नीति आयोग ने 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन लक्ष्य हासिल करने के लिए 'कार्बन कैप्चर' पर अध्ययन रिपोर्ट जारी की

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NITI Aayog releases study report on ‘Carbon Capture"

नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया (नीति) आयोग ने 29 नवंबर 2022 को 'कार्बन कैप्चर, यूटिलाइजेशन एंड स्टोरेज पॉलिसी फ्रेमवर्क एंड इट्स डिप्लॉयमेंट मैकेनिज्म इन इंडिया' शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है।

रिपोर्ट 2070 तक भारत के शुद्ध शून्य लक्ष्य को पूरा करने के लिए उत्सर्जन में कमी की रणनीति के रूप में कार्बन कैप्चर, उपयोग और भंडारण के महत्व की पड़ताल करती है। यह रिपोर्ट इसके अनुप्रयोग के लिए विभिन्न क्षेत्रों में आवश्यक व्यापक स्तर के नीतिगत हस्तक्षेपों की रूपरेखा प्रस्तुत करती है।

भारत ने गैर-जीवाश्म-आधारित ऊर्जा स्रोतों से अपनी कुल स्थापित क्षमता का 50% प्राप्त करने, 2030 तक उत्सर्जन तीव्रता में 45% की कमी और 2070 तक नेट शून्य प्राप्त करने की दिशा में कदम उठाने के लिए अपने अद्यतन राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) के माध्यम से प्रतिबद्ध किया है।

इसका मतलब है कि भारत को कोयला, तेल और गैस जैसे जीवाश्म ईंधन की खपत को कम करना होगा। हालाँकि, हाल के अध्ययन से पता चलता है कि बिजली उत्पादन के लिए जीवाश्म ईंधन विशेष रूप से कोयले पर भारत की निर्भरता कम होने के बजाय बढ़ने की संभावना है।

नीति आयोग के वाइस चेयरमैन सुमन बेरी के अनुसार, कार्बन कैप्चर, यूटिलाइजेशन एंड स्टोरेज (सीसीएसयू) कोयले के हमारे समृद्ध भंडार का उपयोग करते हुए स्वच्छ उत्पादों के उत्पादन को सक्षम कर सकता है।

सीसीएसयू कैप्चर के संभावित लाभ

रिपोर्ट इंगित करती है कि सीसीएसयू कैप्चर किए गए कार्बन डाइ ऑक्साइड

को विभिन्न मूल्य वर्धित उत्पादों जैसे ग्रीन यूरिया, खाद्य और पेय फॉर्म एप्लिकेशन, निर्माण सामग्री (कंक्रीट और समुच्चय), रसायन (मेथनॉल और इथेनॉल), पॉलिमर ( बायो-प्लास्टिक सहित) में परिवर्तित किया जा सकता है ।

सीसीयूएस परियोजनाओं से महत्वपूर्ण रोजगार सृजन भी होगा। अनुमान है कि 2050 तक लगभग 750 मिलियन टन प्रति वर्ष कार्बन कैप्चर चरणबद्ध तरीके से पूर्णकालिक समतुल्य (FTE) आधार पर लगभग 8-10 मिलियन रोजगार के अवसर पैदा कर सकता है।

कार्बन कैप्चर स्टोरेज एंड यूटिलाइजेशन (सीसीएसयू)

  • इस प्रक्रिया के तहत जीवाश्म ईंधन के उपयोग से निकले कार्बन डाइऑक्साइड को वातावरण में छोड़े जाने से पहले उसे पकड़ कर एक सुरक्षित जगह में  भण्डारण किया जाता है जिससे  ग्लोबल वार्मिंग का खतरा कम हों सकता है ।
  • संग्रहित  की गई कार्बन-डाइऑक्साइड का उपयोग व्यावसायिक रूप से विपणन योग्य उत्पाद बनाने के लिए किया जा सकता है। इसे कार्बन कैप्चर स्टोरेज एंड यूटिलाइजेशन (सीसीएसयू) कहा जाता है।आम तौर पर इसका उपयोग तेल निष्कर्षण को बढ़ाने  में किया जाता है जहां कार्बन डाइऑक्साइड को तेल क्षेत्रों में उनकी निष्कर्षण दक्षता बढ़ाने के लिए इंजेक्ट किया जाता है।
  • पहली बड़े पैमाने पर सीसीएस परियोजना 1996 में नॉर्वे में स्लीपनर में  शुरू हुई थी ।

भारत सरकार की अन्य पहल

भारत सरकार कार्बन कैप्चर और उपयोग के क्षेत्र में अत्याधुनिक अनुसंधान और अनुप्रयोग-उन्मुख पहल के लिए दीर्घकालिक अनुसंधान, डिजाइन विकास, सहयोगी और क्षमता निर्माण केंद्रों के लिए दो राष्ट्रीय उत्कृष्टता केंद्र स्थापित कर रही है।

ये दो केंद्र हैं:

  • नेशनल सेंटर ऑफ एक्सीलेंस इन कार्बन कैप्चर एंड यूटिलाइजेशन (एनसीओई-सीसीयू) के नाम से भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी ) बॉम्बे, मुंबई में और
  • जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च (जेएनसीएएसआर), में नेशनल सेंटर इन कार्बन कैप्चर एंड यूटिलाइजेशन (एनसीसीसीयू), बेंगलुरु में स्थापित किए जा रहे हैं।


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