उत्तराखंड ने समान नागरिक संहिता के कार्यान्वयन के लिए विशेषज्ञ पैनल का गठन किया
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उत्तराखंड सरकार ने 27 मई को राज्य में समान नागरिक संहिता को लागू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में विशेषज्ञों का एक पैनल गठित किया।
समान नागरिक संहिता में विवाह, तलाक, भरण-पोषण, उत्तराधिकार, गोद लेने और अन्य व्यक्तिगत कानूनों को नियंत्रित करने वाले कानूनों की समीक्षा शामिल है।
समिति समुदायों में व्यक्तिगत कानून से संबंधित सभी कानूनों और मामलों की जांच करेगी और एक समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार करेगी।
यदि उत्तराखंड समान नागरिक संहिता लागू होता है वह ऐसा करने वाला देश में गोवा के बाद दूसरा राज्य होगा।
पैनल प्रमुख और उसके सदस्यों के नाम
सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई (परिसीमन आयोग के वर्तमान प्रमुख समिति की अध्यक्षता करेंगे)
सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति प्रमोद कोहली
सामाजिक कार्यकर्ता मनु गौर (भारत करदाता संघ के प्रमुख)
सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी शत्रुघ्न सिंह
दून यूनिवर्सिटी की वाइस चांसलर सुरेखा डंगवाल
क्या है समान नागरिक संहिता?
समान नागरिक संहिता का अर्थ है पूरे देश के लिए एक कानून, जो सभी धार्मिक समुदायों पर उनके व्यक्तिगत मामलों जैसे शादी, तलाक, विरासत, गोद लेने आदि में लागू होता है।
संविधान का अनुच्छेद 44 देश के प्रत्येक नागरिक के लिए समान नागरिक संहिता हासिल करने की बात करता है।
अनुच्छेद 44 राज्य के नीति निदेशक तत्वों (DPSP) में से एक है।
संविधान का अनुच्छेद 37 यह स्पष्ट करता है कि DPSP "किसी भी अदालत द्वारा लागू नहीं किया जाएगा" लेकिन उसमें निर्धारित सिद्धांत शासन में मौलिक हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार संसद को शाह बानो मामले में वर्ष 1985 में एक समान नागरिक संहिता बनाने का निर्देश दिया था।
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