घृणित वस्तु, घृणित व्यक्ति या घृणित चीजों को देखकर, उनको देखकर या उनके बारे में विचार करके मन में उत्पन्न होने वाली घृणा या ग्लानि ही वीभत्स रस कहलाता है।
इसका स्थायी भाव जुगुप्सा या घृणा होता है।
अन्य विकल्प -
अद्भुत - अद्भुत रस' का स्थायी भाव 'विस्मय' है।
भयानक- इसका स्थायी भाव भय होता है।
रौद्र -रौद्र रस का स्थायी भाव क्रोध होता है।
अतिरिक्त बिंदु -
⇒रस का शाब्दिक अर्थ है 'आनंद'। काव्य को पढ़ने या सुनने से जिस आनंद की अनुभूति होती है, उसे रस कहा जाता है।
⇒रस के चार अवयव या अंग हैं - स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव।
Question 82:
निम्नलिखित में से कौन-सा रस 'वीभत्स' का विरोधी है?
Correct Answer: 3
व्याख्या- 'वीभत्स' रस का अर्थ 'घृणा' है इसका विरोधी रस 'शृंगार' रस है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु -
वीभत्स रस -
घृणित वस्तु, घृणित व्यक्ति या घृणित चीजों को देखकर या उनके बारे में विचार करके मन में उत्पन्न होने वाली घृणा या ग्लानि ही वीभत्स रस कहलाता है।
इसका स्थायी भाव जुगुप्सा या घृणा होता है।
अन्य विकल्प-
भयानक रस-
जब किसी भयानक या अनिष्टकारी व्यक्ति या वस्तु को देखने या उससे संबंधित वर्णन करने या किसी अनिष्टकारी घटना का स्मरण करने से मन में जो व्याकुलता उत्पन्न होती है उसे भय कहते हैं।
जैसे :- एक ओर अजगरहिं लखि, एक ओर मृगराय। विकल बटोही बीच ही, परयों मूरछा खाय।।''
करुण रस - किसी प्रकार की अनिष्ट स्थिति , किसी प्रिय व्यक्ति अथवा वस्तु के नाश से उत्पन्न शोक का चित्रण करुण रस कहलाता है। करुण रस का स्थायी भाव शोक होता है।
उदाहरण -
दुःख ही जीवन की कथा रही,
क्या कहूँ आज जो नहीं कही।
वीर रस-
युद्ध अथवा किसी कठिन कार्य को करने के लिए हृदय में जो उत्साह जागृत होता है ,उससे वीर रस की निष्पत्ति होती है।
वीर रस का स्थायी भाव 'उत्साह' होता है।
वीर रस के चार भेद होते हैं - युद्धवीर, दानवीर, धर्मवीर, दयावीर ।
उदाहरण
मानव समाज में अरुण पड़ा, जल जन्तु बीच हो वरुण पड़ा।
इस तरह भभकता राणा था, मानो सर्पों में गरुड़ पड़ा।।
अतिरिक्त बिंदु -
रस का शाब्दिक अर्थ है 'आनंद'।
रस की परिभाषा - काव्य को पढ़ने या सुनने से जिस आनंद की अनुभूति होती है, उसे 'रस' कहा जाता है।
रस के चार अवयव या अंग हैं - स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव।
Question 83:
निम्नलिखित प्रश्न में, चार विकल्पों में से, उस सही विकल्प का चयन करें जो बताता है कि संयोग और वियोग किस रस के रूप है ?
Correct Answer: 3
संयोग और वियोग शृंगार रस के रूप है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु -
शृंगार रस - नायक-नायिका के सौन्दर्य तथा प्रेम संबंधी वर्णन की परिवक्व अवस्था को शृंगार-रस कहते हैं।
शृंगार-रस के दो भेद हैं - संयोग-शृंगार, वियोग-शृंगार
अन्य विकल्प -
वात्सल्य रस - छोटे बालकों के बाल-सुलभ मानसिक क्रिया-कलापों के वर्णन से उत्पन्न वात्सल्य प्रेम की परिपक्वावस्था को वात्सल्य रस कहते हैं।
जैसे :- किलकत कान्ह घुटुरुवनि आवत। मणिमय कनक नन्द के आँगन बिम्ब पकरिबे धावत।
भयानक रस - जब किसी भयानक या अनिष्टकारी व्यक्ति या वस्तु को देखने या उससे संबंधित वर्णन करने या किसी अनिष्टकारी घटना का स्मरण करने से मन में जो व्याकुलता उत्पन्न होती हैं उसे भय कहते हैं।
जैसे :- एक ओर अजगरहिं लखि, एक ओर मृगराय। विकल बटोही बीच ही, परयों मूरछा खाय।।''
अदभुत रस - विचित्र अथवा आश्चर्य- जनक वस्तुयों के वर्णन द्वारा उत्पन्न विस्मय-भाव की परिपक्वावस्था को अदभुत-रस कहते हैं।
जैसे :- अम्बर में कुन्तल जाल देख। पद के नीचे पाताल देख।।
मुट्ठी में तीनों काल देख। मेरा स्वरूप विकराल देख।। सब जन्म मुझी से पाते हैं। फिर लौट मुझी में आते हैं।।
अतिरिक्त बिंदु -
रस का शाब्दिक अर्थ है 'आनंद'। काव्य को पढ़ने या सुनने से जिस आनंद की अनुभूति होती है, उसे 'रस' कहा जाता है।
रस के चार अंग है :- विभाव, अनुभाव, व्यभिचारी भाव, स्थायी भाव।
Question 84:
रसों को उदित और उद्दीप्त करने वाली सामग्री क्या कहलाती है?
Correct Answer: 2
रसों को उदित एवं उद्दीप्त करने वाली सामग्री विभाव कहलाती है। विभाव के दो भेद हैं-
आलम्बन
उद्दीपन
महत्त्वपूर्ण बिंदु -
जिस वस्तु या व्यक्ति के कारण स्थायी भाव जाग्रत होता है, उसे आलम्बन विभाव कहते हैं। स्थायी भाव को उद्दीप्त या तीव्र करने वाले को उद्दीपन कहते हैं।
(स्रोत- आधुनिक हिन्दी व्याकरण और रचना - डा.वासुदेव नंदन प्रसाद)
अन्य विकल्प -
(1) स्थायी भाव - मानव हृदय में, कुछ भाव स्थायी रूप से विद्यमान रहते हैं।
(2) विभाव - रसों को उदित और उद्दीप्त करने वाली सामग्री विभाव कहलाती है।
(3) अनुभाव - मनोगत भाव को व्यक्त करने वाली शारीरिक और मानसिक चेष्टाएँ अनुभाव हैं।
अतिरिक्त बिंदु -
रस का शाब्दिक अर्थ है 'आनंद'। काव्य को पढ़ने या सुनने से जिस आनंद की अनुभूति होती है, उसे रस कहा जाता है।
रस के चार अवयव या अंग हैं -
Question 85:
श्री कृष्ण के सुन वचन अर्जुन क्रोध से जलने लगे ।
सब शोक अपना भूलकर करतल-युगल मिलने लगे ।।
संसार देखे अब हमारे शत्रु रण में मृत पड़े।
कहते हुए यह घोषणा वे हो गये उठकर खड़े।।
उपर्युक्त पंक्ति में कौन - सा रस है ?
Correct Answer: 4
प्रस्तुत पंक्तियों में ‘रौद्र रस’ है।
महत्वपूर्ण बिंदु:
रौद्र रस - किसी व्यक्ति के द्वारा क्रोध में किए गए अपमान आदि के उत्पन्न भाव की परिपक्क्वावस्था को रौद्र रस कहते हैं। रौद्र रस का स्थायी भाव 'क्रोध' होता है।
अन्य विकल्प-
करुण रस - किसी प्रकार की अनिष्ट स्थिति , किसी प्रिय व्यक्ति अथवा वस्तु के नाश से उत्पन्न शोक का चित्रण करुण रस कहलाता है। करुण रस का स्थायी भाव शोक होता है।
वीर रस - युद्ध अथवा किसी कठिन कार्य को करने के लिए हृदय में जो उत्साह जागृत होता है ,उससे वीर रस की निष्पत्ति होती है।
वीर रस का स्थायी भाव 'उत्साह' होता है।
वीर रस के चार भेद होते हैं - युद्धवीर, दानवीर, धर्मवीर, दयावीर ।
हास्य रस - किसी विकृत अथवा असामान्य हाव -भाव ,चेष्टा ,क्रियाव्यापार ,वार्तालाप ,वस्तु , व्यक्ति अथवा स्थिति का ऐसा चित्रण जिससे हास्य उत्पन्न होता है ,हास्य रस कहलाता है। हास्य रस का स्थायी भाव 'हास' होता है।
रस सिद्धान्त भारतीय काव्य-शास्त्र का अति प्राचीन और प्रतिष्ठित सिद्धान्त है।नाट्यशास्त्र के प्रवर्तक आचार्य भरतमुनि का यह प्रसिद्ध सूत्र ‘रस-सिद्धान्त’ का मूल हैं-
विभावानुभावव्याभिचारिसंयोगाद्रसनिष्पत्तिः
अर्थात् विभाव, अनुभाव और संचारी भावों के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है। इस रस सूत्र का विवेचन सर्वप्रथम आचार्य भरत मुनि ने अपने ‘नाट्यशास्त्र’में किया।
महत्वपूर्ण बिन्दु:
आचार्य विश्वनाथ जी रसवादी आचार्य हैं, काव्य लक्षण की परिभाषा करते हुए उन्होंने कहा था –
“वाक्यं रसात्मकं काव्यम्”।
अर्थात् रसयुक्त वाक्य काव्य है।
रीतिकाल के प्रमुख कवि “देव" के शब्दों में-
“जो विभाव अनुभाव अरू, विभचारिणु करि होई।
थिति की पूरन वासना, सुकवि कहत रस होई॥"
‘कुमारसम्भव'में पानी, तरल और द्रव के अर्थ में रस शब्द का प्रयोग हुआ है तथा प्रेम की अनुभूति के लिए भी ‘कुमारसम्भव' में रस शब्द का प्रयोग हुआ है।
‘मनुस्मृति'मदिरा के लिए रस शब्द का प्रयोग करती है।
‘वैशेषिक दर्शन'में चौबीस गुणों में एक गुण का नाम रस है।
स्वाद, रूचि और इच्छा के अर्थ में भी ‘कालिदास'रस शब्द का प्रयोग करते हैं।
Question 87:
'अद्भुत रस' का स्थायी भाव क्या है ?
Correct Answer: 4
'अद्भुत रस' का स्थायी भाव 'विस्मय' है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु -
'रौद्र रस' का स्थायी भाव 'क्रोध' होता है।
'वीर रस' का स्थायी भाव 'उत्साह' होता है।
'वीभत्स रस' का स्थायी भाव 'घृणा' होता है।
अतिरिक्त बिंदु -
रस का शाब्दिक अर्थ है 'आनंद'।
रस की परिभाषा - काव्य को पढ़ने या सुनने से जिस आनंद की अनुभूति होती है, उसे 'रस' कहा जाता है।
रस के चार अवयव या अंग हैं - स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव।
Question 88:
जब मैं था तब हरि नाहिं अब हरि है मैं नाहिं।
सब अधियारा मिट गया जब दीपक देख्या माहिं।।
उपर्युक्त पंक्ति में कौन - सा रस है ?
Correct Answer: 4
प्रस्तुत पंक्ति में ‘शांत रस’ है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु -
शांत रस -अनित्य और असार तथा परमात्मा के वास्तविक रूप के ज्ञान से हृदय को शांति मिलती है और विषयों से वैराग्य हो जाता है।
यही अभिव्यक्त हो कर शांत-रस में परिणत हो जाता है।
दूसरे शब्दों में - निर्वेद परिपक्कवावस्था को शांत-रस’ ‘कहते हैं।
अन्य विकल्प -
करुण रस - किसी प्रकार की अनिष्ट स्थिति , किसी प्रिय व्यक्ति अथवा वस्तु के नाश से उत्पन्न शोक का चित्रण करुण रस कहलाता है। करुण रस का स्थायी भाव शोक होता है।
वीर रस - युद्ध अथवा किसी कठिन कार्य को करने के लिए हृदय में जो उत्साह जागृत होता है , उससे वीर रस की निष्पत्ति होती है।वीर रस का स्थायी भाव 'उत्साह' होता है। वीर रस के चार भेद होते हैं - युद्धवीर, दानवीर, धर्मवीर, दयावीर ।
हास्य रस - किसी विकृत अथवा असामान्य हाव -भाव ,चेष्टा ,क्रियाव्यापार ,वार्तालाप ,वस्तु , व्यक्ति अथवा स्थिति का ऐसा चित्रण जिससे हास्य उत्पन्न होता है ,हास्य रस कहलाता है। हास्य रस का स्थायी भाव 'हास' होता है।
अतिरिक्त बिंदु -
रस का शाब्दिक अर्थ है 'आनंद'।
रस की परिभाषा - काव्य को पढ़ने या सुनने से जिस आनंद की अनुभूति होती है, उसे 'रस' कहा जाता है।
रस के चार अवयव या अंग हैं - स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव।
Question 89:
सर्वश्रेष्ठ रस किसे माना जाता है?
Correct Answer: 2
श्रृंगार रस को ‘रसराज या रसपति' कहा जाता है।
श्रृंगार रस को रसराज इसलिए माना गया है क्योंकि यह अत्यंत व्यापक रहा है ।श्रृंगार शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है श्रृंग + आर । 'श्रृंग' का अर्थ है “कामोद्रेक” , 'आर' का अर्थ है वृद्धि प्राप्ती ।अतः श्रृंगार का अर्थ हुआ - कामोद्रेक की प्राप्ति या विधि श्रृंगार रस का स्थाई भाव दांपत्य प्रेम है ।
महत्वपूर्ण बिन्दु
रौद्र रस
रौद्र रस का स्थाई भाव क्रोध होता है।
जैसे- श्री कृष्ण के सुन वचन अर्जुन क्रोध से जलने लगे।
करुण रस
करुण रस का स्थाई भाव शोक होता है।
जैसे- शोक विकल सब रोवहि रानी।
रूपु शीलु बलु तेजु बखानी।।
श्रृंगार रस
श्रृंगार रस का स्थाई भाव रति या प्रेम होता है। श्रृंगार रस के दो प्रकार हैं-
संयोग श्रृंगार
वियोग श्रृंगार
वीर रस
“वीर रस" का स्थाई भाव “उत्साह" होता है।
जैसे- वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो।
सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो।
तुम कभी रुको नहीं, तुम कभी झुको नहीं।
Question 90:
स्थाई भावों की कुल संख्या है?
Correct Answer: 1
स्थाई भाव का मतलब है ‘प्रधान भाव'। स्थाई भाव ही रस का आधार है, स्थाई भावों की संख्या 9 मानी गई है। “प्रधान भाव" वही हो सकता है जो रस की अवस्था तक पहुंचाता है, काव्य या नाटक में एक स्थाई भाव शुरू से आखिर तक होता है।
महत्वपूर्ण बिन्दु :
रस को काव्य की “आत्मा” या “प्राण" तत्व माना जाता है।
पाठक या श्रोता के हृदय में स्थित स्थाई भाव ही विभाव आदि से संयुक्त होकर रस रूप में परिणत हो जाता है।
‘श्रृंगार रस' की व्यापक दायरे में ‘वात्सल्य रस' व ‘भक्ति रस' आ जाते हैं इसलिए रसों की संख्या 9 ही मानना ज्यादा उपयुक्त है।
आचार्य भरतमुनि को ‘काव्यशास्त्र का प्रथम आचार्य' माना जाता है उन्हें “रस संप्रदाय के प्रवर्तक" भी कहते हैं।
अतिरिक्त ज्ञान -
रस का शाब्दिक अर्थ है 'आनंद'।
रस की परिभाषा - काव्य को पढ़ने या सुनने से जिस आनंद की अनुभूति होती है, उसे 'रस' कहा जाता है।
रस के चार अवयव या अंग हैं - स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव।
Question 91:
मन रे तन कागद का पुतला।
लागै बूँद बिनसि जाय छिन में, गरब करै क्या इतना ।।
उपर्युक्त पंक्ति में कौन - सा रस है ?
Correct Answer: 4
प्रस्तुत पंक्ति में ‘शांत रस’ है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु -
शांत रस - अनित्य और असार तथा परमात्मा के वास्तविक रूप के ज्ञान से हृदय को शांति मिलती है और विषयों से वैराग्य हो जाता है। यही अभिव्यक्त हो कर शांत-रस में परिणत हो जाता है।दूसरे शब्दों में - निर्वेद परिपक्कवावस्था को ‘शांत-रस’ कहते हैं।
अन्य विकल्प -
करुण रस - किसी प्रकार की अनिष्ट स्थिति, किसी प्रिय व्यक्ति अथवा वस्तु के नाश से उत्पन्न शोक का चित्रण करुण रस कहलाता है। करुण रस का स्थायी भाव शोक होता है।
वीर रस - युद्ध अथवा किसी कठिन कार्य को करने के लिए हृदय में जो उत्साह जागृत होता है, उससे वीर रस की निष्पत्ति होती है।वीर रस का स्थायी भाव 'उत्साह' होता है। वीर रस के चार भेद होते हैं - युद्धवीर, दानवीर, धर्मवीर, दयावीर।
हास्य रस - किसी विकृत अथवा असामान्य हाव -भाव ,चेष्टा ,क्रियाव्यापार ,वार्तालाप ,वस्तु , व्यक्ति अथवा स्थिति का ऐसा चित्रण जिससे हास्य उत्पन्न होता है, हास्य रस कहलाता है। हास्य रस का स्थायी भाव 'हास' होता है।
अतिरिक्त बिंदु -
रस का शाब्दिक अर्थ है 'आनंद'।
रस की परिभाषा - काव्य को पढ़ने या सुनने से जिस आनंद की अनुभूति होती है, उसे 'रस' कहा जाता है।
रस के चार अवयव या अंग हैं - स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव।
Question 92:
रसों को उदित और उद्दीप्त करने वाली सामग्री क्या कहलाती है ?
Correct Answer: 1
रसों को उदित और उद्दीप्त करने वाली सामग्री विभाव कहलाती है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु -
विभाव दो प्रकार के होते हैं- आलम्बन विभाव और उद्दीपन विभाव।
अन्य विकल्प -
अनुभाव - आंतरिक मनोभावों के जो शारीरिक व्यंजन होते हैं , उनको अनुभाव कहते हैं। अनुभाव के दो प्रकार हैं- सात्विक और कायिक।
स्थायी भाव - रस की उत्पत्ति मन की भिन्न - भिन्न प्रवृत्तियों से होती है। विभिन्न प्रकार की आवृत्तियों से विविध रसों की उत्पत्ति होती है। इन प्रवृत्तियों को रस का स्थायी भाव कहते हैं।
संचारी भाव - जो भाव स्थायी भावों के सहायक रूप में आकर उनमें मिल जाए, वे संचारी भाव कहलाते हैं जो अनुकूल परिस्थितियों में घटते-बढ़ते रहते हैं। भरतमुनि के अनुसार ये पानी में उठने और आप ही आप विलीन होने वाले बुलबुलों के समान हैं।
अतिरिक्त बिंदु -
रस का शाब्दिक अर्थ है 'आनंद'।
रस की परिभाषा - काव्य को पढ़ने या सुनने से जिस आनंद की अनुभूति होती है, उसे 'रस' कहा जाता है।
रस के चार अवयव या अंग हैं - स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव।
Question 93:
"प्रिय पति वह मेरा प्राण प्यारा कहाँ हैं ?
दुःख जलनिधि डूबी का सहारा कहाँ है ?"
उपर्युक्त पंक्ति में कौन - सा रस है ?
Correct Answer: 1
प्रस्तुत पंक्ति में ‘करुण रस’ है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु -
करुण रस - किसी प्रकार की अनिष्ट स्थिति , किसी प्रिय व्यक्ति अथवा वस्तु के नाश से उत्पन्न शोक का चित्रण 'करुण रस' कहलाता है।
करुण रस का स्थायी भाव 'शोक' होता है।
अन्य विकल्प -
वीर रस - युद्ध अथवा किसी कठिन कार्य को करने के लिए हृदय में जो उत्साह जागृत होता है , उससे 'वीर रस' की निष्पत्ति होती है।वीर रस का स्थायी भाव 'उत्साह' होता है। वीर रस के चार भेद होते हैं - युद्धवीर, दानवीर, धर्मवीर, दयावीर ।
हास्य रस - किसी विकृत अथवा असामान्य हाव -भाव ,चेष्टा ,क्रियाव्यापार ,वार्तालाप ,वस्तु , व्यक्ति अथवा स्थिति का ऐसा चित्रण जिससे हास्य उत्पन्न होता है ,'हास्य रस' कहलाता है। हास्य रस का स्थायी भाव 'हास' होता है।
श्रृंगार रस - शृंगार रस का आधार स्त्री - पुरुष का आकर्षण है जिसे शास्त्रीय भाषा में रति स्थायी भाव कहते हैं। जब विभाव , अनुभाव और संचारी भावों के संयोग से रति भाव में आस्वाद की योग्यता उत्पन्न हो जाती है , उसे 'श्रृंगार रस' कहते है। श्रृंगार रस के दो भेद होते हैं - संयोग श्रृंगार और वियोग श्रृंगार ।शृंगार रस को 'रसराज' और 'रसपति' भी कहा जाता है।
अतिरिक्त बिंदु -
रस का शाब्दिक अर्थ है 'आनंद'।
रस की परिभाषा - काव्य को पढ़ने या सुनने से जिस आनंद की अनुभूति होती है, उसे 'रस' कहा जाता है।
रस के चार अवयव या अंग हैं - स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव।
Question 94:
वीर रस का स्थायी भाव है -
Correct Answer: 4
वीर रस - युद्ध अथवा किसी कठिन कार्य को करने के लिए हृदय में जो उत्साह जागृत होता है , उससे वीर रस की निष्पत्ति होती है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु-
वीर रस का स्थायी भाव 'उत्साह' होता है।
वीर रस के चार भेद होते हैं - युद्धवीर, दानवीर, धर्मवीर, दयावीर ।
अन्य विकल्प-
करुण रस का स्थायी भाव 'शोक' होता है।
श्रृंगार रस का स्थायी भाव 'रति' होता है।
हास्य रस का स्थायी भाव 'हास' होता है।
अतिरिक्त बिंदु-
रस का शाब्दिक अर्थ है 'आनंद'।
रस की परिभाषा - काव्य को पढ़ने या सुनने से जिस आनंद की अनुभूति होती है, उसे 'रस' कहा जाता है।
रस के चार अवयव या अंग हैं - स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव।
Question 95:
बरतस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय।
सौंह करे, भौंहिनी हँसै, दैन कहै, नटि जाय।।
उपर्युक्त पंक्ति में कौन - सा रस है ?
Correct Answer: 4
प्रस्तुत पंक्ति में ‘श्रृंगार रस’ है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु-
शृंगार रस - शृंगार रस का आधार स्त्री - पुरुष का आकर्षण है जिसे शास्त्रीय भाषा में रति स्थायी भाव कहते हैं। जब विभाव , अनुभाव और संचारी भावों के संयोग से रति भाव में आस्वाद की योग्यता उत्पन्न हो जाती है , उसे शृंगार रस कहते है। शृंगार रस को 'रसराज' और 'रसपति' भी कहा जाता है।
शृंगार रस के दो भेद होते हैं - संयोग शृंगार और वियोग शृंगार।
प्रस्तुत पंक्तियों में 'संयोग शृंगार रस' प्रयुक्त है।
अन्य विकल्प-
करुण रस - किसी प्रकार की अनिष्ट स्थिति , किसी प्रिय व्यक्ति अथवा वस्तु के नाश से उत्पन्न शोक का चित्रण करुण रस कहलाता है। करुण रस का स्थायी भाव शोक होता है।
वीर रस - युद्ध अथवा किसी कठिन कार्य को करने के लिए हृदय में जो उत्साह जागृत होता है , उससे वीर रस की निष्पत्ति होती है। वीर रस का स्थायी भाव 'उत्साह' होता है। वीर रस के चार भेद होते हैं - युद्धवीर, दानवीर, धर्मवीर, दयावीर ।
हास्य रस - किसी विकृत अथवा असामान्य हाव -भाव ,चेष्टा ,क्रियाव्यापार ,वार्तालाप ,वस्तु , व्यक्ति अथवा स्थिति का ऐसा चित्रण जिससे हास्य उत्पन्न होता है, 'हास्य रस' कहलाता है। हास्य रस का स्थायी भाव 'हास' होता है।
Question 96:
ऊधो, मन न भए दस बीस ।
एक हुतो सौ गयौ स्याम संग,को अवराधै ईस ।।
उपर्युक्त पंक्तियों में कौन - सा रस है ?
Correct Answer: 4
प्रस्तुत पंक्तियों में ‘शृंगार रस’ है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु -
शृंगार रस - शृंगार रस का आधार स्त्री - पुरुष का आकर्षण है जिसे शास्त्रीय भाषा में रति स्थायी भाव कहते हैं।
जब विभाव, अनुभाव और संचारी भावों के संयोग से रति भाव में आस्वाद की योग्यता उत्पन्न हो जाती है, उसे शृंगार रस कहते हैं ।
शृंगार रस के दो भेद होते हैं - संयोग शृंगार और वियोग शृंगार। प्रस्तुत पंक्तियों में वियोग शृंगार रस का वर्णन है।
अन्य विकल्प -
करुण रस - किसी प्रकार की अनिष्ट स्थिति , किसी प्रिय व्यक्ति अथवा वस्तु के नाश से उत्पन्न शोक का चित्रण करुण रस कहलाता है। करुण रस का स्थायी भाव शोक है।
वीर रस - युद्ध अथवा किसी कठिन कार्य को करने के लिए हृदय में जो उत्साह जागृत होता है , उससे वीर रस की निष्पत्ति होती है। वीर रस का स्थायी भाव 'उत्साह' है।
हास्य रस - किसी विकृत अथवा असामान्य हाव -भाव ,चेष्टा ,क्रियाव्यापार ,वार्तालाप ,वस्तु , व्यक्ति अथवा स्थिति का ऐसा चित्रण जिससे हास्य उत्पन्न होता है, हास्य रस कहलाता है। हास्य रस का स्थायी भाव 'हास' है।
अतिरिक्त बिंदु -
रस का शाब्दिक अर्थ है 'आनंद'।
रस की परिभाषा - काव्य को पढ़ने या सुनने से जिस आनंद की अनुभूति होती है, उसे 'रस' कहा जाता है।
रस के चार अवयव या अंग हैं - स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव।
Question 97:
साजि चतुरंग सैन अंग में उमंग धारी,
सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत हैं।
प्रस्तुत वाक्य में कौन - सा रस प्रयुक्त है ?
Correct Answer: 2
प्रस्तुत पंक्ति में ‘वीर रस’ प्रयुक्त है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु -
उपर्युक्त पंक्तियों में शिवाजी की चतुरंगिणी सेना के प्रयाण (प्रस्थान ) का चित्रण है।
वीर रस - युद्ध अथवा किसी कठिन कार्य को करने के लिए हृदय में जो उत्साह जागृत होता है, उससे वीर रस की निष्पत्ति होती है।
वीर रस का स्थायी भाव 'उत्साह' होता है।
वीर रस के चार भेद होते हैं - युद्धवीर , दानवीर , धर्मवीर , दयावीर ।
अन्य विकल्प -
करुण रस - किसी प्रकार की अनिष्ट स्थिति , किसी प्रिय व्यक्ति अथवा वस्तु के नाश से उत्पन्न शोक का चित्रण करुण रस कहलाता है। करुण रस का स्थायी भाव ‘शोक’ होता है।
हास्य रस - किसी विकृत अथवा असामान्य हाव -भाव ,चेष्टा ,क्रियाव्यापार ,वार्तालाप ,वस्तु , व्यक्ति अथवा स्थिति का ऐसा चित्रण जिससे हास्य उत्पन्न होता है, हास्य रस कहलाता है। हास्य रस का स्थायी भाव 'हास' होता है।
शृंगार रस - शृंगार रस का आधार स्त्री - पुरुष का आकर्षण है जिसे शास्त्रीय भाषा में रति स्थायी भाव कहते हैं। जब विभाव , अनुभाव और संचारी भावों के संयोग से रति भाव में आस्वाद की योग्यता उत्पन्न हो जाती है , उसे शृंगार रस कहते है। शृंगार रस के दो भेद होते हैं - संयोग शृंगार और वियोग शृंगार।
Question 98:
बरतस लालच लाल की,मुरली धरी लुकाय ।
सौंह करे, भौंहिनी हँसै, दैन कहै, नटि जाय।।
उपर्युक्त पंक्ति में कौन - सा रस है ?
Correct Answer: 4
प्रस्तुत पंक्ति में ‘शृंगार रस’ है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु -
शृंगार रस - शृंगार रस का आधार स्त्री - पुरुष का आकर्षण है जिसे शास्त्रीय भाषा में रति स्थायी भाव कहते हैं।
जब विभाव , अनुभाव और संचारी भावों के संयोग से रति भाव में आस्वाद की योग्यता उत्पन्न हो जाती है , उसे शृंगार रस कहते है।
शृंगार रस के दो भेद होते हैं - संयोग शृंगार और वियोग शृंगार।
अन्य विकल्प -
करुण रस - किसी प्रकार की अनिष्ट स्थिति , किसी प्रिय व्यक्ति अथवा वस्तु के नाश से उत्पन्न शोक का चित्रण करुण रस कहलाता है। करुण रस का स्थायी भाव शोक होता है।
वीर रस- युद्ध अथवा किसी कठिन कार्य को करने के लिए हृदय में जो उत्साह जागृत होता है , उससे वीर रस की निष्पत्ति होती है।वीर रस का स्थायी भाव 'उत्साह' होता है। वीर रस के चार भेद होते हैं - युद्धवीर , दानवीर , धर्मवीर , दयावीर ।
हास्य रस - किसी विकृत अथवा असामान्य हाव -भाव ,चेष्टा ,क्रियाव्यापार ,वार्तालाप ,वस्तु , व्यक्ति अथवा स्थिति का ऐसा चित्रण जिससे हास्य उत्पन्न होता है ,हास्य रस कहलाता है। हास्य रस का स्थायी भाव 'हास' होता है।
अतिरिक्त बिंदु -
रस का शाब्दिक अर्थ है 'आनंद'। काव्य को पढ़ने या सुनने से जिस आनंद की अनुभूति होती है, उसे रस कहा जाता है।
रस के चार अवयव या अंग हैं - स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव , संचारी भाव ।
Question 99:
"धोखा न दो भैया मुझे, इस भाँति आकर के यहाँ
मझधार में मुझको बहाकर तात जाते हो कहाँ ?"
उपर्युक्त पंक्ति में कौन - सा रस है ?
Correct Answer: 1
प्रस्तुत पंक्ति में करुण रस है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु-
करुण रस - किसी प्रकार की अनिष्ट स्थिति , किसी प्रिय व्यक्ति अथवा वस्तु के नाश से उत्पन्न शोक का चित्रण करुण रस कहलाता है।
करुण रस का स्थायी भाव शोक होता है।
अन्य विकल्प-
वीर रस -युद्ध अथवा किसी कठिन कार्य को करने के लिए हृदय में जो उत्साह जागृत होता है , उससे वीर रस की निष्पत्ति होती है।वीर रस का स्थायी भाव 'उत्साह' होता है।वीर के चार भेद होते हैं - युद्धवीर , दानवीर , धर्मवीर , दयावीर ।
हास्य रस - किसी विकृत अथवा असामान्य हाव -भाव ,चेष्टा ,क्रियाव्यापार ,वार्तालाप ,वस्तु , व्यक्ति अथवा स्थिति का ऐसा चित्रण जिससे हास्य उत्पन्न होता है ,हास्य रस कहलाता है। हास्य रस का स्थायी भाव 'हास' होता है।
शृंगार रस - शृंगार रस का आधार स्त्री - पुरुष का आकर्षण है जिसे शास्त्रीय भाषा में रति स्थायी भाव कहते हैं। जब विभाव , अनुभाव और संचारी भावों के संयोग से रति भाव में आस्वाद की योग्यता उत्पन्न हो जाती है , उसे शृंगार रस कहते है। शृंगार रस के दो भेद होते हैं - संयोग शृंगार और वियोग शृंगार।
Question 100:
वीर रस का स्थायी भाव है -
Correct Answer: 2
युद्ध अथवा किसी कठिन कार्य को करने के लिए हृदय में जो उत्साह जागृत होता है , उससे वीर रस की निष्पत्ति होती है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु -
वीर रस का स्थायी भाव 'उत्साह' होता है।
वीर रस के चार भेद होते हैं - युद्धवीर , दानवीर , धर्मवीर , दयावीर ।
अन्य विकल्प -
करुण रस - किसी प्रकार की अनिष्ट स्थिति , किसी प्रिय व्यक्ति अथवा वस्तु के नाश से उत्पन्न शोक का चित्रण करुण रस कहलाता है। करुण रस का स्थायी भाव ‘शोक’ होता है।
हास्य रस - किसी विकृत अथवा असामान्य हाव - भाव ,चेष्टा ,क्रियाव्यापार ,वार्तालाप ,वस्तु , व्यक्ति अथवा स्थिति का ऐसा चित्रण जिससे हास्य उत्पन्न होता है,हास्य रस कहलाता है। हास्य रस का स्थायी भाव 'हास' होता है।
श्रृंगार रस - श्रृंगार रस का आधार स्त्री - पुरुष का आकर्षण है, जिसे शास्त्रीय भाषा में ‘रति’ स्थायी भाव कहते हैं। जब विभाव , अनुभाव और संचारी भावों के संयोग से रति भाव में आस्वाद की योग्यता उत्पन्न हो जाती है , उसे श्रृंगार रस कहते है। श्रृंगार रस के दो भेद होते हैं - संयोग श्रृंगार और वियोग श्रृंगार।
अतिरिक्त बिंदु -
रस का शाब्दिक अर्थ है 'आनंद'। काव्य को पढ़ने या सुनने से जिस आनंद की अनुभूति होती है, उसे रस कहा जाता है।
रस के चार अवयव या अंग हैं - स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव।