वास्तव में हृदय वही है जो कोमल भावों और स्वदेश प्रेम से ओतप्रोत हो। प्रत्येक देशवासी को अपने वतन से प्रेम होता है, चाहे उसका देश सूखा, गर्म या दलदलों से युक्त हो। देश-प्रेम के लिए किसी आकर्षण की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि वह तो अपनी भूमि के प्रति मनुष्य मात्र की स्वाभाविक ममता है। मानव नहीं पशु-पक्षियों तक को अपना देश प्यारा होता है। संध्या समय पक्षी अपने नीड़ की ओर उड़े चले जाते हैं। देश-प्रेम का अंकुर सभी में विद्यमान है। कुछ लोग समझते हैं कि मातृ भूमि के नारे लगाने से ही देश प्रेम व्यक्त होता है। दिन-भर वे त्याग, बलिदान और वीरता की कथा सुनाते नहीं थकते, लेकिन परीक्षा की घड़ी आने पर भाग खड़े होते हैं। ऐसे लोग स्वार्थ त्यागकर, जान जोखिम में डालकर देश की सेवा क्या करेंगे? आज ऐसे लोगों की आवश्यकता नहीं है।
सच्चा देश-प्रेमी
Correct Answer: 2
None
Question 102:
वास्तव में हृदय वही है जो कोमल भावों और स्वदेश प्रेम से ओतप्रोत हो। प्रत्येक देशवासी को अपने वतन से प्रेम होता है, चाहे उसका देश सूखा, गर्म या दलदलों से युक्त हो। देश-प्रेम के लिए किसी आकर्षण की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि वह तो अपनी भूमि के प्रति मनुष्य मात्र की स्वाभाविक ममता है। मानव नहीं पशु-पक्षियों तक को अपना देश प्यारा होता है। संध्या समय पक्षी अपने नीड़ की ओर उड़े चले जाते हैं। देश-प्रेम का अंकुर सभी में विद्यमान है। कुछ लोग समझते हैं कि मातृ भूमि के नारे लगाने से ही देश प्रेम व्यक्त होता है। दिन-भर वे त्याग, बलिदान और वीरता की कथा सुनाते नहीं थकते, लेकिन परीक्षा की घड़ी आने पर भाग खड़े होते हैं। ऐसे लोग स्वार्थ त्यागकर, जान जोखिम में डालकर देश की सेवा क्या करेंगे? आज ऐसे लोगों की आवश्यकता नहीं है।
वही देश महान् है जहाँ के लोग
Correct Answer: 4
None
Question 103:
वास्तव में हृदय वही है जो कोमल भावों और स्वदेश प्रेम से ओतप्रोत हो। प्रत्येक देशवासी को अपने वतन से प्रेम होता है, चाहे उसका देश सूखा, गर्म या दलदलों से युक्त हो। देश-प्रेम के लिए किसी आकर्षण की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि वह तो अपनी भूमि के प्रति मनुष्य मात्र की स्वाभाविक ममता है। मानव नहीं पशु-पक्षियों तक को अपना देश प्यारा होता है। संध्या समय पक्षी अपने नीड़ की ओर उड़े चले जाते हैं। देश-प्रेम का अंकुर सभी में विद्यमान है। कुछ लोग समझते हैं कि मातृ भूमि के नारे लगाने से ही देश प्रेम व्यक्त होता है। दिन-भर वे त्याग, बलिदान और वीरता की कथा सुनाते नहीं थकते, लेकिन परीक्षा की घड़ी आने पर भाग खड़े होते हैं। ऐसे लोग स्वार्थ त्यागकर, जान जोखिम में डालकर देश की सेवा क्या करेंगे? आज ऐसे लोगों की आवश्यकता नहीं है।
देश-प्रेम का अंकुर विद्यमान है
Correct Answer: 3
None
Question 104:
वास्तव में हृदय वही है जो कोमल भावों और स्वदेश प्रेम से ओतप्रोत हो। प्रत्येक देशवासी को अपने वतन से प्रेम होता है, चाहे उसका देश सूखा, गर्म या दलदलों से युक्त हो। देश-प्रेम के लिए किसी आकर्षण की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि वह तो अपनी भूमि के प्रति मनुष्य मात्र की स्वाभाविक ममता है। मानव नहीं पशु-पक्षियों तक को अपना देश प्यारा होता है। संध्या समय पक्षी अपने नीड़ की ओर उड़े चले जाते हैं। देश-प्रेम का अंकुर सभी में विद्यमान है। कुछ लोग समझते हैं कि मातृ भूमि के नारे लगाने से ही देश प्रेम व्यक्त होता है। दिन-भर वे त्याग, बलिदान और वीरता की कथा सुनाते नहीं थकते, लेकिन परीक्षा की घड़ी आने पर भाग खड़े होते हैं। ऐसे लोग स्वार्थ त्यागकर, जान जोखिम में डालकर देश की सेवा क्या करेंगे? आज ऐसे लोगों की आवश्यकता नहीं है।
संध्या समय पक्षी अपने घोसलों में वापस चले जाते हैं, क्योंकि
Correct Answer: 1
None
Question 105:
मनुष्य एक क्रियाशील प्राणी है। चुपचाप बैठना उसके लिए संभव नहीं है। इसी प्रवृत्ति के कारण समाज में समय-समय पर काम, क्रोध, लोभ, मोह, घृणा, भय-उत्साह, दया, आशा, शांति आदि का प्रादुर्भाव होता है। साहित्यकार इन्हीं भावनाओं को मूर्त रूप देकर साहित्य का निर्माण करता है। मनुष्य के बिना समाज और समाज के बिना मनुष्य की सत्ता संभव नहीं है। समाज का केन्द्र मानव है और साहित्य का केन्द्र भी मानव ही है। साहित्य और समाज का प्राण और शरीर की भाँति गहन रिश्ता है। साहित्य का जन्म समाज के बिना संभव नहीं और अच्छे समाज का जन्म साहित्य के बिना संभव नहीं। समाज को साहित्य से नवजीवन प्राप्त होता है और साहित्य समाज से गौरवान्वित होता रहता है। प्रत्येक साहित्य अपने युग से प्रभावित होता है। साहित्य किसी भी समाज या राष्ट्र की नींव है। यदि नींव सुदृढ़ होगी, तो भवन भी सुदृढ़ होगा। साहित्य अजर-अमर है, वह कभी नष्ट नहीं होता।
समाज साहित्य से उसी तरह जुड़ा है; जैसे-
Correct Answer: 2
None
Question 106:
मनुष्य एक क्रियाशील प्राणी है। चुपचाप बैठना उसके लिए संभव नहीं है। इसी प्रवृत्ति के कारण समाज में समय-समय पर काम, क्रोध, लोभ, मोह, घृणा, भय-उत्साह, दया, आशा, शांति आदि का प्रादुर्भाव होता है। साहित्यकार इन्हीं भावनाओं को मूर्त रूप देकर साहित्य का निर्माण करता है। मनुष्य के बिना समाज और समाज के बिना मनुष्य की सत्ता संभव नहीं है। समाज का केन्द्र मानव है और साहित्य का केन्द्र भी मानव ही है। साहित्य और समाज का प्राण और शरीर की भाँति गहन रिश्ता है। साहित्य का जन्म समाज के बिना संभव नहीं और अच्छे समाज का जन्म साहित्य के बिना संभव नहीं। समाज को साहित्य से नवजीवन प्राप्त होता है और साहित्य समाज से गौरवान्वित होता रहता है। प्रत्येक साहित्य अपने युग से प्रभावित होता है। साहित्य किसी भी समाज या राष्ट्र की नींव है। यदि नींव सुदृढ़ होगी, तो भवन भी सुदृढ़ होगा। साहित्य अजर-अमर है, वह कभी नष्ट नहीं होता।
साहित्य अजर-अमर है'। इस वाक्य में 'अजर' शब्द का क्या अर्थ है
Correct Answer: 2
None
Question 107:
मनुष्य एक क्रियाशील प्राणी है। चुपचाप बैठना उसके लिए संभव नहीं है। इसी प्रवृत्ति के कारण समाज में समय-समय पर काम, क्रोध, लोभ, मोह, घृणा, भय-उत्साह, दया, आशा, शांति आदि का प्रादुर्भाव होता है। साहित्यकार इन्हीं भावनाओं को मूर्त रूप देकर साहित्य का निर्माण करता है। मनुष्य के बिना समाज और समाज के बिना मनुष्य की सत्ता संभव नहीं है। समाज का केन्द्र मानव है और साहित्य का केन्द्र भी मानव ही है। साहित्य और समाज का प्राण और शरीर की भाँति गहन रिश्ता है। साहित्य का जन्म समाज के बिना संभव नहीं और अच्छे समाज का जन्म साहित्य के बिना संभव नहीं। समाज को साहित्य से नवजीवन प्राप्त होता है और साहित्य समाज से गौरवान्वित होता रहता है। प्रत्येक साहित्य अपने युग से प्रभावित होता है। साहित्य किसी भी समाज या राष्ट्र की नींव है। यदि नींव सुदृढ़ होगी, तो भवन भी सुदृढ़ होगा। साहित्य अजर-अमर है, वह कभी नष्ट नहीं होता।
साहित्य सृजन के लिए आवश्यक है।
Correct Answer: 3
None
Question 108:
मनुष्य एक क्रियाशील प्राणी है। चुपचाप बैठना उसके लिए संभव नहीं है। इसी प्रवृत्ति के कारण समाज में समय-समय पर काम, क्रोध, लोभ, मोह, घृणा, भय-उत्साह, दया, आशा, शांति आदि का प्रादुर्भाव होता है। साहित्यकार इन्हीं भावनाओं को मूर्त रूप देकर साहित्य का निर्माण करता है। मनुष्य के बिना समाज और समाज के बिना मनुष्य की सत्ता संभव नहीं है। समाज का केन्द्र मानव है और साहित्य का केन्द्र भी मानव ही है। साहित्य और समाज का प्राण और शरीर की भाँति गहन रिश्ता है। साहित्य का जन्म समाज के बिना संभव नहीं और अच्छे समाज का जन्म साहित्य के बिना संभव नहीं। समाज को साहित्य से नवजीवन प्राप्त होता है और साहित्य समाज से गौरवान्वित होता रहता है। प्रत्येक साहित्य अपने युग से प्रभावित होता है। साहित्य किसी भी समाज या राष्ट्र की नींव है। यदि नींव सुदृढ़ होगी, तो भवन भी सुदृढ़ होगा। साहित्य अजर-अमर है, वह कभी नष्ट नहीं होता।
साहित्य से नवजीवन प्राप्त होता है।' इस वाक्य के रेखांकित शब्द में कान-सा समास है?
Correct Answer: 1
None
Question 109:
हिन्दी के प्रसार के लिए तथा संपूर्ण भारत की एक भाषा के रूप में स्थापित करने के लिए केन्द्रीय स्तर पर बहुत सारे प्रयास किए गए हैं। वर्ष 1960 में केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय की स्थापना की गई तथा वर्ष 1961 में वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग का गठन किया गया। सरकारी कार्यालयों और बैंकों में भी हिन्दी में लगातार काम किए जाने के प्रयासों पर जोर दिया गया। कट्टरपंथी भाषाई आंदोलनों के बावजूद दक्षिण भारत में हिन्दी का खूब प्रचार-प्रसार हुआ है, जिसमें हिन्दी सिनेमा और मीडिया का महत्त्वपूर्ण योगदान है। हिन्दी आज अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कई देशों में बोली और समझी जा रही है। फिजी, पाकिस्तान, मॉरिशस, नेपाल एवं कई अमेरिकी व यूरोपीय देशों में हिन्दी को पढ़ाया जा रहा है।
भाषाई आन्दोलनों के बावजूद हिन्दी का प्रचार-प्रसार कहाँ हुआ है?
Correct Answer: 4
None
Question 110:
हिन्दी के प्रसार के लिए तथा संपूर्ण भारत की एक भाषा के रूप में स्थापित करने के लिए केन्द्रीय स्तर पर बहुत सारे प्रयास किए गए हैं। वर्ष 1960 में केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय की स्थापना की गई तथा वर्ष 1961 में वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग का गठन किया गया। सरकारी कार्यालयों और बैंकों में भी हिन्दी में लगातार काम किए जाने के प्रयासों पर जोर दिया गया। कट्टरपंथी भाषाई आंदोलनों के बावजूद दक्षिण भारत में हिन्दी का खूब प्रचार-प्रसार हुआ है, जिसमें हिन्दी सिनेमा और मीडिया का महत्त्वपूर्ण योगदान है। हिन्दी आज अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कई देशों में बोली और समझी जा रही है। फिजी, पाकिस्तान, मॉरिशस, नेपाल एवं कई अमेरिकी व यूरोपीय देशों में हिन्दी को पढ़ाया जा रहा है।
केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय की स्थापना कब की गई है?
Correct Answer: 2
None
Question 111:
हिन्दी के प्रसार के लिए तथा संपूर्ण भारत की एक भाषा के रूप में स्थापित करने के लिए केन्द्रीय स्तर पर बहुत सारे प्रयास किए गए हैं। वर्ष 1960 में केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय की स्थापना की गई तथा वर्ष 1961 में वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग का गठन किया गया। सरकारी कार्यालयों और बैंकों में भी हिन्दी में लगातार काम किए जाने के प्रयासों पर जोर दिया गया। कट्टरपंथी भाषाई आंदोलनों के बावजूद दक्षिण भारत में हिन्दी का खूब प्रचार-प्रसार हुआ है, जिसमें हिन्दी सिनेमा और मीडिया का महत्त्वपूर्ण योगदान है। हिन्दी आज अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कई देशों में बोली और समझी जा रही है। फिजी, पाकिस्तान, मॉरिशस, नेपाल एवं कई अमेरिकी व यूरोपीय देशों में हिन्दी को पढ़ाया जा रहा है।
हिन्दी के प्रचार-प्रसार में किसका महत्त्वपूर्ण योगदान है?
Correct Answer: 3
None
Question 112:
हिन्दी के प्रसार के लिए तथा संपूर्ण भारत की एक भाषा के रूप में स्थापित करने के लिए केन्द्रीय स्तर पर बहुत सारे प्रयास किए गए हैं। वर्ष 1960 में केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय की स्थापना की गई तथा वर्ष 1961 में वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग का गठन किया गया। सरकारी कार्यालयों और बैंकों में भी हिन्दी में लगातार काम किए जाने के प्रयासों पर जोर दिया गया। कट्टरपंथी भाषाई आंदोलनों के बावजूद दक्षिण भारत में हिन्दी का खूब प्रचार-प्रसार हुआ है, जिसमें हिन्दी सिनेमा और मीडिया का महत्त्वपूर्ण योगदान है। हिन्दी आज अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कई देशों में बोली और समझी जा रही है। फिजी, पाकिस्तान, मॉरिशस, नेपाल एवं कई अमेरिकी व यूरोपीय देशों में हिन्दी को पढ़ाया जा रहा है।
वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली उपयोग का गठन कब हुआ?
Correct Answer: 4
None
Question 113:
सामान्यत: दुष्टों की वन्दना में या तो भय रहता है या व्यंग्य, परन्तु जहाँ हम हानि के पहले ही हानि के कारण की वन्दना करने लगते हैं वहाँ हमारी वन्दना के मूल में भय नहीं, बल्कि उसकी स्थायी दशा की आशंका है। इस वन्दना में दुष्टों को थपकी देकर सुलाने की चाल है, जिसमें विघ्न बाधाओं से जान बच सके। आशंका से उत्पन्न यह नम्रता गोस्वामी जी को आश्रय से आलंबन बना देती है। जब स्फुट अंशों के संचारी भावों तथा अनुभवों को छोड़कर वन्दना के पीछे निहित भावना की दृष्टि से देखते हैं, तो यह आश्रय से संक्रमित आलंबन का उदाहरण बन जाता है। संतो, देवताओं एवं राम की वन्दना पर्याप्त नहीं इसलिए दुष्टों की भी वन्दना की जाती है। इससे दुष्टों के महत्त्व की भायिक सृष्टि होती है और वह उन्हें और भी उपहास्य बना देती है।
रामचरितमानस एक भक्ति काव्य है। इसमें दुष्ट वन्दना का रहस्य है
Correct Answer: 2
None
Question 114:
सामान्यत: दुष्टों की वन्दना में या तो भय रहता है या व्यंग्य, परन्तु जहाँ हम हानि के पहले ही हानि के कारण की वन्दना करने लगते हैं वहाँ हमारी वन्दना के मूल में भय नहीं, बल्कि उसकी स्थायी दशा की आशंका है। इस वन्दना में दुष्टों को थपकी देकर सुलाने की चाल है, जिसमें विघ्न बाधाओं से जान बच सके। आशंका से उत्पन्न यह नम्रता गोस्वामी जी को आश्रय से आलंबन बना देती है। जब स्फुट अंशों के संचारी भावों तथा अनुभवों को छोड़कर वन्दना के पीछे निहित भावना की दृष्टि से देखते हैं, तो यह आश्रय से संक्रमित आलंबन का उदाहरण बन जाता है। संतो, देवताओं एवं राम की वन्दना पर्याप्त नहीं इसलिए दुष्टों की भी वन्दना की जाती है। इससे दुष्टों के महत्त्व की भायिक सृष्टि होती है और वह उन्हें और भी उपहास्य बना देती है।
देवताओं, महापुरुषों, सज्जनों के साथ दृष्टों की वन्दना इसलिए सार्थक कही जाएगी कि महाकवि तुलसीदास
Correct Answer: 4
None
Question 115:
सामान्यत: दुष्टों की वन्दना में या तो भय रहता है या व्यंग्य, परन्तु जहाँ हम हानि के पहले ही हानि के कारण की वन्दना करने लगते हैं वहाँ हमारी वन्दना के मूल में भय नहीं, बल्कि उसकी स्थायी दशा की आशंका है। इस वन्दना में दुष्टों को थपकी देकर सुलाने की चाल है, जिसमें विघ्न बाधाओं से जान बच सके। आशंका से उत्पन्न यह नम्रता गोस्वामी जी को आश्रय से आलंबन बना देती है। जब स्फुट अंशों के संचारी भावों तथा अनुभवों को छोड़कर वन्दना के पीछे निहित भावना की दृष्टि से देखते हैं, तो यह आश्रय से संक्रमित आलंबन का उदाहरण बन जाता है। संतो, देवताओं एवं राम की वन्दना पर्याप्त नहीं इसलिए दुष्टों की भी वन्दना की जाती है। इससे दुष्टों के महत्त्व की भायिक सृष्टि होती है और वह उन्हें और भी उपहास्य बना देती है।
दुष्ट वन्दना के पीछे लेखक का उद्वेश्य है
Correct Answer: 1
None
Question 116:
सामान्यत: दुष्टों की वन्दना में या तो भय रहता है या व्यंग्य, परन्तु जहाँ हम हानि के पहले ही हानि के कारण की वन्दना करने लगते हैं वहाँ हमारी वन्दना के मूल में भय नहीं, बल्कि उसकी स्थायी दशा की आशंका है। इस वन्दना में दुष्टों को थपकी देकर सुलाने की चाल है, जिसमें विघ्न बाधाओं से जान बच सके। आशंका से उत्पन्न यह नम्रता गोस्वामी जी को आश्रय से आलंबन बना देती है। जब स्फुट अंशों के संचारी भावों तथा अनुभवों को छोड़कर वन्दना के पीछे निहित भावना की दृष्टि से देखते हैं, तो यह आश्रय से संक्रमित आलंबन का उदाहरण बन जाता है। संतो, देवताओं एवं राम की वन्दना पर्याप्त नहीं इसलिए दुष्टों की भी वन्दना की जाती है। इससे दुष्टों के महत्त्व की भायिक सृष्टि होती है और वह उन्हें और भी उपहास्य बना देती है।