सुप्रीम कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग मामलों में गिरफ्तारी के ईडी के अधिकार को बरकरार रखा
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सुप्रीम कोर्ट ने 27 जुलाई को धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के कुछ प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा।
महत्वपूर्ण तथ्य
न्यायमूर्ति एएम खानविलकर की अगुवाई वाली पीठ ने ईडी द्वारा की गई गिरफ्तारी, जब्ती और जांच की प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुनाया।
सुप्रीम कोर्ट ने प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग (PMLA) एक्ट के तहत संपत्ति के संबंध में पूछताछ, गिरफ्तारी और कुर्की करने की प्रवर्तन निदेशालय की शक्ति को बरकरार रखा।
सुप्रीम कोर्ट ने पीएमएलए की धारा 5, 8(4), 15, 17 और 19 के प्रावधानों की संवैधानिकता को बरकरार रखा, जो ईडी की गिरफ्तारी, कुर्की और तलाशी और जब्ती की शक्तियों से संबंधित हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि इंफोर्समेंट केस इंफॉर्मेशन रिपोर्ट (ईसीआईआर) जिसे एक तरह से एफआईआर की कॉपी माना जाता है, आरोपी को यह कॉपी देना जरूरी नहीं है. ईडी के लिए गिरफ्तारी के समय कारण बताना ही काफी होगा।
धन शोधन निवारण अधिनियम क्या है?
इस अधिनियम को 2002 में अधिनियमित किया गया था और इसे 2005 में लागू किया गया।
इस कानून का मुख्य उद्देश्य काले धन को सफेद (मनी लॉन्ड्रिंग) में बदलने की प्रक्रिया से लड़ना है।
पीएमएलए के तहत अपराधों की जांच के लिए जिम्मेदार प्राधिकरण प्रवर्तन निदेशालय-ईडी है।
मनी लॉन्ड्रिंग के दोषी पाए जाने वाले व्यक्तियों को कम से कम 3 वर्ष का कठोर कारावास, जिसे 7 वर्ष तक के लिए बढ़ाया जा सकता है, हो सकती है साथ में जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
पीएमएलए के उद्देश्य
अवैध गतिविधियों और आर्थिक अपराधों में काले धन के उपयोग को रोकना
मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल या उससे प्राप्त संपत्ति को जब्त करना
मनी लॉन्ड्रिंग के जुड़े अन्य प्रकार के अपराधों को रोकने का प्रयास करना
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी)
इसकी स्थापना वर्ष 1956 में हुई थी तथा इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है।
यह विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 (फेमा) और धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत कुछ प्रावधानों को लागू करने के लिए जिम्मेदार है।
यह परिचालन उद्देश्यों के लिए राजस्व विभाग के प्रशासनिक नियंत्रण में काम करता है।
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