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अनुच्छेद को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
सच्चा उत्साह वही होता है जो मनुष्य को कार्य करने के लिए प्रेरणा देता है। मनुष्य किसी भी कारणवश जब किसी के कष्ट को दूर करने का संकल्प करता है, तब जिस सुख को वह अनुभव करता है, वह सुख विशेष रूप से प्रेरणा देने वाला होता है। जिस भी कार्य को करने के लिए मनुष्य में कष्ट, दुःख या हानि को सहन करने की ताकत आती है, उन सबसे उत्पन्न आनंद ही उत्साह कहलाता है। उदाहरण के लिए दान देने वाला व्यक्ति निश्चय ही अपने भीतर एक विशेष साहस रखता है और वह है धन-त्याग का साहस। यही त्याग यदि मनुष्य प्रसन्नता के साथ करता है तो उसे उत्साह से किया गया दान कहा जाएगा। उत्साह आनंद और साहस का मिला-जुला रूप है। उत्साह में किसी-न- किसी वस्तु पर ध्यान अवश्य केंद्रित होता है। वह चाहे कर्म पर, चाहे कर्म के फल पर और चाहे व्यक्ति या वस्तु पर हो। इन्हीं के आधार पर कर्म करने में आनंद मिलता है। कर्म-भावना से उत्पन्न आनंद का अनुभव केवल सच्चे वीर ही कर सकते हैं, क्योंकि उनमें साहस की अधिकता होती है। सामान्य व्यक्ति कार्य पूरा हो जाने पर जिस आनंद का अनुभव करता है, सच्चा वीर कार्य प्रारंभ होने पर ही उसका अनुभव कर लेता है। आलस्य उत्साह का सबसे बड़ा शत्रु है। जो व्यक्ति आलस्य से भरा होगा, उसमें काम करने के प्रति उत्साह कभी उत्पन्न नहीं हो सकता। उत्साही व्यक्ति असफल होने पर भी कार्य करता रहता है। उत्साही व्यक्ति सदा दृढ़-निश्चयी होता है।
कर्म करने में आनंद किस कारण से मिलता है ?
कर्म करने में आनंद कर्म, कर्मफल, व्यक्ति या वस्तु पर ध्यान केंद्रित होने से मिलता है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु -
अनुच्छेद को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
सच्चा उत्साह वही होता है जो मनुष्य को कार्य करने के लिए प्रेरणा देता है। मनुष्य किसी भी कारणवश जब किसी के कष्ट को दूर करने का संकल्प करता है, तब जिस सुख को वह अनुभव करता है, वह सुख विशेष रूप से प्रेरणा देने वाला होता है। जिस भी कार्य को करने के लिए मनुष्य में कष्ट, दुःख या हानि को सहन करने की ताकत आती है, उन सबसे उत्पन्न आनंद ही उत्साह कहलाता है। उदाहरण के लिए दान देने वाला व्यक्ति निश्चय ही अपने भीतर एक विशेष साहस रखता है और वह है धन-त्याग का साहस। यही त्याग यदि मनुष्य प्रसन्नता के साथ करता है तो उसे उत्साह से किया गया दान कहा जाएगा। उत्साह आनंद और साहस का मिला-जुला रूप है। उत्साह में किसी-न- किसी वस्तु पर ध्यान अवश्य केंद्रित होता है। वह चाहे कर्म पर, चाहे कर्म के फल पर और चाहे व्यक्ति या वस्तु पर हो। इन्हीं के आधार पर कर्म करने में आनंद मिलता है। कर्म-भावना से उत्पन्न आनंद का अनुभव केवल सच्चे वीर ही कर सकते हैं, क्योंकि उनमें साहस की अधिकता होती है। सामान्य व्यक्ति कार्य पूरा हो जाने पर जिस आनंद का अनुभव करता है, सच्चा वीर कार्य प्रारंभ होने पर ही उसका अनुभव कर लेता है। आलस्य उत्साह का सबसे बड़ा शत्रु है। जो व्यक्ति आलस्य से भरा होगा, उसमें काम करने के प्रति उत्साह कभी उत्पन्न नहीं हो सकता। उत्साही व्यक्ति असफल होने पर भी कार्य करता रहता है। उत्साही व्यक्ति सदा दृढ़-निश्चयी होता है।
सच्चे वीर वे होते हैं -
सच्चे वीर वे होते हैं - जो कर्म भाव से उत्साह दिखाते हैं।
निम्नलिखित अनुच्छेद को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
आजकल मनुष्य का जीवन कुछ अलग रूप में करवट ले रहा है। शारीरिक श्रम की कमी, अनियमित जीवनशैली, अनियमित नींद, सादा खान-पान का अभाव, मोबाइल, कम्प्यूटर और टेलीविजन में व्यस्तता, समस्याएँ और तनाव, फेसबुक पर हज़ारों मित्र होते हुए भी सच्चे मित्रों और सम्बन्धियों की कमी, अकेलापन और तनावग्रस्त जीवन- ये घर-घर की कहानी बनती जा रही है।
विज्ञापन हमारी मानसिक शांति और संतुष्टि को हमसे दूर कर रहे हैं। पड़ोसियों और रिश्तेदारों के साथ होड़ भी हमारी अशांति का कारण है। आध्यात्मिकता का अभाव, ईश्वर में विश्वास का न होना, असंतोष, अतृप्ति और धोखाधड़ी हर दिन बढ़ रहे हैं। नीतिगत मूल्यों का ह्रास हो न रहा है। सरलता को मूर्खता कहा जाता है और धोखाधड़ी को चतुराई।
शरीर, मन और आत्मा के मध्य का संतुलन बिगड़ता जा रहा है। दूसरों को नीचा दिखाकर हम अपना कद बढ़ा रहे हैं। योग, व्यायाम और मैदान के खेलकूद धीरे-धीरे गायब हो रहे हैं। लोगों के घर पहले से ज्यादा बड़े हुए हैं; पर हमारे दिल छोटे होते जा रहे हैं। माँ प्रकृति से हम दूर होते चले जा रहे हैं।
शिक्षकों को मोटी तनख्वाह चाहिए; परन्तु जीवन मूल्यों से अपने आपको और अपने छात्रों को दूर ही रखना है । इंजीनियर को भी घोटाले ज्यादा पसंद आते हैं जिससे ज्यादा पैसा बने । आई टी से जुड़े लोग, एम बी ए और अन्य सभी को भी व्हाइट कॉलर जॉब ही पसंद हैं। पैसे वालों के बच्चों की परवरिश दूसरे लोग कर रहे हैं।
माँ बाप दोनों के पास बच्चों के लिए समय नहीं है - भ्रष्टाचार द्वारा उपार्जित धन से लोग अपने कल्याण की चाह रखते हैं। बूढ़े माँ-बाप को वृद्धाश्रम भेजने वाले लोग भविष्य में अपनी संतान द्वारा सेवा और सद्व्यवहार की कामना कर रहे हैं।
रक्तचाप, मधुमेह, लिवर और किडनी के रोग, थाइरॉइड, अनेक प्रकार के कैंसर, आदि अनेक रोग अल्पायु में ही हो रहे हैं। क्या हमारे पास इतना समय नहीं है कि हम कभी इन सभी के कारणों और समाधानों के बारे में सोचें ?
मोबाइल, कम्प्यूटर और टेलीविजन में अत्यधिक व्यस्तता हमारे जीवन को किस रूप में सर्वाधिक प्रभावित करती है ?
मोबाइल, कम्प्यूटर और टेलीविजन में अत्यधिक व्यस्तता हमारे जीवन को सर्वाधिक प्रभावित करती है क्योंकि लम्बे समय तक टेलीविजन, कम्प्यूटर और सोशल मीडिया में व्यस्त होने पर व्यक्ति वास्तविक दुनियाँ से दूर की दुनियाँ में जीने लगता है । उसका स्वास्थ्य चौपट होने लगता है।
निम्नलिखित अनुच्छेद को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
आजकल मनुष्य का जीवन कुछ अलग रूप में करवट ले रहा है। शारीरिक श्रम की कमी, अनियमित जीवनशैली, अनियमित नींद, सादा खान-पान का अभाव, मोबाइल, कम्प्यूटर और टेलीविजन में व्यस्तता, समस्याएँ और तनाव, फेसबुक पर हज़ारों मित्र होते हुए भी सच्चे मित्रों और सम्बन्धियों की कमी, अकेलापन और तनावग्रस्त जीवन- ये घर-घर की कहानी बनती जा रही है।
विज्ञापन हमारी मानसिक शांति और संतुष्टि को हमसे दूर कर रहे हैं। पड़ोसियों और रिश्तेदारों के साथ होड़ भी हमारी अशांति का कारण है। आध्यात्मिकता का अभाव, ईश्वर में विश्वास का न होना, असंतोष, अतृप्ति और धोखाधड़ी हर दिन बढ़ रहे हैं। नीतिगत मूल्यों का ह्रास हो न रहा है। सरलता को मूर्खता कहा जाता है और धोखाधड़ी को चतुराई।
शरीर, मन और आत्मा के मध्य का संतुलन बिगड़ता जा रहा है। दूसरों को नीचा दिखाकर हम अपना कद बढ़ा रहे हैं। योग, व्यायाम और मैदान के खेलकूद धीरे-धीरे गायब हो रहे हैं। लोगों के घर पहले से ज्यादा बड़े हुए हैं; पर हमारे दिल छोटे होते जा रहे हैं। माँ प्रकृति से हम दूर होते चले जा रहे हैं।
शिक्षकों को मोटी तनख्वाह चाहिए; परन्तु जीवन मूल्यों से अपने आपको और अपने छात्रों को दूर ही रखना है । इंजीनियर को भी घोटाले ज्यादा पसंद आते हैं जिससे ज्यादा पैसा बने । आई टी से जुड़े लोग, एम बी ए और अन्य सभी को भी व्हाइट कॉलर जॉब ही पसंद हैं। पैसे वालों के बच्चों की परवरिश दूसरे लोग कर रहे हैं।
माँ बाप दोनों के पास बच्चों के लिए समय नहीं है - भ्रष्टाचार द्वारा उपार्जित धन से लोग अपने कल्याण की चाह रखते हैं। बूढ़े माँ-बाप को वृद्धाश्रम भेजने वाले लोग भविष्य में अपनी संतान द्वारा सेवा और सद्व्यवहार की कामना कर रहे हैं।
रक्तचाप, मधुमेह, लिवर और किडनी के रोग, थाइरॉइड, क अनेक प्रकार के कैंसर, आदि अनेक रोग अल्पायु में ही हो रहे हैं। क्या हमारे पास इतना समय नहीं है कि हम कभी इन सभी के कारणों और समाधानों के बारे में सोचें ?
अनुच्छेद के परिप्रेक्ष्य में आज की बदलती जीवन शैली का सबसे प्रमुख कारण हमारे अनुसारसंवेदनहीनता, ज्यादा से ज्यादा धनार्जन और अधिकाधिक सुखसाधन एकत्रित कर लेने की होड़हो सकता है।
निम्नलिखित अनुच्छेद को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
आजकल मनुष्य का जीवन कुछ अलग रूप में करवट ले रहा है। शारीरिक श्रम की कमी, अनियमित जीवनशैली, अनियमित नींद, सादा खान-पान का अभाव, मोबाइल, कम्प्यूटर और टेलीविजन में व्यस्तता, समस्याएँ और तनाव, फेसबुक पर हज़ारों मित्र होते हुए भी सच्चे मित्रों और सम्बन्धियों की कमी, अकेलापन और तनावग्रस्त जीवन- ये घर-घर की कहानी बनती जा रही है।
विज्ञापन हमारी मानसिक शांति और संतुष्टि को हमसे दूर कर रहे हैं। पड़ोसियों और रिश्तेदारों के साथ होड़ भी हमारी अशांति का कारण है। आध्यात्मिकता का अभाव, ईश्वर में विश्वास का न होना, असंतोष, अतृप्ति और धोखाधड़ी हर दिन बढ़ रहे हैं। नीतिगत मूल्यों का ह्रास हो न रहा है। सरलता को मूर्खता कहा जाता है और धोखाधड़ी को चतुराई।
शरीर, मन और आत्मा के मध्य का संतुलन बिगड़ता जा रहा है। दूसरों को नीचा दिखाकर हम अपना कद बढ़ा रहे हैं। योग, व्यायाम और मैदान के खेलकूद धीरे-धीरे गायब हो रहे हैं। लोगों के घर पहले से ज्यादा बड़े हुए हैं; पर हमारे दिल छोटे होते जा रहे हैं। माँ प्रकृति से हम दूर होते चले जा रहे हैं।
शिक्षकों को मोटी तनख्वाह चाहिए; परन्तु जीवन मूल्यों से अपने आपको और अपने छात्रों को दूर ही रखना है । इंजीनियर को भी घोटाले ज्यादा पसंद आते हैं जिससे ज्यादा पैसा बने । आई टी से जुड़े लोग, एम बी ए और अन्य सभी को भी व्हाइट कॉलर जॉब ही पसंद हैं। पैसे वालों के बच्चों की परवरिश दूसरे लोग कर रहे हैं।
माँ बाप दोनों के पास बच्चों के लिए समय नहीं है - भ्रष्टाचार द्वारा उपार्जित धन से लोग अपने कल्याण की चाह रखते हैं। बूढ़े माँ-बाप को वृद्धाश्रम भेजने वाले लोग भविष्य में अपनी संतान द्वारा सेवा और सद्व्यवहार की कामना कर रहे हैं।
रक्तचाप, मधुमेह, लिवर और किडनी के रोग, थाइरॉइड, अनेक प्रकार के कैंसर, आदि अनेक रोग अल्पायु में ही हो रहे हैं। क्या हमारे पास इतना समय नहीं है कि हम कभी इन सभी के कारणों और समाधानों के बारे में सोचें ?
अनुच्छेद के अनुसार आपकी दृष्टि में जीवन में बढ़ने वाले तनाव का कौन सा कारण सबसे प्रमुख है, जो हमें सुख और संतुष्टि से दूर रखे हुए है ?
अनुच्छेद के अनुसार हमारी दृष्टि में जीवन में बढ़ने वाले तनाव का सबसे प्रमुख कारण पति-पत्नी की व्यस्तता और आपसी व्यवहार, जीवन की दौड़ में पिछड़ जाने का डर है, जो हमें सुख और संतुष्टि से दूर रखे हुए है।
निम्नलिखित अनुच्छेद को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
आजकल मनुष्य का जीवन कुछ अलग रूप में करवट ले रहा है। शारीरिक श्रम की कमी, अनियमित जीवनशैली, अनियमित नींद, सादा खान-पान का अभाव, मोबाइल, कम्प्यूटर और टेलीविजन में व्यस्तता, समस्याएँ और तनाव, फेसबुक पर हज़ारों मित्र होते हुए भी सच्चे मित्रों और सम्बन्धियों की कमी, अकेलापन और तनावग्रस्त जीवन- ये घर-घर की कहानी बनती जा रही है।
विज्ञापन हमारी मानसिक शांति और संतुष्टि को हमसे दूर कर रहे हैं। पड़ोसियों और रिश्तेदारों के साथ होड़ भी हमारी अशांति का कारण है। आध्यात्मिकता का अभाव, ईश्वर में विश्वास का न होना, असंतोष, अतृप्ति और धोखाधड़ी हर दिन बढ़ रहे हैं। नीतिगत मूल्यों का ह्रास हो न रहा है। सरलता को मूर्खता कहा जाता है और धोखाधड़ी को चतुराई।
शरीर, मन और आत्मा के मध्य का संतुलन बिगड़ता जा रहा है। दूसरों को नीचा दिखाकर हम अपना कद बढ़ा रहे हैं। योग, व्यायाम और मैदान के खेलकूद धीरे-धीरे गायब हो रहे हैं। लोगों के घर पहले से ज्यादा बड़े हुए हैं; पर हमारे दिल छोटे होते जा रहे हैं। माँ प्रकृति से हम दूर होते चले जा रहे हैं।
शिक्षकों को मोटी तनख्वाह चाहिए; परन्तु जीवन मूल्यों से अपने आपको और अपने छात्रों को दूर ही रखना है । इंजीनियर को भी घोटाले ज्यादा पसंद आते हैं जिससे ज्यादा पैसा बने । आई टी से जुड़े लोग, एम बी ए और अन्य सभी को भी व्हाइट कॉलर जॉब ही पसंद हैं। पैसे वालों के बच्चों की परवरिश दूसरे लोग कर रहे हैं।
माँ बाप दोनों के पास बच्चों के लिए समय नहीं है - भ्रष्टाचार द्वारा उपार्जित धन से लोग अपने कल्याण की चाह रखते हैं। बूढ़े माँ-बाप को वृद्धाश्रम भेजने वाले लोग भविष्य में अपनी संतान द्वारा सेवा और सद्व्यवहार की कामना कर रहे हैं।
रक्तचाप, मधुमेह, लिवर और किडनी के रोग, थाइरॉइड, अनेक प्रकार के कैंसर, आदि अनेक रोग अल्पायु में ही हो रहे हैं। क्या हमारे पास इतना समय नहीं है कि हम कभी इन सभी के कारणों और समाधानों के बारे में सोचें ?
योग, व्यायाम और मैदान के खेलकूदों के गायब होने के कारण हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ रहा है ? अनुच्छेद के आधार पर आपकी दृष्टि में सबसे सही विकल्प कौन सा हो सकता है ?
योग, व्यायाम और मैदान के खेलकूदों के गायब होने के कारण हमारे जीवन पर यह प्रभाव पड़ रहा है कि प्रकृति का सामीप्य न मिलने से बच्चों और बड़ों का सर्वविद् विकास नहीं हो पा रहा है । अनेक प्रकार की बीमारियाँ शरीर में घर करने लगती हैं।
निम्नलिखित अनुच्छेद को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
आजकल मनुष्य का जीवन कुछ अलग रूप में करवट ले रहा है। शारीरिक श्रम की कमी, अनियमित जीवनशैली, अनियमित नींद, सादा खान-पान का अभाव, मोबाइल, कम्प्यूटर और टेलीविजन में व्यस्तता, समस्याएँ और तनाव, फेसबुक पर हज़ारों मित्र होते हुए भी सच्चे मित्रों और सम्बन्धियों की कमी, अकेलापन और तनावग्रस्त जीवन- ये घर-घर की कहानी बनती जा रही है।
विज्ञापन हमारी मानसिक शांति और संतुष्टि को हमसे दूर कर रहे हैं। पड़ोसियों और रिश्तेदारों के साथ होड़ भी हमारी अशांति का कारण है। आध्यात्मिकता का अभाव, ईश्वर में विश्वास का न होना, असंतोष, अतृप्ति और धोखाधड़ी हर दिन बढ़ रहे हैं। नीतिगत मूल्यों का ह्रास हो न रहा है। सरलता को मूर्खता कहा जाता है और धोखाधड़ी को चतुराई।
शरीर, मन और आत्मा के मध्य का संतुलन बिगड़ता जा रहा है। दूसरों को नीचा दिखाकर हम अपना कद बढ़ा रहे हैं। योग, व्यायाम और मैदान के खेलकूद धीरे-धीरे गायब हो रहे हैं। लोगों के घर पहले से ज्यादा बड़े हुए हैं; पर हमारे दिल छोटे होते जा रहे हैं। माँ प्रकृति से हम दूर होते चले जा रहे हैं।
शिक्षकों को मोटी तनख्वाह चाहिए; परन्तु जीवन मूल्यों से अपने आपको और अपने छात्रों को दूर ही रखना है । इंजीनियर को भी घोटाले ज्यादा पसंद आते हैं जिससे ज्यादा पैसा बने । आई टी से जुड़े लोग, एम बी ए और अन्य सभी को भी व्हाइट कॉलर जॉब ही पसंद हैं। पैसे वालों के बच्चों की परवरिश दूसरे लोग कर रहे हैं।
माँ बाप दोनों के पास बच्चों के लिए समय नहीं है - भ्रष्टाचार द्वारा उपार्जित धन से लोग अपने कल्याण की चाह रखते हैं। बूढ़े माँ-बाप को वृद्धाश्रम भेजने वाले लोग भविष्य में अपनी संतान द्वारा सेवा और सद्व्यवहार की कामना कर रहे हैं।
रक्तचाप, मधुमेह, लिवर और किडनी के रोग, थाइरॉइड, अनेक प्रकार के कैंसर, आदि अनेक रोग अल्पायु में ही हो रहे हैं। क्या हमारे पास इतना समय नहीं है कि हम कभी इन सभी के कारणों और समाधानों के बारे में सोचें ?
उपरिलिखित अनुच्छेद के आधार पर अपना अभिमत बताएँ कि आज हम संतुष्ट और सुखी क्यों नहीं हैं ?
आज हम संतुष्ट और सुखी इसलिए नहीं हैं क्योंकि हम आज जीवन जीने की कला भूल चुके हैं और जीवन की दौड़ में पिछड़ जाने का डर हमें सुख और संतुष्टि से दूर रखे हुए है ।
निम्नलिखित अनुच्छेद को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
तकनीकी सक्रियता के बाद, अब 'सोशल मीडिया सक्रियता' आज की पीढ़ी के लिए एक पर्याय बन गई है। आज लगभग तीन में से दो भारतीय अलग-अलग सोशल नेटवर्किंग साइटों जैसे कि फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब, पिन्ट्रेस्ट
आदि पर ऑनलाइन रहकर अपना समय बिताते हैं।
सोशल मीडिया न केवल आप और मुझ तक ही सीमित है बल्कि इसके दायरे में राजनेता भी शामिल हैं। यह उम्मीद की जाती है कि सोशल मीडिया, आने वाले समय के आम चुनावों को काफी हद तक प्रभावित करने में एक बेहतर भूमिका निभाएगा ।
कई शोधकर्ताओं ने यह निर्देशित किया है कि टेलीविजन की तुलना में सोशल मीडिया लोगों को प्रभावित करने में एक सबसे मजबूत और अधिक प्रेरणादायक माध्यम होगा । भारत में उपभोक्ता बाजार और व्यापार में सोशल मीडिया की भूमिका को कम नहीं आँका जा सकता । फेसबुक, व्यापारिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए, सोशल मीडिया का सबसे महत्त्वपूर्ण प्लेटफॉर्म या मंच है जो लोगों को अपने साथ जोड़ता है क्योंकि इससे ग्राहकों द्वारा ट्विटर , यूट्यूब और ब्लागिंग आदि का अनुगमन किया जाता है।
विज्ञापनों के लिए सोशल मीडिया एक अनोखा जरिया बन गया है। ये कंपनियाँ नए कर्मचारियों और उनकी कुशलता को खोजने के लिए लिंक्डइन, फेसबुक और ट्विटर का उपयोग कर रही हैं। यह सोशल मीडिया एक ओर इतनी विशेषताओं से ओत-प्रोत है दूसरी ओर इसके नकारात्मक प्रभाव भी हमसे छिपे नहीं हैं। जहाँ सोशल मीडिया आज के समय में मनुष्य की आवश्यकता बन गया है, वहीं इसके दुष्परिणाम भी बहुत दिख रहे हैं। व्यक्ति सोशल मीडिया की वर्चुअल दुनिया में जकड़ा हुआ है। इसकी वजह से परिवारों का विघटन, पति-पत्नी में आपसी कलह तक के मामले सामने आ रहे हैं। बच्चे अब मैदान में खेलने की बजाय मोबाइल पर खेल रहे हैं। बच्चे सोशल मीडिया के कारण मानसिक रूप से बीमार हो रहे हैं। कॉलेज में पढ़ाई - के समय में भी बच्चे मोबाइल साथ रखते हैं, जिससे पढ़ाई में व्यवधान उत्पन्न होता है।
आपकी दृष्टि में कॉलेजों में छात्रों को पढ़ाई के समय मोबाइल साथ में रखने की अनुमति देना कहाँ तक उचित है ? आप किस विकल्प से सहमत हैं ?
मोबाइल साथ में रखे जाने से अनेक उपद्रवी छात्र भौतिक रूप से कक्षा में होते हुए भी मानसिक रूप से कक्षा में नहीं रहेंगे। पढ़ाई में ध्यान नहीं लगेगा और अनुशासनहीनता उत्पन्न होगी |छात्र यदि मोबाइल लाते हैं, तो भी पढ़ाई के समय उसे स्विच ऑफ़ किया जाना चाहिए |
निम्नलिखित अनुच्छेद को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
तकनीकी सक्रियता के बाद, अब 'सोशल मीडिया सक्रियता' आज की पीढ़ी के लिए एक पर्याय बन गई है। आज लगभग तीन में से दो भारतीय अलग-अलग सोशल नेटवर्किंग साइटों जैसे कि फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब, पिन्ट्रेस्ट
आदि पर ऑनलाइन रहकर अपना समय बिताते हैं।
सोशल मीडिया न केवल आप और मुझ तक ही सीमित है बल्कि इसके दायरे में राजनेता भी शामिल हैं। यह उम्मीद की जाती है कि सोशल मीडिया, आने वाले समय के आम चुनावों को काफी हद तक प्रभावित करने में एक बेहतर भूमिका निभाएगा ।
कई शोधकर्ताओं ने यह निर्देशित किया है कि टेलीविजन की तुलना में सोशल मीडिया लोगों को प्रभावित करने में एक सबसे मजबूत और अधिक प्रेरणादायक माध्यम होगा । भारत में उपभोक्ता बाजार और व्यापार में सोशल मीडिया की भूमिका को कम नहीं आँका जा सकता । फेसबुक, व्यापारिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए, सोशल मीडिया का सबसे महत्त्वपूर्ण प्लेटफॉर्म या मंच है जो लोगों को अपने साथ जोड़ता है क्योंकि इससे ग्राहकों द्वारा ट्विटर , यूट्यूब और ब्लागिंग आदि का अनुगमन किया जाता है।
विज्ञापनों के लिए सोशल मीडिया एक अनोखा जरिया बन गया है। ये कंपनियाँ नए कर्मचारियों और उनकी कुशलता को खोजने के लिए लिंक्डइन, फेसबुक और ट्विटर का उपयोग कर रही हैं। यह सोशल मीडिया एक ओर इतनी विशेषताओं से ओत-प्रोत है दूसरी ओर इसके नकारात्मक प्रभाव भी हमसे छिपे नहीं हैं। जहाँ सोशल मीडिया आज के समय में मनुष्य की आवश्यकता बन गया है, वहीं इसके दुष्परिणाम भी बहुत दिख रहे हैं। व्यक्ति सोशल मीडिया की वर्चुअल दुनिया में जकड़ा हुआ है। इसकी वजह से परिवारों का विघटन, पति-पत्नी में आपसी कलह तक के मामले सामने आ रहे हैं। बच्चे अब मैदान में खेलने की बजाय मोबाइल पर खेल रहे हैं। बच्चे सोशल मीडिया के कारण मानसिक रूप से बीमार हो रहे हैं। कॉलेज में पढ़ाई - के समय में भी बच्चे मोबाइल साथ रखते हैं, जिससे पढ़ाई में व्यवधान उत्पन्न होता है।
आपकी दृष्टि से विज्ञापनों के लिए मीडिया एक अनोखा जरिया कैसे बन गया है ? सबसे सबल तर्क कौन सा हो सकता है ?
हमारी दृष्टि से विज्ञापनों के लिए मीडिया एक अनोखा जरिया बन गया है क्योंकि आज भारत और विश्वभर की कम्पनियाँ नए कर्मचारियों और उनकी कुशलता को खोजने के लिए लिंक्डइन, फेसबुक और ट्विटर का उपयोग कर रही हैं । आर्टिफिसियल इंटेलिजेंस द्वारा कम्पनियाँ अपने ग्राहकों तक पहुँच जाती हैं।
निम्नलिखित अनुच्छेद को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
तकनीकी सक्रियता के बाद, अब 'सोशल मीडिया सक्रियता' आज की पीढ़ी के लिए एक पर्याय बन गई है। आज लगभग तीन में से दो भारतीय अलग-अलग सोशल नेटवर्किंग साइटों जैसे कि फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब, पिन्ट्रेस्ट
आदि पर ऑनलाइन रहकर अपना समय बिताते हैं।
सोशल मीडिया न केवल आप और मुझ तक ही सीमित है बल्कि इसके दायरे में राजनेता भी शामिल हैं। यह उम्मीद की जाती है कि सोशल मीडिया, आने वाले समय के आम चुनावों को काफी हद तक प्रभावित करने में एक बेहतर भूमिका निभाएगा ।
कई शोधकर्ताओं ने यह निर्देशित किया है कि टेलीविजन की तुलना में सोशल मीडिया लोगों को प्रभावित करने में एक सबसे मजबूत और अधिक प्रेरणादायक माध्यम होगा । भारत में उपभोक्ता बाजार और व्यापार में सोशल मीडिया की भूमिका को कम नहीं आँका जा सकता । फेसबुक, व्यापारिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए, सोशल मीडिया का सबसे महत्त्वपूर्ण प्लेटफॉर्म या मंच है जो लोगों को अपने साथ जोड़ता है क्योंकि इससे ग्राहकों द्वारा ट्विटर , यूट्यूब और ब्लागिंग आदि का अनुगमन किया जाता है।
विज्ञापनों के लिए सोशल मीडिया एक अनोखा जरिया बन गया है। ये कंपनियाँ नए कर्मचारियों और उनकी कुशलता को खोजने के लिए लिंक्डइन, फेसबुक और ट्विटर का उपयोग कर रही हैं। यह सोशल मीडिया एक ओर इतनी विशेषताओं से ओत-प्रोत है दूसरी ओर इसके नकारात्मक प्रभाव भी हमसे छिपे नहीं हैं। जहाँ सोशल मीडिया आज के समय में मनुष्य की आवश्यकता बन गया है, वहीं इसके दुष्परिणाम भी बहुत दिख रहे हैं। व्यक्ति सोशल मीडिया की वर्चुअल दुनिया में जकड़ा हुआ है। इसकी वजह से परिवारों का विघटन, पति-पत्नी में आपसी कलह तक के मामले सामने आ रहे हैं। बच्चे अब मैदान में खेलने की बजाय मोबाइल पर खेल रहे हैं। बच्चे सोशल मीडिया के कारण मानसिक रूप से बीमार हो रहे हैं। कॉलेज में पढ़ाई - के समय में भी बच्चे मोबाइल साथ रखते हैं, जिससे पढ़ाई में व्यवधान उत्पन्न होता है।
आपकी दृष्टि में सोशल मीडिया के सबसे अधिक नकारात्मक प्रभाव कौन से हो सकते हैं ? सबसे प्रबल तर्क चुनिए ।
हमारी दृष्टि में सोशल मीडिया के सबसे अधिक नकारात्मक प्रभाव हो सकते हैं - मनुष्य सोशल मीडिया की वर्चुअल दुनिया में जकड़ा हुआ है। इसकी वजह से परिवारों का विघटन, पति-पत्नी में आपसी कलह तक के मामले सामने आ रहे हैं।
निम्नलिखित अनुच्छेद को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
तकनीकी सक्रियता के बाद, अब 'सोशल मीडिया सक्रियता' आज की पीढ़ी के लिए एक पर्याय बन गई है। आज लगभग तीन में से दो भारतीय अलग-अलग सोशल नेटवर्किंग साइटों जैसे कि फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब, पिन्ट्रेस्ट
आदि पर ऑनलाइन रहकर अपना समय बिताते हैं।
सोशल मीडिया न केवल आप और मुझ तक ही सीमित है बल्कि इसके दायरे में राजनेता भी शामिल हैं। यह उम्मीद की जाती है कि सोशल मीडिया, आने वाले समय के आम चुनावों को काफी हद तक प्रभावित करने में एक बेहतर भूमिका निभाएगा ।
कई शोधकर्ताओं ने यह निर्देशित किया है कि टेलीविजन की तुलना में सोशल मीडिया लोगों को प्रभावित करने में एक सबसे मजबूत और अधिक प्रेरणादायक माध्यम होगा । भारत में उपभोक्ता बाजार और व्यापार में सोशल मीडिया की भूमिका को कम नहीं आँका जा सकता । फेसबुक, व्यापारिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए, सोशल मीडिया का सबसे महत्त्वपूर्ण प्लेटफॉर्म या मंच है जो लोगों को अपने साथ जोड़ता है क्योंकि इससे ग्राहकों द्वारा ट्विटर, यूट्यूब और ब्लागिंग आदि का अनुगमन किया जाता है।
विज्ञापनों के लिए सोशल मीडिया एक अनोखा जरिया बन गया है। ये कंपनियाँ नए कर्मचारियों और उनकी कुशलता को खोजने के लिए लिंक्डइन, फेसबुक और ट्विटर का उपयोग कर रही हैं। यह सोशल मीडिया एक ओर इतनी विशेषताओं से ओत-प्रोत है दूसरी ओर इसके नकारात्मक प्रभाव भी हमसे छिपे नहीं हैं। जहाँ सोशल मीडिया आज के समय में मनुष्य की आवश्यकता बन गया है, वहीं इसके दुष्परिणाम भी बहुत दिख रहे हैं। व्यक्ति सोशल मीडिया की वर्चुअल दुनिया में जकड़ा हुआ है। इसकी वजह से परिवारों का विघटन, पति-पत्नी में आपसी कलह तक के मामले सामने आ रहे हैं। बच्चे अब मैदान में खेलने की बजाय मोबाइल पर खेल रहे हैं। बच्चे सोशल मीडिया के कारण मानसिक रूप से बीमार हो रहे हैं। कॉलेज में पढ़ाई - के समय में भी बच्चे मोबाइल साथ रखते हैं, जिससे पढ़ाई में व्यवधान उत्पन्न होता है।
उपर्युक्त अनुच्छेद के आधार पर सोशल मीडिया के विषय में आपकी दृष्टि में कौन सा कथन सर्वोपयुक्त है ?
उपर्युक्त अनुच्छेद के आधार पर सोशल मीडिया के विषय में हमारी दृष्टि में सर्वोपयुक्त कथन है - सोशल मीडिया जीवन के लगभग सभी पहलुओं को प्रभावित करता है । यह मनोरंजन के साथ-साथ कमाई के अवसर भी देता है समय के बदलाव के साथ में हमें इसे स्वीकार कर लेना चाहिए।
निम्नलिखित अनुच्छेद को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
तकनीकी सक्रियता के बाद, अब 'सोशल मीडिया सक्रियता' आज की पीढ़ी के लिए एक पर्याय बन गई है। आज लगभग तीन में से दो भारतीय अलग-अलग सोशल नेटवर्किंग साइटों जैसे कि फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब, पिन्ट्रेस्ट
आदि पर ऑनलाइन रहकर अपना समय बिताते हैं।
सोशल मीडिया न केवल आप और मुझ तक ही सीमित है बल्कि इसके दायरे में राजनेता भी शामिल हैं। यह उम्मीद की जाती है कि सोशल मीडिया, आने वाले समय के आम चुनावों को काफी हद तक प्रभावित करने में एक बेहतर भूमिका निभाएगा ।
कई शोधकर्ताओं ने यह निर्देशित किया है कि टेलीविजन की तुलना में सोशल मीडिया लोगों को प्रभावित करने में एक सबसे मजबूत और अधिक प्रेरणादायक माध्यम होगा । भारत में उपभोक्ता बाजार और व्यापार में सोशल मीडिया की भूमिका को कम नहीं आँका जा सकता । फेसबुक, व्यापारिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए, सोशल मीडिया का सबसे महत्त्वपूर्ण प्लेटफॉर्म या मंच है जो लोगों को अपने साथ जोड़ता है क्योंकि इससे ग्राहकों द्वारा ट्विटर, यूट्यूब और ब्लागिंग आदि का अनुगमन किया जाता है।
विज्ञापनों के लिए सोशल मीडिया एक अनोखा जरिया बन गया है। ये कंपनियाँ नए कर्मचारियों और उनकी कुशलता को खोजने के लिए लिंक्डइन, फेसबुक और ट्विटर का उपयोग कर रही हैं। यह सोशल मीडिया एक ओर इतनी विशेषताओं से ओत-प्रोत है दूसरी ओर इसके नकारात्मक प्रभाव भी हमसे छिपे नहीं हैं। जहाँ सोशल मीडिया आज के समय में मनुष्य की आवश्यकता बन गया है, वहीं इसके दुष्परिणाम भी बहुत दिख रहे हैं। व्यक्ति सोशल मीडिया की वर्चुअल दुनिया में जकड़ा हुआ है। इसकी वजह से परिवारों का विघटन, पति-पत्नी में आपसी कलह तक के मामले सामने आ रहे हैं। बच्चे अब मैदान में खेलने की बजाय मोबाइल पर खेल रहे हैं। बच्चे सोशल मीडिया के कारण मानसिक रूप से बीमार हो रहे हैं। कॉलेज में पढ़ाई - के समय में भी बच्चे मोबाइल साथ रखते हैं, जिससे पढ़ाई में व्यवधान उत्पन्न होता है।
अनुच्छेद के आधार पर बताइए कि भारत में सोशल मीडिया इतना लोकप्रिय क्यों हो रहा है ? आपकी दृष्टि में इसका प्रमुख कारण है -
भारत में सोशल मीडिया इतना लोकप्रिय हो रहा है क्योंकि टरेक्शन, लाइव चैट, स्टेटस अपडेट्स, इमेज तथा वीडियो शेयरिंग जैसे कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं के कारण इसकी लोकप्रियता बढ़ गई है । यह मनोरंजन के साथ-साथ कमाई के अवसर भी देता है।
दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर के लिए सबसे उपयुक्त विकल्प का चयन कीजिए।
तृष्णा! एक तृष्णा होती है जो पानी पीकर तुम होती है। एक तृष्णा होती है जो खाना खाकर तृप्त होती है। एक तृष्णा है जो ढेर सारा मान-सम्मान पाने से तृप्त होती है। मतलब तृष्णाओं का कोई अंत नहीं है। धन, वैभव और न जाने किन- किन चीज़ों की तृष्णा। इन तृष्णाओं की पूर्ति में सारा जीवन लगा हुआ है। एक दिन जीवन पूरा हो जाता है लेकिन तृष्णा पूरी नहीं होती। आशा तृष्णा न मरे, मर- मर जाए शरीर। आखिर क्या उपाय है कि इन तृष्णाओं से मुक्ति मिले जो जीवन भर परेशान करती है! उपाय सीधा और सरल है। अंतः करण की तृष्णा को तृम करना है। जब यह तृष्णा तुम हो जाती है तब बाहरी तृष्णा, आकांक्षा, कामना स्वयं फीकी पड़ जाती है। अब प्रश्न यह है कि अंतः करण की तृष्णा कैसे तृप्त होगी? संत महात्माओं ने इसका हल सुझाया है और वह यह है कि अंतस चेतना का ज्ञान, अनुभव, साक्षात्कार होने पर तृष्णा का शमन होता है। अंदर एक प्यास हर समय लगी रहती है। आनंद प्राप्ति की चाहत वह प्यास है जो बाहरी साधनों से नहीं मिलती है बल्कि अंदर ही इसका झरना है, आनंद का झरना। आनंद रूपी पानी भी अंदर है और प्यास भी अंदर है। जब तक अंदर के झरने में तृष्णा नहीं मिटती, यह संसार दुखों का डेरा है। हर समय यहाँ दुख ही दुख मिलता है लेकिन उसे सुख समझ रहे हैं। मृगमरीचिका की स्थिति से गुज़र रहे हैं। मृग की नाभि में कस्तूरी होते हुए भी वह बाहर ढूँढता रहता है। इसी प्रकार तृप्ति अंतः करण में है और हम बाहर भटक रहे हैं, अज्ञानतावश।
'मान' का विलोम है -
'मान' का विलोम है - अपमान।
अतिरिक्त बिंदु -
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तृष्णा! एक तृष्णा होती है जो पानी पीकर तुम होती है। एक तृष्णा होती है जो खाना खाकर तृप्त होती है। एक तृष्णा है जो ढेर सारा मान-सम्मान पाने से तृप्त होती है। मतलब तृष्णाओं का कोई अंत नहीं है। धन, वैभव और न जाने किन- किन चीज़ों की तृष्णा। इन तृष्णाओं की पूर्ति में सारा जीवन लगा हुआ है। एक दिन जीवन पूरा हो जाता है लेकिन तृष्णा पूरी नहीं होती। आशा तृष्णा न मरे, मर- मर जाए शरीर। आखिर क्या उपाय है कि इन तृष्णाओं से मुक्ति मिले जो जीवन भर परेशान करती है! उपाय सीधा और सरल है। अंतः करण की तृष्णा को तृम करना है। जब यह तृष्णा तुम हो जाती है तब बाहरी तृष्णा, आकांक्षा, कामना स्वयं फीकी पड़ जाती है। अब प्रश्न यह है कि अंतः करण की तृष्णा कैसे तृप्त होगी? संत महात्माओं ने इसका हल सुझाया है और वह यह है कि अंतस चेतना का ज्ञान, अनुभव, साक्षात्कार होने पर तृष्णा का शमन होता है। अंदर एक प्यास हर समय लगी रहती है। आनंद प्राप्ति की चाहत वह प्यास है जो बाहरी साधनों से नहीं मिलती है बल्कि अंदर ही इसका झरना है, आनंद का झरना। आनंद रूपी पानी भी अंदर है और प्यास भी अंदर है। जब तक अंदर के झरने में तृष्णा नहीं मिटती, यह संसार दुखों का डेरा है। हर समय यहाँ दुख ही दुख मिलता है लेकिन उसे सुख समझ रहे हैं। मृगमरीचिका की स्थिति से गुज़र रहे हैं। मृग की नाभि में कस्तूरी होते हुए भी वह बाहर ढूँढता रहता है। इसी प्रकार तृप्ति अंतः करण में है और हम बाहर भटक रहे हैं, अज्ञानतावश।
'सरल' शब्द में _____________ प्रत्यय का प्रयोग किया जा सकता है।
'सरल' शब्द में ता प्रत्यय का प्रयोग किया जा सकता है।
अतिरिक्त बिंदु -
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तृष्णा! एक तृष्णा होती है जो पानी पीकर तुम होती है। एक तृष्णा होती है जो खाना खाकर तृप्त होती है। एक तृष्णा है जो ढेर सारा मान-सम्मान पाने से तृप्त होती है। मतलब तृष्णाओं का कोई अंत नहीं है। धन, वैभव और न जाने किन- किन चीज़ों की तृष्णा। इन तृष्णाओं की पूर्ति में सारा जीवन लगा हुआ है। एक दिन जीवन पूरा हो जाता है लेकिन तृष्णा पूरी नहीं होती। आशा तृष्णा न मरे, मर- मर जाए शरीर। आखिर क्या उपाय है कि इन तृष्णाओं से मुक्ति मिले जो जीवन भर परेशान करती है! उपाय सीधा और सरल है। अंतः करण की तृष्णा को तृम करना है। जब यह तृष्णा तुम हो जाती है तब बाहरी तृष्णा, आकांक्षा, कामना स्वयं फीकी पड़ जाती है। अब प्रश्न यह है कि अंतः करण की तृष्णा कैसे तृप्त होगी? संत महात्माओं ने इसका हल सुझाया है और वह यह है कि अंतस चेतना का ज्ञान, अनुभव, साक्षात्कार होने पर तृष्णा का शमन होता है। अंदर एक प्यास हर समय लगी रहती है। आनंद प्राप्ति की चाहत वह प्यास है जो बाहरी साधनों से नहीं मिलती है बल्कि अंदर ही इसका झरना है, आनंद का झरना। आनंद रूपी पानी भी अंदर है और प्यास भी अंदर है। जब तक अंदर के झरने में तृष्णा नहीं मिटती, यह संसार दुखों का डेरा है। हर समय यहाँ दुख ही दुख मिलता है लेकिन उसे सुख समझ रहे हैं। मृगमरीचिका की स्थिति से गुज़र रहे हैं। मृग की नाभि में कस्तूरी होते हुए भी वह बाहर ढूँढता रहता है। इसी प्रकार तृप्ति अंतः करण में है और हम बाहर भटक रहे हैं, अज्ञानतावश।
'आशा' का विलोम है -
'आशा' का विलोम है - निराशा।
अतिरिक्त बिंदु -
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तृष्णा! एक तृष्णा होती है जो पानी पीकर तुम होती है। एक तृष्णा होती है जो खाना खाकर तृप्त होती है। एक तृष्णा है जो ढेर सारा मान-सम्मान पाने से तृप्त होती है। मतलब तृष्णाओं का कोई अंत नहीं है। धन, वैभव और न जाने किन- किन चीज़ों की तृष्णा। इन तृष्णाओं की पूर्ति में सारा जीवन लगा हुआ है। एक दिन जीवन पूरा हो जाता है लेकिन तृष्णा पूरी नहीं होती। आशा तृष्णा न मरे, मर- मर जाए शरीर। आखिर क्या उपाय है कि इन तृष्णाओं से मुक्ति मिले जो जीवन भर परेशान करती है! उपाय सीधा और सरल है। अंतः करण की तृष्णा को तृम करना है। जब यह तृष्णा तुम हो जाती है तब बाहरी तृष्णा, आकांक्षा, कामना स्वयं फीकी पड़ जाती है। अब प्रश्न यह है कि अंतः करण की तृष्णा कैसे तृप्त होगी? संत महात्माओं ने इसका हल सुझाया है और वह यह है कि अंतस चेतना का ज्ञान, अनुभव, साक्षात्कार होने पर तृष्णा का शमन होता है। अंदर एक प्यास हर समय लगी रहती है। आनंद प्राप्ति की चाहत वह प्यास है जो बाहरी साधनों से नहीं मिलती है बल्कि अंदर ही इसका झरना है, आनंद का झरना। आनंद रूपी पानी भी अंदर है और प्यास भी अंदर है। जब तक अंदर के झरने में तृष्णा नहीं मिटती, यह संसार दुखों का डेरा है। हर समय यहाँ दुख ही दुख मिलता है लेकिन उसे सुख समझ रहे हैं। मृगमरीचिका की स्थिति से गुज़र रहे हैं। मृग की नाभि में कस्तूरी होते हुए भी वह बाहर ढूँढता रहता है। इसी प्रकार तृप्ति अंतः करण में है और हम बाहर भटक रहे हैं, अज्ञानतावश।
संसार में ___________ है।
संसार में दु:ख ही दु:ख है।
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तृष्णा! एक तृष्णा होती है जो पानी पीकर तुम होती है। एक तृष्णा होती है जो खाना खाकर तृप्त होती है। एक तृष्णा है जो ढेर सारा मान-सम्मान पाने से तृप्त होती है। मतलब तृष्णाओं का कोई अंत नहीं है। धन, वैभव और न जाने किन- किन चीज़ों की तृष्णा। इन तृष्णाओं की पूर्ति में सारा जीवन लगा हुआ है। एक दिन जीवन पूरा हो जाता है लेकिन तृष्णा पूरी नहीं होती। आशा तृष्णा न मरे, मर- मर जाए शरीर। आखिर क्या उपाय है कि इन तृष्णाओं से मुक्ति मिले जो जीवन भर परेशान करती है! उपाय सीधा और सरल है। अंतः करण की तृष्णा को तृम करना है। जब यह तृष्णा तुम हो जाती है तब बाहरी तृष्णा, आकांक्षा, कामना स्वयं फीकी पड़ जाती है। अब प्रश्न यह है कि अंतः करण की तृष्णा कैसे तृप्त होगी? संत महात्माओं ने इसका हल सुझाया है और वह यह है कि अंतस चेतना का ज्ञान, अनुभव, साक्षात्कार होने पर तृष्णा का शमन होता है। अंदर एक प्यास हर समय लगी रहती है। आनंद प्राप्ति की चाहत वह प्यास है जो बाहरी साधनों से नहीं मिलती है बल्कि अंदर ही इसका झरना है, आनंद का झरना। आनंद रूपी पानी भी अंदर है और प्यास भी अंदर है। जब तक अंदर के झरने में तृष्णा नहीं मिटती, यह संसार दुखों का डेरा है। हर समय यहाँ दुख ही दुख मिलता है लेकिन उसे सुख समझ रहे हैं। मृगमरीचिका की स्थिति से गुज़र रहे हैं। मृग की नाभि में कस्तूरी होते हुए भी वह बाहर ढूँढता रहता है। इसी प्रकार तृप्ति अंतः करण में है और हम बाहर भटक रहे हैं, अज्ञानतावश।
तृष्णा का शमन नहीं होता है -
तृष्णा का शमन नहीं होता है - अंतस चेतना के शमन से। अंतस का अर्थ है - हृदय, अन्तःकरण।
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तृष्णा! एक तृष्णा होती है जो पानी पीकर तुम होती है। एक तृष्णा होती है जो खाना खाकर तृप्त होती है। एक तृष्णा है जो ढेर सारा मान-सम्मान पाने से तृप्त होती है। मतलब तृष्णाओं का कोई अंत नहीं है। धन, वैभव और न जाने किन- किन चीज़ों की तृष्णा। इन तृष्णाओं की पूर्ति में सारा जीवन लगा हुआ है। एक दिन जीवन पूरा हो जाता है लेकिन तृष्णा पूरी नहीं होती। आशा तृष्णा न मरे, मर- मर जाए शरीर। आखिर क्या उपाय है कि इन तृष्णाओं से मुक्ति मिले जो जीवन भर परेशान करती है! उपाय सीधा और सरल है। अंतः करण की तृष्णा को तृम करना है। जब यह तृष्णा तुम हो जाती है तब बाहरी तृष्णा, आकांक्षा, कामना स्वयं फीकी पड़ जाती है। अब प्रश्न यह है कि अंतः करण की तृष्णा कैसे तृप्त होगी? संत महात्माओं ने इसका हल सुझाया है और वह यह है कि अंतस चेतना का ज्ञान, अनुभव, साक्षात्कार होने पर तृष्णा का शमन होता है। अंदर एक प्यास हर समय लगी रहती है। आनंद प्राप्ति की चाहत वह प्यास है जो बाहरी साधनों से नहीं मिलती है बल्कि अंदर ही इसका झरना है, आनंद का झरना। आनंद रूपी पानी भी अंदर है और प्यास भी अंदर है। जब तक अंदर के झरने में तृष्णा नहीं मिटती, यह संसार दुखों का डेरा है। हर समय यहाँ दुख ही दुख मिलता है लेकिन उसे सुख समझ रहे हैं। मृगमरीचिका की स्थिति से गुज़र रहे हैं। मृग की नाभि में कस्तूरी होते हुए भी वह बाहर ढूँढता रहता है। इसी प्रकार तृप्ति अंतः करण में है और हम बाहर भटक रहे हैं, अज्ञानतावश।
'जीवन पूरा हो जाता है।' से तात्पर्य है -
'जीवन पूरा हो जाता है।' से तात्पर्य है - जीवन समाप्त हो जाना।
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तृष्णा! एक तृष्णा होती है जो पानी पीकर तुम होती है। एक तृष्णा होती है जो खाना खाकर तृप्त होती है। एक तृष्णा है जो ढेर सारा मान-सम्मान पाने से तृप्त होती है। मतलब तृष्णाओं का कोई अंत नहीं है। धन, वैभव और न जाने किन- किन चीज़ों की तृष्णा। इन तृष्णाओं की पूर्ति में सारा जीवन लगा हुआ है। एक दिन जीवन पूरा हो जाता है लेकिन तृष्णा पूरी नहीं होती। आशा तृष्णा न मरे, मर- मर जाए शरीर। आखिर क्या उपाय है कि इन तृष्णाओं से मुक्ति मिले जो जीवन भर परेशान करती है! उपाय सीधा और सरल है। अंतः करण की तृष्णा को तृम करना है। जब यह तृष्णा तुम हो जाती है तब बाहरी तृष्णा, आकांक्षा, कामना स्वयं फीकी पड़ जाती है। अब प्रश्न यह है कि अंतः करण की तृष्णा कैसे तृप्त होगी? संत महात्माओं ने इसका हल सुझाया है और वह यह है कि अंतस चेतना का ज्ञान, अनुभव, साक्षात्कार होने पर तृष्णा का शमन होता है। अंदर एक प्यास हर समय लगी रहती है। आनंद प्राप्ति की चाहत वह प्यास है जो बाहरी साधनों से नहीं मिलती है बल्कि अंदर ही इसका झरना है, आनंद का झरना। आनंद रूपी पानी भी अंदर है और प्यास भी अंदर है। जब तक अंदर के झरने में तृष्णा नहीं मिटती, यह संसार दुखों का डेरा है। हर समय यहाँ दुख ही दुख मिलता है लेकिन उसे सुख समझ रहे हैं। मृगमरीचिका की स्थिति से गुज़र रहे हैं। मृग की नाभि में कस्तूरी होते हुए भी वह बाहर ढूँढता रहता है। इसी प्रकार तृप्ति अंतः करण में है और हम बाहर भटक रहे हैं, अज्ञानतावश।
गद्यांश में किस अज्ञानता की चर्चा की गई है?
गद्यांश में तृप्ति को बाहर खोजनेकी अज्ञानता की चर्चा की गई है।
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तृष्णा! एक तृष्णा होती है जो पानी पीकर तुम होती है। एक तृष्णा होती है जो खाना खाकर तृप्त होती है। एक तृष्णा है जो ढेर सारा मान-सम्मान पाने से तृप्त होती है। मतलब तृष्णाओं का कोई अंत नहीं है। धन, वैभव और न जाने किन- किन चीज़ों की तृष्णा। इन तृष्णाओं की पूर्ति में सारा जीवन लगा हुआ है। एक दिन जीवन पूरा हो जाता है लेकिन तृष्णा पूरी नहीं होती। आशा तृष्णा न मरे, मर- मर जाए शरीर। आखिर क्या उपाय है कि इन तृष्णाओं से मुक्ति मिले जो जीवन भर परेशान करती है! उपाय सीधा और सरल है। अंतः करण की तृष्णा को तृम करना है। जब यह तृष्णा तुम हो जाती है तब बाहरी तृष्णा, आकांक्षा, कामना स्वयं फीकी पड़ जाती है। अब प्रश्न यह है कि अंतः करण की तृष्णा कैसे तृप्त होगी? संत महात्माओं ने इसका हल सुझाया है और वह यह है कि अंतस चेतना का ज्ञान, अनुभव, साक्षात्कार होने पर तृष्णा का शमन होता है। अंदर एक प्यास हर समय लगी रहती है। आनंद प्राप्ति की चाहत वह प्यास है जो बाहरी साधनों से नहीं मिलती है बल्कि अंदर ही इसका झरना है, आनंद का झरना। आनंद रूपी पानी भी अंदर है और प्यास भी अंदर है। जब तक अंदर के झरने में तृष्णा नहीं मिटती, यह संसार दुखों का डेरा है। हर समय यहाँ दुख ही दुख मिलता है लेकिन उसे सुख समझ रहे हैं। मृगमरीचिका की स्थिति से गुज़र रहे हैं। मृग की नाभि में कस्तूरी होते हुए भी वह बाहर ढूँढता रहता है। इसी प्रकार तृप्ति अंतः करण में है और हम बाहर भटक रहे हैं, अज्ञानतावश।
विभिन्न तृष्णाओं से मुक्ति का क्या उपाय है?
विभिन्न तृष्णाओं से मुक्ति का उपाय अंत: करण की तृष्णा को तृप्त करना है।