विश्व बैंक ने ‘किशनगंगा’ और ‘रतले’ जलविद्युत परियोजना के लिए तटस्थ विशेषज्ञ और मध्यस्थता अदालत के अध्यक्ष की नियुक्ति की
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विश्व बैंक ने 1960 की सिंधु जल संधि को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच असहमति और मतभेदों को देखते हुए किशनगंगा और रातले जलविद्युत संयंत्रों के संबंध में एक "तटस्थ विशेषज्ञ" और मध्यस्थता अदालत का अध्यक्ष नियुक्त किया है।
सिंधु जल संधि के तहत यदि भारत और पाकिस्तान के बीच संधि के प्रावधानों पर विवाद होता है तो विश्व बैंक दोनों के बीच मध्यस्थता करेगा।
इंटरनेशनल लार्ज डैम कमीशन के चेयरमैन मिशेल लिनो को तटस्थ विशेषज्ञ और सीन मर्फी को कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन का चेयरमैन नियुक्त किया गया है।
पाकिस्तान ने विश्व बैंक से दो पनबिजली परियोजनाओं के डिजाइन के बारे में अपनी चिंताओं पर विचार करने के लिए मध्यस्थता अदालत की स्थापना की सुविधा के लिए कहा, जबकि भारत ने दो परियोजनाओं पर समान चिंताओं पर विचार करने के लिए एक तटस्थ विशेषज्ञ की नियुक्ति के लिए कहा था ।
सिंधु जल संधि
1960 की सिंधु जल संधि, तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान द्वारा हस्ताक्षर किए गए थे। इसमें विश्व बैंक ने मध्यस्थ की भूमिका निभाई थी।
- इस संधि के तहत ,पश्चिमी नदियाँ ; सिंधु झेलम और चिनाब पाकिस्तान को आवंटित किया है और पूर्वी नदियाँ; सतलुज, रावी और ब्यास ,भारत को आवंटित किया है ।
- संधि के तहत भारत उस नदी के प्रवाह को प्रतिबंधित नहीं करेगा जिसे पाकिस्तान को सौंपा गया है, लेकिन वह इस नदी का उपयोग जलविद्युत परियोजनाओं के लिए इस शर्त पर कर सकता है कि पाकिस्तान में इन नदियों के पानी का प्रवाह में महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित न हो।
- सिंधु जल संधि के इस प्रावधान के कारण, भारत ने रतले और किशनगंगा परियोजना को रन ऑफ द रिवर प्रोजेक्ट के रूप में डिजाइन किया है।
रन ऑफ द रिवर प्रोजेक्ट
रन ऑफ द रिवर नदी परियोजना के संचालन में, जल भंडारण के उद्देश्यों के लिए जलाशयों का निर्माण नहीं किया जाता है और ऊंचाई से पानी के प्राकृतिक प्रवाह का उपयोग , बिजली उत्पादन के लिए सूक्ष्म टर्बाइनों को चलाने के लिए किया जाता है।
भारत के अनुसार ऐसी पनबिजली परियोजनाएं सिंधु जल संधि का उल्लंघन नहीं करती हैं क्योंकि इसमें कोई जल भंडारण नहीं होता है ।
किशनगंगा और रतले परियोजना पर विवाद
किशनगंगा या नीलम (पाकिस्तान के लिए) झेलम नदी की एक सहायक नदी है। भारत ने इस नदी पर, जम्मू और कश्मीर में 330 मेगावाट की क्षमता वाली रन ऑफ द रिवर नदी परियोजना का निर्माण किया है।
इस परियोजना का उद्घाटन पीएम मोदी ने 2018 में किया था। पाकिस्तान का तर्क है कि परियोजना के दोषपूर्ण डिजाइन के कारण पाकिस्तान में प्रवेश करने वाली नदी का प्रवाह प्रभावित हुआ है।
रतले जलविद्युत परियोजना
यह जम्मू और कश्मीर के किश्तवाड़ जिले में चिनाब नदी पर बनाई जा रही रन ऑफ द रिवर नदी परियोजना है। 2013 में पाकिस्तान सरकार ने इस परियोजना पर आपत्ति जताई क्योंकि यह सिंधु जल संधि का उल्लंघन था। 2017 में विश्व बैंक ने भारत को उस परियोजना को शुरू करने की अनुमति दी जिसका पाकिस्तान ने विरोध किया था। पाकिस्तान की ताजा आपत्ति के बाद दोनों देशों ने विश्व बैंक को मध्यस्ता के लिए कहा ।
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