वर्ष 1982 में इनमें से किसे ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला है?
Correct Answer: 2
वर्ष 1982 में महादेवी वर्मा को उनकी कृति 'यामा' के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
महत्त्वपूर्ण बिंदु -
ज्ञानपीठ पुरस्कार पाने वाली वे हिन्दी की प्रथम लेखिका हैं।
अतिरिक्त बिंदु -
ज्ञानपीठ पुरस्कार भारतीय ज्ञानपीठ न्यास द्वारा भारतीय साहित्य के लिए दिया जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार है। भारत का कोई भी नागरिक जो आठवीं अनुसूची में बताई गई 22 भाषाओं में से किसी भाषा में लिखता हो इस पुरस्कार के योग्य है। पुरस्कार में ग्यारह लाख रुपए की धनराशि, प्रशस्तिपत्र और वाग्देवी की कांस्य मूर्ति दी जाती है।
सन् 1984 के बाद ज्ञानपीठ पुरस्कार लेखक के समग्र साहित्यिक योगदान पर दिया जाने लगा।
Question 22:
महादेवी वर्मा को किस पुस्तक पर ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला था ?
Correct Answer: 4
महादेवी वर्मा को 'यामा' काव्य संकलन के लिए भारत का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान 'ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया।
महत्त्वपूर्ण बिंदु -
उनकी अन्य रचनाएँ हैं - नीरजा, रश्मि, नीहार, स्मृति की रेखाएँ आदि।
अन्य विकल्प -
नीरजा-
नीरजा महादेवी वर्मा का तीसरा कविता-संग्रह है।
इसका प्रकाशन1934 में हुआ।
‘नीरजा’ के लिए महादेवी वर्मा को1934 में ‘सक्सेरिया पुरस्कार’ प्राप्त हुआ।
नीरजा में रश्मि का चिन्तन और दर्शन अधिक स्पष्ट और प्रौढ़ रूप से देखने को मिलता है।
'रश्मि' काव्य में जीवन -मृत्यु ,सुख -दुःख आदि पर महादेवी वर्मा ने अपना दृष्टिकोण व्यक्त किया है।
नीहार
नीहार वर्मा जी का पहला कविता-संग्रह है।
इसका प्रथम संस्करण सन् 1930 ई. में प्रकाशित हुआ।
इसकी भूमिका अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध जी द्वारा लिखी गयी थी।
अतिरिक्त बिंदु -
महादेवी वर्मा महान कवियित्री, प्राचार्य तथा स्वतंत्रता सेनानी जैसे अनेक प्रकार के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
महादेवी वर्मा जी का नाम हिन्दी की सर्वाधिक प्रतिभावान कवयित्रियों में आता है।
उन्हें आधुनिक मीरा भी कहा गया है।
Question 23:
राष्ट्रवादी कवि रामधारी सिंह 'दिनकर' को 'उर्वशी' के लिए 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' किस वर्ष प्रदान किया गया?
Correct Answer: 3
कवि रामधारी सिंह 'दिनकर' को वर्ष 1972 में काव्य रचना उर्वशी के लिये ज्ञानपीठ से सम्मानित किया गया।
महत्त्वपूर्ण बिंदु -
'दिनकर' हिन्दी भाषा में ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त करने वाले दूसरे व्यक्ति हैं।
इनसे पूर्व 1968 ई. में सुमित्रानन्दन पन्त को 'चिदम्बरा' कृति के लिए यह पुरस्कार प्रदान किया गया था।
अतिरिक्त बिंदु -
रामधारी सिंह दिनकर एक भारतीय हिंदी कवि, निबंधकार, पत्रकार और स्वतंत्रता सेनानी थे।
रामधारी सिंह दिनकर जी को सबसे प्रमुख हिंदी कवियों में से एक के रूप में याद किया जाता है।
इन्हें ‘वीर रस’ का सबसे महान हिंदी कवि माना जाता है।
आजादी से पहले लिखी गई उनकी राष्ट्रवादी कविताओं ने उन्हें ‘राष्ट्रीय कवि’ की पहचान दिलाई थी।
Question 24:
अज्ञेय जी को किस कृति पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला है?
Correct Answer: 3
वर्ष 1978 में अज्ञेय जी को कितनी नावों में कितनी बार काव्य संग्रह के लिए भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
अतिरिक्त बिंदु -
सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ को आधुनिक काव्य जगत में ‘प्रयोगवाद‘के प्रवर्तक एवं प्रसारक के रूप में जाना जाता है।
‘अज्ञेय’ प्रयोगवादी काव्यधारा के प्रवर्तक है नये युग के पुरोधा है।
अन्य विकल्प -
क्योंकि मैं उसे जानता हूँ (1970 )अज्ञेय द्वारा रचित काव्य संग्रह है।
महावृक्ष के नीचे (1977)अज्ञेय द्वारा रचित काव्य संग्रह है।
बावरा अहेरी(1954)अज्ञेय द्वारा रचित काव्य संग्रह है।
अतिरिक्त बिंदु -
अज्ञेय प्रयोगवाद एवं नई कविता को साहित्य जगत में प्रतिष्ठित करने वाले कवि हैं।
अनेक जापानी हाइकु कविताओं को अज्ञेय ने अनूदित किया।
बहुआयामी व्यक्तित्व के एकान्तमुखी प्रखर कवि होने के साथ-साथ वे एक अच्छे फोटोग्राफर और सत्यान्वेषी पर्यटक भी थे।
1936-37 में सैनिक और विशाल भारत नामक पत्रिकाओं का संपादन किया।
1964 में आँगन के पार द्वार पर उन्हें साहित्य अकादमी का पुरस्कार प्राप्त हुआ
इनका काव्य संग्रह है -
भग्नदूत1933, चिन्ता 1942, इत्यलम् 1946, हरी घास पर क्षण भर 1949, बावरा अहेरी 1954, इन्द्रधनु रौंदे हुये। - 1957, अरी ओ करुणा प्रभामय 1959, आँगन के पार द्वार 1961, कितनी नावों में कितनी बार (1967), क्योंकि मैं उसे जानता हूँ (1970), सागर मुद्रा (1970), पहले में सन्नाटा बुनता हूँ (1974), महावृक्ष के नीचे (1977), नदी की बॉक पर छाया (1981), प्रिजन डेज़ एण्ड अदर पोयम्स (अंग्रेजी में, 1946)।
Question 25:
ज्ञानपीठ पुरस्कार किस क्षेत्र में श्रेष्ठ कार्य करने पर दिया जाता है?
Correct Answer: 4
ज्ञानपीठ पुरस्कार, भारतीय ज्ञानपीठ न्यास द्वारा भारतीय साहित्य के लिए प्रदान किया जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार है।
अन्य विकल्प -
पद्म पुरस्कार भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों में से एक है। ये पुरस्कार, विभिन्न क्षेत्रों जैसे कला, समाज सेवा, लोक-कार्य, विज्ञान और इंजीनियरी, व्यापार और उद्योग, चिकित्सा, साहित्य और शिक्षा, खेल-कूद, सिविल सेवा इत्यादि के संबंध में प्रदान किए जाते हैं।
शांति स्वरूप भटनागर विज्ञान के क्षेत्र में दिया जाने वाला सर्वोच्च भारतीय पुरस्कार है।
दादा साहेब फालके सिनेमा के क्षेत्र का सर्वोच्च पुरस्कार है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु -
भारत का कोई भी नागरिक जो आठवीं अनुसूची में बताई गई 22 भाषाओं में से किसी भाषा में लिखता हो इस पुरस्कार के योग्य है।
पुरस्कार में ग्यारह लाख रुपये की धनराशि, प्रशस्तिपत्र और वाग्देवी की कांस्य प्रतिमा दी जाती है।
Question 26:
किस भाषा के लिए सन् 1995 में साहित्यकार एम. टी. वासुदेव नायर को ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था?
Correct Answer: 2
वर्ष 1995 में मलयालम के साहित्यकार एम. टी. वासुदेव नायर को 'रंडामूझम कृति के लिए मलयालम भाषा में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
महत्त्वपूर्ण बिंदु -
एम. टी. वासुदेव नायर मलयालम भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं।
ये ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता रहे हैं।
इनके द्वारा रचित एक उपन्यास 'कालम' के लिये उन्हें सन् 1970 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
Question 27:
इनमें से कौन-सी रचना ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित नहीं है?
Correct Answer: 1
बुनी हुई रस्सी रचना ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित नहीं है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु -
बुनी हुई रस्सी हिन्दी के विख्यात साहित्यकार भवानीप्रसाद मिश्र द्वारा रचित एक कविता–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1972 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
अन्य विकल्प -
यामा - महादेवी वर्मा को 27 अप्रैल, 1982 में काव्य संकलन "यामा" के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
उर्वशी - डॉ. रामधारी सिंह दिनकर को 1972 में उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया।
चिदम्बरा- सुमित्रानंदन पन्त को 1968 में ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया।
Question 28:
हिन्दी अकादमी का 'शलाका पुरस्कार' सबसे पहले किसे दिया गया ?
Correct Answer: 3
हिन्दी अकादमी का ‘शलाका सम्मान' सबसे पहले डॉ. रामविलास शर्मा को वर्ष 1986-87 में दिया गया था।
महत्त्वपूर्ण बिंदु -
वर्ष 2019 का शलाका सम्मान प्रख्यात साहित्यकार डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी को प्रदान किया गया।
अतिरिक्त बिंदु -
डॉ. रामविलास शर्मा भारत के प्रथम 'व्यास सम्मान' विजेता थे।
रामविलास शर्मा हिन्दी में प्रगतिवादी समीक्षा-पद्धति के एक प्रमुख स्तम्भ थे।
Question 29:
'साकेत' महाकाव्य पर कवि मैथिलीशरण गुप्त को कौन-सा पारितोषिक प्राप्त हुआ?
Correct Answer: 4
कवि मैथिलीशरण गुप्त को उनके महाकाव्य 'साकेत' के लिए 1936 ई. में हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग द्वारा मंगलाप्रसाद पुरस्कार प्रदान किया गया था।
महत्त्वपूर्ण बिंदु -
गुप्त जी भारतीय संस्कृति के व्याख्याता, राष्ट्रीयता के उन्नायक तथा स्वस्थ परम्पराओं के प्रबल पोषक कवि हैं।
गुप्त जी भारतीय संस्कृति के प्रतिनिधि कवि है।
ये द्विवेदी युग के सबसे अधिक लोकप्रिय कवि माने जाते हैं।
इन्हें आधुनिक युग का तुलसी कहा जाता है।
मैथिलीशरण गुप्त जी की रचनाएँ - जीवन की ही जय हो, नहुष का पतन, चारु चंद्र की चंचल किरणें , सखि वे मुझसे कह कर जाते, आर्य, किसान, नर हो न निराश करो मन को, कुशलगीत।
Question 30:
घृणा उत्पन्न करने वाला रस है -
Correct Answer: 4
वीभत्स घृणा के भाव को प्रकट करने वाला रस है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु -
घृणित वस्तु, घृणित व्यक्ति या घृणित चीजों को देखकर, उनको देखकर या उनके बारे में विचार करके मन में उत्पन्न होने वाली घृणा या ग्लानि ही वीभत्स रस कहलाती है।
इसका स्थायी भाव जुगुप्साया घृणाहोता है।
अन्य विकल्प -
अद्भुत रस - जब व्यक्ति के मन में विचित्र अथवा आश्चर्यजनक वस्तुओं को देखकर विस्मय आदि के भाव उत्पन्न होते हैं, उसे ही अद्भुत रस कहा जाता है। इसका स्थायी भाव आश्चर्य होता है।
शृंगार रस - शृंगार रस का आधार स्त्री - पुरुष का आकर्षण है जिसे शास्त्रीय भाषा में रति स्थायी भाव कहते हैं। जब विभाव , अनुभाव और संचारी भावों के संयोग से रति भाव में आस्वाद की योग्यता उत्पन्न हो जाती है , उसे 'शृंगार रस' कहते है। शृंगार रस के दो भेद होते हैं - संयोग शृंगार और वियोग शृंगार। शृंगार रस को 'रसराज' और 'रसपति' भी कहा जाता है।
शांत रस - अनित्य और असार तथा परमात्मा के वास्तविक रूप के ज्ञान से हृदय को शांति मिलती है और विषयों से वैराग्य हो जाता है। यही अभिव्यक्त हो कर शांत-रस में परिणत हो जाता है। दूसरे शब्दों में - निर्वेद परिपक्वावस्था को ‘शांत-रस’ कहते हैं।
अतिरिक्त बिंदु-
रस का शाब्दिक अर्थ है 'आनंद'।
रस की परिभाषा - काव्य को पढ़ने या सुनने से जिस आनंद की अनुभूति होती है, उसे 'रस' कहा जाता है।
रस के चार अवयव या अंग हैं - स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव।
Question 31:
कभी कफ़न को उठा देखते,
लग गले निर्झर झर-झर करते,
दिन तेरह में ही बिसरते हैं।’’
उपर्युक्त पंक्तियों में किस रस की अनुभूति होती है?
Correct Answer: 4
प्रस्तुत पंक्ति में करुण रस है'।
महत्त्वपूर्ण बिंदु -
करुण रस - किसी प्रकार की अनिष्ट स्थिति, किसी प्रिय व्यक्ति अथवा वस्तु के नाश से उत्पन्न शोक का चित्रण करुण रस कहलाता है। करुण रस का स्थायी भाव शोक होता है।
अन्य विकल्प -
शृंगार रस - शृंगार रस का आधार स्त्री - पुरुष का आकर्षण है जिसे शास्त्रीय भाषा में रति स्थायी भाव कहते हैं। जब विभाव , अनुभाव और संचारी भावों के संयोग से रति भाव में आस्वाद की योग्यता उत्पन्न हो जाती है , उसे 'श्रृंगार रस' कहते हैं। शृंगार रस के दो भेद होते हैं - संयोग शृंगार और वियोग शृंगार। शृंगार रस को 'रसराज' और 'रसपति' भी कहा जाता है।
भक्ति रस - इस रस में ईश्वर की अनुरक्ति और अनुराग का वर्णन रहता है।
अद्भुत रस - जब व्यक्ति के मन में विचित्र अथवा आश्चर्यजनक वस्तुओं को देखकर विस्मय आदि के भाव उत्पन्न होते हैं, उसे ही अद्भुत रस कहा जाता है। इसका स्थायी भाव आश्चर्य होता है।
Question 32:
दुःख ही जीवन की कथा रही,
क्या कहूँ आज जो नहीं कही। उपर्युक्त पंक्तियों में कौन-सा रस है?
Correct Answer: 2
उपर्युक्त पंक्तियों में करुण रस है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु -
करुण रस - किसी प्रकार की अनिष्ट स्थिति, किसी प्रिय व्यक्ति अथवा वस्तु के नाश से उत्पन्न शोक का चित्रण करुण रस कहलाता है। करुण रस का स्थायी भाव शोक होता है।
अन्य विकल्प -
शृंगार रस - शृंगार रस का आधार स्त्री - पुरुष का आकर्षण है जिसे शास्त्रीय भाषा में रति स्थायी भाव कहते हैं।
अद्भुत रस -विचित्र अथवा आश्चर्य-जनक वस्तुओं के वर्णन द्वारा उत्पन्न विस्मय-भाव की परिपक्वास्था को अद्भुत-रस कहते हैं। इसका स्थायी भाव आश्चर्य होता है।
वीभत्स रस - घृणित वस्तु, घृणित व्यक्ति या घृणित चीजों को देखकर या उनके बारे में विचार करके मन में उत्पन्न होने वाली घृणा या ग्लानि ही वीभत्स रस कहलाता है। इसका स्थायी भाव जुगुप्सा या घृणा होता है।
Question 33:
समरस थे जड़ या चेतन सुंदर साकार बना था।
चेतनता एक विलसती आनंद अखंड घना था।। इन पंक्तियों में कौन-सा रस है?
Correct Answer: 4
उपर्युक्त पंक्तियों में शांत रस है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु -
शांत रस - अनित्य और असार तथा परमात्मा के वास्तविक रूप के ज्ञान से हृदय को शांति मिलती है और विषयों से वैराग्य हो जाता है। यही अभिव्यक्त होकर शांत-रस में परिणत हो जाता है। दूसरे शब्दों में - निर्वेद परिपक्क्वावस्था को ‘शांत-रस’ कहते हैं।
अन्य विकल्प -
भयानक रस - जब किसी भयानक या अनिष्टकारी व्यक्ति या वस्तु को देखने या उससे संबंधित वर्णन करने या किसी अनिष्टकारी घटना का स्मरण करने से मन में जो व्याकुलता उत्पन्न होती हैं उसे भय कहते हैं।
शृंगार रस - शृंगार रस का आधार स्त्री - पुरुष का आकर्षण है जिसे शास्त्रीय भाषा में रति स्थायी भाव कहते हैं।
करुण रस - किसी प्रकार की अनिष्ट स्थिति, किसी प्रिय व्यक्ति अथवा वस्तु के नाश से उत्पन्न शोक का चित्रण करुण रस कहलाता है। करुण रस का स्थायी भाव शोक होता है।
Question 34:
'देखी सुदामा की दीन दसा, करुना करिकै करूनानिधि रोये' || इस पंक्ति में कौन सा रस है?
Correct Answer: 4
'देखी सुदामा की दीन दसा, करुना करिकै करूनानिधि रोये' || इस पंक्ति में करुण रस है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु -
करुण रस - किसी प्रकार की अनिष्ट स्थिति, किसी प्रिय व्यक्ति अथवा वस्तु के नाश से उत्पन्न शोक का चित्रण करुण रस कहलाता है। करुण रस का स्थायी भाव शोक होता है।
अन्य विकल्प :-
वात्सल्य रस - छोटे बालकों के बाल-सुलभ मानसिक क्रिया-कलापों के वर्णन से उत्पन्न वात्सल्य प्रेम की परिपक्वावस्था को वात्सल्य रस कहते हैं।
भयानक रस - जब किसी भयानक या अनिष्टकारी व्यक्ति या वस्तु को देखने या उससे संबंधित वर्णन करने या किसी अनिष्टकारी घटना का स्मरण करने से मन में जो व्याकुलता उत्पन्न होती हैं उसे भय कहते हैं।
अद्भुत रस - विचित्र अथवा आश्चर्य- जनक वस्तुओं के वर्णन द्वारा उत्पन्न विस्मय-भाव की परिपक्वावस्था को अद्भुत-रस कहते हैं।
Question 35:
'स्वान आंगुरिन काटि-काटि के खात विदारत' || इस पंक्ति में कौन-सा रस है?
Correct Answer: 4
'स्वान आंगुरिन काटि-काटि के खात विदारत' || इस पंक्ति में वीभत्स रस है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु -
वीभत्स रस -
घृणित वस्तु, घृणित व्यक्ति या घृणित चीजों को देखकर, या उनके बारे में विचार करके मन में उत्पन्न होने वाली घृणा या ग्लानि ही वीभत्स रस कहलाता है।
इसका स्थायी भाव जुगुप्सा या घृणा होता है।
अन्य विकल्प -
वीर रस - युद्ध अथवा किसी कठिन कार्य को करने के लिए हृदय में जो उत्साह जागृत होता है , उससे वीर रस की निष्पत्ति होती है। वीर रस का स्थायी भाव 'उत्साह' होता है। वीर रस के चार भेद होते हैं - युद्धवीर, दानवीर, धर्मवीर, दयावीर।
भयानक रस - जब किसी भयानक या अनिष्टकारी व्यक्ति या वस्तु को देखने या उससे संबंधित वर्णन करने या किसी अनिष्टकारी घटना का स्मरण करने से मन में जो व्याकुलता उत्पन्न होती हैं उसे भय कहते हैं।
वात्सल्य रस - छोटे बालकों के बाल-सुलभ मानसिक क्रिया-कलापों के वर्णन से उत्पन्न वात्सल्य प्रेम की परिपक्वावस्था को वात्सल्य रस कहते हैं।
Question 36:
'निसदिन बरसत नैन हमारे' || इस पंक्ति में कौन-सा रस है?
Correct Answer: 2
'निसदिन बरसत नैन हमारे' || इस पंक्ति में शृंगार रस है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु -
शृंगार रस - शृंगार रस का आधार स्त्री - पुरुष का आकर्षण है जिसे शास्त्रीय भाषा में रति स्थायी भाव कहते हैं।
जब विभाव, अनुभाव और संचारी भावों के संयोग से रति भाव में आस्वाद की योग्यता उत्पन्न हो जाती है, उसे शृंगार रस कहते हैं।
शृंगार रस के दो भेद होते हैं - संयोग शृंगार और वियोग शृंगार।
अन्य विकल्प -
वीर रस - युद्ध अथवा किसी कठिन कार्य को करने के लिए हृदय में जो उत्साह जागृत होता है , उससे वीर रस की निष्पत्ति होती है। वीर रस का स्थायी भाव 'उत्साह' होता है। वीर रस के चार भेद होते हैं - युद्धवीर, दानवीर, धर्मवीर, दयावीर।
भयानक रस - जब किसी भयानक या अनिष्टकारी व्यक्ति या वस्तु को देखने या उससे संबंधित वर्णन करने या किसी अनिष्टकारी घटना का स्मरण करने से मन में जो व्याकुलता उत्पन्न होती हैं उसे भय कहते हैं।
वात्सल्य रस - छोटे बालकों के बाल-सुलभ मानसिक क्रिया-कलापों के वर्णन से उत्पन्न वात्सल्य प्रेम की परिपक्वावस्था को वात्सल्य रस कहते हैं।
Question 37:
बिनु गोपाल बैरनि भई कुंजै || इस पंक्ति में कौन सा-रस है?
Correct Answer: 1
बिनु गोपाल बैरनि भई कुंजै || इस पंक्ति में वियोगशृंगार रस है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु -
वियोग शृंगार रस - वियोग शृंगार को विप्रलंभ शृंगार भी माना गया है।
वियोगशृंगार की अवस्था वहां होती है , जहां नायक – नायिका, पति-पत्नी का वियोग होता है।
अन्य विकल्प -
वीर रस -
युद्ध अथवा किसी कठिन कार्य को करने के लिए हृदय में जो उत्साह जागृत होता है ,उससे वीर रस की निष्पत्ति होती है।
वीर रस का स्थायी भाव 'उत्साह' होता है।
वीर रस के चार भेद होते हैं - युद्धवीर, दानवीर, धर्मवीर, दयावीर।
शांत रस -
अनित्य और असार तथा परमात्मा के वास्तविक रूप के ज्ञान से हृदय को शांति मिलती है और विषयों से वैराग्य हो जाता है। यही अभिव्यक्त हो कर शांत-रस में परिणत हो जाता है। दूसरे शब्दों में - निर्वेद परिपक्वावस्था को ‘शांत-रस’ कहते हैं।
संयोग शृंगार रस -
संयोगकाल में नायक और नायिका की पारस्परिक रति को ‘संयोग शृंगार कहा जाता है। यहाँ संयोग का अर्थ है–सुख की प्राप्ति करना।
Question 38:
मुझे फूल मत मारो, मै अबला बाला वियोगनी, कुछ तो दया विचारो || इस पंक्ति में कौन सा रस है?
Correct Answer: 1
मुझे फूल मत मारो, मै अबला बाला वियोगनी, कुछ तो दया विचारो || इस पंक्ति में वियोग शृंगार रस है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु -
वियोग शृंगार रस - वियोग श्रृंगार को विप्रलंभ श्रृंगार भी माना गया है।
वियोगशृंगार की अवस्था वहां होती है , जहां नायक – नायिका, पति-पत्नी का वियोग होता है।
अन्य विकल्प -
वीर रस -
युद्ध अथवा किसी कठिन कार्य को करने के लिए हृदय में जो उत्साह जागृत होता है ,उससे वीर रस की निष्पत्ति होती है।
वीर रस का स्थायी भाव 'उत्साह' होता है।
वीर रस के चार भेद होते हैं - युद्धवीर, दानवीर, धर्मवीर, दयावीर ।
उदाहरण
मानव समाज में अरुण पड़ा, जल जन्तु बीच हो वरुण पड़ा।
इस तरह भभकता राणा था, मानो सर्पों में गरुड़ पड़ा।।
शांत रस -
अनित्य और असार तथा परमात्मा के वास्तविक रूप के ज्ञान से हृदय को शांति मिलती है और विषयों से वैराग्य हो जाता है। यही अभिव्यक्त हो कर शांत-रस में परिणत हो जाता है। दूसरे शब्दों में - निर्वेद परिपक्वावस्था को ‘शांत-रस’ कहते हैं।
संयोग शृंगार रस -
संयोगकाल में नायक और नायिका की पारस्परिक रति को ‘संयोग श्रृंगार’ कहा जाता है। यहाँ संयोग का अर्थ है–सुख की प्राप्ति करना। उदाहरण -
दूलह श्रीरघुनाथ बने दुलही सिय सुन्दर मन्दिर माहीं।
गावति गीत सबै मिलि सुन्दरि बेद जुवा जुरि बिप्र पढ़ाहीं॥
अतिरिक्त बिंदु -
रस का शाब्दिक अर्थ है 'आनंद'। काव्य को पढ़ने या सुनने से जिस आनंद की अनुभूति होती है, उसे रस कहा जाता है।
रस के चार अवयव या अंग हैं - स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव।
Question 39:
'कंकन किंकिन नूपुर धुनि सुनि में' || इस पंक्ति में कौन सा रस है?
Correct Answer: 4
'कंकन किंकिन नूपुर धुनि सुनि में' || इस पंक्ति में संयोग शृंगार रस है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु -
संयोग शृंगार रस -
संयोगकाल में नायक और नायिका की पारस्परिक रति को ‘संयोग श्रृंगार’ कहा जाता है। यहाँ संयोग का अर्थ है–सुख की प्राप्ति करना। उदाहरण -
दूलह श्रीरघुनाथ बने दुलही सिय सुन्दर मन्दिर माहीं।
गावति गीत सबै मिलि सुन्दरि बेद जुवा जुरि बिप्र पढ़ाहीं॥
अन्य विकल्प -
वीर रस -
युद्ध अथवा किसी कठिन कार्य को करने के लिए हृदय में जो उत्साह जागृत होता है ,उससे वीर रस की निष्पत्ति होती है।
वीर रस का स्थायी भाव 'उत्साह' होता है।
वीर रस के चार भेद होते हैं - युद्धवीर, दानवीर, धर्मवीर, दयावीर ।
उदाहरण
मानव समाज में अरुण पड़ा, जल जन्तु बीच हो वरुण पड़ा।
इस तरह भभकता राणा था, मानो सर्पों में गरुड़ पड़ा।।
शांत रस -
अनित्य और असार तथा परमात्मा के वास्तविक रूप के ज्ञान से हृदय को शांति मिलती है और विषयों से वैराग्य हो जाता है। यही अभिव्यक्त हो कर शांत-रस में परिणत हो जाता है। दूसरे शब्दों में - निर्वेद परिपक्वावस्था को ‘शांत-रस’ कहते हैं।
वियोग शृंगार रस -
वियोग शृंगार रस - वियोग श्रृंगार को विप्रलंभ श्रृंगार भी माना गया है।
वियोगशृंगार की अवस्था वहां होती है , जहां नायक – नायिका, पति-पत्नी का वियोग होता है।
अतिरिक्त बिंदु -
रस का शाब्दिक अर्थ है 'आनंद'। काव्य को पढ़ने या सुनने से जिस आनंद की अनुभूति होती है, उसे रस कहा जाता है।
रस के चार अवयव या अंग हैं - स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव।
Question 40:
'अब लौ नसानी अब न नसैहों', इसमें कौन-सा रस है?
Correct Answer: 4
'अब लौ नसानी अब न नसैहों', इसमें शांत रस है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु -
शांत रस - अनित्य और असार तथा परमात्मा के वास्तविक रूप के ज्ञान से हृदय को शांति मिलती है और विषयों से वैराग्य हो जाता है। यही अभिव्यक्त हो कर शांत-रस में परिणत हो जाता है।दूसरे शब्दों में - निर्वेद परिपक्वावस्था को ‘शांत-रस’ कहते हैं।
अन्य विकल्प -
करुण रस - किसी प्रकार की अनिष्ट स्थिति, किसी प्रिय व्यक्ति अथवा वस्तु के नाश से उत्पन्न शोक का चित्रण करुण रस कहलाता है। करुण रस का स्थायी भाव शोक होता है।
वीर रस - युद्ध अथवा किसी कठिन कार्य को करने के लिए हृदय में जो उत्साह जागृत होता है, उससे वीर रस की निष्पत्ति होती है।वीर रस का स्थायी भाव 'उत्साह' होता है। वीर रस के चार भेद होते हैं - युद्धवीर, दानवीर, धर्मवीर, दयावीर।
हास्य रस - किसी विकृत अथवा असामान्य हाव -भाव ,चेष्टा ,क्रियाव्यापार ,वार्तालाप ,वस्तु , व्यक्ति अथवा स्थिति का ऐसा चित्रण जिससे हास्य उत्पन्न होता है, हास्य रस कहलाता है। हास्य रस का स्थायी भाव 'हास' होता है।