिकार : सुप्रीम कोर्ट

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सुप्रीम कोर्ट ने 21 जुलाई को एक आदेश में कहा कि अविवाहित महिला को सुरक्षित गर्भपात के अधिकार से वंचित करना उसकी व्यक्तिगत स्वायत्तता और स्वतंत्रता का उल्लंघन है।

महत्वपूर्ण तथ्य

  • न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ एक महिला की अपील पर सुनवाई कर रहे थे, जो 24 सप्ताह के गर्भ को गिराना चाहती थी क्योंकि वह विवाह के पूर्व गर्भवती हो गई थी और उसके साथी ने उसे छोड़ दिया।

  • दिल्ली उच्च न्यायालय ने उसकी याचिका को यह कहते हुए ख़ारिज कर दिया था कि अविवाहित महिला के गर्भपात को मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत कवर नहीं किया गया था।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय 

  • बेंच ने कहा कि लिव-इन रिलेशनशिप को सुप्रीम कोर्ट पहले ही मान्यता दे चुका है।

  • सामाजिक मुख्यधारा में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जो विवाह पूर्व यौन संबंध बनाने में कोई बुराई नहीं देखते हैं।

  • संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक महिला का प्रजनन पसंद का अधिकार उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का एक अविभाज्य हिस्सा है।

  • एक महिला को शारीरिक अखंडता का पवित्र अधिकार है।

  • प्रजनन विकल्प चुनने का एक महिला का अधिकार भी 'व्यक्तिगत स्वतंत्रता' का एक आयाम है।

  • अदालत ने कहा कि एक महिला को अपनी गर्भावस्था जारी रखने के लिए मजबूर करना न केवल उसकी शारीरिक अखंडता का उल्लंघन होगा बल्कि उसके मानसिक आघात को भी बढ़ा देगा।

  • सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश जारी किया कि एम्स डायरेक्टर एक मेडिकल बोर्ड का गठन करें जो महिला का मेडिकल एग्जामिनेशन करेगा और यह देखेगा कि महिला के गर्भपात से उसको जीवन का कोई खतरा तो नहीं है। 

  • अगर इस निष्कर्ष पर मेडिकल बोर्ड पहुंचता है कि 24 हफ्ते के गर्भ के टर्मिनेशन से कोई खतरा नहीं है तो महिला का प्रिगनेंसी टर्मिनेट कराया जाए। 

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